फ़ोटो : सुंदर अय्यर |
ग़ज़ल / दयानंद पांडेय
झूठ , हिंसा और अराजकता अनिवार्य अर्हता है
अंबेडकर के आरक्षण की यही बड़ी सफलता है
ज़िद सनक कुतर्क की आग में झुलस रहा आदमी
भारतीय संविधान की यह व्यावहारिक विफलता है
राजनीति की इस नई केमेस्ट्री में तथ्य तर्क ख़ारिज
जातीय जहर की आग में रोटी सेंकना सफलता है
नए समाज की यह नई तस्वीर इसी का जलवा
चुप रहिए इन की लगाई आग में देश जलता है
कभी दलित कभी पिछड़ा कभी गूजर कभी जाट
इन से बच कर रहिए इन की जातीय बर्बरता है
सेक्यूलरिज्म की खिचड़ी में दलित का नमक
समाज को हिंसक मोड में लाना ही सफलता है
[ 25 मार्च , 2016 ]
आपकी इस प्रविष्टि् के लिंक की चर्चा कल शनिवार (26-03-2016) को "होली तो अब होली" (चर्चा अंक - 2293) पर भी होगी।
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सूचना देने का उद्देश्य है कि यदि किसी रचनाकार की प्रविष्टि का लिंक किसी स्थान पर लगाया जाये तो उसकी सूचना देना व्यवस्थापक का नैतिक कर्तव्य होता है।
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चर्चा मंच पर पूरी पोस्ट नहीं दी जाती है बल्कि आपकी पोस्ट का लिंक या लिंक के साथ पोस्ट का महत्वपूर्ण अंश दिया जाता है।
जिससे कि पाठक उत्सुकता के साथ आपके ब्लॉग पर आपकी पूरी पोस्ट पढ़ने के लिए जाये।
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हार्दिक शुभकामनाओं के साथ
सादर...!
डॉ.रूपचन्द्र शास्त्री 'मयंक'
सार्थक रचना
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