Wednesday 25 September 2019

आप गरियाते रहिए नरेंद्र मोदी को , करते रहिए नफ़रत और कुढ़ते रहिए


आप गरियाते रहिए नरेंद्र मोदी को। करते रहिए नफ़रत और कुढ़ते रहिए। आज उस ने 50 हज़ार भारतीयों के बीच दुनिया की महाशक्ति अमरीका में ही , अमरीका के राष्ट्रपति ट्रंप को बच्चों की तरह सामने बैठा कर हिंदी में अपना भाषण सुना दिया। और ट्रंप लगातार ताली बजाते रहे। भाकपा महासचिव और मूर्ख डी राजा भले कहता फिरे कि हिंदी , हिंदुत्व की भाषा है। पर मोदी ने आज फिर साबित किया कि हिंदी , वैश्विक भाषा है , विश्व बंधुत्व की भाषा है। भारत में कुछ अराजक अकसर कहते रहते हैं कि आतंक का कोई धर्म नहीं होता। लेकिन इसी सभा में ट्रंप ने साफ़ बता दिया कि इस्लामिक आतंकवाद से भारत और अमरीका साथ-साथ लड़ेंगे। बिना नाम लिए मोदी ने पाकिस्तान और शांति दूत इमरान खान का बैंड बजा दिया। कश्मीर से 370 हटाने की बात को भी खूब ललकार कर मोदी ने रखा। भारतीय मूल के हर क्षेत्र के अमरीकी यहां उपस्थित थे। व्यापारिक और रक्षा संबंधों की बात भी दोनों ने की। अमरीका में आज का दिन नरेंद्र मोदी के बहाने भारत के गौरव का दिन रहा। नरेंद्र मोदी का खूब बड़ा वाला सैल्यूट ! महाशक्ति के साथ कंधे से कंधा मिला कर , बराबरी के साथ खड़े होने पर सैल्यूट !

आप करते रहिए तीन-तिकड़म और कुढ़ कर , खीझ कर बताते रहिए कि ट्रंप ने मोदी का इस्तेमाल किया है अपने चुनाव खातिर। सच यह है कि मोदी ने ट्रंप को मित्रवत भारत के पक्ष में कर लिया है। मित्रवत ही नहीं , कूटनीतिक रूप से ही। यह पहली बार ही हुआ है कि महाशक्ति ट्रंप ने पब्लिकली कहा कि अगर मोदी बुलाएंगे तो भारत ज़रूर आऊंगा। और देखिए कि मोदी ने बिना समय गंवाए , फौरन ट्रंप को सपरिवार निमंत्रण दे दिया। दोनों ने एक दूसरे की तारीफ की। ट्रंप ने मोदी को टफ डील वाला बताया तो मोदी ने ट्रंप को आर्ट आफ डील के लिए याद किया। अभी दो तीन दिन में भारत के पक्ष में कुछ और चौकाने वाले फैसले आने वाले हैं। सचमुच यह नई हिस्ट्री और नई केमिस्ट्री है। सचमुच जैसा कि इस कार्यक्रम हाऊडी मोदी को परिभाषित करते हुए नरेंद्र मोदी ने कई सारी भारतीय भाषाओँ में जो एक बात बार-बार कही , वह ठीक ही कही कि , भारत में सभी कुछ अच्छा है !

अलग बात है मुट्ठी भर दिलजले इस टिप्पणी को पढ़ कर मुझ से भी कुढ़ कर जल भुन जाएंगे। मुझे फिर गरियाएंगे। बताएंगे कि पत्रकार और साहित्यकार को सत्ता के ख़िलाफ़ रहना चाहिए। गुड है । ऐसे लोगों की बीमारी और मनोवृत्ति पर गोरख पांडेय की एक कविता याद आती है :

राजा ने कहा रात है
रानी ने कहा रात है
मंत्री ने कहा रात है
सब ने कहा रात है

यह सुबह-सुबह की बात है !

क्षमा कीजिए , मुझे सुबह को रात कहने की कला नहीं आती। इस कला से , इस बीमारी से मैं मुक्त हूं। मुझे मुक्त रहने दीजिए।

तो कूटनीति गिव एंड टेक से ही होती है , इस बात को नहीं जानते हैं तो अब से जान लीजिए। एक दूसरे की पीठ खुजा कर ही होती है। एक दूसरे को गरिया कर नहीं। एक दूसरे का अहित कर के नहीं। स्वार्थ ही एक दूसरे को एक करता है । नि:स्वार्थ कुछ नहीं होता । कहीं भी , कभी भी । किसी भी के साथ । फिर यह तो कूटनीति है । सो अपने आग्रह और बीमारी से छुट्टी ले लेने में नुकसान नहीं है। ठीक ?

जो लोग कभी कहते थे कि अमरीका , भारत के चुनाव में दखल दे रहा है। आज वही लोग कह रहे हैं कि भारत , अमरीका के चुनाव में दखल दे रहा है। बहुत कंफ्यूजन है कि यह लोग आखिर कहना क्या चाह रहे हैं ? अंगरेजी मुझे भी बहुत अच्छी नहीं आती। लेकिन नरेंद्र मोदी ने कल अंगरेजी में कहा था कि अमरीका में बीते चुनाव में ट्रंप ने भारत की तर्ज पर कहा था कि अब की बार ट्रंप सरकार ! बस कांग्रेस के आनंद शर्मा और कामरेड सीताराम येचुरी ने यही पकड़ लिया कि मोदी अमरीका के चुनाव में दखल दे रहे। ट्रंप का प्रचार कर रहे हैं। वेरी गुड है ! बात को पकड़ने भी ठीक से नहीं आता , तो बाक़ी क्या पकड़ेंगे ? वेरी बैड है !

वैसे तो अमरीका के ह्यूस्टन में 50 हज़ार लोग टिकट खरीद कर नरेंद्र मोदी का भाषण सुनने आए थे। हां , अमरीकी राष्ट्रपति ट्रंप ने टिकट नहीं खरीदा था। सो भारत के दस्तूर के मुताबिक उन को कुछ दिए जाने को ले कर एक लतीफ़ा भी मैदान में आ गया है। हद से अधिक मोदी से नफ़रत करने वाले मित्रों को बहुत पसंद आएगा। इसी गरज से इस लतीफे को यहां परोस रहा हूं।

हाउडी मोदी सभा संपन्न होने के बाद आयोजकों ने ट्रंप को दस डालर का लिफाफा और पूरी, सब्जी ,आचार का एक पैकेट दिया गया। तो ट्रंप ने पूछा, ' ये क्या है ? ' तो आयोजक बोला , ' भारत में सभा सुनने वालों को सभा समाप्त होने का बाद इसे देते हैं।' तो ट्रंप को गुस्सा आ गया। और नाराज हो कर कहा , ' इडियट , पव्वा कौन देगा फिर ? तेरा बाप ! '

कल रात एक मित्र ने फ़ोन किया और पूछा कि , ' भाई साहब और क्या हो रहा है ?' मैं ने बताया कि , ' फ़िलहाल तो टी वी चल रहा है ।' वह बिदके और बोले , ' वही मोदी , मोदी चल रहा होगा ! ' मैं ने हामी भरी और उन्हें बताया कि , ' लेकिन आज तो आप का पसंदीदा एन डी टी वी भी यही कर रहा है। ' वह बुरी तरह भड़के। एन डी टी को भद्दी-भद्दी गालियां देते हुए बोले , ' बंद कर दिया है इसे भी ! ' फिर एक गाली दी और बोले , ' आप सुनिए इस कमीने को !' फिर मोदी की मां-बहन भी न्यौती। मैं ने उन्हें बताया कि अभी मोदी का भाषण नहीं चल रहा , मोदी का इंतज़ार हो रहा है। फिर कहा कि , ' बाक़ी तो सब ठीक है। लेकिन आप लखनऊ में रहते हैं। सो गाली-गलौज न कीजिए। करते भी हैं तो कम से कम गाली देना तो शऊर से सीख लीजिए। ' वह थोड़ा दबे और उधर से धीरे से बोले , ' 4 पेग हो गई है भाई साहब , माफ़ कीजिएगा । लेकिन गाली , गलौज में कैसा शऊर ? '

मैं ने उन्हें ग़ालिब का एक किस्सा सुनाया। आप भी सुनिए।

ग़ालिब से भी उन के समकालीन लोग बहुत ईर्ष्या करते थे। जलते-भुनते बहुत थे। तब फ़ोन , सोशल मीडिया आदि तो था नहीं। सब कुछ आमने-सामने या खतो-किताबत के भरोसे ही था। अब ग़ालिब को सामने से गाली देने की जुर्रत नहीं थी किसी की तो खत लिख कर गाली-गलौज करते थे। एक दिन वह अपने एक दोस्त के साथ बैठे थे। बहुत से खत आए हुए थे। ज़्यादातर में गालियां थीं। ग़ालिब ने एक खत खोला और अपने दोस्त से कहने लगे कि , ' इन लोगों को गालियां देने का भी शऊर नहीं है। अब मेरी उम्र देखिए और फिर अम्मी की उम्र देखिए। और यह आदमी मुझे मां-बहन की गालियां लिख रहा है। देनी ही थी तो बेटी की गाली देता। बूढ़ी मां-बहन की गाली से उसे क्या मिलेगा ? '

जनाब समझ गए और ' सारी , वेरी सारी ! ' कह कर बोले , ' मेरी तो पूरी उतार दी आप ने ! ' और फोन बंद कर दिया।

कुतर्क की कमीज का कलफ उतर गया है। रक्तचाप बढ़ गया है। मधुमेह पहले ही से था। अब सांस भी फूलने लगी है। दिन को रात , रात को दिन कहने की बीमारी लग गई है। दिल , गुर्दा , यकृत आदि-इत्यादि आह , आह की राह पर हैं। आवाज़ भी हकला कर रह गई है। पुरवा हवा जब बहती है , पुराने सुख , दुःख देने लगते हैं। चिकित्सक ने हाथ खड़े कर दिए हैं। सोशल मीडिया की गली में थोड़ा खांस-खखार कर दवाओं का आदान-प्रदान कर लेते हैं। जिस ने असाध्य बीमारियों की रेल पर बिठा दिया है , उसे गरिया लेते हैं तो थोड़ा सुकून मिलता है। फिर अचानक गरियाते-गरियाते रोने लगते हैं। लेकिन आदत है कि जाती नहीं। रियाज़ ख़ैराबादी की ग़ज़ल याद आती है :

दर्द हो तो दवा करे कोई
मौत ही हो तो क्या करे कोई

बंद होता है अब दर-ए-तौबा
दर-ए-मयख़ाना वा करे कोई

क़ब्र में आ के नींद आई है
न उठाए ख़ुदा करे कोई

हश्र के दिन की रात हो कि न हो
अपना वादा वफ़ा करे कोई

न सताए किसी को कोई ‘रियाज़’
न सितम का गिला करे कोई

बेशक दुनिया में नरेंद्र मोदी का कद बहुत बड़ा हो गया है इस समय। लेकिन इतना भी बड़ा नहीं हो गया है कि उन्हें फादर आफ इंडिया कह दिया जाए। अमरीकी राष्ट्रपति डोनाल्ड ट्रंप का नरेंद्र मोदी को फादर आफ इंडिया कहना कुछ नहीं , बहुत ज़्यादा हो गया है। हमारे पास पहले ही से एक राष्ट्रपिता महात्मा गांधी हैं। भले इस बिंदु पर भी कुछ लोगों की असहमति सर्वदा से रही है , रहेगी भी। फिर भी राष्ट्रपिता का दर्जा महात्मा गांधी को ही प्राप्त है। माता एक , पिता दस-बारह की तरह इसे हास्यास्पद बनाने की ज़रूरत नहीं है। मोदी कितने भी बड़े डिप्लोमेटिक हों गए हों , सिकंदर हो गए हों , विश्व विजेता हो गए हों लेकिन महात्मा गांधी का नाखून भी नहीं छू सकते। नरेंद्र मोदी खुद भी महात्मा गांधी का दिन-रात गुण-गान करते रहते हैं। नरेंद्र मोदी को खुद आगे बढ़ कर इस फादर आफ इंडिया होने का प्रतिकार कर देना चाहिए। महात्मा गांधी ही हमारे राष्ट्रपिता हैं , वह ही रहेंगे। कोई और नहीं।

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