Sunday 17 November 2019

मर्यादा पुरुषोत्तम राम को सम्मान दे कर विदा हुए जस्टिस रंजन गोगोई

दयानंद पांडेय 


होते हैं कुछ लोग जो अपनी पहचान सिर्फ ईमानदार और काबिल व्यक्ति के तौर पर ही रखना चाहते हैं। बाक़ी कुछ नहीं। आज रिटायर हुए भारत के मुख्य न्यायाधीश रंजन गोगोई को भी मैं समझता हूं लोग ईमानदार और क़ाबिल शख्स के रूप में याद रखना चाहेंगे। कम से कम उन का न्यायिक इतिहास इस बात का साक्षी है। एक नहीं अनेक किस्से हैं , फ़ैसले हैं जस्टिस रंजन गोगोई की इस यात्रा के पड़ाव में। अभी अगर तुरंत-तुरंत कोई मुझ से किन्हीं दो जस्टिस का नाम पूछे इस बाबत तो मैं धड़ से दो जस्टिस लोगों का नाम ले लूंगा। ईमानदार और काबिल। एक जस्टिस जगमोहन लाल सिनहा का दूसरे जस्टिस रंजन गोगोई का। जस्टिस जगमोहन लाल सिनहा ने भी न्यायिक इतिहास में अपने एक फैसले से अपना नाम स्वर्णिम अक्षरों में  दर्ज करवाया था। तब की सर्वशक्तिमान इंदिरा गांधी को चुनाव में अयोग्य ठहरा कर भारत की राजनीति और उस की दिशा बदल दी थी। भारतीय न्यायिक इतिहास में ऐसा फ़ैसला न भूतो , न भविष्यति। तब जब कि सारी सरकारी और न्यायिक मशीनरी का उन पर बेतरह दबाव था। ढेरो प्रलोभन थे। सुप्रीम कोर्ट में जस्टिस बना देने तक का प्रलोभन। लेकिन जस्टिस सिनहा नहीं झुके तो नहीं झुके। जस्टिस सिनहा ही क्यों उन के निजी सचिव मन्ना लाल तक पर दबाव था। मन्ना लाल भी किसी दबाव में नहीं आए। 

पर यहां अभी हम जस्टिस रंजन गोगोई की बात कर रहे हैं। पहली बार जस्टिस रंजन गोगोई का नाम मैं ने तब सुना जब उन्हों ने बड़बोले रिटायर्ड जज मार्कण्डेय काटजू को अवमानना नोटिस जारी कर दिया। यह 2016 की बात है। जब जस्टिस काटजू सुप्रीम कोर्ट में न सिर्फ़ पेश हुए बल्कि अपनी फेसबुक पोस्ट के लिए बिना शर्त माफ़ी मांगी। कोलकाता हाईकोर्ट के बिगड़ैल जस्टिस सी एस कर्णन को भी जेल भेजने वाली बेंच में जस्टिस गोगोई की उपस्थिति थी। जो जस्टिस अपने जस्टिस लोगों के साथ भी न्यायिक प्रक्रिया में कोई रियायत न बरते वह जस्टिस रंजन गोगोई अब जब रिटायर हो गए हैं तब वह मुझे न सिर्फ अपनी न्यायिक सक्रियता के लिए याद आ रहे हैं , बल्कि न्यायिक पवित्रता को भी बचाने के लिए याद आ रहे हैं। सुप्रीम कोर्ट के 25 न्यायाधीशों में से जिन 11 न्याययधीशों ने वेबसाइट पर अपनी संपत्ति का सार्वजनिक विवरण पेश किया , रंजन गोगोई भी उन में से एक हैं। रंजन गोगोई के खाते में कई सारे न्यायिक कार्य हैं जो उन्हें न्यायिक इतिहास में सूर्य की तरह उपस्थित रखेंगे। आसाम में एन आर सी की राह सुगम बनाने में जस्टिस रंजन गोगोई को हम कैसे भूल पाएंगे। ठीक वैसे ही राफेल विवाद में भी गोगोई का नजरिया बिलकुल साफ़ रहा। राफेल की राह भी आसान की और सरकार को क्लीन चिट भी दी। सुप्रीम कोर्ट को भी आर टी आई के दायरे में रखने का आदेश जस्टिस गोगोई ने ही दिया। प्रेस कांफ्रेंस के लिए भी उन्हें कौन भूल सकता है। 

जस्टिस रंजन गोगोई ने लेकिन जो एक सब से बड़ा काम किया वह है अयोध्या में राम जन्म-भूमि मुकदमे का सम्मानजनक और खूबसूरत फैसला। सदियों पुराना विवाद एक झटके में 40 दिन की निरंतर सुनवाई के बाद निर्णय सुनाना आसान काम तो नहीं ही था। लेकिन वह जो कहते हैं न कि न्याय हो और होता हुआ दिखाई भी दे। राम मंदिर के फैसले में यही हुआ। ऐसा फैसला दिया जस्टिस रंजन गोगोई की अध्यक्षता वाली बेंच ने जिस का स्वागत लगभग पूरे देश ने किया। कुछ लोग पुनर्विचार याचिका की बात भी कर रहे हैं , यह उन का कानूनी और संवैधानिक अधिकार है। लेकिन जस्टिस गोगोई की बेंच ने ऐसा खूबसूरत फैसला एकमत से दिया है कि अब इस में कोई भी अदालत कुछ इधर-उधर नहीं कर सकती। सो सदियों पुराने इस विवाद का यह फैसला लोग सदियों याद रखेंगे। यह फैसला दुनिया के लिए एक नज़ीर बन चुका है। 

तमाम जगहों की तरह सुप्रीम कोर्ट भी काजल की कोठरी है। तो इस काजल की कोठरी में रंजन गोगोई को भी घेरा गया। एक महिला के मार्फत गोगोई पर यौन शोषण का आरोप लगा कर घेरा गया। लेकिन गोगोई बेदाग निकले। माना गया कि गोगोई राम मंदिर का मसला नहीं सुन सकें , इस लिए यौन शोषण का यह व्यूह रचा गया। ठीक वैसे ही जैसे कभी चीफ जस्टिस रहे दीपक मिश्रा पर महाभियोग का दांव संसद में चला गया था। सो दीपक मिश्रा चुपचाप इस मंदिर मामले को ठंडे बस्ते में डाल कर किनारे हो गए। लेकिन गोगोई हार कर किनारे नहीं हुए। डट कर मुकाबला किया। और तय मानिए मिस्टर गोगोई अगर किसी बहाने आप भी इस फैसले से चूक गए होते तो जनता-जनार्दन का न्यायपालिका नाम की संस्था से यकीन उठ गया होता। और स्थितियां इतनी बिगड़ गई थीं कि अब न्यायपालिका की राह भूल कर इस राम मंदिर के लिए लोग संसद की राह देख रहे थे। कि अब संसद में क़ानून बना कर राम मंदिर निर्माण की बात हो जाए। लोगों का धैर्य जवाब दे रहा था। न्यायपालिका से लोग अपनी उम्मीद तोड़ चुके थे। लेकिन यह रास्ता शायद निरापद न होता। सो आप ने राम की , लोक की मर्यादा तो रख ही ली , न्यायपालिका की खोती हुई मर्यादा भी संभाल ली है रंजन गोगोई । न्यायपालिका का बुझता हुआ दीप भी बचा लिया है। इस एक स्वर्णिम फैसले से। 

ज़िक्र ज़रूरी है कि जस्टिस रंजन गोगोई आसाम के उस राज परिवार से आते हैं जिसे अहम राजपरिवार कहा जाता है। माना जाता है कि आसाम में जितने भी छोटे-बड़े मंदिर हैं , इसी राज परिवार ने बनवाए हैं। और अब इस परिवार के खाते में अयोध्या का राम मंदिर बनवाने का श्रेय भी आ जुड़ा है। यह एक विरल संयोग है। 

संयोग ही है कि रंजन गोगोई दो भाई हैं। इन के पिता केशव गोगोई जो आसाम के मुख्य मंत्री भी रहे हैं , चाहते थे कि कोई एक बेटा सैनिक स्कूल में पढ़ने जाए। यह तय करने के लिए कौन जाए , टॉस किया गया। टॉस में बड़े भाई अंजन गोगोई को सैनिक स्कूल जाने की बात आई। वह गए भी। और एयर मार्शल बने। संयोग ही है कि रंजन गोगोई गौहाटी , पंजाब और हरियाणा हाईकोर्ट होते हुए सुप्रीम कोर्ट आए। चीफ जस्टिस ऑफ़ इंडिया हुए। और बतौर चीफ़ जस्टिस ऑफ़ इंडिया राम जन्म-भूमि मामले की सुनवाई की बेंच बनाई और इस की अध्यक्षता करते हुए एक स्वर्णिम फैसला लिख कर अपना नाम न्यायिक इतिहास में स्वर्णिम अक्षरों में दर्ज होने का सौभाग्य भी पाया। और देखिए न कि आज रिटायर होते ही वह सपत्नीक तिरुपति मंदिर पहुंच गए। सचमुच मिस्टर जस्टिस रंजन गोगोई , भारतीय न्यायिक इतिहास में इस फैसले के लिए लोग सदियों तक आप को सर्वदा-सर्वदा याद करेंगे। इस लिए भी कि न सिर्फ आप ने सदियों पुराना विवाद चुटकी भर में सुलटा दिया बल्कि आप ने सही मायने में संपूर्ण न्याय किया। बिना किसी पक्षपात के। तो क्या वह टॉस इसी के निमित्त हुआ था। इस शानदार फैसले के निमित्त। 

मजाक भले चल रहा है कि एक भगवान का न्याय , इंसान कर रहा है। पर सच यही है। कि इस कलयुग में भगवान को भी न्याय इंसान से मिला है। यह हमारा अंतर्विरोध है। दुर्भाग्य भी। लेकिन न्याय तो न्याय ही होता है। इतना कि आप के इस शानदार फैसले से लोग वह मुहावरा भी भूल चले हैं कि देर से मिला न्याय भी अन्याय होता है। यह सब भूल कर लोग न्याय महसूस कर रहे हैं। सदियों बाद ऐसा क्षण आया है। ऐसा न्याय आया है। सचमुच में राम राज्य वाला न्याय , राम को भी मिला है। बहुत आभार जस्टिस रंजन गोगोई , बहुत आभार। पूरा देश आप का ऋणी है। समूची मनुष्यता आप की ऋणी है। कि आप ने ऐसा फैसला दिया है कि जिसे बिना किसी मार-काट के लोगों ने स्वीकार लिया है। अब अलग बात है कि इस मार-काट न होने के पीछे नरेंद्र मोदी के शासन का संयोग भी है। फिर भी इस के लिए असल बधाई के पात्र सिर्फ़ और सिर्फ आप हैं जस्टिस रंजन गोगोई। कभी राम ने एक पत्थर को छू कर अहिल्या को फिर से जीवन दे दिया था। श्राप से मुक्त कर दिया था। आप ने यह फैसला दे कर राम को सम्मान दे दिया है। मर्यादा पुरुषोत्तम राम का सम्मान। लोहिया ने लिखा है , राम,कृष्ण और शिव भारत में पूर्णता के तीन महान स्वप्न हैं। तो यह एक टूटा हुआ स्वप्न भी पूरा किया। 

तिरुपति मंदिर में रंजन गोगोई 


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