Saturday, 17 August 2013

भोजपुरी की मिठास और खुशबू को दुनिया में मालिनी को फैलाने दीजिए मनोज तिवारी !

मनोज तिवारी भोजपुरी के अच्छे गायक हैं इस में कोई संदेह नहीं है। लेकिन अभी-अभी जो विवाद भरत शर्मा को साथ ले कर मालिनी अवस्थी के विरोध में उन्हों ने खड़ा किया है वह उन के और भोजपुरी के हित में हरगिज़ नहीं है। भोजपुरी अकादमी की ब्रांड अंबेसडर मालिनी अवस्थी इस लिए नहीं हो सकतीं क्यों कि वह अवधी की लोक गायिका हैं यह तर्क सिरे से कुतर्क है। इस का कोई मतलब नहीं है। सच तो यह है कि कोई भी भाषा या संस्कृति किसी की जागीर नहीं होती। क्या किसी मुस्लिम को संस्कृत इस लिए नहीं जाननी या पढ़नी चाहिए कि उस पर ब्राह्मणों या हिंदुओं का अधिकार है या किसी ब्राह्मण या हिंदू को उर्दू इस लिए नहीं जाननी या पढ़नी चाहिए कि उस पर मुसलमानों का अधिकार है। बताता चलूं कि मेरे पितामह और पड़पितामह दोनों ही लोग उर्दू के अध्यापक थे। या फिर अंगरेजी पर सिर्फ़ क्रिश्चियनों का ही अधिकार है सो किसी और को नहीं पढ़नी या जाननी चाहिए। इन तर्कों का कोई मतलब नहीं है। यह तो क्षेत्रीय और भाषाई राजनीति हुई। जो क्षेत्रीय राजनीति महाराष्ट्र में ठाकरे बंधु कर रहे हैं या जो भाषाई राजनीति तमिल में करुणानिधि करते रहे हैं वही राजनीति मनोज तिवारी भोजपुरी में करना चाह रहे हैं। लेकिन मनोज तिवारी को जान लेना चाहिए कि यह राजनीति भोजपुरी में चलने वाली है नहीं। भोजपुरी में यह दाल गलने वाली है नहीं। इस लिए कि भोजपुरी बड़ी मीठी और बड़ी उदार भाषा है। वैश्विक भाषा है। भोजपुरी में दुराव-छुपाव चलता नहीं है। सब कुछ सीधे-सीधे चलता है। भारत से निकल कर मारीशस, फ़ीज़ी, सूरीनाम, त्रिनीदाद आदि देशों में भोजपुरी अपनी इसी ताकत के दम पर न सिर्फ़ पहुंची बल्कि वहां फूली और फली भी है। निरंतर आगे बढ़ती जा रही है। करोड़ो लोग अगर दुनिया में भोजपुरी बोलते और सुनते हैं तो भोजपुरी भाषा की उदारता और बड़प्पन के नाते ही। उस की विरासत के नाते ही। सभी संस्कारों के गीत अगर किसी भाषा में हैं तो भोजपुरी में ही। सोलहो संस्कार के गीत। संझवाती- भोरहरी तक के गीत। श्रम गीत भी एक से एक हैं। वास्तव में भोजपुरी या किसी भी भाषा की गरिमा उस की उदारता में ही है। संकीर्णता में नहीं। छुआछूत में नहीं।

भोजपुरी या किसी भी भाषा की यह मर्यादा बचाना और उस को संभालना अकेले किसी एक का काम नहीं है। यह सामूहिकता का काम है। जैसे हिंदी और उर्दू दोनों बहनें हैं वैसे ही भोजपुरी और अवधी भी दोनों बहनें हैं। इन का बहनापा अलग करना पाप है और इन के साथ दुश्मनी भी। एक लिहाज़ से अवधी का भूगोल और जनसंख्या भले ही भोजपुरी से थोड़ा नहीं बहुत कम है तो भी अवधी सही मायने में भोजपुरी की बड़ी बहन है। तुलसीदास का राम चरित मानस और जायसी का पद्मावत जैसे श्रेष्ठ ग्रंथ अवधी में ही हैं, भोजपुरी में नहीं। भोजपुरी में ऐसे बड़े ग्रंथ ढूंढे नहीं मिलते। भोजपुरी में अगर कुछ बड़ा है तो बस भिखारी और उन की रचनाएं। जो तुलसी और जायसी की रचनाओं के आगे बिला जाती हैं। हां लेकिन जैसे गंगा के पाट से बड़ा यमुना का पाट है और जब यमुना गंगा में मिल जाती है तो गंगा का भी पाट बड़ा हो जाता है। ठीक वैसे ही जब अवधी और भोजपुरी दोनों मिल कर चलती हैं तो इन का पाट भी बड़ा हो जाता है, इन का ठाट तब देखते बनता है। दिल्ली, मुंबई में जा कर इन भाषाओं की ताकत देखिए। दिल्ली सरकार को भी भोजपुरी अकादमी बनानी पड़ी है। मुंबई में भी भोजपुरी वोटरों को लुभाने के लिए तमाम तरकीबें राजनीतिक पार्टियां आज़माती रहती हैं।

आइए मनोज तिवारी ज़रा गायकी की ज़मीन पर भी बात कर लेते हैं। आप तो भोजपुरी फ़िल्मों में भी काम करते हैं। आप जानते ही होंगे कि भोजपुरी फ़िल्मों में गाने लिखने वाले मशहूर गीतकार शैलेंद्र बिहार मूल के भले हैं पर पैदा पाकिस्तान में हुए। मज़रूह सुलतानपुरी ने क्या तो भोजपुरी में गाने लिखे हैं। पर मज़रुह उर्दू के शायर तो थे ही अवधी उन की ज़ुबान थी। लाले-लाले ओठवा से बरसे ला ललैया हो कि रस चुवेला, जइसे अमवा के मोजरा से रस चुवेला ! जैसे मधुर गीत रचने वाले मज़रुह अवधी के हैं। और इसे गाने वाले तलत महमूद भी अवधी के हैं। और तो और लता मंगेशकर मराठी की हैं। और बताते हुए अच्छा लगता है कि अभी तक किसी भी गायिका ने लता मंगेशकर से अच्छा भोजपुरी गीत अभी तक तो नहीं गाया है। आशा भोंसले भी मराठी हैं। आशा जी ने भी भोजपुरी में एक से एक मधुर गीत गाए हैं। दोनों बहनों ने भोजपुरी में एक से एक डुएट गाए हैं कि सुन कर मन भींग जाता है। मन लहक जाता है। मुहम्मद रफ़ी, मुकेश और मन्ना डे ने भी एक से एक सुरीले गाने गाए हैं भोजपुरी में। लागी नाहीं छूटे रामा चाहे जिया जाए ! याद है? रफ़ी ने गाया है। हेमलता बंगाली हैं लेकिन क्या तो भोजपुरी गीत एक नहीं अनेक गाए हैं। नदिया के पार फ़िल्म में जो उन्हों ने पहुना हो पहुना विवाह गीत गाया है, अदभुत है। अलका याज्ञनिक भी मराठी हैं। उन्हों ने भी जुग-जुग जियेसु ललनवा सोहर जिस तन्मयता से गाया है वह अविरल है। और तो छोड़िए अपनी शारदा सिनहा भी मैथिल भाषी हैं। मैथिल, मगही, वज्जिका में भी खूब गाती हैं। लेकिन भोजपुरी गानों की माई कही जाती हैं। कल्पना तो आसामी हैं और क्या टूट कर भोजपुरी गाती हैं। विजया भारती भी मैथिल भाषी हैं, मैथिल और हिंदी में कविताएं भी खूब लिखती हैं पर पहचान उन की भी भोजपुरी की श्रेष्ठ गायिका के रुप में है। दलेर मेंहदी तो पंजाबी हैं लेकिन भोजपुरी गायकी में उन का भी कोई सानी नहीं है। पटना में पैदा हुए और गोरखपुर में पले बढ़े दलेर मेंहदी भोजपुरी जीते हैं। यह कम लोग जानते हैं। पद्मा गिडवानी सिंधी हैं पर उन की पहचान भोजपुरी गायिका के तौर पर है। उन के भोजपुरी गाने सुनते हुए हमारे जैसे लोग बड़े हुए हैं। उन को सुन कर कोई कह ही नहीं सकता कि वह भोजपुरी वाली नहीं हैं। यह फ़ेहरिश्त बहुत लंबी है। हिंदी फ़िल्म इंडस्ट्री की गायकी, संगीत, अभिनय और निर्देशन की दुनिया तो मराठी, पंजाबी और बंगाली लोगों से भरी पड़ी है। तो क्या हम उन्हें खारिज़ कर देंगे? कला जो भाषाई और क्षेत्रीय हमलों के औज़ारों में फंस गई तो कला रह भी पाएगी भला? इला अरुण तो उन्नाव उत्तर प्रदेश की हैं लेकिन राजस्थानी गीत गाने में बेमिसाल हैं। तो इस लिए कि वह राजस्थान में ही पली बढ़ी हैं। मालिनी अवस्थी भी अवधी की हैं आप की राय में मनोज तिवारी जी, पर यह गलत है। मालिनी तो कन्नौज में पैदा हुई हैं। उन का ददिहाल और ननिहाल दोनों ही कन्नौज में है। और गायकी का गांव तो उन्हों ने मिर्ज़ापुर में देखा है मात्र दो साल की उम्र में। बड़ी बहन मल्लिका गाना सीखने बैठती थीं तो दो साल की मालिनी भी बैठ जाती थीं गाना सीखने। तो उन की गायकी का पहला पांव तो भोजपुरी में ही पड़ा। छ साल मिर्ज़ापुर में रहने के बाद मालिनी फिर गोरखपुर आ गईं। पिता डाक्टर प्रमथ नाथ अवस्थी नौकरी में ट्रांसफ़र होते रहते थे और मालिनी भी।
बतर्ज़ तुलसी दास ठुमक चलत रामचंद्र बाजत पैजनिया ! जैसे भाव में ही मालिनी को गाते मैं ने गोरखपुर में देखा है। फूलगेनवा न मारो, लगत करेजवा में चोट ! जैसे कठिन गाने भी वह बालपन में गाती थीं, अपनी बड़ी बहन मल्लिका के साथ तो देखते बनता था। तो भोजपुरी से मालिनी अवस्थी का रिश्ता गर्भ और नाल का है। काशी में भी न सिर्फ़ वह रही हैं बल्कि गिरिजा देवी जैसी आचार्य से उन्हों ने शास्त्रीय गायकी सीखी है। लेकिन बाद के दिनों में वह भोजपुरी पर ऐसी न्यौछावर हुईं कि भूल गईं कि वह शास्त्रीय गायिका भी हैं, कि कभी उन्हों ने भातखंडे में शास्त्रीय संगीत की विधिवत शिक्षा ली थी और कि भातखंडे में तब के दिनों टाप किया था। कि वह अवधी वाली हैं, कि कन्नौजी वाली हैं। लखनऊ विश्वविद्यालय से हिंदी, अंगरेजी और संस्कृत मतलब तीनों विषय साहित्य के ले कर ग्रेजुएशन करने वाली मालिनी अवस्थी मेरी जानकारी में इकलौती भोजपुरी गायिका हैं। मनोज तिवारी जी आप नहीं जानते होंगे और कि बहुत कम लोग जानते होंगे और कि शायद मालिनी अवस्थी भी अपनी भोजपुरी गायकी के जुनून में भूल ही गई होंगी कि एक समय तो वह गज़ल गायिका बनना चाहती थीं। पटियाला घराने के उस्ताद राहत अली खां से उन्हों ने गज़ल गायिकी की विधिवत शिक्षा ली है। और कि लखनऊ के भातखंडे में भी वह पढ़ने गईं तो अपनी गज़ल गायिकी में निखार लाने के लिए ही। लेकिन एक तो वह बनारस में गिरिजा देवी की संगत में आ गईं दूसरे जुनून धारावाहिक में शिरकत कर बैठीं और फिर जो भोजपुरी के साथ उन का गर्भ और नाल का रिश्ता उन के सर चढ़ कर बोलने लगा, वह भोजपुरी की बन कर रह गईं। भोजपुरी उन की मां बन गई और वह भोजपुरी की बेटी। बनारस में रहे तो आप भी हैं मनोज तिवारी पर भोजपुरी गायकी की ऊंचाई पर जिस तरह आप गए, भोजपुरी गायकी को उसी नीचाई पर जिस तरह आप ले आए उसे यहां किसी को बताने की ज़रुरत है नहीं। भोजपुरी गायकी में जिस तरह आप शिखर पर बैठ कर भी तरह-तरह के बाज़ारु समझौते करते गए, एक से एक डबल मीनिंग गाने गाते गए, अश्लीलता की पराकाष्ठा वाले गीत गाते समय आप यह भी भूल गए कि भोजपुरी समाज आप को कभी देवी गीत गाने के लिए भी जानता रहा है। अभी भी मंदिरों या तमाम और जगहों पर भी आप के देवी गीत जब तब बजते मिलते हैं तो अच्छा लगता है। लेकिन जब कुछ और जगहों पर आप के डबल मीनिंग गाने सुनता हूं तो लगता है भोजपुरी गायकी गर्त में चली गई है। आप चूंकि एक समय भोजपुरी गायकी में शिखर पर थे और एक से एक लाजवाब गीत भी आप ने गाए हैं लेकिन अचानक जब आप अश्लील गाने भी गाने लगे जाने किस मोह में तो आप के बाद आने वाले गायकों की पीढ़ी भी अश्लील गानों में गोते मारने लगी। इस कदर कि अब भोजपुरी गाने का मतलब अश्लील गाने माना जाना लगा है। बालेश्वर ने भी कभी यह गलती की थी बाज़ार के रथ पर चढ़ कर। लेकिन बालेश्वर पढ़े लिखे नहीं थे सो उन को तो एक बार माफ़ किया जा सकता है लेकिन मनोज तिवारी आप तो बी. एच. यू. के पढ़े हुए हैं। आप को इस के लिए कैसे माफ़ किया जाए? कि भोजपुरी जैसी मीठी बोली और गायकी को अश्लीलता के बाज़ार में झोंक दिया। भोजपुरी के एक बहुत बडे़ गायक हुए हैं मुहम्मद खलील। भोजपुरी के सर्वश्रेष्ठ गायक। उन के जैसा गायक भोजपुरी में मेरी राय अब तक नहीं हुआ कोई। अब आगे भी खैर क्या होगा ! इलाहाबाद में रेलवे में खलासी थे। बलिया के रहने वाले थे। बहुत मधुर कंठ था उन का। बहुत ही सरल और विनम्र भी थे वह। एक बार उन को और उन की टीम को नौशाद मुंबई ले गए। खलील कोई एक महीने रहे मुंबई में। पर जब नौशाद ने उन पर गायकी में बदलाव के लिए ज़ोर दिया, फ़िल्मी मज़बूरियों का वास्ता दिया तो मुहम्मद खलील ने गायकी में समझौते से इंकार कर दिया। नौशाद से खलील ने कहा कि अपने को एक बार ज़रुरत पड़ी तो बेंच दूंगा पर भोजपुरी को मैं नहीं बेंच सकता। और वह मुंबई से इलाहाबाद लौट आए बिना किसी फ़िल्म में गाए। कहते हुए अच्छा लगता है कि मालिनी अवस्थी ने भी भोजपुरी गायकी में कोई समझौता नहीं किया। बाज़ार के रथ से वह भले दूर रहीं पर भोजपुरी को बेंचा नहीं। कभी कोई अश्लील गाना नहीं गाया। किसी की हिम्मत नहीं हुई ऐसा उन से कहने की भी। शारदा सिनहा और विजया भारती जैसी गायिकाओं ने भी कभी अश्लील गाने नहीं गाए हैं। कैसेट कंपनियों के जाने कितने प्रस्ताव इन गायिकाओं ने ठुकराए हैं। जो कि आप नहीं ठुकरा पाए कभी। कल्पना जैसी अच्छी गायिका भी ऐसे दबाव में बह गई हैं कई-कई बार। नतीज़ा सामने है। भोजपुरी को अश्लील भाषा मानने लगे हैं लोग। लेकिन भोजपुरी की आन-मान शान जो अभी भी बची हुई है तो सिर्फ़ इस लिए कि मालिनी अवस्थी जैसी भोजपुरी की गायिकाएं अश्लील गानों के बाज़ार से भोजपुरी को बचाए हुई हैं। मालिनी अवस्थी हैं कन्नौजी, आप उन्हें अवधी की गायिका कहिए कोई हर्ज़ नहीं है मनोज तिवारी जी, लेकिन अब मालिनी अवस्थी भोजपुरी की बेटी हैं यह भी मान लीजिए। भोजपुरी का इस से भला होगा।

फ़ादर कामिल बुल्के हिंदी की डिक्सनरी लिख सकते हैं, अमिताभ बच्चन इलाहाबाद के हो कर भी गुजरात के ब्रांड अंबेसडर बन सकते हैं, कोई भारतीय मूल का अमरीका या ब्रिटेन में मिनिस्टर हो सकता है, राम गुलाम मारीशस के प्रधान मंत्री हो सकते हैं, घरभरन उपराष्ट्रपति हो सकते हैं तो मालिनी अवस्थी बिहार में भोजपुरी की ब्रांड अंबेसडर क्यों नहीं हो सकतीं? हो सकती हैं और बिलकुल हो सकती हैं। आखिर वह भोजपुरी की बेटी हैं। भोजपुरी को दुनिया में वह जो सम्मान दिला रही हैं और जिस गरिमा से दिला रही हैं वह अविरल है, अदभुत है। सैल्यूटिंग भी। जैसे कन्नौज का इत्र दुनिया भर में महकता है। ठीक वैसे ही कन्नौज में पैदा हुई मालिनी भोजपुरी की मिठास को, भोजपुरी की खुशबू को दुनिया भर में फैला रही हैं शहर-शहर, देश-देश घूम-घूम कर। बिहार भोजपुरी अकादमी का फ़ैसला बिलकुल दुरुस्त है मनोज तिवारी जी, उसे सलाम कीजिए। मालिनी अवस्थी को मंचों पर भाभी कह कर गुहराते देखा है मैं ने आप को। मालिनी अवस्थी को वही मान दीजिए। भाभी हमारे भारतीय संस्कार में मां की तरह मानी जाती है। तो अपनी मां, अपनी मातृभाषा भोजपुरी का सम्मान कीजिए। इस से आप का भी मान बढ़ेगा। भोजपुरी को उत्तर प्रदेश और बिहार के खाने में भी मत बांटिए। अवधी-भोजपुरी का खूंटा मत गाड़िए। इस से भोजपुरी का नुकसान होगा। सभी को उदारता से मान दीजिए। अभी तो भोजपुरी अपने दोनों पंख फैला कर उड़ चली है उस को नील गगन का विस्तार दीजिए। मुनव्वर राना का एक शेर सुनिए जो उन्हों ने कभी हिंदी और और उर्दू के इस्तकबाल में कहा था।

लिपट जाता हूं मां से और मौसी मुसकुराती है
मैं उर्दू में गज़ल कहता हूं हिंदी मुसकुराती है। 

आप इसे भोजपुरी-अवधी या और भी किसी भी भाषा के इस्तकबाल में गुनगुना लीजिए। और जान लीजिए कि अवधी और भोजपुरी भी बहनें हैं। कन्नौजी भी। सभी भाषाएं एक दूसरे से जुड़ना सिखाती हैं। आप चाहिए तो मुनव्वर राना के इस शेर में भी अवधी भोजपुरी को इस आलोक में देख सकते हैं :

लिपट जाता हूं मां से और मौसी मुसकुराती है
मैं भोजपुरी में गाता हूं अवधी मुसकुराती है।

क्या है कि दीवार भाषा के बीच नहीं होती। दिलों में होती है। इस बात को जानना हो तो लोहिया को पढिए कभी। जान जाएंगे। एक वाकया बता कर अपनी बात खत्म करता हूं। मुलायम सिंह यादव एक बार चेन्नई गए। करुणानिधि तब मुख्यमंत्री थे। मुलायम उन से मिलना चाहते थे पर करुणानिधि ने हिंदी विरोध के चक्कर में उन से मिलने से इंकार कर दिया। खैर मुलायम गए। हवाई अड्डे पर पत्रकारों ने उन से पूछा कि आप यहां हम पर हिंदी थोपने आए हैं? मुलायम ने कहा नहीं हम आप पर तमिल थोपने आए हैं। दूसरे दिन देश भर के अखबारों में यह सुर्खी थी कि मुलायम तमिल थोपने आए हैं। सुबह-सुबह करुणानिधि का फ़ोन मुलायम के पास आया कि हम आप के साथ नाश्ता करना चाहते हैं। हमारे घर आइए। जब मुलायम वापस चलने लगे तो उन्हों ने करुणानिधि से कहा कि आप हमें अंगरेजी में चिट्ठी मत लिखा कीजिए। तो करुणानिधि फिर उखड़ गए और बोले कि क्या हिंदी में लिखें? मुलायम ने कहा कि नहीं आप हमें तमिल में चिट्ठी लिखिए, हम आप को तमिल में ही जवाब देंगे। करुणानिधि के मुह पर ताला लग गया। एक घटना और घटी। तब अटल बिहारी वाजपेयी प्रधानमंत्री थे। अमरीकी राष्ट्रपति क्लिंटन का संसद में स्वागत होना था। मुलायम संसद में अड़ गए कि क्लिंटन का स्वागत भाषण प्रधानमंत्री हिंदी में पढे़ं। अटल जी को तमाम उठा-पटक के बाद हिंदी में ही स्वागत भाषण पढ़ना पड़ा। करुणानिधि फिर भड़के। इशू बना लिया। तो मुलायम ने उन्हें चिट्ठी लिख कर कहा कि आप को ऐतराज था अगर हिंदी पर तो हम प्रधानमंत्री जी से स्वागत भाषण तमिल में पढ़ने को कहते। करुणानिधि फिर चुप लगा गए। कहने लगे कि मुलायम ऐसा जवाब देंगे हम नहीं जानते थे। तो मनोज तिवारी जी अपने ब्रांड अंबेसडर को अवधी-भोजपुरी के झगड़े में मत उलझाइए। उसे माहौल दीजिए भोजपुरी में उड़ान भरने का। उस के लिए धरती और आसमान साफ कीजिए। लड़ना ही है तो भोजपुरी को भारतीय संविधान की आठवीं अनुसूची में लाने की लड़ाई लड़िए। भोजपुरी गायकी को अश्लीलता से मुक्त करवाने की लड़ाई लड़िए। और इस लड़ाई की अगुवाई के लिए अपनी ब्रांड अंबेसडर मालिनी अवस्थी को सलाम कीजिए।

22 comments:

  1. यह विरोध का या भाषा का मुद्दा नहीं , सीधे तौर पर व्यक्तिगत डाह और कुंठा का मामला है , मनोज बाबू मालिनी अवस्थी की वजह से भोजपुरी को खोया हुआ सम्मान वापस लौटा है । इसे बने रहने दीजिये । अपने गानों की तरह यहाँ भी फूहड़ता न फैलाईए

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  2. आदरणीय दयानंद पांडे जी, यह पूरा लेख आपने शोध पत्र की तरह लिखा है, मैं नमन करता हूँ आपकी लेखनी को, इस लेख मे उल्लेखित एक एक शब्द से सहमत हूँ, बहुत बहुत बधाई इस ज्ञानवर्धक और चक्षुखोलक लेख हेतु |

    गणेश जी बागी

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  3. बकलोल है मनोजवा,इसिलिए मेरे सामने गिरिजा देवी ने इसे हड़काया था

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  4. kam se kam ye artikle to bhojpuri me like ke chahi tha... Manoj Tiwari aur Bharat Sharma bhojpuri k pilar bade

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  5. तहेदिल से नमन आपकी लेखनी को.बिलकुल शुद्ध व बेवाक शैली में लिखा गया यह लेख किसी कुंठित व चक्छुहीन व्यक्ति की भी आँखें खोल सकता है.जबकि मनोज भैया तो काफी समझदार व बुद्धिमान व्यक्ति हैं.मैं तो अपनी तरफ से उन्हें यही सन्देश प्रेषित करना चाहूँगा के-"अगर सुबह का भूला शाम को घर लौट आये तो उसे भूला नहीं कहते"

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  6. तहेदिल से नमन आपकी लेखनी को.बिलकुल शुद्ध व बेवाक शैली में लिखा गया यह लेख किसी कुंठित व चक्छुहीन व्यक्ति की भी आँखें खोल सकता है.जबकि मनोज भैया तो काफी समझदार व बुद्धिमान व्यक्ति हैं.मैं तो अपनी तरफ से उन्हें यही सन्देश प्रेषित करना चाहूँगा के-"अगर सुबह का भूला शाम को घर लौट आये तो उसे भूला नहीं कहते"

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  7. Lekh achchha hai. lekin jis neta ka aapne aakheer me jikr kiya hai, poora swaad bigar gayaa!

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  8. This comment has been removed by the author.

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  9. दयानंद जी इस बेवाक लेखनी के लिए नमन, यह सब एक राजनीतिक प्रतिक्रिया एक ऐसे कलाकार के द्वारा किया जा रहा है जिसने भोजपुरिया होने का स्‍वांग रचते हुए हिन्‍दी फिल्‍मों के लिए क्‍या क्‍या नहीं किया, राजनीतिक गलियारों में अपनी फजीहत करवाई, गोरखपुर में आये थे तो उन्‍हें गोरखपुर की जनता ने उनकी असल हस्‍ती बता दी थी, मगर फिर भी राजनीति के काटे किडे का असर नहीं जा रहा है, और वे एक सच्‍ची भारतीय संस्‍क़ति की पुरोधा को दिये जाने वाले सम्‍मान का विरोध कर बैठे, यह उनकी संकीर्ण मानसिकता का परिचायत नहीं तो और क्‍या है

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  10. आदरणीय दयानंद पांडे जी
    यह पूरा लेख आपने शोध पत्र की तरह लिखा है,और इसे पढने के बाद पहली बार अपने को भोजपुरी भाषी होने पे गौरान्वित महशुस कर रहा हूँ मैं नमन करता हूँ आपकी लेखनी को, इस लेख मे उल्लेखित एक एक शब्द से सहमत हूँ अगर ये सही है बहुत बहुत बधाई इस ज्ञानवर्धक लेख केलिए |
    मै तिवारी जी से एक-दो बार मिल चूका हूँ और उनके स्वाभाव को थोरा बहुत समझते हुए ये कहूँगा की उन्होंने भरत शर्मा जी को हमेशा उस मुकाम पे देखा है और अचानक से मालनी जी कानाम सुन भावेश में कह-गए होंगे

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  11. Manoj Tiwari:--aap apane atit ko yaad kare. jab mohania gaon mein pandey ji ke yeha Hanumant Jayanti par pichhe baith kar unake dwara likhit aur gaaye gaye bhajan ko likha karate the chupchap. Kya unhonie kabhi kaha ki Bhojpuri unaki jagir hai. Aap ne sabhi Bhojpur ke logon ko sharminda kar diya hai. Bhojpuri kisi ki Jaagir nahi.jo usaka aapane theka le rakha hai. 'bada hua to kya hua jaise ped khajoor, panthi ko chhaya nahi, phal laage ati door. Jo Bhojpuri ki sewa karega wohi usake samman ke layak hai. malini ji ne sachmuch Bhojpuri ko ek uchai par pahuchaya hai aur woh is samman ki hakdar hai. Magar aap ne to cheap popularity ke liye Bhojpuri language ko hi gart me bhej diya. aap ke gaano mein doarthi samwad milate hai tatha woh bhi sahi arth mein bhojpuri language nahi hai. aap to bhojpuri kshetra ke bhi nahi hai aur aap ko yeh question nahi uthan chahiye ki malini Lucknow ki hai aur unhe bhojpuri ka brand ambassador nahi banana chahiye. yeh to aap ki chhoti mansikata, chhoti soch ki nisani hai. Bhojpur wasi to bade dil wale hote hai. aur sabako khaskar apane mehmanon ko samman karana janate hsi.

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  12. प्रिय दयानंद जी,
    आपका यह लेख बहुत ही प्रभावशाली ढंग से लिखा गया है, जिसमे हर एक पहलु पर विचार करके इस समस्या का समाधान भी बताया गया है. वास्तव में भोजपुरी और अवधी की लड़ाई छोड़ कर हम सभी को भोजपुरी भाषा के संवर्धन एवम विकास के तरफ ध्यान देना चाहिए ,जिससे भोजपुरी की पताका सम्पूर्ण विश्व में फ़हरा सके. मै मनोज जी से यही निवेदन करूंगा की एक दुसरे का साथ देते हुए भोजपुरी भाषा को भारतीय संविधान की अनुसूची में सामिल करने के लिए प्रयत्न करे एवम आम जनमानस को जागरूक करें.

    डॉ.सन्तोष कुमार शुक्ला
    देलही विस्वविद्यालय

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  13. Dayanand ji aapko sdhuvad shayad aapke lekh se Manoj sahi rasste per aa jaye .. yah unke liye hitkari rahega mujhe umeed he ki dono kalakar es aalekh ko jaroor padhenge . Manoj ek kalakar hen Kalakar ka dil khel bhavana se otpot rahata he. Awadhi ki malini ko Bhojpuri ki kaman mili yah awadh valo ke liye bhi fakra ki baat honi chahiye . Jai Bharat jai Hindi Jai Hindustan

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  14. मुझे नहीं पता कि मनोज जी ने क्या कहा है और उनके क्या एतराज हैं। लेकिन एक दिन मैंने मालिनी अवस्थी को एन.डी.टी.वी. पर कजरी गाते सुना। अवधी, भोजपुरी और ब्रजभाषा में । उस दिन उनको सुनने के बाद आज जब उनको भोजपुरी अकादमी का ब्रांड अम्बेसडर बनाने की बात पर ये एतराज की बात सुनी तो हंसी आ रही है एतराज पर। बेवकूफ़ी की बात। मालिनी अवस्थी हर तरह से इसकी सुपात्र हैं।

    भाषाओं के बारे में जब भी बात होती है तो नन्दलाल पाठक जी की कविता याद आती है:

    "ये रंग-बिरंगी फ़ूलों जैसी भाषायें,
    जिनसे शोभित होता बगिया का आंचल है,
    दिल के कालेपन का इलाज करना होगा,
    आदमी छली होता है ,भाषा निष्छल है।

    भाषा तो है मुस्कानों का ही एक रूप,
    अधरों से बहता यह आंखों का पानी है,
    भाषा तो पुल है मन के दूरस्थ किनारों पर,
    पुल को दीवार समझ लेना नादानी है।"


    बेहतरीन लेख लिखा आपने। बाद के राननीतिक जिक्र न भी करते तो भी चलता लेकिन सूचनायें भी अपना उपयोग करवाती हैं।

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  15. दयानंद पांडे जी सरोकार पे ही मालिनी अवस्थी के बारे मे लिखते है

    मालिनी अवस्थि के स्थितियो कुछ खास बढिया नइखे. उहो महोत्सव अउर स्टेजे शो तक सिमटल बाड़ी. मालिनी दोसरा के गावल गाना गावे से गुरेज ना करसु बाकिर अपना गायकी में मर्यादा के एगो बडहन रेखा ज़रूरे खिंचले रहेली. हालांकि कई बेर ऊ इला अरूण का तर्ज़ पर स्टेज परफ़ार्मर बने का दीवानगी तक चल जाली आ ‘काहे को व्याही विदे्स’ के आकुलतो बोवेली लेकिन ‘सैयां मिले लरिकइयां मैं का करूं’ के मोह से आगा ना निकल पावसु. कबो राहत अली के शिष्या रहल मालिनी बाद में गिरिजा देवी के शिष्या हो गइली. राहत अली गज़ल के आदमी रहले आ गिरिजा देवी शास्त्रीय गायिका. कजरी, ठुमरी, दादरा, चैता गावे वाली. मालिनी खुद भातखंडे के पढल हई. बाकिर ई सब भूल-भुला के मालिनी अपना लोकगायकी में दुनु गुरूअन के शिक्षा के परे राखत शो वुमेन बन चलल बाड़ी का शोबाज़ीए के पहिला काम बना लिहले बाड़ी. ऊ भूल गइल बाड़ी कि एगो किशोरी अमोनकरो भइली जे सिनेमा में प्लेबैको एहसे छोड़ दिहली कि एहसे उनुका गुरु के एतरज रहल.

    हृदयनाथ मंगेशकर कहेले कि अगर पिता जी जियत रहते त हमरा घर में केहु प्लेबैक ना गाईत. लतो मंगेशकर ना. ई बाति हमरा से एगो इन्टरव्यू में ऊ खुद कहले. बाकिर भातखंडे के पढल-लिखल मालिनी एह सब के भूल-भाल के बाज़ार का साथ समझौता कर बइठल बाड़ी आ लाग’ता कि स्टेज अउर पब्लीसिटी के गुलाम बन गइल बाड़ी. उनुकर गायकी अउरी निखरे ना निखरे उनुकर फ़ोटो अखबारन में छपल जरुरी बा. महोत्सवन में उनुकर चहुँपल जरुरी बा. मालिनी के ई समुझावे वाला केहु नइखे कि उनुकर पहिचान उनुका गायकी से याद कइल जाई, सिर्फ़ मंचीय सक्रियता, चैनलन पर बइठला भा शोबाज़ी से ना. खास कर तब आ जब जब रोटी-दाल के संघर्ष उनुका साथे नइखे. ऊ सब कुछ भूला के संगीत साधना कर सकेली आ कवनो बडहन गायकी के समय रच सकेली.

    http://www.sarokar.net/2011/10/%E0%A4%AE%E0%A4%BF%E0%A4%B8%E0%A4%BF%E0%A4%B0-%E0%A4%9C%E0%A5%80-%E0%A4%A4%E0%A5%82-%E0%A4%A4-%E0%A4%AC%E0%A4%BE%E0%A4%A1%E0%A4%BD-%E0%A4%AC%E0%A4%A1%E0%A4%BE-%E0%A4%A0%E0%A4%82%E0%A4%A1%E0%A4%BE/

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  16. भाई साहब, मालिनी जी को शायद एक बात पता नहीं है कि जिस व्यक्ति ने अपना नाम चमकाने हेतु उन्हें तथाकथित तौर पर ब्रांड एम्बैस्डर के तौर पर नियुक्त किया है, उस व्यक्ति के पास भोजपुरी अकादमी के कार्यालय में एक चपरासी की नियुक्ति का भी अधिकार नहीं है। भोजपुरी अकादमी के ब्रांड एम्बैस्डर के तौर पर अपनी नियुक्ति को अधिकारिक और सरकारी सम्मान मान 'इतरा' रही मालिनी अवस्थी को शायद यह भी पता नहीं है कि भोजपुरी अकादमी के जिस निवर्तमान अध्यक्ष ने उनकी भावनाओं के साथ खिलवाड किया है, इस तरह किसी को कोई पद या सम्मान देना, उसके अधिकार और औकात से बाहर की बात है। और अगर किसी को यह अधिकार ही नहीं है, और उसने फिर भी ऐसा सम्मान दिया है तो फिर जाहिर सी बात है कि ऐसे किसी भी सम्मान को अवैध (illegal) माना जायेगा।

    रही बात बिहार सरकार की, तो वो इस मामले में पहले ही अपना पल्ला झाड चुकी है। शिक्षा विभाग (बिहार सरकार) के प्रवक्ता एवं संयुक्त निदेशक आर एस सिंह ने कल ही यह साफ कर दिया था कि "भोजपुरी अकादमी के अध्यक्ष प्रो. आर के दुबे ने अधिकार क्षेत्र से बाहर जाकर यह काम किया है, जिस से अकारण विवाद पैदा हुआ है। सच्चाई यह है कि सरकार की ओर से मालिनी अवस्थी को भोजपुरी भाषा का सांस्कृतिक राजदूत नहीं बनाया गया है।" इस मुद्दे पर बिहार सरकार के रुख को इसी बात से समझा जा सकता है कि सरकार ने दुबे से स्पष्टीकरण माँगा है, और उन पर कारवाई की तलवार लटक रही है। बिहार सरकार के इस आधिकारिक स्पष्टीकरण के बाद दुबे की तो बोलती बंद हो गई, लेकिन मालिनी जी सब कुछ जानते हुए भी या तो कुछ भी समझना नहीं चाहती, या फिर इस "अवैध" ब्रांड एम्बैस्डर के सम्मान को भुला पाना उनके लिये मुश्किल हो रहा है।

    http://www.bhojpuria.com/v2/samachar/national/3481-true-honour-fake-brand-ambassador

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  17. आपके आलेख से पूर्ण सहमति। बहुत तथ्यपरक और उचित लिखा है आपने।

    मैंने मनोज तिवारी को देवरिया में और मालिनी अवस्थी को त्रिवेणी महोत्सव इलाहाबाद में लाइव सुना है। भोजपुरी को जो गरिमा मालिनी जी की प्रस्तुति से मिलती दिखी उसकी तुलना में मनोज तिवारी कहीं नहीं ठहरते। ज्यादा पैसा कमा लेना किसी योग्यता का परिचायक नहीं है।

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  19. Bahut hi achha likha haiaapne sir hamne kaafi jaankari haasil ki hai ise padhkar.....Manoj tiwari ji ko ye sab shobha nahi deta hai ......jab wo Hamare Awadh me aakar programme dete hai to log kuchh nahi kahate aur unka support karte hai....jab Awadhi logo se unko itni nafrat hai to kyo yaha aate hai.....Unke Har programme ka Bahishkaar karna chahiye ............saare Bihari aur Bhojpuri Bolne waale Lucknow ki taraf hi Bhagte hai Apna Ashiyana banane ko....kya Lucknow me Bhi Mumbai jaisa hona chahiye ....???? nahi kyonki Yaha ki tahzeeb aur Sabhyata aisa nahi sikhati... Manoj Tiwari ji ka agar aisa hi Rukh Raha to Ek Din Lucknow Bhi Mumbai ki Tarah hoga ....Ki Bhagao Bihari Aur Bhojpuri Bolne walon ko Tiwari Ji Plz Aag na Lagaiye Kalakaar hai sirf Kala pe Dhyaan Dijiye.......... Ham Sab Malini Ji Ke Saath hai.....|

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  20. Lekhni to aapki gajab ki hai
    bhojpuri ke prati aapki soach agab ki hai
    bilkul sahi likha hai pandey ji
    Malini Awasthi to bilkul gajab ki hai.

    R.T. Chauhan, Lucknow

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  21. जैसे हल्ला बोल में अजय देवगन भटक गए थे. वैसे ही आज मनोज तिवारी भटक गए है. या उनका पूरा-२ पतन हो गया है. यह भी सही है की आज भोजपुरी उनके कुछ दोस्तों की वजह से अश्लीलता का दर्पण हो गया है.

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