दयानंद पांडेय
बिना किताब छापे ही कवर बना कर आंख में धूल झोंकने का एक ज्वलंत उदाहरण |
माफ़ी वीर जितेंद्र पात्रो को अब उन के महाराष्ट्र से ही एक लेखिका शची मिश्रा ने चुनौती दे कर उन्हें तगड़ा सबक़ सिखा दिया है। जितेंद्र पात्रो के काले कारनामों को उजागर करते हुए उन्हें बीते 8 जून को एक कड़ी चिट्ठी लिख दी है। जितेंद्र पात्रो के छल-कपट और झूठ से आजिज आ कर अपनी सभी किताबें शची मिश्र ने जितेंद्र पात्रो के प्रलेक प्रकाशन से वापस ले ली हैं। सारे अनुबंध रद्द कर दिए हैं। अनुबंध रद्द होते ही , सभी किताबें वापस लेते ही जितेंद्र पात्रो इतना घबरा गए कि कल रात ही शची मिश्र को जवाब भी लिख भेजा। रात एक से दो बजे तक लगातार फ़ोन करते रहे। जो आदमी शची मिश्रा का महीनों से फोन न उठाता रहा हो। मेसेज या मेल का जवाब न देता रहा हो। सिर्फ एक कड़ी चिट्ठी पाते ही , किताब वापस लेते ही आधी रात को रिप्लाई कर देता है। फ़ोन पर फ़ोन करने लगता है।
गौर तलब है कि जितेंद्र पात्रो जैसे कभी मुझे पिता तुल्य बताते थे , शची मिश्र जी को मां की तरह मानते थे। कैंसर आदि बीमारियों की कहानियों का पिटारा शची मिश्र को भी परोस देते थे। जितेंद्र पात्रो के पास बीमारी और व्यस्तता दो ही बहाने हैं काम टालने और फोन न उठाने के बाबत। हम से तो एक बार जितेंद्र पात्रो कहने लगे कि जीभ में कांटा फंस गया है। मछली का कांटा। आपरेशन करवाना है। उन दिनों मैं लंबे समय तक नोएडा में था। वह दिल्ली आए थे। क्या तो कथा-लखनऊ की तैयारी के लिए। लेकिन एक दिन फोन आया कि अस्पताल में भर्ती हूं। ऐसा दो बार हुआ कि दिल्ली आ कर जितेंद्र पात्रो ने अस्पताल में भर्ती हुआ बताया। बताया कि दिल्ली उन्हें सूट नहीं करती।
हां , लेखकों से धोखाधड़ी , झूठ बोलना , लोगों की आंख में धूल झोंकना ज़रुर सूट करता है। शची जी वैसे भी ममतामयी हैं सो बहुत समय तक जितेंद्र पात्रो पर बेटा -बेटा कह कर अपनी ममता लुटाती रहीं। पर जितेंद्र पात्रो ने उन की ममता का अपमान किया। स्त्री होने के नाते वह निरंतर चुप रहीं। वैसे भी वह गोरखपुर के एक प्रतिष्ठित और संभ्रांत परिवार से आती हैं। उन के पति भी सेना में उच्च पदस्थ रहे हैं। लेकिन जब मैं ने जितेंद्र पात्रो की कुंडली बांचनी शुरु की है बीते 7 अप्रैल से तो जितेंद्र पात्रो की कुंडली और काले कारनामे से वह और ज़्यादा परिचित हो गईं। स्त्री सुलभ संकोच से छुट्टी ली। अपनी ममता लुटानी बंद की जितेंद्र पात्रो पर। और अचानक एक दिन शची मिश्र जी ने जितेंद्र पात्रो को एक कड़ी चिट्ठी लिख दी है। इतनी कड़ी कि चिट्ठी पाते ही , वह आधी रात में उन्हें फ़ोन करने लगा। लगातार करता रहा। फोन साइलेंट पर होने के कारण उठा नहीं। तो रात ही शची मिश्र जी की चिट्ठी का लंबा जवाब भी भेज दिया। शची मिश्र इस धूर्त प्रकाशक जितेंद्र पात्रो को लीगल नोटिस भी बस भेजने ही वाली हैं। मेरी जानकारी में शची मिश्र अकेली लेखक नहीं हैं जिन का जितेंद्र पात्रो से मोह भंग हुआ है और अपनी अनुबंध निरस्त कर प्रलेक प्रकाशन से किताब वापस ले ली है। बल्कि तीन दर्जन से अधिक लेखक हैं जिन्हों ने इस दो महीने के बीच प्रलेक प्रकाशन से हुआ क़रार तोड़ कर अपनी किताबें वापस ले ली हैं। अब वही लेखक लोग चुप हैं जिन्हों ने जितेंद्र पात्रो को पैसा दे रखा है। बाक़ी लेखक लोगों ने जितेंद्र पात्रो को उस की औक़ात बता दी है। कुछ बताने की तैयारी में हैं। लोगों की आंख खुल गई है। जैसे कई लेखकों के साथ जितेंद्र पात्रो करता आ रहा है कि बिना किताब छापे ही पुस्तक सूची में नाम छाप देता है , शचि मिश्रा के साथ भी जितेंद्र पात्रो ने यही किया है। बल्कि बिना किताब छपे किताबों के कवर के साथ जन्म-दिन की बधाई भी दे दी है। अब इस कला को कमीनेपन के किस विश्लेषण से नवाजेंगे आप जितेंद्र पात्रो को। फ़िलहाल तो शची मिश्र की जितेंद्र पात्रो को लिखी वह कड़ी चिट्ठी पढ़िए और फिर जितेंद्र पात्रो के प्रलेक प्रकाशन की तरफ से उस की घिघियाती चिट्ठी का भी आनंद लीजिए।
शची मिश्र की प्रलेक प्रकाशन को लिखी चिट्ठी
08- 06- 2022
प्रिय प्रकाशक
प्रलेक प्रकाशन, मुम्बई
महोदय,
आप न तो फोन उठाते हैं और न ही ‘ह्वाट्स अप’ पर लिखे गए मैसेज का उत्तर देते हैं, इस लिए मुझे मजबूर होकर यह मेल लिखना पड़ रहा है।
1. आपने मुझसे राम पर एक पुस्तक संपादित करने के लिए कहा था और यह भी कहा कि, “दीदी आपके अलावा यह काम कोई कर भी नहीं सकेगा।” ( इसके पूर्व मैं आपको ‘लोक गीतों में राम कथा’ पर पुस्तक संपादित करके आपको भेज चुकी थी।) उसके पारिश्रमिक के रूप में आपने मुझे 35000 रुपए एवं प्रत्येक लेखक को एक लेखकीय प्रति देने की बात तय हुई थी। मैंने यह जानते हुए भी कि यह श्रम साध्य कार्य है आपके अनुरोध पर उसे स्वीकार कर लिया। और कार्य में लग गई। बीच में एक बार आपसे पुनः बात हुई और मैंने अपनी माँग दुहराई उसके बाद आपने फोन उठाना बंद कर दिया। यदि कभी बात हुई भी तो आपने अपनी बीमारी जिसमें कोरोना, एल्सर से लेकर संभावित कैंसर तक को मेरे सामने बयान किया। उम्र के इस मोड़ पर जबकि आप से दो, चार साल बड़े मेरे बच्चे हैं ,मेरा स्नेह भी आपके प्रति मातृत्व भाव का ही रहा और मैं इसके विषय में आपको अपनी जानकारी के अनुसार सलाह और ईश्वर से आपके स्वास्थ्य के लिए प्रार्थना भी करती रही। उम्र के इस मोड़ पर मेरा नजरिया सभी युवक युवतियों के लिए के प्रति मातृ भाव ही रहता है और मैं आपके बताए कार्य में व्यस्त हो गई और 27 नवंबर 2021 को ‘राम एक कालजयी चेतना ’ का कार्य पूरा हो गया जिसमें तीस विद्वानों के लिखे लेख जिसमें 119689 ( एक लाख उन्नीस हजार छः सौ नवासी ) शब्द हैं। जिसमें मेरा लगभग छः महीने तक का लगातार लोगों से बार बार लेख माँगने का अनुरोध, उसे टाइप करने का परिश्रम भी शामिल है। एक दिन आपने फोन उठाया और मैंने इस संदर्भ में बात की तो आप ने कहा कि सिनोप्सिस भेज दीजिए मैंने 28 मई को सिनोप्सिस मेल कर दिया किन्तु आज तक उसका उत्तर नहीं मिला। कल पुनः आपको मैसेज किया किन्तु आपने उत्तर नहीं दिया।
मेरे पास उन लेखकों के फोन लगातार आते रहते हैं, जिन्होंने लेख दिया था उन लेखकों का फोन आता है और मुझे आपके कारण अपमानित होना पड़ रहा है। इस विषय में अनावश्यक रूप से बहुत देरी हो चुकी है इसलिए आप तत्काल टाइपिंग का खर्च ( जिसे आप प्रति शब्द की दर से बताते रहते हैं) एवं अनुबंध की राशि को मोबाइल बैंकिंग के द्वारा मेरे एक मात्र फोन नंबर से मेरे तत्काल एकाउंट में ट्रांसफर करें और अनुबंध को अपने हस्ताक्षर के साथ स्कैन करके ( जैसा कि मैंने किया था) मेल करें।
2. आपने अगस्त 2020 में प्रकाशित करने वाली पुस्तकों का मेरे साथ अनुबंध ठीक से नहीं किया। मैंने मेल द्वारा आपका भेजे अनुबंध का प्रिंट निकाल कर अपने हस्ताक्षर करके भेज दिया किन्तु मुझे आपके हस्ताक्षर के साथ वह अनुबंध पत्र प्राप्त नहीं हुआ। मुझे भी इस बात का ध्यान नहीं रहा, यही घटना दोबारा दो पुस्तकों - ‘लोक गीतों में राम कथा’ ( संकलन) एवं ‘ययाति पुत्री माधवी ( उपन्यास) के समय भी हुई। यह एक तरफा अनुबंध भी पहले की ही भाँति 1 अगस्त 2020 में हुआ था और इसे भी मैंने पहले की ही तरह स्कैन करके भेजा था और पुनः ‘राम एक कालजयी चेतना’ के संकलन के समय तक मैं सचेत हो चुकी थी और बिना धन राशि और टाइपिंग के खर्चे के मैं पहले की भाँति एग्रीमेंट करने के लिए तैयार नहीं थी इसलिए पहले आपसे हस्ताक्षर किया गया एग्रीमेंट माँगा। आपके द्वारा पहले किए इस आचरण से भी मेरा संदेह विश्वास में बदल रहा है, अतः तत्काल पुराने एक पक्षीय जिसमें आपने हस्ताक्षर नहीं किया था, हस्ताक्षर करके भेजें।
3. आपने अब तक प्रकाशित तीनों पुस्तकों की साल के अंत में ( जैसा कि आपके अनुबंध में लिखा था ) कोई रायल्टी नहीं दी, जब कि दो लोक साहित्य पर आधारित पुस्तकों की भारी बिक्री हुई, यह आपने ‘लखनऊ पुस्तक मेला’ ( मार्च 2021 )के समय मुझसे कहा था कि मैं पचास पचास प्रतियाँ लेकर आया था किन्तु दो चार दिन में ही वे सारी बिक गई और आपने और पुस्तकें छपवा कर मँगाई हैं। संदर्भ में आपने एक समाचार पत्र का लिंक भी दिया था और उसी के आधार पर मैंने उस समय फेसबुक पर एक पोस्ट भी किया था। चूकि मुझे आपके द्वारा ज्ञात हो चुका था कि अब कम्प्यूटर से लेजर छपाई तत्काल हो जाती है इसी लिए जब चाहें दस बीस प्रतियाँ छाप सकते हैं। संग्रह करने की समस्या के कारण कोई भी प्रकाशक अब एक बार में पचास प्रति से अधिक नहीं छापता। आप मेरी पुस्तकों का अनुमति के बिना पाँच संस्करण को कौन कहे न जाने कितने संस्करण निकाल चुके है अतः अब मेरी पुस्तकों से प्राप्त रायल्टी का भुगतान करें।
4. मैं एक को छोड़ कर दो पुस्तकों - ‘भोजपुरी की लोक कथाएँ’ एवं ‘भोजपुरी के प्रणय गीत : नकटा’ का कवर अपने मित्रों से बनवा कर दिया था जिसके लिए उनको एक सम्मान जनक धन राशि देने की बात हुई थी, ( विवरण और आपकी स्वीकृति 16 अगस्त 2020 ह्वाट्स अप पर दर्ज है) पर आपने वह भी नहीं दिया, उस का भुगतान करें।
5. मैंने आपके माँगने पर दो किताबें- ‘ भोजपुरी लोकगीतों में राम कथा’ ( संपादन) एवं ‘ययाति पुत्री माधवी’ की पाण्डुलिपि भेजी। ( चूँकि आप कहते थे कि, “दीदी मैं साल में आपकी दो किताबें छापूँगा।”) और उसका भी अनुबंध का पहले की ही भाँति आपने किया, अर्थात मेरे हस्ताक्षर तो ले लिए किन्तु अपना करके नहीं भेजा।
6. इसी क्रम में ह्वाट्स अप के द्वारा आपने पूछने पर 24 अक्तूबर 2020 को सूचित किया कि ‘लोक गीतों में राम कथा’ पर कार्य आरंभ हो चुका है। किन्तु अब तक मुझे कोई कंपोज की हुई सामग्री नहीं मिली। दोनों पुस्तकों का कवर मैंने अपनी सहेली से बनवाया था पर माधवी का कवर मुझे पसंद नहीं आया इसलिए उसे बदलने के लिए कहा। इस क्रम में आपने माधवी पर काम आरंभ कर दिया और मैंने 10 जुलाई 2021 को माधवी का संशोधन भेजा, बार बार कहने पर अंत में 25 -11 - 2021 को मैंने ‘ययाति पुत्री माधवी’ का फाइलन प्रूफ भेजने के बाद भी कवर के दर्शन नहीं हुए और तो पुस्तक क्या छापते?
7. हाँ आप मेरे जन्म दिन पर 24 अप्रैल 2021 को अपनी पोस्ट में पाँचों पुस्तकों के कवर के साथ जन्म दिन की बधाई दी थी जिसे मैंने अपनी वाल पर भी लगाया था। तब से एक साल से अधिक समय हो गया, कार्य में कोई प्रगति नहीं हुई।
8. इसी क्रम में मेरे बार बार पूछने पर तथा यह बताने पर कि मैं ‘ययाति पुत्री माधवी’ की प्रति को विभिन्न संस्थाओं में पुरस्कार के लिए नामित होने के लिए भेजना चाहती हूँ, तो आपने 15 मार्च 2021 को मैसेज में लिखा कि अप्रैल में दोनों किताबें आ जाएँगी किन्तु अफसोस कि मेरी एक कृति जो कि पुरस्कृत हो सकती थी अटक गई। आपके इस झूठ से मुझे जो दुःख और मानसिक प्रताड़ना मिली उसका बयान नहीं कर सकती। पुनः इस वर्ष होने वाले पुस्तक मेले में हर हाल में मेरी पुस्तक लाने के लिए वादा किया था किन्तु अफसोस...।
9. आपने 4 नवम्बर 2021 को अपने द्वारा प्रकाशित पुस्तकों की सूची में बिना कंपोज और प्रकाशित किए ही दोनों पुस्तकों -‘लोकगीतों में राम कथा’ ( संकलन ) एवं ‘ययाति पुत्री माधवी’ ( उपन्यास ) का उल्लेख किया तो मुझे लगा कि आप काम कर रहे हैं और एकाध महीने में पुस्तक बाजार में आ जाएगी किन्तु यहाँ भी धोखा हाथ लगा।
10. इसी क्रम में मैं पिछले वर्ष अपने मूल निवास ( गोरखपुर ) जा रही थी और पूर्व में हुई बात के आश्वासन पर आपसे अगस्त 2020 में प्रकाशित रचनाओं की 5-5 प्रतियाँ मूल निवास ( गोरखपुर ) के पते पर भेजने के लिए कहा किन्तु कोई पुस्तक नहीं मिली।
11. इस बीच मैं निरंतर आपको फोन और मैसेज लिखती रही किन्तु जैसा कि आप सबके साथ करते हैं मेरे फोन को नहीं उठाया और न ही कोई कॉल बैक किया। न ही मैसेज का कोई उत्तर दिया। आपके निरंतर इस प्रकार से किए गए व्यवहार से मुझे बहुत मानसिक पीड़ा हुई है।
12. इस बीच मुझे निरंतर मुझे सोशल मीडिया, फेसबुक, ब्लॉग और व्यक्तिगत संदेशों, बात चीत से आपके द्वारा सताए, धमकाए गए पीड़ित लोगों से बहुत कुछ पता चला। एक बार आपसे पूछा भी था किन्तु आपने सारे आरोप को झूठा बताया किन्तु खुले तौर पर ब्लॉग और फेसबुक पर प्रमाणों के साथ आप पर लगाए गए आरोपों का प्रमाण के साथ खण्डन करने में भी आप असमर्थ रहे।
13. आपके व्यवहार से परेशान हो कर मैं यह कदम उठा रही हूँ कि, जब तक आप मुझे ऊपर लिखे गए धन का भुगतान नहीं करते मेरी, दोनों पुस्तकों -‘लोकगीतों में राम कथा’ ( संकलन ) एवं ‘ययाति पुत्री माधवी’ ( उपन्यास ) प्रकाशन को रोक रही हूँ, इसके साथ साथ मैं आपके द्वारा पूर्व प्रकाशित तीन पुस्तकों- 1. यानी की फुल्ली फालतू’ 2- भोजपुरी के प्रणय गीत नकटा 3- भोजपुरी की लोक कथाएँ, का पुनः मुद्रण एवं बिक्री के अधिकार को भी अपने कॉपीराइट और आपके द्वारा अपनाए गए संदिग्ध आचरण ( अग्रीमेंट आदि ) के कारण रोक रही हूँ।
14. आप शीघ्र ही इन सबका निपटारा करें अन्यथा मुझे आपके द्वारा भेजे गए अनुबंध के बिन्दु संख्या ( 13 ) के लिए आगे बढ़ना पड़ेगा।
15. पुनः मुझे किसी प्रकार का मौखिक आश्वासन नहीं चाहिए इसलिए फोन न करें, केवल बकाए धन राशि का भुगतान मोबाइल बैंकिंग के द्वारा करें। भुगतान के बाद ही किसी प्रकार का संवाद संभव हो सकेगा।
धन्यवाद
शची मिश्र
प्रलेक प्रकाशन का जवाब
Date: Thu, 9 Jun, 2022, 07:32
Subject: Fwd: पत्र
To: Shachi Mishra <mishra.shachi@gmail.com>
Cc: <salilsudhakar@yahoo.in>, <editor.pralekprakashan@gmail.com>, Jitendra Patro <jitendra.vpatro@gmail.com>, <haiderkhan1983@gmail.com>
जितेंद्र पात्रो को भेजा गया राम एक कालजयी चेतना पुस्तक के बाबत शची मिश्र का प्रारुप
On Sat, May 28, 2022 at 9:54 AM Shachi Mishra <mishra.shachi@gmail.com> wrote:
प्रिय जितेन्द्र जी
खूब खुश रहें।
आपके कहे अनुसार मैं राम एक कालजयी चेतना का प्रारूप भेज रही हूँ, जो कि पूरी तरह से संशोधित होकर तैयार है। आप अपने कहे अनुसार पारिश्रमिक के तौर पर 35000 रूपए एवं अनुबंध पत्र भेज दें। रूपए मुझे गूगल पे से मेरे एकमात्र फोन नं. 9850427137 पर भेजे तो मुझे सुविधा रहेगी।
* इसमें 30 आलेख हैं और कुल शब्द संख्या- 119689 है।
धन्यवाद
शची मिश्र
दो शब्द
जै श्रीराम
“सिय राम मैं सब जग जानी,
करहु प्रनाम जोरि जुग पानी।।”
पाँच अगस्त दो हजार बीस के दिन करोड़ों लोगों की भाँति मेरा भी मन उल्लास से भरा हुआ था और मैं भी टेलीविजन पर श्रीराम जन्मभूमि के भूमि पूजन का प्रसारण देख रही थी। उसी समय मेरे मन में विचार उठा कि, श्रीराम के उदात्त मानवीय व्यक्तित्व पर आधुनिक युग में बहुत से सुधी जनों ने विविध विधाओं के माध्यम से अपने अपने नजरिये से श्रीराम के विषय में लिखा है उनमें से कुछ लोगों से आलेख लेकर मैं भी एक पुस्तक संपादित करूँ। समय के साथ विचार संकल्प बन गया और आरंभ हुआ विद्वानों से सहयोग का प्रयास। जब मैंने श्रीराम के विषय में विद्वानों के लेखन को पढ़ना आरंभ किया तो इतना समृद्ध लेखन मिला कि चाह कर भी इस छोटी सी पुस्तक में सबको समेट नहीं सकती थी। जिस उत्साह से प्रयास आरंभ किया था उसी उत्साह से विद्जनों ने सहयोग देना आरंभ किया। इसके साथ साथ मैं पूर्ववर्ती विद्वानों और अपने गुरुजनों के पूर्व प्रकाशित सामग्री को भी संकलित करती रही और अंततः श्रीराम की कृपा से मेरा संकल्प पूरा हुआ।
मैं इस संकलन में सहयोग करने वाले सभी मित्रों और गुरुजनों की आभारी हूँ।
धन्यवाद।
शची मिश्र
भूमिका
आदि कवि महर्षि वाल्मीकि से लेकर अनगिनत मनीषियों और शास्त्रकारों ने अपने अपने ढंग से राम - कथा को रचा और जन मानस में बसाया। इन शास्त्रकारों से पूर्व विभिन्न लोक समुदायों ने भी अपने ढंग से राम को रचा, जाना और माना है। आज लोक में राम और उनकी जीवन गाथा से संबंधित हजारों कथाएँ और गीत लोगों के कंठ में विराजमान हैं।
श्रीराम हमारी संस्कृति के मुख्य स्तंभ हैं और इसी कारण उनकी कथाओं की जड़ें आदि काल से ही हमारे समाज में बहुत गहराई से पैठी हुई हैं। इसकी शाखाओं और उपशाखाओं की व्याप्ति छोटी मोटी विषमताओं के साथ देश देशांतर में फैली हुई हैं। रेवरेंड फादर कामिल बुल्के ने अपने शोध प्रबंध में प्रमाणित किया है की राम कथा केवल भारतीय कथा नहीं वरन यह अंतरराष्ट्रीय कथा है। राम कथा के इस विस्तार को फादर कामिल बुल्के ‘आदि कवि वाल्मीकि की दिग्विजय’ कहते हैं। फादर कामिल बुल्के के आकलन के अनुसार केवल भारत में पाठांतर सहित तीन सौ रामाख्यान के साथ साथ दो तीन हजार लोक कथाएँ और लोक गीत हैं। राम कथा के इसी विस्तार के कारण तुलसी दास को कहना पड़ा-
“नाना भाँति राम अवतारा,
रामायण सत कोटि अपरा।।” ( बाल काण्ड, राम चरित मानस)
वाल्मीकि रामायण के काव्य के सौन्दर्य, श्रीराम के उदात्त चरित्र, पारिवारिक और सामाजिक मर्यादाओं का ही प्रभाव था कि यह कथा धर्म, जाति, भाषा तथा क्षेत्र की सीमाओं को तोड़ कर भारत एवं एशिया के कोने कोने में फैल गई। मंगोलिया से लेकर चीन जापान होते हुए इंडोनेशिया का कोई ऐसा देश नहीं है जहाँ इस महाकाव्य की कथाएँ उन देशों की संस्कृति, लोक कथाओं तथा इतिहास के अविच्छिन्न अंग की भाँति फली फूली न हों।
राम कथा का प्रचार और प्रसार जिन कारणों से हुआ, उनमें सबसे प्रमुख है राम के चरित्र की उदात्त मानवता। अन्याय के विरुद्ध राम का संघर्ष, निर्बल वर्गों से आत्मीयता, आदर्शों के लिए बड़े बड़े त्याग के लिए उनकी तत्परता, पिता की प्रतिज्ञा की रक्षा के लिए कठिन वनवास, एकपत्नी व्रत, ऋषियों के लिए आदर, श्रद्धा और उनकी रक्षा का संकल्प, जंगली और आदिवासी जातियों में आत्मविश्वास भर कर उन्हें संगठित करके उनकी सहायता से आसुरी शक्तियों को पराजित करना, शरणागत के लिए दया के स्थान पर मैत्री की भावना, वीरता के साथ सौम्यता, कर्तव्य की कठोरता के साथ अद्भुत मृदुता इन्हीं कारणों से राम जनमानस के अराध्य बने और उन्हें एशिया का अद्वितीय मानव बना दिया। असंख्य विद्वानों, कवियों ने विगत दो हजार वर्षों में समय समय पर श्रीराम की कथा पर अपनी लेखनी चलाई। अपने काव्य को लोक ग्राह्य बनाने के लिए उन्होंने उसमें स्थानीय रीति रिवाजों, परंपराओं, लोक कथाओं आदि के साथ साथ अपनी कल्पना शक्ति का भी भरपूर उपयोग किया इसके लिए इन रचनाकारों ने मूल कथा में फेर बदल करने से भी परहेज नहीं किया। इस महाकाव्य का लोक में इतना प्रभाव पड़ा कि संस्कृत सहित समस्त भारतीय भाषाओं में राम कथा को लेकर काव्य एवं नाटक लिखे गए और इस रचना ने समस्त एशियाई देशों को एक सांस्कृतिक सूत्र में पिरोने के कार्य में सर्वाधिक महत्वपूर्ण कार्य किया है।
‘राम एक कालजयी चेतना’ में संकलित आलेखों में विद्वानों ने राम कथा और राम के महामानव चरित्र के विभिन्न पहलुओं पर प्रकाश डाला है। डॉ. राजेन्द्र प्रसाद पाण्डेय ‘कुंठा, संत्रास्त, विघटन अनास्था के युग में तुलसी के राम’ में राम के आचरण के अनुसरण की आवश्यकता को महसूस करते हैं तो डॉ. कुबेरनाथ राय राम को पूर्ण अवतार मानते हैं क्योंकि मानुषी सीमाओं का वरण श्री रामचंद्र ही करते हैं। सुधीर चंद्र बेहुरा ने ओड़िया के प्रथम रामकाव्य ‘विचित्र रामायण’ में शामिल घटनाओं, विविध कथाओं की विचित्रता की और इंगित किया हैं। गुरुवर डॉ. रामचंद्र तिवारी जी ‘तुलसी के राम’ के अंतर्गत राम के सम्पूर्ण जीवन को रेखांकित करते हुए लिखते हैं, “भारतीय साहित्य में शायद ही कोई अन्य पात्र हो जिसका जीवन राम जितना संघर्षाकुल हो। यह संघर्ष जितना बाह्य है उतनी ही आंतरिक भी।” साथ ही राम के लोकवादी रूप, सर्वहारा वर्ग के दीनबंधुत्व के साथ साथ भालू बंदर जैसी जनजातियों को साथ लेकर अपना लक्ष्य पूरा करने की राम की क्षमता को भी इंगित किया और साथ साथ राम के ऊपर उठाए गए प्रश्नों पर राम विरोधियों को उत्तर भी देते चलते हैं। गुरुवर डॉ. भगवती प्रसाद सिंह ने कृष्ण की अनन्योपासिका मीराबाई के राम की निष्ठा पर प्रकाश डाला है।
इनके अतिरिक्त विभिन्न भारतीय भाषाओं में लिखे गए रामकथा से संबंधित आलेखों को भी मैंने इस संग्रह में शामिल किया है। इस क्रम में नव भारतीय भाषा में लिखे गए माधव कंदली के ‘सप्तकाण्ड रामायण’ के बारे में वर्नाली वैश्य जी ने लिखा है कि, माधव ने राम को लौकिक तथा मानवीय गुणों से संपृक्त करके उनके चरित्रांकन में विभिन्न पक्षों को उजागर किया है तथा असमिया समाज एवं जनजीवन का प्रसंगानुसार चित्रण किया है। कंदली के राम गुणवान, धैर्यवान,कृतज्ञ, सत्यवादी, चरित्रवान, क्रोध को जीतनेवाले, असूयासून्य हैं। कृतिवास ओझा द्वारा रचित बँगला रामकथा ‘राम पांचाली’ में श्रुति परंपरा, कल्पना तथा स्थानीय लोक बहुतायत से देखने को मिलता है। प्रो. टी. आर. भट्ट जी ने कन्नड रामकाव्य परंपरा में हिन्दू और जैन दोनों परंपराओं का उल्लेख किया है। डॉ एम शेषन ने अपने आलेख ‘आधुनिक तमिल साहित्य पर रामायण का प्रभाव’ में लोकगीतों, कविता, कल्लिकै – खण्ड काव्य में अहिल्या के शापमोचन की कथा पर प्रकाश डाला है। डॉ. वी. जयलक्ष्मी ने कंबन की रामकथा ‘इरामावतारम्’ राम और सीता को विष्णु और लक्ष्मी का अवतार बताया जो कि वियुक्त होकर जनक वाटिका में मिलते हैं। साथ ही कंबन की अहल्या के प्रति भी दृष्टि उदार है। वे इस प्रसंग में कई स्थानों पर वाल्मीकि से भिन्नता स्पष्ट दिखाई देती है। डॉ. शिब्बन कृष्ण रैना के ‘कश्मीरी काव्य में रामकथा’ का आधार तो वाल्मीकि की रामायण ही है किन्तु कई स्थानों जैसे- मंदोदरी का जन्म, सीता वनवास का कारण आदि प्रसंगों में कवि ने विलक्षण तथा मौलिक मान्यताओं की उद्घोषणा की है जैसे रावण द्वारा शिव से माँगी गई मक्केश्वर लिंग की कथा आदि। इस रचना पर स्थानीय प्रभाव इतना अधिक है कि रामकथा का पूरा कश्मीरीकरण हो गया है।
डॉ.सर्वेश पाण्डे ने राम और रामराज्य की अवधरणा में लोकजीवन की महत्ता को रेखांकित किया है। उनके अनुसार, “लोक के मूल्यों से विहीन राजसत्ता को राम राज्य नहीं कहा जा सकता है।” डॉ. इंदीवर ने अपने आलेख ‘कब आए थे राम’ में ऐतिहासिक काल निर्धारण की विविध पद्धतियों द्वारा राम के समय का निर्धारण करने का प्रयास किया है। डॉ. रामकिशोर शर्मा के ‘अपभ्रंश महाकवि स्यंभू के राम और लक्ष्मण’ आलेख से ज्ञात होता है कि जैन मुनियों ने जैन धर्म की महत्ता को दिखाने के लिए रामकथा के पात्रों को अपने धर्म में घसीटा और मनमाना परिवर्तन किया। प्रो. सूर्यप्रसाद दीक्षित ने राम कथा के विश्व विस्तार पर चर्चा की तो डॉ. हरिश्चंद्र मिश्र जी ने लोकगीतों की एक विधा सोहर में रामकथा के लौकिकीकरण पर चर्चा की है। डॉ. कृष्ण चंद्र लाल जी ने रसिक संप्रदाय की राम भक्ति पद्धति से जिसमें “राम सर्व लोक में सबसे रमण करते हैं, इसी रमणशीलता के कारण वे राम कहलाते हैं। सभी लोकों में वे ही पुरुष हैं बाकी सब स्त्री रूप हैं अतः राम सबके भोक्ता और पति हैं।” इनके राम समय समय पर विविध लीलाएँ करते हैं। प्रसिद्ध लेखक और पत्रकार रामसागर शुक्ल ने राजा दशरथ और श्रीराम द्वारा लोकमत की प्रधानता को दिखाया है। डॉ. रामकिशोर शर्मा ने अपभ्रंश भाषा में लिखे गए जैन रामायण ‘पउमचरिउ’ में जैन धर्म की मान्यता के अनुसार लिखी गई कथा का विश्लेषण किया है। डॉ. आद्या प्रसाद सिंह ‘प्रदीप’ जी ने राम अनुज भरत के चरित्र और राम से अभिन्न संबंधों के बारे में लिखा है तो डॉ. इंदुशेखर ‘तत्पुरुष’ ने रामचरित मानस के आधार पर राम के निज सिद्धांतों के विषय में लिखा है। डॉ. सभापति मिश्र ने वाल्मीकि के राम के विषय में लिखा जिनका आचरण मानव के आचार पथ का सम्यक दिग्दर्शन करता है। डॉ. अनुज प्रताप सिंह ने ‘निराला की शक्ति पूजा’ के आधार पर राम के मानसिक उथल पुथल का विश्लेषण किया है। गुरुवर डॉ. रामदेव शुक्ल ने आचार्य केशवदास के रामचंद्रिका के आधार पर राम कथा पर प्रकाश डाला है जो एक काव्य नाटक के रूप में विचित्र कल्पनाओं और नाटकीयता से भरी हुई है। प्रो. राधेश्याम दूबे ने ‘कबीर के राम’ शीर्षक लेख में कबीर की भक्ति परंपरा के आधार पर राम का विवेचन किया। डॉ. प्रसाद ब्रह्मभट्ट ने गुजराती भाषा में रामकाव्य परंपरा का उल्लेख किया है। राम कथा ‘आनंद रामायण’ पर ओंकार नाथ द्विवेदी ने राम के दो रूपों का उल्लेख किया है, एक में वे दशरथ नंदन है तो दूसरे में अपने अलौकिक रूप में निर्गुण और सगुण ब्रह्म भी। डॉ. सरोज सिंह ने डॉ. नरेश मेहता की कृति ‘संशय की एक रात’ में मिथकों के आधार पर युग संदर्भों को पहचानने का प्रयास किया है जो राम कथा की पृष्ठभूमि में युद्ध की समस्या को उठाते हैं। इनके राम मानवीय विकल्पों के पुंज हैं, संशय और प्रश्नों के समूह है और शुभाशुभ कर्मों के भोक्ता भी हैं।
मैं पुनः उन सभी विद्वानों की आभारी हूँ जिन्होंने परिश्रम करके समय पर अपने आलेख उपलब्ध करवाए। मुझे आशा है कि आप सभी सुधीजनों को मेरा प्रयास और चयन पसंद आएगा जिसे पूरा करने में मैंने काफी परिश्रम किया है।
धन्यवाद।
शची मिश्र
विषय सूची
पृष्ठ
१. प्रपत्ति और संधर्ष के प्रतीक राम राजेन्द्र प्रसाद पाण्डेय
२. राम ही पूर्णावतार थे कुबेरनाथ राय
३. तुलसी और राम राज्य के मूल्य सर्वेश पाण्डेय
४. राम कब आए थे इंदीवर
५. तुलसी के राम राम चंद्र तिवारी
६. रहीम के राम क्षमाशंकर पाण्डेय
७. कन्नड़ रामायण वी. वै. ललितम्बा
८. कृतिवास एक संक्षिप्त आकलन शैलेन्द्र कुमार त्रिपाठी
९. कंबरामायण की महत्ता वी. जयलक्ष्मी
१०. कशमीरी काव्य में रामकथा शिब्बन कृष्ण रैना
११. मीराबाई के रामभक्तिपरक पद भगवती प्रसाद सिंह
१२. माधव कंदलि के ‘सप्तकाण्ड रामायण’ में
चित्रित राम बर्नाली वैश्य
१३. ओड़िया का प्रथम राम काव्य सिद्धेश्वर
का ‘विचित्र रामायण’ सुधीर चंद्र बेहुरा
१४. संत एकनाथ का भावार्थ रामायण सरजू प्रसाद मिश्र
१५. रामकथा कै मिति जग माहीं सूर्यप्रसाद दीक्षित
१६. सोहर लोकगीतों में रामकथा का
लौकिकीकरण हरिश्चंद्र श्रीवास्तव
१७. रसिक राम भक्तों के राम कृष्णचंद्र लाल
१८. तुलसीदास और राम राज्य के मूल्य सर्वेश पाण्डेय
१९. लोकतंत्र और राम राज्य राम सागर शुक्ल
२०. अपभ्रंश कवि स्वयंभू के राम और लक्ष्मण राम किशोर शर्मा
२१. भरत महा महिमा सुखकारी आद्याप्रसाद सिंह ‘प्रदीप’
२२. आनंद रामायण के राम ओंकार नाथ द्विवेदी
२३. राम का निज सिद्धांत और सामाजिक
समरसता की दृष्टि इंदुशेखर ‘तत्पुरुष’
२४. वाल्मीकि के राम सभापति मिश्र
२५. सेनापति का राम काव्य रामानंद शर्मा
२६. राम की शक्तिपूजा अनुज प्रताप सिंह
२७. ‘रामचंद्रिका’ एक विलक्षण प्रयोग रामदेव शुक्ल
२८. कबीर के राम राधेश्याम दूबे
२९. गुजराती भाषा साहित्य में राम चरित्र प्रसाद ब्रह्मभट्ट
३०. संशय की एक रात सरोज सिंह
अब आप लोग ख़ुद देखें और समझें कि जितेंद्र पात्रो किस तरह हर किसी हिंदी लेखक के साथ छल-कपट और शोषण पर आमादा है। वह सिर्फ़ और सिर्फ़ लेखकों का शोषण और अपमान करना ही जानता है। कुछ और नहीं। जल्दी ही जितेंद्र पात्रो के काले कारनामों के कुछ और हिस्सों से परिचित करवाऊंगा।
जितेंद्र पात्रो का माफ़ीनामा |
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