Tuesday, 7 October 2025

गुस्से में हाईकोर्ट के जस्टिस की कुर्सी पर पेशाब !

दयानंद पांडेय


कोई पचीस बरस पहले मेरा एक उपन्यास प्रकाशित हुआ था , अपने-अपने युद्ध। अपने-अपने युद्ध में एक चरित्र है संजय। न्यायपालिका के रवैए से त्रस्त हो कर , संजय हाईकोर्ट के एक जस्टिस की ऑफिशियल कुर्सी पर पेशाब कर देता है। बल्कि ऐसे कहिए कि जस्टिस की कुर्सी पर मूत देता है। मूत कर अपने गुस्से और हताशा की अभिव्यक्ति करता है। इस उपन्यास में भारत की न्याय व्यवस्था की धज्जियां उड़ा दी गई हैं। न्यायमूर्तियों की औरतखोरी और पैसे की हवस का सरेआम हंगामा है। प्याज की परत की तरह खुलता जाता है , न्यायपालिका का भ्रष्टाचार , हेकड़ी और मनमानापन। इस उपन्यास में न्यायपालिका की धज्जियां उड़ाने की बात पर मेरे ख़िलाफ़ कंटेम्प्ट आफ कोर्ट भी चला कुछ बरस तक।

लेकिन न्यायपालिका के जस्टिस लोगों की पूरी पहचान और असल सरनेम के साथ , काली करतूतों का स्पष्ट विवरण होने के बावजूद मुझे जेल भेजने की हिम्मत नहीं हुई किसी जस्टिस या चीफ जस्टिस की भी। एक समय तो यह आ गया था कि कंटेम्प्ट आफ कोर्ट का यह मुकदमा सुनने के लिए लखनऊ बेंच में कोई जस्टिस तैयार नहीं हुआ। बारी-बारी सभी जस्टिस ने नाट बिफोर लिख दिया। नाट बिफोर मतलब हम इस मुकदमे को नहीं सुन सकते। तो इलाहाबाद हाईकोर्ट के चीफ़ जस्टिस को यह मुकदमा रेफर हो गया। चीफ़ जस्टिस भी कई बदले पर मुकदमा निर्णय पर नहीं आया। अंतत : एक चीफ जस्टिस ने जैसे-तैसे इस मुकदमे को ख़त्म किया। यह कहते हुए कि मैं जेल भेज कर , आप को हीरो नहीं बनने दूंगा। [ यह अपने-अपने युद्ध कोई पढ़ना चाहे तो अमेजन पर तो है ही , हमारे ब्लॉग सरोकारनामा पर भी है। उस का लिंक नीचे कमेंट बॉक्स में है। ]

ठीक यही होशियारी अब के चीफ़ जस्टिस आफ इंडिया ने भी की है। जूता फेंक कर मारने वाले वकील को मुफ़्त में छोड़ दिया है। नो एफ आई आर , नो कार्रवाई।

पर हक़ीक़त यह है कि जस्टिस लोगों के इनजस्टिस से लोग सचमुच बहुत नाराज हैं। पर इस का मतलब हिंसा पर आ जाना नहीं है। हिंसा हर हाल में निंदनीय है। रही बात दलित-फलित की तो एक और चीफ़ जस्टिस आफ इंडिया हुए हैं। जिन के महा भ्रष्टाचार को ले कर संसद में महाभियोग लाने की तैयारी थी। पर दलित होने के कारण अचानक यह महाभियोग का प्रस्ताव ठंडे बस्ते में डाल दिया गया।

जूता तो एक समय कांग्रेस के शक्तिशाली मंत्री पी चिदंबरम को भी एक पत्रकार और सरदार जरनैल सिंह ने प्रेस कांफ्रेंस में मारा था। जो आम आदमी पार्टी के टिकट पर विधायक भी बना , दिल्ली में। एक और सरदार ने शरद पवार को दिल्ली में ही थप्पड़ मारा था। अरविंद केजरीवाल के पिटने का तो गज़ब रिकार्ड है। राजीव गांधी को तो श्रीलंका में गार्ड आफ ऑनर के समय एक सैनिक ने अपनी बंदूक से लाठी की तरह चला कर मारने की कोशिश की। जैसे इस वकील ने। बाद में उस सैनिक ने कहा कि अगर मेरे हाथ में झाड़ू होता , तो भी मैं मारता। ऐसी अनेक घटनाएं हैं। असल में यह लोगों का गुस्सा है।

फिर राहुल गांधी समेत इंडिया गठबंधन के अनेक नेता तो भारत में ऐसी ही हिंसक क्रांति की अलख जगाए हुए हैं। जेन जी का हल्ला है। व्यवस्था नहीं , सरकार बदलने की उतावली बहुतों को है। श्रीलंका , बांग्लादेश , नेपाल की तरह , नरेंद्र मोदी सरकार को बिना चुनाव के कब्र में दफ़नाने की हसरत है। राहुल गांधी तो कई बार भाषण में कह चुके हैं कि नरेंद्र मोदी जब घर से निकलेगा तो लोग इसे लाठी , डंडे से मारेंगे। आदि-इत्यादि। अराजकता का बिगुल बज चुका है।

सेना , सुप्रीम कोर्ट , चुनाव आयोग , ई डी आदि सारी संवैधानिक संस्थाओं पर इन के हमले आम हैं। राहुल गांधी और इंडिया गठबंधन के मन मुताबिक़ अब चीफ़ जस्टिस आफ इंडिया पर जूते का हमला सामने है। लेकिन बिहार चुनाव में दलित वोट बटोरने के फेर में इस घटना पर दलित का पेंट पोत कर यह लोग बउराए हुए हैं। तब जब कि चीफ़ जस्टिस गवई दलित नहीं , हिंदू भी नहीं , बौद्ध हैं। याद रहे , यह वही जस्टिस गवई हैं , जिन्हों ने जस्टिस लोया की मृत्यु मामले में अमित शाह को क्लीन चिट दी थी। तब इन्हीं लोगों ने इन की बड़ी आलोचना की थी। अटल बिहारी वाजपेयी के कार्यकाल में ही जस्टिस बने गवई ने मोदी कार्यकाल में अपने भांजे को जस्टिस बनवाया है। यह वही जस्टिस गवई हैं , जिन्हों ने न सिर्फ़ मुख्यमंत्री योगी को सब से पावरफुल चीफ मिनिस्टर बताया है बल्कि उन के बुलडोजर राज की प्रशंसा भी की है। बातें बहुत सी हैं।

लेकिन लोगों को मालूम होना चाहिए न्यायपालिका के प्रति लोगों का गुस्सा आसमान पर है। किसी एक जस्टिस गवई पर ही यह गुस्सा नहीं है। समूची न्याय व्यवस्था पर है। हो सकता है , यह गवई अगर ब्राह्मण होता तो भी वह वकील इसे जूता फेंक कर मारता। यह गुस्सा , यह जूता , किसी दलित जस्टिस , किसी ब्राह्मण जस्टिस पर नहीं , इनजस्टिस पर है। अदालतें और इन के मुसाहिब इस बात को जितनी जल्दी समझ लें , अपने को दुरुस्त कर लें तो बहुत बेहतर।

Sunday, 5 October 2025

टोपी , रोटी और नींबू का अचार

दयानंद पांडेय


यह अद्भुत संयोग है कि अपने समय का सर्वाधिक ख़ूंख़ार शासक औरंगज़ेब टोपियां सिलता था , अपनी आजीविका के लिए l आज के समय का एक औरंगज़ेब जेल में नींबू का अचार डाल कर , रोटी अचार खाने लगता है l इस भय से कि कहीं उस के भोजन में धीमा जहर न दे , दे सरकार l मसलन मुख़्तार अंसारी को जेल में ज़हर , धीमा ज़हर देने का इल्ज़ाम लगाता है , यह आज काऔरंगज़ेब l

इस क्रूर औरंगज़ेब को अगर धीमा ज़हर देना ही चाहे कोई सरकार तो रोटी वाले आटे में भी मिला सकती है l नींबू में भी l लेकिन विक्टिम कार्ड खेलने के लिए नींबू का अचार और रोटी का रोड मैप बनाना पड़ता है l सिर्फ़ नींबू अचार खा कर कोई पाँच साल तक स्वस्थ सानंद नहीं रह सकता l इतना कि विष बुझे संवाद बोल-बोल कर अपने गुनाहों की ढाल नींबू अचार को बनाना पड़ जाता है l

भारत माता को डायन बताने वाले , कभी पूरी अभद्रता से जया प्रदा की चड्ढी का रंग बताने वाले , कलक्टर से जूता साफ़ करवाने की हसरत रखने वाले इस क्रूर औरंगज़ेब को लोकतंत्र में नहीं , शरिया में यक़ीन है l समूचे उत्तर प्रदेश को बिना लाइसेंस के बूचड़खाने में तब्दील कर दिया था l मुलायम सिंह यादव को , अखिलेश यादव को बतौर मुख्य मंत्री , अपने इशारे पर नचाने वाले , रामपुर को जहन्नुम बनाने वाले इस आज के औरंगज़ेब को अभी क़ानून में ठीक से यक़ीन दिलाने के लिए अभी बहुत कुछ और करने की ज़रूरत है l इस औरंगज़ेब को नहीं मालूम कि जेल मैनुअल और क़ानून का राज है , देश और उत्तर प्रदेश में l

शुक्रिया है , इलेक्ट्रॉनिक मीडिया का कि इस औरंगज़ेब की कोर्निश बजाते हुए भी , इसे इस की बात में नंगा कर दिया है l इतना कि नींबू अचार पानी मांगे और टोपियां सिलने के लिए आईना मिल जाए l जब तक सज़ा का ऐलान नहीं होता , तब तक ज़मानत को इंजवाय करो , आज के औरंगज़ेब ! यह क्रूरता , हेकड़ी और अकड़ का जमजम तुम्हारे लिए ही है l