महेंद्र भीष्म
वाणी प्रकाशन से प्रकाशित वरिष्ठ कथाकार श्री दयानंद पांडेय के नवीनतम उपन्यास 'विपश्यना में प्रेम' को पढ़ते हुए मुझे उपन्यासकार दयानंद पांडे के पूर्व उपन्यास जो मैंने पढ़े हैं और मुझे याद है जिनमें उनके चर्चित उपन्यास 'बांसगांव की मुनमुन' हो या 'अपने-अपने युद्ध' या फिर विगत वर्ष प्रकाशित ' मैत्रेयी की मुश्किलें' आदि। यह वह उपन्यास थे जिनको पढ़ते हुए किताब हाथ से नहीं हटती थी। जब हम देखते हैं अमिताभ बच्चन की फिल्में और फिर जब उनके सुपुत्र अभिषेक बच्चन की अभिनय की हुई कोई फिल्म देखते हैं, तो कहीं ना कहीं हमारा ध्यान अमिताभ बच्चन की पहले की फिल्मों में जाता है और उन के बेटे के अभिनय की तुलना करने बैठ जाते हैं। 'विपश्यना में प्रेम' उपन्यास को पढ़ते हुए अगर जिन्होंने दयानन्द पांडेय जी को पहले पढ़ा है, तो निश्चित ही वह पहले उपन्यासों को ध्यान में रखते हुए इस नवीनतम उपन्यास को पढ़ते हैं और ऐसा लगभग सभी के साथ होता है। प्रारंभ में हमें इस नए शब्द 'विपश्यना' से ही परिचित होना होता है। 'विपश्यना' यह है क्या? मेडिटेशन को सभी जानते हैं, 'ध्यान' और 'ज्ञान' की अवस्था को भी लगभग सभी जानते हैं। विपश्यना यद्यपि नया सा दिखता है, परंतु वास्तव में है यह बहुत ही प्राचीन शब्द जो गौतम बुद्ध जी की ज्ञान की स्थितियों को विवेचित करता है, 'स्वयं को देखना'।
उपन्यास प्रारंभ भी होता है 'चुप की राजधानी से' सन्नाटा है और लेखक जो विनय के रूप में उपस्थित है। मैं बताऊं कहीं ना कहीं लेखक अपने भोगे हुए यथार्थ को भी जोड़ देता है पर यह भी जरूरी नहीं है वह परकाया प्रवेश या किसी के जीवनानुभवों को पिरोता भी है। वह कल्पनाजीवी कल्पनाओं में भी रहता है, तो हम लोग जो बतौर पाठक हैं उपन्यास के। वे भी ध्यान के उन पलों को जीने लगते है जो विनय जी रहा है। यही विशेषता एक लेखक की होती है कि वह अपने पाठकों को अपने साथ जोड़कर आगे कथा कहता है, विनय जब वहां जाता है और उसे विपश्यना में भी वही स्थितियां मिलती है जो उसने एनसीसी कैडेट के रूप में विद्यार्थी जीवन में अनुभव में ली थीं। अनुशासन विपश्यना केंद्र में भी है, परंतु दंड का प्रावधान नहीं है। हां, यदि गंभीरतम अनुशासन भंग होता है तो ऐसे अनुशासनहीन को विपश्यना केंद्र से बाहर का रास्ता दिखा दिया जाता है। लेखक का परिचय धीरे-धीरे वहां पर जो लोग आए हैं उनसे मौन परिचय प्रारंभ होता है और वहीं पर विनय को रूसी महिला मिलती है, जिसे वह 'मल्लिका' नाम देता है और विपश्यना में प्रेम नहीं बल्कि वासना का प्रारंभ होता है, यहां वासना और प्रेम के बीच की जो बहुत महीन सी विभाजक रेखा है। वह बहुत ही अच्छे से लेखक ने वर्णित की है। निसंदेह लेखक अनुभवी और बहुत विद्वान है, हजारों पुस्तकें उन्होंने पढ़ रखीं हैं। पत्रकारिता और साहित्यकार होने का उन्हें लाभ प्राप्त है, यह विदुता उनके लेखन में झलकती है, उन्हें बहुत सी चीजों का अध्ययन और ज्ञान है जो उनके सरोकारनामा ब्लॉग में या फेसबुक पोस्टों में पढ़ते हुए हम समझ सकते हैं कि उनका जो बौद्धिक स्तर है, वह उच्च स्तर का है, जिस तरह से उन्होंने धर्म, अर्थ और काम की व्याख्या करते हुए ओशो, कबीर आदि का वर्णन देते हुए विनय और मल्लिका के मिलन को सार्थक बताने का प्रयास किया और पाठक उपन्यास को पढ़ते हुए भाव विभोर हो कहीं उपन्यास के सूक्ति वाक्य को रेखांकित करने को विवश हो उठता, तो कभी विचारक खलील जिब्रान से लेखक की तुलना करने लग जाता है। उनकी सूक्तियां को याद करने लगता है।
साहित्य के नोबल प्राइज से सम्मानित अपने समय के सुप्रसिद्व उपन्यासकार अर्नेस्ट हेमिंग्वे की तरह उपन्यासकार दयानंद पांडेय हिंदी साहित्य में अपने साहसी और बोल्ड लेखन के लिए जाने जाते हैं। वह पक्ष और विपक्ष किसी के मोह में नहीं फंसते न ही झूठ को सच या सच को झूठ कह पाते हैं। अपना पराया नहीं जानते और न किसी की चाटुकारिता करते हैं और न ही चाटुकारों को पसंद करते हैं। पटरी से भटकों की जमकर बखिया भी उधेड़ देते हैं, फिर चाहे वह कितना भी बड़ा लेखक, साहित्यकार, आलोचक , नौकरशाह या राजनेता ही क्यों न हो वह अपने कथन पर अडिग रहते अपने सिद्धांतों से कतई समझौता नहीं करते भले ही उनका कितना भी बड़ा व्यक्तिगत नुकसान क्यों न हो।
अंत तक उपन्यास अपनी पठनीयता बनाए रखता है या कहूं कि उपन्यास स्वयं को पढ़ा ले जाने का माद्दा रखता है। ध्यान की अवस्था में नींद आ जाना और नाक का बजना हो या प्रेमिका की याद या किसी सुंदर स्त्री की देहयष्टि का ध्यान में आना। नींद में डूब जाना सब ऐसा लगता है जैसे पाठक स्वयं विपश्यना केंद्र के ध्यान कक्ष में उपस्थित हो गया है और ध्यानस्थ हो स्वयं को देख पा रहा हो। यह लेखक की लेखन शैली की कुशलता है। उपन्यास का अंत क्या होगा यह पाठक के मन में दसवें पृष्ठ के बाद से आना शुरू हो जाता है और जब वह अस्सी पृष्ठ पढ़ लेता है तब भी वह समझ नहीं पता है कि आगे इसका अंत लेखक जो बहुत ही विद्वान और अनुभवी हैं वह किस तरह से करेंगे और वही होता है। एक उपन्यास की अपनी विशेषता है किस तरह से वह टर्निंग पॉइंट आता है। कैसे कथा नायक विनय का विपश्यना केंद्र में साक्षात्कार ऐसे लोगों से होता है जो केवल पैसे बचाने के लिए या वहां समय पास करने के लिए या अन्य छोटे-मोटे उद्देश्यों के लिए वहां पर आए हुए हैं। उनको विपश्यना से कोई सरोकार नहीं, कोई मतलब नहीं है । उनको भी जो महाराष्ट्र सरकार के कर्मचारी हैं और उन्हें विपश्यना केंद्र में तनाव से मुक्ति के लिए विशेष रूप से भेजा गया है । बहुत अच्छे से लेखक ने उनपर तंज और व्यंग्य कसा है। अकस्मात लेखक पाठक को ऐसा टर्निंग पॉइंट देता है कि वह जो खुशी होती है कृति को पढ़ने के बाद की, एक जो आह्लाद का समय होता है और वह पाठक जो प्रारंभ से उस उपन्यास से बंधा चला आ रहा है और उपन्यास की अंतिम पंक्ति पढ़ चुकने के बाद मन ही मन बोल उठता है साधुवाद! साधुवाद!
उपन्यास का अंत यदि अभी बता दिया जाए तो वह आनन्द जो मुझे मिला उससे पाठकगण वंचित रह जाएंगे। इस लिए इस उपन्यास को पढ़ने के बाद स्वयं उस आनंद से रूबरू होइए और देखिए, परखिए 'विपश्यना में प्रेम' या विपश्यना में वासना' को । यह पाठक को तय करना है।
विपश्यना में प्रेम उपन्यास पढ़ने के लिए इस लिंक को क्लिक कीजिए
समीक्ष्य पुस्तक :
विपश्यना में प्रेम
लेखक : दयानंद पांडेय
प्रकाशक : वाणी प्रकाशन
4695 , 21 - ए , दरियागंज , नई दिल्ली - 110002
आवरण पेंटिंग : अवधेश मिश्र
हार्ड बाऊंड : 499 रुपए
पेपरबैक : 299 रुपए
पृष्ठ : 106
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