दयानंद पांडेय
चोरी भी और सीनाजोरी भी। आख़िर यह तुम्हारी कैसी आराधना है जो आदमी को अराजक , हिंसक और दंगाई बना देती है। ऐसा कौन सा सज्दा है जो करते ही हराम हो जाता है। बंद करो ऐसी जुमे की नमाज। भाड़ में डालो इस नमाज को जो मनुष्यता नहीं समझती। सिर्फ़ इस्लाम की हिंसा समझती है। हिंसा किसी भी सभ्य समाज में स्वीकार्य नहीं हो सकती। नूपुर शर्मा ने ऐसा कुछ भी नहीं कहा जो ग़लत कहा। ग़लत किया है क़तर जैसे देशों ने। जिन्हों ने भारत के मुसलमानों को शह दे कर भड़काया।
और जहालत के मारे यह मुसलमान हिंसा पर उतारु हो गए हैं। कभी कश्मीर , कभी कानपुर , मुजफ़्फ़र नगर , फिर पूरा देश। जहन्नुम बना दिया है देश को। इन अराजक और हिंसक लोगों को कस के रगड़ देना चाहिए। और क़ायदे से क़तर जैसे मुस्लिम देशों से राजनयिक संबंध ख़त्म कर लेना चाहिए। यह जो करोड़ो रुपए रोज क़ानून व्यवस्था के नाम पर हर जुमे को खर्च हो रहे हैं। हिंसा और आगजनी हो रही है। यह तो रुक जाएगी ,क़तर और अरब को अपना बाप मानने वाले लोग बुलडोजर के ही हक़दार हैं।
मैं गांधी और उन की अहिंसा के बड़े प्रशंसकों में से हूं। पर अब लगता है कि गांधी ने बहुत ग़लत किया। बंटवारे के बाद मुसलमानों को हिंदुस्तान में बिलकुल नहीं रहने देना चाहिए था। सौ प्रतिशत को पाकिस्तान भेज देना चाहिए था। बल्कि जबरिया भेज दिया जाना चाहिए था। गांधी-नेहरु की इस ग़लती को हम जाने कब तक भुगतते रहेंगे। और यह जिन्नावादी इस्लाम के नाम पर रोज डायरेक्ट ऐक्शन करते रहेंगे। डायरेक्ट ऐक्शन जिन्ना ने शुरु किया था। कि हिंदुओं को देखते ही मार डालो। जिन्ना के इस डायरेक्ट ऐक्शन में ही डर कर गांधी झुक गए और पाकिस्तान क़ुबूल कर लिया। पाकिस्तान बना कर एक सभ्य और शरीफ़ शहरी की तरह इन को भारत में रहना लेकिन आज तक नहीं आया। बात-बेबात हिंसा , जेहाद और ब्लैकमेलिंग ही इन का चरित्र हो गया है। यह सब देखते हुए भारत को अब इजरायल मॉडल की सख़्त ज़रुरत है। हद हो गई है। देश के संविधान की जगह शरिया के तलबगारों से छुट्टी चाहता है देश।
आख़िर इस्लाम की बिना पर ही तो पाकिस्तान बना था। और यह कमबख़्त कहते हैं कि बाई च्वायस यहां भारत में रह गए थे। क्यों रह गए थे भाई। क्या भारत को दिन-ब-दिन जलाने के लिए ही रुके थे ? यह बात-बेबात आए दिन शहर-दर-शहर को हिंसा की आग में जलाने को अगर आप सेक्यूलरिज्म मानते हैं तो भाड़ में जाएं आप और आप का यह सेक्यूलरिज्म। कि रोज-रोज मनुष्यता को जलाते रहते हैं। अरे जलाना ही है तो विवाद की जड़ उस किताब को ही जला देना चाहिए। इन हिंसक लोगों से निपटने के लिए किसी स्टालिन , किसी हिटलर की ज़रुरत आ पड़ी है। लोकतांत्रिक तरीक़े से इन हिंसक लोगों से किसी सूरत नहीं निपटा जा सकता। इस जुमे की हिंसा पर बशीर बद्र याद आते हैं :
यहां एक बच्चे के ख़ून से जो लिखा हुआ है उसे पढ़ें
तिरा कीर्तन अभी पाप है अभी मेरा सज्दा हराम है।
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