अभिनेत्री असीमा भट्ट |
ग़ज़ल / दयानंद पांडेय
कृष्ण की बांसुरी बजती है जैसे राधा का मन वहीं खो जाता है
मीरा का एकतारा बजता रहता है और मन मोहन हो जाता है
जब बहुत बरसात होती है तो सूरज बादलों में जैसे खो जाता है
प्यार में जो जिरह बहुत करते रहते हैं उन का प्यार खो जाता है
प्यार मीरा का हो या राधा का रंग जैसा भी हो मौसम कोई भी
धुन उस की जुदा-जुदा सही गाते-गाते वह मस्त कबीर हो जाता है
रोके रुकता नहीं है कोई भी नहीं तुम भी कभी कहां रूकती हो
रात कितनी जालिम हो या लंबी सूर्य उगते ही अंधेरा खो जाता है
तुम हरदम कहती रहती हो इतना ज़्यादा मुझ को सोचा मत करो
सोचता कहां हूं तुम को मैं तो जीता हूं मन में उजियारा हो जाता है
सर्दी कहीं भी एक जैसी नहीं होती शिमला और शिलांग की भी नहीं
संस्कृतियां बदल जाती हैं बोली और अंदाज़ भी भूगोल दो हो जाता है
सर्दी तो बेनाम इश्क है कभी शिलांग कभी शिमला के नाम हो जाता है
होटल वही घोड़े वही अंदाज़ भी कभी मसूरी कभी नैनीताल हो जाता है
रॉकेट साईंस या पैसे के गणित में जीने वाले अभिनेताओं के क्या कहने
प्यार किसी फ़िल्म का अभिनय होता नहीं है वह तो होता है तो हो जाता है
[ 22 जनवरी , 2016 ]
आपकी इस प्रविष्टि् के लिंक की चर्चा कल शनिवार (23-01-2016) को "विषाद की छाया में" (चर्चा अंक-2230) पर भी होगी।
ReplyDelete--
सूचना देने का उद्देश्य है कि यदि किसी रचनाकार की प्रविष्टि का लिंक किसी स्थान पर लगाया जाये तो उसकी सूचना देना व्यवस्थापक का नैतिक कर्तव्य होता है।
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चर्चा मंच पर पूरी पोस्ट नहीं दी जाती है बल्कि आपकी पोस्ट का लिंक या लिंक के साथ पोस्ट का महत्वपूर्ण अंश दिया जाता है।
जिससे कि पाठक उत्सुकता के साथ आपके ब्लॉग पर आपकी पूरी पोस्ट पढ़ने के लिए जाये।
हार्दिक शुभकामनाओं के साथ।
सादर...!
डॉ.रूपचन्द्र शास्त्री 'मयंक'
मोहब्बत अब तिजारत बन गई है ।
ReplyDeleteseetamni. blogspot. in
बहुत सुन्दर गजल ।
ReplyDeleteआपके ब्लॉग को यहाँ शामिल किया गया है ।
ब्लॉग"दीप"
यहाँ भी पधारें-
तेजाब हमले के पीड़िता की व्यथा-
"कैसा तेरा प्यार था"
ReplyDeleteवाह वाह
सर्दी तो बेनाम इश्क है कभी शिलांग कभी शिमला के नाम हो जाता है
होटल वही घोड़े वही अंदाज़ भी कभी मसूरी कभी नैनीताल हो जाता है