इन दिनों संसद में जो कुछ भी हो रहा है उस सब को देख कर एक पुराना लतीफ़ा याद आता है। आप भी इस लतीफ़े का लुत्फ़ लीजिए :
एक लड़का था। एक शाम स्कूल से लौटा तो अपनी मम्मी से पूछने लगा कि, 'मम्मी, मम्मी ! दूध का रंग काला होता है कि सफ़ेद?
' ऐसा क्यों पूछ रहे हो ?' मम्मी ने उत्सुकता वश पूछा।
' कुछ नहीं मम्मी, तुम बस मुझे बता दो !'
' लेकिन बात क्या है बेटा !'
'बात यह है मम्मी कि आज एक लड़के से स्कूल में शर्त लग गई है।' वह मम्मी से
बोला कि, 'वह लड़का कह रहा था कि दूध सफ़ेद होता है और मैं ने कहा कि दूध
काला होता है !' वह मारे खुशी के बोला, 'बस शर्त लग गई है !'
' तब तो बेटा, तुम शर्त हार गए हो !' मम्मी ने उदास होते हुए बेटे से कहा, ' क्यों कि दूध तो सफ़ेद ही होता है !'
यह सुन कर वह लड़का भी उदास हो गया। लेकिन थोड़ी देर बाद जब वह खेल कर लौटा तो बोला, ' मम्मी, मम्मी ! मैं शर्त फिर भी नहीं हारुंगा।'
' वो कैसे भला ?' मम्मी ने उत्सुकता वश बेटे से मार दुलार में पूछा।'
' वो ऐसे मम्मी कि जब मैं मानूंगा कि दूध सफ़ेद होता है, तब ना हारुंगा !'
वह उछलते हुए बोला कि, ' मैं तो कहता ही रहूंगा कि दूध काला ही होता है और
लगातार कहता रहूंगा कि दूध काला होता है। मानूंगा ही नहीं कि दूध सफ़ेद होता
है। सो मम्मी मैं शर्त नहीं हारुंगा !'
' क्या बात है बेटा ! मान गई तुम को !' मम्मी ने बेटे को पुचकारते हुए कहा, 'फिर तो तुम सचमुच शर्त नहीं हारोगे।'
यह तो खैर लतीफ़ा है। पर देखिए न कि विपक्ष ने संसद में कैसे तो अपनी हर बात को काले रंग में तब्दील कर रखा है । इस का विस्तार अभी यहां
प्रासंगिक नहीं है। पर असल मुद्दे पर आइए। फ़िलहाल तो मायावती और स्मृति ईरानी प्रसंग । मायावती का काला दूध देखिए ! और उन का कुतर्क झेलिए ।
स्मृति इरानी आप को पता नहीं है कि अगर समूचा देश भी अपना सिर काट कर
मायावती के क़दमों में रख दे तो भी मायावती या उन के जैसे लोग कभी ख़ुश नहीं
हो सकते। न कभी होंगे । इन लोगों का माईंड सेट बिलकुल अलग है । नहीं सच तो
यह है कि अगर अटल बिहारी वाजपेयी न होते तो न तो मायावती जीवित रहतीं न
सत्ता का स्वाद कभी चख पाई होतीं । लेकिन उन्हों ने अटल जी के साथ क्या
किया ? उन की पीठ में छुरा भोंका ।
चलिए किसी तरह जीवित भी रहतीं तो उन का राजनीतिक जीवन नहीं होता। अटल जी वह पहले व्यक्ति थे जिन्हों
ने गेस्ट हाऊस में जून , 1995 में उन पर मुलायम के इशारे पर लोगों ने
जानलेवा हमला किया तब उसी दिन संसद में ज़ोर-शोर से मामला उठा कर उन को
सुरक्षा दिलवाई , जान बचाई नहीं वह मारी गई होतीं। भाजपा के सारे लोगों का
विरोध किनारे कर अटल जी ने ही मायावती को समर्थन दे कर मायावती को मुख्य
मंत्री बनवाया। चार-चार बार वह मुख्य मंत्री बनीं । मायावती की जगह अगर कोई
और होता तो अटल जी के चरण धो कर पीता पर मायावती की एहसान फ़रामोशी का
तमाशा तब पूरे देश ने देखा था जब वादा कर के भी मायावती ने लोकसभा में
समर्थन से ऐन वक्त पर मुकर गई थीं। अटल जी की पीठ में छुरा घोंप दिया था
। अटल जी की सरकार गिर गई थी । यह और उन की ऐसी एहसान फ़रामोशी के क़िस्सों से उत्तर प्रदेश के राजनीतिक और
सत्ता गलियारे भरे पड़े हैं । घायलों की लंबी कतार है । भाजपा के लाल जी
टंडन को एक समय यह राखी बांधती थीं । जब पहली बार लाल जी टंडन ने इन से
राखी बंधवाई तो पत्रकारों ने पूछा कि राखी बांधने पर बहन को क्या दिया ?
लाल जी टंडन बोले , ' पूरा राज दे दिया है ! ' उन का इशारा उत्तर प्रदेश के
मुख्य मंत्री पद से था । शायद इस लिए भी यह टंडन ने कहा कि विधान सभा में
तब भाजपा संख्या बल में बसपा से ज़्यादा थी पर अटल जी के दबाव में संख्या बल
में कम होने के बावजूद मुख्य मंत्री बना दिया गया था । बाद के दिनों में
मायावती अपने इसी भाई लाला जी टंडन को बड़ी हिकारत से लालची टंडन कहने लगी
थीं सार्वजनिक रूप से । भाई-बहन का औपचारिक रिश्ता भी तार-तार कर दिया था ।
खैर , मायावती को बार-बार इस समर्थन का नतीज़ा यह निकला कि भाजपा के पांव उत्तर प्रदेश से उखड़ गए थे । बिलकुल साफ हो गई। बीते लोक सभा चुनाव में मोदी ने फिर से भाजपा को किसी तरह खड़ा किया है । जो भी हो अब तो स्मृति ईरानी आप ने ग़लत बयाना ले लिया है । मायावती अलग मिट्टी की बनी हैं । क्यों कि मायावती या मुलायम के साथ एक पैसे की रियायत या उन के साथ चलना , चाहे आप दोस्ती में चलें या दोस्ती में हर हाल में बिजली का नंगा तार पकड़ना है । और आप को मर जाना है । दरअसल उत्तर प्रदेश की राजनीति में मायावती और मुलायम एक ही सिक्के के दो पहलू हैं। मतलब चित भी इन्हीं की है और पट भी । यह लोग संसदीय परंपरा , लोकतंत्र , मर्यादा , आन रिकार्ड , आफ़ रिकार्ड सब को लात मार कर सिर्फ़ अपनी सत्ता , अपना वोट और अपना पैसा जानते हैं । बाक़ी सब उन के ठेंगे पर । सी बी आई और सुप्रीम कोर्ट आज तक इन लोगों का कुछ नहीं बिगाड़ पाए फिर आप क्या चीज़ हैं स्मृति ईरानी ? किस खेत की मूली हैं ?
आप होंगी छोटे परदे की अभिनेत्री , मायावती राजनीति के परदे की बहुत बड़ी अभिनेत्री हैं । घाघ और फुल बेशर्म ! वह ख़ुद को दलितों की बेटी कहती हैं लेकिन भारतीय राजनीति में लोग उन्हें दौलत की बेटी के रुप में जानते हैं । तानाशाह के रुप में जानते हैं । संसदीय परंपराओं और लोकतंत्र में उन्हें एक पैसे का यक़ीन नहीं है । लोग भले कहें कि वह स्क्रिप्टेड बोलती हैं और आप न मानें लेकिन मायावती सर्वदा लिखा हुआ ही पढ़ती हैं , संसद में भी , सार्वजनिक सभा में भी , प्रेस कांफ्रेंस में भी । सवाल वह नहीं सुनतीं , सिर्फ़ अपना लिखा वक्तव्य पढ़ कर फूट लेती हैं । लेकिन किस की हिम्मत है कि उन्हें , उन के बोलने को स्क्रिप्टेड कहने की हिमाकत कर दे ! उन के प्रबल विरोधी मुलायम सिंह यादव भी नहीं । वह भी उन से थर-थर कांपते हैं ।इस लिए कि वह यादव हैं और जानते हैं कि दूध का रंग सफ़ेद ही होता है पर मायावती के काले दूध की ज़िद के आगे वह झुक-झुक जाते हैं और दूध काला होता है की बात पर हार-हार जाते हैं । फिर आप हैं क्या स्मृति ईरानी इन मायावती के आगे । रही होंगी कभी आप भैंसों के तबेले के ऊपर देखा होगा सफ़ेद दूध , अब मायावती का काला दूध देखिए ! और उन का कुतर्क झेलिए ।