दयानंद पांडेय
अदालत में एक अभिनेता और एक उद्योगपति के जुगाड़ का फ़र्क़ भी तो देखिए। काश कि जूही चावला के साथ ही हेलीकाप्टर का भी प्रबंध किया होता शाहरुख़ ख़ान ने। जो भी हो मुंबई हाईकोर्ट द्वारा आर्यन खान की ज़मानत के कागजात आज समय से आर्थर रोड जेल न पहुंच पाने में शाहरुख़ ख़ान की लीगल टीम की क़ाबिलियत तो सामने आ ही गई है , शाहरुख़ ख़ान द्वारा पैसा खर्च करने के तरीक़े पर भी हंसी आ रही है। पैसा दे कर ज़मानत दिलवाने की अभ्यस्त लीगल टीम अगर ज़मानतदार की कितनी फ़ोटो लगनी है , यह नहीं जानती थी तो इस में जूही चावला की कोई ग़लती नहीं थी। अपने जीवन में शायद पहली ही बार जूही चावला ने किसी की ज़मानत ली होगी। तो वह बिचारी क्या जानतीं भला कि कितनी फ़ोटो लगेगी। एक लगेगी कि दो लगेगी। ख़बरों में बताया गया है कि जूही चावला की एक ही फ़ोटो थी। दूसरी फ़ोटो मैनेज करने में देरी लगी। इस लिए ज़मानत की औपचारिकता में देरी हुई और कागज़ात समय से जेल नहीं पहुंच सके। फिर शाहरुख़ ख़ान ने जो बुद्धि जूही चावला को ज़मानतदार बना कर इस ज़मानत को इवेंट बनाने में खर्च की अगर यही बुद्धि कोर्ट के ज़मानत के कागज़ात जल्दी से जेल भिजवाने में खर्च की होती तो इवेंट भी तगड़ा होता , ख़बर भी चमक रही होती।
क्यों कि जब सब कुछ इवेंट और दिखावे पर ही मुन:सर था तो यह ज़मानत के कागज़ात हेलीकाप्टर से भी जेल पहुंचाए जा सकते थे। एक क्या 50 हेलीकाप्टर हायर करने की आर्थिक क्षमता तो है ही शाहरुख़ ख़ान में। आख़िर ख़ुद को बादशाह कहलवाते हैं वह इस बिकाऊ मीडिया से। फिर शिव सेना की सेक्यूलर सरकार है। प्रशासन फ़ौरन हेलीकाप्टर लैंडिंग की अनुमति दे देता। ज़मानत के कागज़ात भी समय पर जेल पहुंच जाते और बेटा आर्यन उसी हेलीकाप्टर से मन्नत में लैंड कर जाता। ख़बर की ख़बर , इवेंट का इवेंट। सब कुछ चमाचम होता। लोग ड्रग , आर्यन और समीर वानखेड़े भूल कर हेलीकाप्टर में उड़ने लगते। इंटरनेशनल कवरेज मिलती। आखिर वकील मुकुल रोहतगी को मुंबई से दिल्ली चार्टर्ड प्लेन से ही शाहरुख़ ख़ान ने कल भिजवाया था। तो एक हेलीकाप्टर भी ले लेते।
वैसे भी कुछ सेक्यूलर चैंपियन मान रहे हैं , अपनी बीमारी में लिख भी रहे हैं कि मोदी ने आर्यन ख़ान की ज़बरदस्त लांचिंग कर दी है। आर्यन ख़ान को मोदी ने मुफ़्त में ब्रांड बना दिया है। आदि-इत्यादि। तो इस हेलीकाप्टर सेवा से आर्यन ख़ान की लांचिंग के सोने में सुहागा मिल जाता। इलेक्ट्रानिक मीडिया चिल्ला-चिल्ला कर बताता भी कि यह देखिए , वह देखिए। हेलीकाप्टर अब उड़ा , यहां पहुंचा , वहां उतरा आदि के विवरण । यह ठीक है कि शाहरुख़ ख़ान के घर मन्नत में हेलीकाप्टर उतरने की मुश्किल है। मैं ने देखा है मन्नत , उस में हेलीकाप्टर नहीं उतर सकता। अलग बात है वहीं वाकिंग डिस्टेंस पर सलमान ख़ान भी रहते हैं। पर देखा कि वह शाहरुख़ ख़ान के घर अभी मिजाजपुरसी में अपनी शानदार कार में गए। पर मन्नत में फूटते पटाखे के बीच जब हेलीकाप्टर आस-पास कहीं उतरता तो मीडिया समेत सेक्यूलरजन विह्वल हो जाते। रास्ता रोक कर सामने की सड़क पर तो उतर ही सकता था। गेट पर अनन्या पांडे , जया बच्चन की नातिन समेत गौरी ख़ान , जूही चावला , मैनेजर ददलानी आदि आरती उतार रही होतीं। शाहरुख़ , सलमान , आमिर ख़ान समेत चंकी पांडे आदि ठुमके लगा रहे होते। जो भी अब यह सब एक कल्पना है। जाने क्यों शाहरुख़ ने देश को यह सब देखने से वंचित कर दिया। अफ़सोस !
पर ऐसा ही एक क़िस्सा देखिए और याद आ गया है। यह पुराना क़िस्सा यह भी बताता है कि एक अभिनेता की सेटिंग और एक उद्योगपति की सेटिंग में बुद्धि और समझ का क्या महत्व होता है। यह मामला तो हाईकोर्ट का था लेकिन वह मामला सुप्रीम कोर्ट का था।
उन दिनों राजीव गांधी प्रधान मंत्री थे और विश्वनाथ प्रताप सिंह वित्त मंत्री। अमिताभ बच्चन के चलते राजीव गांधी और विश्वनाथ प्रताप सिंह के बीच मतभेद शुरु हो गए थे। बोफोर्स का क़िस्सा तब तक सीन में नहीं था। थापर ग्रुप के चेयरमैन ललित मोहन थापर राजीव गांधी के तब बहुत क़रीबी थे। विश्वनाथ प्रताप सिंह ने अचानक उन्हें फेरा के तहत गिरफ्तार करवा दिया। थापर की गिरफ्तारी सुबह-सुबह हो गई थी। सुप्रीम कोर्ट के कई सारे जस्टिस लोगों से संपर्क किया थापर के कारिंदों और वकीलों ने। पूरी तिजोरी खोल कर मुंह मांगा पैसा देने की बात हुई। करोड़ो का ऑफर दिया गया। लेकिन कोई एक जस्टिस भी थापर को ज़मानत देने को तैयार नहीं हुआ। यह वित्त मंत्री विश्वनाथ प्रताप सिंह की सख्ती का असर था। कोई जस्टिस विवाद में घिरना नहीं नहीं चाहता था।
लेकिन दोपहर बाद पता चला कि एक जस्टिस महोदय उसी दिन रिटायर हो रहे हैं। उन से संपर्क किया गया तो उन्हों ने बताया कि मैं तो दिन बारह बजे ही रिटायर हो गया। फिर भी मुंह मांगी रकम पर अपनी इज्जत दांव पर लगाने के लिए वह तैयार हो गए। उन्हों ने बताया कि बैक टाइम में मैं ज़मानत पर दस्तखत कर देता हूं लेकिन बाक़ी मशीनरी को बैक टाइम में तैयार करना आप लोगों को ही देखना पड़ेगा। और जब तिजोरी खुली पड़ी थी तो बाबू से लगायत रजिस्ट्रार तक राजी हो गए। शाम होते-होते ज़मानत के कागजात तैयार हो गए। पुलिस भी पूरा सपोर्ट में थी। लेकिन चार बजे के बाद पुलिस थापर को ले कर तिहाड़ के लिए निकल पड़ी। तब के समय में मोबाईल वगैरह तो था नहीं। वायरलेस पर यह संदेश दिया नहीं जा सकता था। तो लोग दौड़े जमानत के कागजात ले कर। पुलिस की गाड़ी धीमे ही चल रही थी। ठीक तिहाड़ जेल के पहले पुलिस की गाड़ी रोक कर ज़मानत के कागजात दे कर ललित मोहन थापर को जेल जाने से रोक लिया गया। क्यों कि अगर तिहाड़ जेल में वह एक बार दाखिल हो जाते तो फिर कम से कम एक रात तो गुज़ारनी ही पड़ती। पुलिस ने भी फिर सब कुछ बैक टाइम में मैनेज किया। विश्वनाथ प्रताप सिंह को जब तक यह सब पता चला तब तक चिड़िया दाना चुग चुकी थी। वह हाथ मल कर रह गए। लेकिन इस का असर यह हुआ कि वह जल्दी ही वित्त मंत्री के बजाय रक्षा मंत्री बना दिए गए। राजीव गांधी की यह बड़ी राजनीतिक गलती थी। क्यों कि विश्वनाथ प्रताप सिंह ने इसे दिल पर ले लिया था। कि तभी टी एन चतुर्वेदी की बोफोर्स वाली रिपोर्ट आ गई जिसे विश्वनाथ प्रताप सिंह ने न सिर्फ लपक लिया बल्कि एक बड़ा मुद्दा बना दिया। राजीव गांधी के लिए यह बोफोर्स काल बन गया और उन का राजनीतिक अवसान हो गया। मर गए राजीव गांधी पर बोफ़ोर्स की आंच से अभी भी मुक्त नहीं हुए।
आप लोगों को कुछ साल पहले के सलमान खान प्रसंग की याद ज़रूर होगी । हिट एंड रन केस में लोवर कोर्ट ने इधर सजा सुनाई , उधर फ़ौरन ज़मानत देने के लिए महाराष्ट्र हाई कोर्ट तैयार मिली । कुछ मिनटों में ही सजा और ज़मानत दोनों ही खेल हो गया। तो क्या फोकट में यह सब हो गया ? सिर्फ वकालत के दांव-पेंच से ?फिर किस ने क्या कर लिया इन अदालतों और जजों का ? भोजपुरी के मशहूर गायक और मेरे मित्र बालेश्वर एक गाना गाते थे , बेचे वाला चाही , इहां सब कुछ बिकाला। तो क्या वकील , क्या जज , क्या न्याय यहां हर कोई बिकाऊ है। बस इन्हें खरीदने वाला चाहिए। पूछने को मन होता है आप सभी से कि , न्याय बिकता है , बोलो खरीदोगे !
रोचक आलेख
ReplyDeleteआप बेबाकी से लिखते हैं, सही तथ्य रखते हैं । विश्वनाथ प्रताप सिंह धोखा देकर , षड्यंत्र कर प्रधान मंत्री बने , मुस्लिम वोट के लिए कश्मीर में हिंदुओं का कत्लेआम कराया और पलायन करने पर मजबूर किया , मुफ़्ती मोहम्मद सईद को इसी कार्य के लिए मानों गृह मंत्री बनाया था । पर धोखे और षड्यंत्र की सज़ा उसे मिली । धक्के मार कर ज़लील कर उसे गद्दी से उतारा गया । लोकसभा की 11 घण्टे की बहस इस बात का प्रमाण है । बाद में जबतक जीवित रहा , जोगेन्दर नाथ मंडल बनकर जीवित रहा ।
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