फ़ोटो : रघु राय |
ग़ज़ल / दयानंद पांडेय
जाड़ा बहुत लगता है जब तुम नहीं होती हो
हम हार-हार जाते हैं जब तुम नहीं होती हो
बहते-बहते कहीं ठहर जाती है सुख की नदी
गंगोत्री सूख जाती है जब तुम नहीं होती हो
तोड़ देता है अकेले रहना चांद चिढ़ाता है
मार डालती है भूख जब तुम नहीं होती हो
धूप रजाई कंबल हीटर ब्लोवर स्वेटर कोट
सब बेकार होता है जब तुम नहीं होती हो
बरसात हो रही है सरसों के फूल भीगते हैं
भिगोती नहीं वह मुझे जब तुम नहीं होती हो
रात सो पाता नहीं दफ़्तर में नीद आती है
सपने भी डराते हैं जब तुम नहीं होती हो
सपना बन जाता है जीवन का आनंद भी
सब भूल जाता हूं जब तुम नहीं होती हो
पड़ोसन भी डाइन और चुड़ैल लगती है
चांदनी जलाती है जब तुम नहीं होती हो
[ 20 जनवरी , 2016 ]
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