गोरखपुर में मेरे गांव बैदौली के पास कोई चार किलोमीटर पर एक गांव है माहोपार । रामलीला और दशहरा का मेला वहां हर साल लगता है । दिन में ही । बड़े से मैदान में पूरी रामलीला समेटते हुए सांझ होते ही रावण दहन भी हो जाता है । बचपन में हम भी हर साल धान और अरहर के तमाम खेत , कीचड़ आदि पार करते हुए . मेड़-मेड़ , पैदल ही जाते थे यह रामलीला और मेला देखने । रामलीला में हर बार कुछ न कुछ नया घट जाता था । हर जगह की रामलीला में होता है । लेकिन एक बार क्या हुआ कि रामलीला में रावण सीता का अपहरण करने पहुंचा तो पता लगा सीता तो पहले ही से गायब हैं । रावण भिक्षुक बन कर लगातार भीख मांगता रहा लेकिन सीता , अपनी कुटिया से बाहर नहीं निकलीं । उदघोषक ने परंपरा तोड़ कर माईक पर कहा भी कि सीता मैया बाहर आ जाएं , रावण बाहर खड़े हैं । कई बार सीता जी कुटिया में सो भी जाती थीं । लेकिन जब सीता बाहर नहीं निकलीं तो अंततः रामलीला कमेटी के लोग भाग कर कुटिया के भीतर गए । सीता जी कुटिया में ही नहीं थीं । माईक से ऐलान हुआ कि सीता जी जहां भी कहीं हों , अपनी कुटिया में आ जाएं , सीता हरण का समय हो गया है ।
इस के पहले ऐसे भी घोषणाएं सुनने को मिलती थीं कि हलो , हलो मैं रामलीला कमेटी का फलाने बोल रहा हूं , फलाने जहां भी कहीं हों सीता जी के लिए चाय और एक बंडल बीड़ी पहुंचा दें । या ऐसी ही अन्य घोषणाएं । लेकिन इस बार सीता हरण का दृश्य सामने था और सीता जी ही अनुपस्थित थीं । उन के कुटिया में जल्दी से जल्दी पहुंचने की घोषणा जारी थी । राम , लक्ष्मण समेत सभी हिरन को छोड़ कर सीता को अपहरण से पहले ही खोजने लग गए । पता चला कि सीता जी नेचुरल काल के लिए थोड़ी दूर पर अरहर के खेत में लोटा ले कर डटी हुई थीं । यह पता चलते ही रामलीला कमेटी के एक व्यक्ति ने ऐलान किया कि मैं फलाने बोल रहा हूं , रावण घबरा मत , सीता जी दिशा-मैदान खातिर गईल हईं , बस अवते हईं ! खैर सीता जी आईं । उन से रामलीला कमेटी वालों ने पूछा , इहै समय रहल है गईले क ? सीता जी बने लड़के ने कहा , का करीं , फलनवा सबेरे-सबेरे घर से उठा लाया । सिंगार करे खातिर । जब बहुत भूख लगी तो फलनवा ने पांच-छ ठो केला खिया दिया । तब गढ़ुआ गईलीं त का करीं ! तमाम दिक्कतों के बावजूद रावण खुश था कि लेट भले हुआ पर उस का कंधा सुरक्षित रहा । गरियाते हुए कहने लगा , चल नीक भईल नाईं सार कहीं हमरे ही ऊपर कुछ कर देत तब और सांसत होता ।
ब्लॉग बुलेटिन की दिनांक 26/10/2018 की बुलेटिन, "सेब या घोडा?"- लाख टके के प्रसन है भैया !! “ , में आप की पोस्ट को भी शामिल किया गया है ... सादर आभार !
ReplyDeleteरोचक प्रस्तुति
ReplyDeleteगांव के रामलीला की यादें अमिट होती हैं कुछ न कुछ ऐसा घटित होना जो हमेशा यादों में रहता है
हमें भी अपने गांव की रामलीला बहुत याद आती हैं