Thursday, 6 October 2016

इतना विष भी तुम कहां से लाती हो शगुफ़्ता ज़ुबेरी


हाय शगुफ़्ता ज़ुबेरी
कहां हो , कैसी हो
मंथरा मोड में अभी भी हो
कितनी जगह इत्र लगा कर
अपने जहर का दरिया बहा चुकी हो 
कितने घरों में आग लगा कर नहा चुकी हो 

कभी मंथरा-कैकेयी , कभी सूर्पनखा-सुरसा
अपने घर में भी इतनी भूमिकाओं में कैसे रहती हो 
तुम इतना परेशान आख़िर क्यों रहती हो
फ़ेसबुक पर फर्जी प्रोफाईल गढ़-गढ़ कर
चुड़ैल बन कर टहलती-फिरती
कितने पुरुषों को झांसे में फांस चुकी हो

बताना अपना हालचाल
किसी और फर्जी प्रोफाईल से
जैसे फला-फला लेखक-लेखिका की सेक्सचर्या

उस दिन अभी तुम यही तो पूछ रही थी
बेधड़क , बेअंदाज़ , फुल बेशऊरी से
लेकिन तुम्हारी बेशऊरी से जैसे ही तुम्हें पहचान लिया
तुम भाग गई सर्वदा की तरह
फिर आई नई प्रोफाइल से फिर और फिर और
वाह , कितनी ऊर्जा है तुम में डाह की 
सब को परेशान रखने की चाह की

इतनी निगेटिविटी , इतना समय , इतना हिसाब 
कहीं अदा का कबाब , कहीं  शबाब की बिरयानी बेहिसाब
वाह-वाह की चटनी में चैट का डंक तुम कैसे बरसाती हो 
नदी की तरह बातों में बल बहुत खाती हो
ख़ुद से भी बाज-बाज जाती हो
कि बोलते-बोलते ख़ुद नीली पड़ जाती हो 
इतना विष भी तुम कहां से लाती हो शगुफ़्ता ज़ुबेरी
तुम औरत हो कि कांटों से भरी झाड़   

बाहर लाल सलाम , घर में भजन आरती  
इन के , उन के कहे सूत्र वाक्यों के सार
कैसे जी लेती हो  शगुफ़्ता ज़ुबेरी यह कंट्रास्ट 
खाती रहती हो घूम-घूम कर बातों की लात

मंथरा मोड में इस कदर सर्वदा कैसे रह लेती हो 
किसी इत्र की सनक है यह या सटके हुए दिमाग की हनक
इतने सारे कांटों की झाड़ पर पागलों की तरह चढ़ कैसे लेती हो 
शगुफ़्ता ज़ुबेरी मन में इतने कार्बन भर कर भी तुम जी कैसे लेती हो

3 comments:

  1. शगुफ्ता ज़ुबैरी ,बेरी का पेड़ है ,जिसके फल अंदर से कीड़ों भरे हैं !!

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  2. शगुफ्ता ज़ुबैरी ,बेरी का पेड़ है ,जिसके फल अंदर से कीड़ों भरे हैं !!

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