कुमार तरल
" ढाई आखर प्रेम का पढ़े सो पंडित होय ' पंक्ति यूँ ही नहीं लिख गई, यह विधिवत मंथन के बाद सृजित हुई है। ऋषि , मुनि, तपस्वी , ज्ञानी-विज्ञानी , विद्वान यहां तक कि देवी देवता भी कभी प्रेम से विरत नहीं रहे। " लव इज गाड ' कह कर जगत नियंता को भी प्रेम के अटूट बन्धन में बांध दिया गया है। हमारे चार पुरुषार्थ धर्म, अर्थ, काम, मोक्ष में भी प्रेम की सुगंध को नकारा नहीं जा सकता। अलौकिक साधना- पथ पर प्रेम की पावन परिभाषा गढ़ते हुये श्री दयानंद पांडेय जी ने एक अनमोल उपन्यास का सृजन किया है।
समस्त विचारों व बंधनों से मुक्ति की साधना है विपश्यना, स्वयं के अंदर विशेष रूप से झांकने का योग। यह बुद्ध धम्म की आधारशिला भी है। इस से जीवनकाल में ही निर्वाण संभव है। भगवान बुद्ध को भी बुद्धत्व विपश्यना से ही प्राप्त हुआ था। यह मूलतः वैज्ञानिक ध्यान विधि है। साधना एवं समाधि का सुख-संतुष्टि भाव इस के चरमोत्कर्ष में निहित है। इसकी अनुभूति अनिर्वचनीय है।
उपन्यास किसी कहानी का विस्तार है। पांडेय जी ने बड़ी सूझबूझ एवं धैर्य के साथ इस कहानी के विस्तृत स्वरूप को चित्रित किया है। भगवतीचरण वर्मा की चित्रलेखा तथा ओशो की संभोग से समाधि की ओर मैं ने भी पढ़ी है। दोनों कृतियाँ डूबकर पढ़ी जाने के लिए हैं। विपश्यना में प्रेम का सम्मोहन भी पाठकों को बांधे रखने में पूर्ण समर्थ है।
योग और आध्यात्म-पथ के युवक एवं युवतियां ,आश्रमों, मठों , व योग शिविरों में कुछ दिन व्यतीत करना पसंद करते हैं। ऐसे ही एक योग शिविर में विनय व एक रशियन युवती का आगमन होता है। विनय योग तथा युवती अपने अस्वस्थ पति के स्वास्थ्य लाभ हेतु आती है। युवती विनय को भा जाती है। प्रेम के वशीभूत हो कर वह युवती का काल्पनिक नाम मल्लिका रख देता है जबकि युवती का नाम दारिया था। दोनों परस्पर आकर्षित होकर एक शाम शिविर के एक झुरमुट में दो शरीर एक जान हो जाते हैं। शिविर समाप्ति के बाद सभी साधक अपने-अपने घर चले जाते हैं। दारिया विनय के बच्चे की मां बन जाती है। दारिया फोन पर यह खुशखबरी कृतज्ञ भाव से निःसंकोच विनय को देती है। यह भाव अटूट बंधन का प्रतीक है।
विपश्यना में प्रेम पढ़ कर मैं आश्चर्यचकित हूं कि पांडेय जी ने इस कहानी को उपन्यास का रूप देने के लिए कैसे विस्तृत ज़मीन तैयार की होगी। कैसे इस ज़मीन पर रंग-बिरंगे फूल खिला कर मादक सुगंध में एक युवा जोड़े को सृजन का भार सौंप दिया होगा, वह भी पवित्रतम योग शिविर में। पांडेय जी का यह तानाबाना पूरी सूझबूझ , देश ,काल, परिस्थिति, अवस्था व व्यवस्था के अनुसार ही संपूर्ण है। अन्य पाठकों की तरह मेरा भी मानना है कि पांडेय जी अपने संकल्पित सृजन के लिए ऐसी उर्वर जमीन तलाश ही लेते हैं। इनकी तलाश अनवरत जारी है , जारी रहेगी।
दारिया का विनय को यह सूचित करना कि वह उसके बच्चे की मां बन गई है , निश्छल प्रेम की पराकाष्ठा का अनूठा उदाहरण है। अगर वह चाहती तो यह बात छिपा भी सकती थी। इस से पाठकों को न तो विनय से ईर्ष्या होती है, न ही दारिया से नफ़रत। इस स्थिति की अनुभूति, सहानुभूति को जन्म देती है। अतृप्त धरा बादलों की घनघोर बरसात से ही तो तृप्त होती है। यह सृष्टि से जुड़ी हुई समस्या भी है साथ ही समाधान भी।
उपन्यास में कई द्वंद्व हैं, कई प्रश्न हैं, जिस का उत्तर खोजने की जिम्मेदारी पांडेय जी ने पाठकों पर डाल दी है। इस में साधना के साथ ही प्रेम अपनी सर्वश्रेष्ठ भूमिका निभाने में सफल रहा है। विनय और दारिया का मिलन सिर्फ वासना के इर्द गिर्द न हो कर समर्पित निर्मलता से आलोकित हो कर प्रेमोत्सव बन जाता है। यह रोमांच सुखद है।इस प्रणयन का उद्देश्य भी शायद यही भावभूमि संजोए हुए है।
अब तक कई कृतियों के प्रणेता, मंजे हुये मुखर पत्रकार होने के नाते पांडेय जी की भाषा शैली पर किसी भी प्रकार की टीका टिप्पणी उचित नहीं। पांडेय जी की निर्भीक कलम किसी आलोचना की परवाह नहीं करती। पांडेय जी गंभीर व्यक्तित्व के साहित्यकार, पत्रकार हैं, अतः लेखन में गंभीरता व गहराई स्वाभाविक है।
विपश्यना में प्रेम लीक से हट कर अप्रतिम उपन्यास है। इस का आवरण भी कृति की भावभूमि के अनुरूप है। आशा है पाण्डेय जी का यह उपन्यास सुधी पाठकों के लिये अविस्मरणीय होगा।
विपश्यना में प्रेम उपन्यास पढ़ने के लिए इस लिंक को क्लिक कीजिए
समीक्ष्य पुस्तक :
विपश्यना में प्रेम
लेखक : दयानंद पांडेय
प्रकाशक : वाणी प्रकाशन
4695 , 21 - ए , दरियागंज , नई दिल्ली - 110002
आवरण पेंटिंग : अवधेश मिश्र
हार्ड बाऊंड : 499 रुपए
पेपरबैक : 299 रुपए
पृष्ठ : 106
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