मेरा स्पष्ट मानना है कि जब मुम्बई में आतंकी हमला हुआ था तब मनमोहन सरकार भी पाकिस्तान के खिलाफ कड़ी कार्रवाई कर सकती थी । क्यों कि भारतीय सेना तब भी इतनी ही सक्षम थी । लेकिन दो कारणों से मनमोहन सरकार ने ऐसा कुछ नहीं किया । एक तो वह सोनिया गांधी का रिमोट था , जिस ने रोक दिया कोई कार्रवाई करने से । दूसरे , मुस्लिम तुष्टिकरण की मजबूरी थी । यह मुस्लिम तुष्टिकरण ही था कि मुम्बई हमले को हिंदू आतंकवाद का एक नैरेटिव भी दिया गया और कांग्रेस द्वारा कहा गया कि आर एस एस ने यह हमला करवाया है । अगर कसाब जिंदा न पकड़ा गया होता तो शायद कांग्रेस इस नैरेटिव को बहुत आगे तक ले गई होती कि मुम्बई हमला आर एस एस ने करवाया था । उस के लिए उस के पास करकरे की आतंकवादियों द्वारा हत्या का एक कुतर्क था ।
अजीज बर्नी नाम के एक घोर साम्प्रदायिक और जहरीले पत्रकार ने आर एस एस ने मुम्बई हमला करवाया का फ़तवा जारी करते हुए उर्दू में एक किताब भी तभी आनन-फानन लिख दी थी जिस का लोकार्पण दिग्विजय सिंह ने किया था और उन की खूब थू-थू हुई थी। तय मानिए कि अगर आज नरेंद्र मोदी सरकार के सामने भी मुस्लिम तुष्टिकरण की दीवार अगर होती तो यह मोदी सरकार भी पाकिस्तान में आतंकियों के ठिकाने पर इस तरह एयर स्ट्राइक नहीं कर पाती । न इस के पहले सर्जिकल स्ट्राइक की होती । न अलगाववादी हुर्रियत नेताओं की सुरक्षा वापस ले कर उन्हें इस मौके पर जेल में ठूंस पाती ।
यह बहुत गनीमत है कि मुस्लिम वोटर मोदी का वोटर नहीं है । तभी इतनी निर्णायक और बड़ी कार्रवाई संभव बन पड़ी है । नहीं मुस्लिम वोट के चक्कर में मनमोहन सरकार की तरह डोजियर की लेन-देन में ही व्यस्त रहती यह मोदी सरकार भी । अफजल की फांसी को ज्यूडिशियल किलिंग का फ़तवा इसी मुस्लिम तुष्टिकरण की ही देन है । भारत तेरे टुकड़े होंगे , इंशा अल्ला , इंशा अल्ला का नारा भी अगर गूंजता है तो इसी मुस्लिम तुष्टिकरण की बुनियाद पर । अगर यही नारा आर एस एस लगाता तो नारा होता , भारत तेरे टुकड़े होंगे , हर-हर महादेव । या जय बजरंगबली । या ऐसा ही कुछ । पर ऐसा कुछ , कभी नहीं हुआ । हुआ तो इंशा अल्ला ही हुआ । तो यह मुस्लिम तुष्टिकरण का जहर ही है , कुछ और नहीं ।
खैर , विंग कमांडर अभिनंदन की सकुशल वापसी का पाकिस्तानी संसद में इमरान खान का ऐलान और पूरी पाकिस्तानी संसद का मेज थपथपाना बहुत बड़ी घटना है । यह वही पाकिस्तान और वही पाकिस्तानी संसद है जो अपनी ऐटमी शक्ति का कितना फूहड़ ऐलान करती रही है । सौ साल तक भारत से लड़ने के ऐलान वाला यह वही पाकिस्तान है । एक मोदी सरकार ने कितना तो बदल दिया है , इमरान खान वाले पाकिस्तान को । सोचने और समझने की बात है । अब भारत के मुस्लिम समाज के बदलने की बारी है । उस मुस्लिम समाज के बदलने की जो पुलवामा में शहीद हुए जवानों का मातम नहीं मनाता , जश्न मनाता है ।
अभी ज़रा देर पहले एक लेखक मित्र ने बातचीत में कहा मीडिया का एक सेक्शन ग़लत नहीं कहता है कुछ लोगों ने मोदी को अपदस्थ करने के लिए पाकिस्तान से हाथ मिला लिया है । मैं ने उन्हें बताया कि इन लोगों ने पाकिस्तान से हाथ नहीं , दिल मिला लिया है। खुल्लमखुल्ला । सच यही है कि मोदी के मुकाबिल इन लोगों को इमरान खान की कार्रवाई या कोई बयान ज़्यादा अच्छा लगता है। पाकिस्तान का पानी रोकने की बात , टमाटर रोकने की बात इन लोगों को मनुष्य विरोधी लगती है । लेकिन पुलवामा की निंदा के लिए इन की जुबान नहीं खुलती। शहीदों के सम्मान में इन का मुंह नहीं खुलता । खुलता भी है तो पाकिस्तान और आतंकवादियों की निंदा के लिए नहीं , मोदी की निंदा के लिए । गुड है । सेना की बहादुरी को तो यह सलाम करते हैं दबी जुबान लेकिन भारतीय कूटनीति ने किस तरह पाकिस्तान को पूरी दुनिया में अकेला कर दिया है , चीन तक पाकिस्तान से किनारे हो गया है , यह लोग इस तथ्य को नहीं जानते । इन लोगों की इन्हीं हरकतों और इन लोगों की इसी बीमारी के चलते इन लोगों की मोदी को अपदस्थ करने की निरंतर प्रार्थना को जनता ने पूरी निर्ममता से सिरे से रद्द कर दिया है ।
लेकिन आंख के अंधे , कान के बहरे लोगों को न कुछ दिख रहा है , न सुनाई दे रहा है । इन लोगों का वश चले तो विंग कमांडर अभिनंदन को पाकिस्तान द्वारा वापस करने की घोषणा और इमरान की शांति पेशकश और मोदी से बातचीत की पेशकश के मद्देनज़र इमरान खान को शांति का नोबल पुरस्कार देने की सिफारिश कर दें । देश से मुहब्बत इन की प्राथमिकता में नहीं है , इन की प्राथमिकता नरेंद्र मोदी से नफ़रत की है । नरेंद्र मोदी से इन की नफरत ने इन्हें देश और सेना का विरोध करते हुए पाकिस्तान के साथ खड़ा कर दिया है । तब जब कि पाकिस्तान की बैंड अभी और बजने वाली है । खूब कस कर बजने वाली है । फिर पाकिस्तान का तो जो होगा , सो होगा , इन पाकिस्तान प्रेमियों का क्या होगा । कोई बताए तो सही । इन लोगों को गद्दार कहना , गद्दार शब्द का भी अपमान है । शर्म इन को मगर नहीं आती।
इस मार्च , 2019 में पाकिस्तान को अपने ऐटम बम के ताक़त की हैसियत पता चल जाएगी। साथ ही देश में विपक्ष को अपने-अपने गठबंधन की हैसियत भी पता लग जाएगी । दोनों ही का गुमान चकनाचूर होने को है । गरज यह कि पाकिस्तान और विपक्ष दोनों ही न सिर्फ़ एक जैसी स्थिति में हैं , एक जैसी भाषा बोल रहे हैं , बल्कि दोनों ही की दुर्गति होनी तय है । अमरीका और चीन भी अब इसे रोक पाने की स्थिति में नहीं हैं । एक बात ज़रूर है कि सब कुछ के बावजूद भारत और पाकिस्तान में युद्ध नहीं होगा । इस लिए कि भारत युद्ध नहीं चाहता है और पाकिस्तान की हैसियत नहीं है कि भारत से युद्ध करने की सोच भी सके । बस गरज के साथ छींटें पड़ती रहेंगी । इस से ज़्यादा कुछ और की उम्मीद नहीं करें। देखिएगा अभी जल्दी ही पाकिस्तान और भारत के विपक्षी दल एक साथ शांति की फ़रियाद और गुहार करते मिलेंगे ।
लगता तो यही है कि मसूद अजहर को कभी कांधार छोड़ने वाले लोग , मसूद अजहर को अब की ठिकाने लगा कर ही दम लेंगे। साथ में हाफ़िज़ सईद को भी। जाने क्यों इन सभी की जहरीली तकरीरें भी इन दिनों बंद हैं । पर सवाल महत्वपूर्ण यह है कि देश के भीतर बैठे मसूद अजहरों और हाफिज सईदों को कब ठिकाने लगाया जाएगा ।
पार्टनर एक बात बताओ , अगर इमरान खान शांति दूत है , पाकिस्तान शांतिवादी देश है तो फिर आतंकी कौन है , आतंकवादी देश कौन है । सच बताना पार्टनर इतना बड़ा केमिकल लोचा आख़िर कैसे मैनेज करते हो भला ।
भारत के अभ्युदय को अब कोई नहीं रोक सकता
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