Tuesday 7 July 2020

कहीं ऐसे भी युद्ध का नज़ारा परोसा जाता है , मीडिया पर भला ?



रिपोर्टिंग के दौरान कुछ समय तक मिलेट्री भी हमारी बीट रही है। लेकिन जनरल लोगों से लाख पूछने पर सेना की संख्या और साजो सामान आदि-इत्यादि की कोई अधिकृत सूचना कभी नहीं मिली। टॉप सीक्रेट कह कर मामला टाल दिया जाता था। मिलेट्री कवरेज के नाम पर उन की परेड , उन का खेल , उन का खाना , उन का पीना ही नसीब रहा। ख़ास कर मिलेट्री का एक सालाना बड़ा खान का कार्यक्रम बहुत भव्य रहता था। बरेली में सेना दिवस मनाने का कवरेज करने भी गया हूं। वायु सेना के हेलीकाप्टर और जहाज का भी आनंद लिया है।

मुलायम सिंह यादव जब रक्षा मंत्री थे तब उन को भी कवर किया है। मुलायम भी सेना को अच्छा बनाने , अच्छा वेतन देने आदि की ही मीठी-मीठी बातों में बात खत्म कर देते थे। सेना की जासूसी में पकड़े जाने वाले लोगों के पास से भी नक्शे और सेना की तादाद और हथियार आदि की सूचनाएं बताई जाती थीं। लेकिन अब चीन से बिगड़े हालात में देख रहा हूं कि रिपोर्टर और एंकर लोग धड़ल्ले से सेना की तादाद , जहाज कौन-कौन से और कितने , सारे साजो-सामान आदि के विवरण ऐसे परोस रहे हैं गोया क्रिकेट की कमेंट्री सुना रहे हों। गोया कार्ड खोल कर ताश खेल रहे हों। इतना ही नहीं युद्ध की सारी रणनीति भी बताए दे रहे हैं। यह परिवर्तन क्यों और कैसे हो गया है , समझ बिलकुल नहीं आ रहा।

कहीं ऐसे भी युद्ध का नज़ारा परोसा जाता है , मीडिया पर भला ? जब आप को इतना कुछ मालूम है तो चीन और पाकिस्तान को कितना मालूम होगा। और दिलचस्प यह कि सेना , मीडिया और चीन से भी ज़्यादा राहुल गांधी और कांग्रेस के प्रवक्ताओं को मालूम है। कि भारतीय सेना कहां-कहां चीन के आगे घुटने टेके हुए है। जब कि भाजपा प्रवक्ताओं को यह मालूम है कि चीन कैसे और कितना डरा हुआ है। थर-थर कांप रहा है। इतना कि वीर रस के मंचीय कवि भी फेल। सेना के पूर्व अधिकारियों में ज़रूर फूट पड़ी हुई है। कुछ जनरल कांग्रेस की बोली बोल रहे हैं तो ज़्यादातर सेना और देश की भाषा बोल रहे हैं।

मोदी वार्ड के बुद्धिजीवी मरीजों ने , कठमुल्ले मुस्लिमों ने पहले तो मोदी की हार की प्रत्याशा में चीन का गुणगान किया और बताया कि मोदी देश को बेच खाएगा , चीन भारत को खा जाएगा। अब जब चीन की सेना की वापसी की खबरें आने लगीं , चीन अपना ही थूक चाटने लगा तो इन्हीं लोगों ने कहना शुरू किया कि चीन के लिए भारत कभी तनाव का सबब था ही नहीं। चीन तो हांगकांग की फ़िक्र में है। अमरीका की फ़िक्र में है। भारत तो चीन के आगे पिद्दी है। अजब मंज़र है।

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