फ़ोटो : गौतम चटर्जी |
ग़ज़ल
कहना तो चाहता था प्रेम का सागर हूं
लेकिन बोल गया सेक्स का सागर हूं
सेक्स की उम्र कहां होती प्रेम की अनंत
इस अनंत में डूबा प्रेम का सुखसागर हूं
सच उतर जाता जुबां पर मानता नहीं
प्रेम के सावन का बौछार भरा बादर हूं
आग उस में बहुत है पर आंच मीठी
पनघट प्रेम का मैं नेह भरा गागर हूं
दुनिया ख़िलाफ़ हो जाती पर वह साथ
उस के दिल के दर्पण में बैठा आदर हूं
प्रेम में झूठ चल पाता नहीं किसी सूरत
उस की दिल की नगरी का नागर हूं
ख़रीदने बेचने में कभी उलझा ही नहीं
बाज़ार से ग़ायब रहने वाला सौदागर हूं
कोई क्या करेगा कभी पर्दाफ़ाश मेरा
सब के सामने सर्वदा सहर्ष उजागर हूं
[ 2 मई , 2016 ]
वर्तमान परिपेक्ष्य में प्यार और सेक्स समानार्थी बन कर रहे गए हैं.
ReplyDeleteआपकी इस प्रस्तुति का लिंक 05-95-2015 को चर्चा मंच पर चर्चा - 2333 में दिया जाएगा
ReplyDeleteधन्यवाद