आखिर तीन तलाक़ बिल लोकसभा में पास हो गया। मुस्लिम बहनों को हार्दिक बधाई । अब तीन तलाक़ ही नहीं , हलाला भी बंगाल की खाड़ी में बह गया । तीन तलाक़ पर तीन साल की सज़ा से बड़े-बड़े बदतमीजों की अकल ठिकाने आ जाएगी । बिल पर वोटिंग के समय कांग्रेस और उस के सहयोगी दलों के वाक आऊट पर एक पुराना लतीफ़ा याद आ गया है ।
ऐन युद्ध में बंगाल रेजिमेंट का कमांडर अपनी रेजिमेंट से बिछड़ गया । यही हाल सिख रेजिमेंट का भी हुआ । लेकिन सिख रेजिमेंट का कमांडर बंगाल रेजिमेंट के कमांडर से मिल गया और कमान संभाल लिया । कमांडर रेजिमेंट के पीछे-पीछे चल रहा था और रेजिमेंट के जवानों से दुश्मन की पोजीशन पूछता रहा । जवान बताते रहे दोश्मन-दोश्मन दो हज़ार मीटर , पलाबो ? पलाबो शब्द बंगला का था , सो सिख कमांडर ने समझा कि पलाबो मतलब फायरिंग । सो बोला , नो पलाबो । फिर जवानों ने बताया , दोश्मन-दोश्मन एक हज़ार मीटर , पलाबो ? सिख कमांडर बोला , नो पलाबो । फिर बताते-बताते जवानों ने बताया , दोश्मन-दोश्मन पचास मीटर , पलाबो ? सिख कमांडर ने कहा , यस पलाबो ! पलाबो का मतलब होता है , भाग लेना , पलायन कर जाना । सो पलाबो बोलते ही सारे जवान वापस भाग लिए और सब के सब मारे गए । जैसे बंगाल रेजिमेंट के जवानों की पहले ही से तैयारी थी , पलाबो की उसी तरह कांग्रेस और उस के सहयोगी दलों की भी तैयारी पहले ही से पलाबो की तैयारी थी । सेलेक्ट कमेटी का सहारा लिया और पलाबो कर गए और मारे गए । बिल पास हो गया ।
असल में हर विपरीत मामले को ठंडे बस्ते में लटकाने की लत लग गई है कांग्रेस को । जैसे अयोध्या में मंदिर की सुनवाई पर चुनाव बाद करने की सुप्रीम कोर्ट से कपिल सिब्बल की अपील । इस पर भी बात नहीं बनी तो तत्कालीन चीफ जस्टिस दीपक मिश्र जो डे बाई डे सुनवाई की तैयारी कर रहे थे , उन के ख़िलाफ़ महाभियोग प्रस्ताव पेश करने की तैयारी कर दी । इस पर भी बात नहीं बनी तो उन के खिलाफ कुछ जस्टिस की प्रेस कांफ्रेंस करवा दी । दीपक मिश्रा डरपोक निकले और ख़ामोश हो गए । ऐसे ही ई वी एम के बहाने चुनाव आयोग पर निरंतर हमला , सेना पर हमला , सी बी आई पर हमला , रिजर्व बैंक पर हमला और अब तीन तलाक़ पर बिल को लटकाने की नाकाम कोशिश ।
कांग्रेस को निरंतर ऐसे लाक्षागृह निर्माण से बचना चाहिए । नहीं , इस अपने ही लाक्षागृह में खुद जल जाएगी ।क्यों कि कांग्रेसी साज़िशें मुगलिया साजिशों को मात करती दिख रही हैं । लोकतंत्र में लोक की मर्यादा का महत्व होता है , साजिशों का नहीं । जो कुछ लोग मोदी सरकार से ऊबे हुए हैं , विकल्प खोज रहे हैं । तीन राज्यों में कांग्रेस को जो सांस मिली है , इस विकल्प की तलाश में , उस का सदुपयोग करे कांग्रेस , न कि दुरूपयोग । पाकिस्तान समेत 22 इस्लामिक देशों से तीन तलाक़ समाप्त है तो भारत में क्या ज़रूरत थी , इस अमानवीय तीन तलाक़ की भला , जो कांग्रेस इसे निरंतर लटकाए रखना चाहती थी ? समझना कुछ बहुत कठिन नहीं है ।
तिहरा तलाक़ और गाय का मांस खाने की ज़िद और सनक का क्या कहिए। तीन तलाक़ पर संसद में अजब बहस जारी है । तीन तलाक़ की पुरज़ोर पैरवी करने वाले लोग क्या पता जल्दी ही गाय का मांस खाने के अधिकार और पसंद पर जल्दी ही बहस करते दिखें । अपने वामपंथी नेता जो धर्म को अफीम मानते हैं , संसद में इस्लाम की रक्षा में तलवार लिए खड़े दिखे। गुड है यह भी। कांग्रेस और उस के सहयोगी दलों के लिए तो खैर चुनावी अस्तित्व का मसला है । उन पर क्या कहूं भला । सेक्यूलरिज्म की राजनीति के इस तकाजे पर भी कुर्बान जाऊं । दुनिया भर में तीन तलाक़ समाप्त है । पाकिस्तान समेत 22 इस्लामिक देशों ने भी तीन तलाक़ से तौबा कर लिया है । लेकिन भारत तो सेक्यूलर देश है और यहां के सेक्यूलर चैम्पियंस का कोई जवाब नहीं । लाजवाब हैं यह लोग । हारी हुई लड़ाई भी सीना तान कर पूरी बेशर्मी से लड़ते हुए किसी को सीखना हो तो इन से सीखे । क्यों कि पानी की तरह साफ़ है कि तीन तलाक पर तीन साल की सज़ा का प्राविधान तो आज लोकसभा में पास हो कर बस क़ानून बन ही जाना है । तौबा , ख़ुदा खैर करे ! दिलचस्प यह कि लोकसभा से ज़्यादा दिलचस्प बहस न्यूज़ चैनलों पर मुल्लाओं की देखने लायक थी । बिलकुल खुद की दाढ़ी उखाड़ लेने वाली बहस ।
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