Wednesday 26 January 2022

पुरस्कारों का निर्णय , साहित्यिक कलात्मक महत्व के आधार पर होना चाहिए , न कि विचारधारा के आधार पर : विश्वनाथ प्रसाद तिवारी

दयानंद पांडेय 



मां, प्रेमिका, प्रकृति और व्यवस्था विरोध की कविताएं लिखने वाले विश्वनाथ प्रसाद तिवारी के व्यक्तित्व में सादगी, सरलता, सफलता और सक्रियता समाई दिखती है। उन की सफलता उन की सादगी से ऐसे मिलती है गोया यमुना गंगा से आ कर मिले।  गोरखपुर विश्विद्यालय में हिंदी विभाग में आचार्य रहने के बाद वह साहित्य अकादमी के उपाध्यक्ष और अध्यक्ष भी रहे हैं। देशज ठाट वाले विश्वनाथ प्रसाद तिवारी के व्यक्तित्व और रहन-सहन में गंवई गंध मुसलसल मिलती रहती है। अपनी आलोचना में भी वह सादगी बरतते हैं। लेकिन जिस भी किसी के खिलाफ वह टिप्पणी लिखते हैं , वह पलट कर जवाब नहीं दे पाता। खामोश रह जाता है। वह चाहे नामवर सिंह रहे हों या राजेंद्र यादव जैसे लोग। कोई चार दशक से दस्तावेज के संपादक हैं वह। देश-विदेश से पुरस्कार बहुतेरे मिले हैं विश्वनाथ प्रसाद तिवारी को। पिछले दिनों उन्हें उन की आत्मकथा अस्ति और भवति पर ज्ञानपीठ का मूर्ति देवी पुरस्कार मिला। पेश है विश्वनाथ प्रसाद तिवारी से दयानंद पांडेय की संक्षिप्त बातचीत :

● अभी आप को मूर्ति देवी सम्मान मिला है। क्या कहेंगे ?

- मूर्ति देवी भारतीय ज्ञानपीठ का प्रतिष्ठित सम्मान है। इसे प्राप्त कर प्रसन्नता हुई। 

● यह सम्मान आप की आत्म-कथा अस्ति और भवति पर मिला है। अपनी आत्म-कथा पर आप के विचार ?

- आत्म-कथा को आत्म-प्रशंसा और पर निंदा से दूर होना चाहिए। आज कल विदेशी प्रभाव स्वरुप ऐसी आत्म-कथाओं की ज़्यादा चर्चा होती है , जिन में अपनी तुच्छताओं और सेक्स आदि की घटनाओं की ख़ास चर्चा हो। लेकिन आत्म-कथा की सार्थकता चर्चित होने और बिकने या विवाद पैदा करने या पाठक के लिए स्वादिष्ट बनाने में नहीं , बल्कि उसे चिंतन की गहराई में ले जा कर आत्म-रुप की खोज के लिए प्रेरित करने में है। 

● पुरस्कारों का निर्णय किस आधार पर होना चाहिए ?

- किसी सृजनात्मक कृति में उस के विषय की गंभीरता और उस के साहित्यिक कलात्मक महत्व के आधार पर पुरस्कारों का निर्णय होना चाहिए। न कि लेखक की विचारधारा के आधार पर। हां , यह देखना चाहिए कि लेखक की विचारधारा मानव विरोधी न हो। 

● बीते दिनों आप कोरोना से ज़िंदगी की जंग जीत कर लौटे हैं। आप का अनुभव कैसा रहा ?

- अप्रैल-मई ' 2021 में मैं कोरोनाग्रस्त हुआ था। लगभग तीन सप्ताह बाद मुक्त हुआ। अनुभव त्रासद था। घर में ही था। इस बीमारी में हिम्मत नहीं हारनी चाहिए। भयभीत होना इस रोग को बढ़ा देता है। 

● हालां कि थोड़ा समय बीत चुका है लेकिन क्या पुरस्कार वापसी के बारे में कुछ बताएंगे ?  आख़िर आप तब के दिनों साहित्य अकादमी के अध्यक्ष रहे थे। 

- मैं पुरस्कार वापसी के विरुद्ध था। क्यों कि उस का कोई पुष्ट आधार नहीं था। उस के बारे में काफी कुछ लिख चुका हूं। लेखक को विरोध का नैतिक हक़ है लेकिन उस के मुद्दे गंभीर और स्थाई महत्व के होने चाहिए। 


3 comments:

  1. आपकी बातों से सहमत होते हुए मैं आदरणीय विश्वनाथप्रसाद तिवारी जी के इस विचार से पूर्णतः सहमत हूँ कि पुरस्कार/सम्मान का निर्णय लेते समय विचारधारा को आधार नहीं बनाया जाना चाहिए। जब वे साहित्य अकादमी के अध्यक्ष थे, तब एक राष्ट्रीय संगोष्ठी में उनसे अविस्मरणीय भेंट हुई थी। वे बिना किसी कृत्रिमता के पूरी आत्मीयता से मिले थे। ऐसा बड़प्पन प्रायः विद्वानों में दिखाई नहीं देता है। उनकी आत्मकथा का प्रसंग, आत्मकथा की प्रकृति पर उनकी अमूल्य राय और साक्षात्कारकर्ता के रूप में आपकी भूमिका सराहनीय है।
    🙏🏻

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  2. संक्षिप्त पर सारगर्भित बातचीत।

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  3. आचार्य विश्वनाथ प्रसाद तिवारी जी से कभी मिलने का अवसर तो नहीं मिला है, पर दस्तावेज के माध्यम से उनकी प्रखर आलोचना मुझे आकर्षित किया है। उनकी आत्मकथा अस्ति और भवति पर भारतीय ज्ञानपीठ का प्रतिष्ठित सम्मान- मूर्ति देवी सम्मान उन्हें मिला है। आचार्य विश्वनाथ प्रसाद तिवारी जी को मिला, वे इसके अधिकारी हैं। आत्मकथा को लेकर उनकी साफगोई एवं बेबाकपन इस कथन - आत्म-कथा की सार्थकता चर्चित होने और बिकने या विवाद पैदा करने या पाठक के लिए स्वादिष्ट बनाने में नहीं , बल्कि उसे चिंतन की गहराई में ले जा कर आत्म-रुप की खोज के लिए प्रेरित करने में है। - यथार्थ के करीब है। आचार्य विश्वनाथ प्रसाद तिवारी जी से सारगर्भित बातचीत के लिए दयानन्द पांडेय जी को बधाई।

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