शिवमूर्ति
दयानंद पांडेय लिक्खाड़ लेखक हैं । जितना विपुल लेखन उन्हों ने इस दौर
में किया है याद नहीं आता कि किसी अन्य लेखक ने इतना लिखा है । कहानी , उपन्यास, संस्मरण
आदि विविध विधाओं की उन की अब तक 36 पुस्तकें प्रकाशित हो चुकी
हैं । इसी क्रम में अभी उन की सद्यः प्रकाशित पुस्तक आई है एक औरत की जेल डायरी ।
यह एक महिला कैदी की ओर से डासना जेल गाज़ियाबाद की आंतरिक दुनिया की
कहानी है। लेखक कहता है - एक अनाम और निरपराध औरत की जेल डायरी परोसते हुए एक औरत की यातना , दुःख और
संत्रास से गुजर रहा हूं । इस औरत के दुःख के साथ-साथ जेल में बंद सहयात्री
स्त्रियों की गाथा को बांचना सिर्फ उन के बड़े - बड़े दुखों और छोटे-छोटे सुखों को
बाचना ही नहीं है , एक निर्मम समय को भी बांचना है , सिस्टम की सनक और उस की सांकल को खटखटाते हुए
प्रारब्ध को बाचना भी है ।
दयानंद जी साहसी हैं । कुछ तो पैदाइशी साहसी और खतरे उठाने वाले रहे
होंगे , कुछ साहस उन में पत्रकारिता के क्षेत्र में उतरने से मिला होगा । इस
का उपयोग वो लेखन के क्षेत्र में कुशलता से करते हैं । अदालत की दुनिया पर उन का एक
उपन्यास वर्षों पहले आया था । नाम है अपने-अपने युद्ध । उस में जिस साहस और साफगोई
से वे न्यायिक क्षेत्र की दुनिया के अंधेरे गली कूचों से परिचित कराते हैं वह
हिंदी साहित्य की दुनिया में दुर्लभ परिघटना है । साहित्य की दुनिया में दयानंद के
औरों से हट कर अद्वितीय होने का एक कारण यह भी है कि उन के पास वर्तमान तथा
भूतपूर्व राजनयिकों, कथाविदों ,साहित्यिकों , अभिनेताओं , कलाकारों से जुड़े अनगिनत संस्मरण हैं । इन का यथा स्थान उपयोग कर के
वो अपनी कथावस्तु को दिलचस्प और प्रासंगिक बनाते चलते हैं । इस जेल डायरी में भी
इस के कई उदाहरण मिल जाएंगे । एक स्थान पर वह कहते हैं मिनिस्टर साहब भले जेल में हैं
, उन का प्रमुख सचिव जो आई
.ए.एस. है , बीमारी के बहाने सुप्रीम कोर्ट से बेल करा कर बाहर है । सारे घोटाले का जनक यही है । कभी बतौर जिलाधिकारी इन्हों ने इस जेल का
शिलान्यास किया था , कभी बतौर जिलाधिकारी जिस कोर्ट का शिलान्यास किया था उसी कोर्ट में
बतौर मुलजिम हाजिर होते हैं ।
एक औरत की जेल डायरी के माध्यम से लेखक ने जेल जीवन की सारी बेचारगी
निरीहता ,निष्ठुरता और यहां के सहयात्रियों द्वारा लोभ, लाभ, इर्ष्या, जलन, गुस्सा, प्रतिशोध
आदि संवेगों के वशीभूत हो कर किए गए धोखे, छल, हत्या
, प्रतिशोध , दगाबाजी , अपहरण आदि की लोमहर्षक कहानियों से पाठक रूबरू होता है । स्त्रियां
कैसे प्रेम और विश्वास में ठगी जाती हैं , कैसे वो अपने
पुरुषों द्वारा किए अपराध का दंड ख़ुशी-ख़ुशी भुगत रही हैं और ऐसे बच्चे हैं जो जेल
में ही पैदा हुए हैं और अब 8,
9 साल के हो गए हैं । जब वे जेल से कचहरी जाते हैं तो
सारे रास्ते जेल वाहन की जाली से चेहरा सटा कर बाहर की दुनिया को अचरज की आंखों से
देखते हैं । हॉर्न बजाती कारें , ऊंट
,घोड़े, कुत्ते । वह लिखते हैं - एक बार हवालात में बैठे
थे तो कचहरी के पेड़ों पर बंदर आ गए । सब उन्हें उछलते कूदते देख कर इतने खुश हुए
कि क्या बताएं ।
एक जगह डायरी कहती है - पैसा मुख्य मुददा है , चाहे
जेल हो , चाहे कचहरी । इसी पैसे के बल पर आज गीता के पति जेल से चले गए । चार सौ बीसी के आरोप में आए थे । काम बीवी के नाम से करते थे । जज और
वकील को सेट कर के यहीं सेशन कोर्ट से जमानत करा कर चले गए । गीता खुश है कि ये निकल गए तो हमें भी निकाल ही लेंगे । ... जेल में आधे से ज्यादा
महिलाएं अपने पति का किया ही भोग रही हैं ।
एक अन्य स्थल पर - जेल में पैसा ही सब कुछ है । वी.आई.पी. मुलाकात
गैरकानूनी है । कैंटीन गैरकानूनी है । पर्ची कटवाना गैरकानूनी है । लेकिन ये सब काम यहां होते हैं ।
डायरी बताती है कि जैसे बाहर की दुनिया न्याय अन्याय के कॉकटेल से
चलती है वैसे ही जेल के अंदर की भी । पैसे का महत्व शायद बाहर से भी ज्यादा अंदर की दुनिया में है । अगर किसी को शारीरिक
श्रम से बचना है तो उसे पर्ची कटवानी होगी ।
पुरुषों की पर्ची ग्यारह हजार की कटती है और स्त्रियों की बारह सौ की । यह पूरी
तरह गैरकानूनी है । फिर भी जेल का स्टाफ पर्ची कटवाने पर जोर देता है
क्यों कि वो पैसा उन्हीं लोगों में बांटा जाता है ।
जेल बचपन से मेरे आकर्षण का केंद्र रही है । गांव के मध्यवर्ती जाति के तीन युवकों को गांव के सवर्ण दबंग ने खेत से धान की पकी फसल की चोरी में जेल
भिजवा दिया था । सजा काट कर जिस दिन तीनों युवक सड़क पर पैदल चलते हुए गांव लौट रहे
थे , गांव के लोग , औरतें और बच्चे उन्हें देखने के लिए सड़क के किनारे खड़े थे । छह वर्ष
की उम्र का मैं भी उन दर्शकों में था । तीनों युवक तंदरुस्त थे । हंसते हुए काका
राम राम , बाबा पायलागी कह रहे थे । बस अनुज लंगड़ा के चल रहे थे । लोगों ने बताया कि पैसा न देने के चलते पुलिस ने उन का पैर तोड़ दिया है ।
जेल की भयानकता की कहानी और युवकों की तंदरुस्ती का तिलिस्म मुझे जेल
की अंदरूनी दुनिया की ओर आकर्षित करता रहा । मुझे तो जेल
जाने का मौका अभी तक नहीं मिला है । लेकिन दयानंद पांडेय
की यह पुस्तक जेल जीवन की सच्चाई को जानने की मेरी इच्छा का आंशिक समाधान कर देती है। यही कारण है कि मैंने इस पुस्तक को प्राप्त करते ही एक दिन में पढ़ डाला । यह जेल जीवन
की प्रामाणिक जानकारी से अवगत कराने वाली एक दर्द भरी दास्तान है , जो
जानकारी से भरी होने के साथ ही रोचक और प्रवाहमय है इस लिए पढ़ने का सुख देती है ।
एक औरत की जेल डायरी पढ़ने के लिए इस लिंक पर क्लिक करें
एक औरत की जेल डायरी पढ़ने के लिए इस लिंक पर क्लिक करें
एक औरत की जेल डायरी
समीक्ष्य पुस्तक :
एक औरत की जेल डायरी
पृष्ठ संख्या 151
मूल्य 400 रुपए
प्रकाशक
जनवाणी प्रकाशन प्रा.लि.
30 /35-36 , गली नंबर 9 विश्वास नगर
दिल्ली – 110032
No comments:
Post a Comment