पेंटिंग : सुनीता |
मृत्यु जैसे पुकारती है
मां की तरह
मां की मनुहार की तरह
दूध भात का कटोरा ले कर
मृत्यु जैसे धड़कती है
दिल में किसी बीमारी की तरह
किसी नदी में आई बाढ़ की तरह
महाकाल बन कर
मृत्यु जैसे मचलती है
माशूका की तरह
किसी बाग़ में आई बहार की तरह
एक नई कोंपल बन कर
मृत्यु जैसे भरना चाहती है
अपनी बांहों में
संगीत में बसे किसी सुर की तरह
एक नई धुन बन कर
मृत्यु जैसे बिठाना चाहती है गोद में
किसी नाव में हो गए छेद का लाभ ले कर
किसी सागर में आई सुनामी की सलाह ले कर
एक नया उत्सव बन कर
मन की मखमली घास पर
मृगछाला पहन कर
मृत्यु जैसे चली आ रही है अहिस्ता-अहिस्ता
ज़िंदगी का अंतिम प्रणाम बन कर
[ 5 सितंबर , 2015 ]
mrityoo jaise kahne he wali ho alvida zindgi.
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मृत्यु … आहिस्ता लेती है आगोश में
ReplyDeleteथकान को राहत देती है
वक़्त कोई भी हो,
रात बना देती है