Tuesday, 6 August 2024

आने वाले दिन भारत में हिंसा , हत्या और अराजकता की चपेट में आने के दिन हैं

दयानंद पांडेय 


असल में इस्लाम और वामपंथ दोनों ही हिंसा , हत्या और अराजकता की बुनियाद पर खड़े हैं। यह दोनों दुनिया में जहां भी बहुमत में होते हैं , मनुष्यता को तार-तार करने में ज़रा भी नहीं चूकते। संकोच नहीं करते। तानाशाही और हिंसा के स्तंभ लेनिन , स्टालिन , माओ ने करोड़ों लोगों की हत्या की और करवाई। माओ तो मनुष्य का मांस तक खाता था। अपने ही साथियों का मांस खाता था। ऐसे अनेक विवरण दर्ज हैं। लेकिन ऐसे तमाम विवरण पर सायास कालीन बिछा दी गई है। 

भारत में लेकिन इन के अनुयायी आज कल सेक्यूलर चैंपियन की छवि गढ़ कर बगुला भगत बन कर उपस्थित हैं। बांग्लादेश में बंगबंधु शेख मुजीबुर्रहमान की आदमक़द मूर्तियां खंडित होते देख कर पश्चिम बंगाल में नक्सल हिंसा की याद आ गई। जब रवींद्रनाथ टैगोर की मूर्तियां जगह-जगह तोड़ी गई थीं। बेटों के रक्त में भात सान कर मां को खिलाया गया जैसी अनेक घटनाएं सामने आ गईं। अफगानिस्तान के बामियान में बुद्ध प्रतिमा की याद आ गई , जिसे डाइनामाइट लगा कर तालिबानियों ने उड़ा दिया। दुनिया हाथ जोड़ती रह गई पर तालिबान नहीं माने। बांग्लादेश में तमाम हिंदू मंदिर तोड़े जा रहे हैं। हिंदुओं के घर , दुकान और स्त्रियां लूटी जा रही हैं। वह ऐसा न करें , ऐसी कोई अपील भी दुनिया में कहीं से किसी ने अभी तक नहीं की है। भारत सरकार ने भी नहीं। 

भारत को भी बर्बाद करने में , निरंतर बर्बाद करने में मुख्यत: दो लोगों का ही हाथ है। इस्लाम और वामपंथ का। हिंसा , हत्या और अराजकता की आग में देश और समाज को झोकने में ही इन्हें सुख मिलता है। भारत ही क्यों ब्रिटेन , फ़्रांस , इजराइल आदि हर कहीं की यही कथा है। मुस्लिम देशों का भी बुरा हाल है। सोचिए न कि दुनिया में 57 मुस्लिम देश हैं। पर हसीना , जान बचाने के लिए किसी मुस्लिम देश नहीं , भारत आईं। सेना द्वारा दिए गए 45 मिनट में देश छोड़ने का संदेश मिलते ही उन्हें पहला नाम भारत ही सूझा। कोई मुस्लिम देश नहीं। अभी भी किसी मुस्लिम या कम्युनिस्ट देश नहीं , यूरोप में ठिकाना तलाश रही हैं। अमरीका ने उन का वीजा रद्द कर दिया है। ब्रिटेन ने भी लाल झंडी दिखा दी है। 

फिर ?

असल में इस्लाम और वामपंथ की हिंसा , हत्या और अराजकता कलंक है मनुष्यता के माथे पर। दुनिया और समाज इन से मुक्ति का तलबगार है। पर मुक्ति मिलती दिखती नहीं। वह दिन दूर नहीं जब भारत भी इस्लाम और वामपंथ की हिंसा , हत्या और अराजकता की आग में झुलसने को बेबस और अभिशप्त हो जाएगा। हम नहीं , न सही पर  हमारी अगली पीढ़ी को यह हिंसा , हत्या और अराजकता भोगनी ही है। देश में बढ़ती नफ़रत की राजनीति को देखते हुए इसे रोक पाना अब कठिन लगता है। बहुत कठिन। क्यों कि इस्लाम और वामपंथ का संयुक्त हमला भारत पर हो चुका है। इस हमले को रोकने की तरक़ीब फ़िलहाल तो नहीं दिखती। 

आप को दिखती हो तो कृपया बताइए। 

अंबेडकर ने भारत में इस्लाम और वामपंथ के संयुक्त हमले को बहुत पहले पहचान लिया था। इस बाबत अंबेडकर ने लिख-लिख कर आगाह किया है। लेकिन लोग तो लोग अंबेडकर के अनुयायी ही इस तथ्य पर आंख मूंद गए। जय भीम , जय मीम के शिकार हो गए। बांग्लादेश का ख़तरा , भारत के ऊपर अब किसी चील की तरह मंडरा रहा है। मोदी सरकार के हाथ-पांव फूल गए हैं। क्यों कि लड़ाई बाहर से ज़्यादा भीतर है। वामपंथ और इस्लाम के पैरोकार बांग्लादेश की बुनियाद पर भारत में भी वैसी ही हिंसा , हत्या और अराजकता की मन्नत खुलेआम मांग रहे हैं। तानाशाही का हवाला दे रहे हैं। जैसे कभी श्रीलंका की बर्बादी में भारत की बर्बादी देखने की उम्मीद पाल लिया था इन लोगों ने। ऐलान किया था कि अब अगला नंबर भारत का है। 

अब इन लोगों की मनोकामना है कि भारत में भी बांग्लादेश की तरह हिंसा , हत्या और अराजकता का तांडव शुरू हो जाए। इन की मनोकामना और तैयारी देखते हुए मान लीजिए कि आने वाले दिन भारत में हिंसा , हत्या और अराजकता की चपेट में आने के दिन हैं। बांग्लादेश ने रास्ता दिखा दिया है। कोई चमत्कार ही बचा सकता है इस हिंसा , हत्या और अराजकता से। इस हमले का बड़ा बहाना मोदी विरोध भी है।

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