दयानंद पांडेय
चिरयौवना अयोध्या की अधिष्ठात्री देवी अयोध्या को प्रणाम कीजिए !
आप पूछ सकते हैं यह क्या ? तो जानिए कि ऐश्वर्य में जगमग और भक्ति में लिपटी राम की नगरी अयोध्या के नामकरण की कथा बहुत दिलचस्प और रोमांचक है। यह दिलचस्प कथा न वाल्मीकि बताते हैं , न तुलसीदास , न भवभूति आदि। बताते हैं , कालिदास। रघुवंशम में कालिदास रघुवंश की कथा तो बांचते ही हैं , अयोध्या नगर के बसने की भी बहुत दिलचस्प कथा बांचते हैं। बताते हैं कि अयोध्या एक स्त्री है , जिस के नाम पर अयोध्या नगर बसा है।
अभी भी जो अयोध्या हमारे सामने उपस्थित है , कम से कम राम की बसाई अयोध्या नहीं है। यह बात भी लोगों को अच्छी तरह जान लेना चाहिए। जान लेना चाहिए कि राम की बसाई अयोध्या उजड़ गई थी। बहुत बाद में इसे अयोध्या के कहने से ही फिर से राम के पुत्र कुश ने बसाया। राम की नगरी अयोध्या कैसे बसी , कितनी बार उजड़ी , यह तथ्य भी कितने लोग जानते हैं ? लेकिन अयोध्या के उजड़ने और बसने के तमाम विवाद पर हम अभी यहां कोई चर्चा नहीं करना चाहते। क्यों कि राम एक सकारात्मक और मर्यादित चरित्र हैं। तुलसीदास इसी लिए राम को मर्यादा पुरुषोत्तम कहते हैं। इसी रुप में वह राम को स्थापित करते हैं। मत भूलिए कि जन-जन और जग में आज राम इस तरह उपस्थित हैं , लोक जीवन में उन का डंका बजता है तो इस का एक महत्वपूर्ण कारण तुलसीदास कृत श्रीराम चरित मानस है। लेकिन यहां हम अयोध्या नगर के बारे में कालिदास का बताया क़िस्सा , संक्षेप में याद करते हैं। जो बहुत कम लोग जानते हैं। कालिदास तो वर्णन के कवि हैं। एक-एक बात के लिए , ज़रा-ज़रा सी बात के लिए ढेर सारे श्लोक लिख डालते हैं। बारीक़ से बारीक़ विवरण प्रस्तुत करते हैं। करते ही जाते हैं। रेशा-रेशा खोलते जाते हैं।
अयोध्या है कौन जिस के नाम पर यह नगर अयोध्या बसा। नहीं जानते तो पढ़िए कभी कालिदास लिखित रघुवंशम् । तो पता चलेगा कि अयोध्या एक स्त्री का नाम है। अयोध्या इस नगर की अधिष्ठात्री देवी भी कही जाती हैं। इस स्त्री अयोध्या के नाम पर ही अयोध्या नगर बसा। रघुवंशम् के मुताबिक़ अयोध्या चिर यौवना थी। इंद्र का वरदान था कि वह कभी बूढ़ी नहीं होगी। सर्वदा जवान रहेगी। सदियों-सदियों जवान रहेगी। आप ख़ुद देखिए कि आज फिर अयोध्या सब से ज़्यादा जवान होने की ओर अग्रसर है। अयोध्या का वैभव फिर लौट रहा है।
इक्ष्वाकु वंश के महाराज दिलीप संतान सुख से वंचित थे। एक ऋषि से वह मिले और संतान सुख से वंचित होने की तकलीफ़ बताई। उस ऋषि ने उन से कहा कि बागेश्वर से सरयू नदी निकलती है। उस से इतनी दूरी पर इस नदी में सपत्नीक स्नान कर पूजा-पाठ करें , संतान प्राप्ति होगी। राजा दिलीप को उस ऋषि ने बताया था कि जहां भी कहीं जाइएगा , वहां एक स्त्री मिलेगी। वहीं अपना नगर बसा लीजिएगा। तो महाराज दिलीप एक दिन सरयू नदी में नहा कर निकले तो वह अयोध्या नाम की स्त्री मिली। पूछा कि तुम्हारा नाम क्या है। तो उस ने बताया अयोध्या। दिलीप ने पूछा , कि कब से हो यहां ? तो वह स्त्री बोली , दो लाख साल से यहीं हूं। महाराज दिलीप हंसे और बोले , इतनी तो तुम्हारी उम्र भी नहीं है। तो अयोध्या ने इंद्र के वरदान के बारे में बताया। और बताया कि इसी लिए वह चिरयौवना है। खैर महाराज दिलीप ने फिर यहां अयोध्या नाम से नगर बसाया। तुलसीदास ने श्रीराम चरित मानस के बालकांड में लिखा भी है :
अवधपुरी सम प्रिय नहिं सोऊ। यह प्रसंग जानइ कोउ कोऊ।।
जन्मभूमि मम पुरी सुहावनि। उत्तर दिसि बह सरजू पावनि।।
सरयू नदी उत्तराखंड बागेश्वर के पास से निकली बताई जाती है। उत्तराखंड के बागेश्वर से अयोध्या की दूरी कोई 500 किलोमीटर है। सरयू नदी को सर्वमैत्रेस भी कहा गया है। बौद्ध ग्रंथों में इसे सवेर नदी के नाम से दर्ज किया गया है। ऋग्वेद में भी सरयू का ज़िक्र है। बहरहाल महाराज दिलीप ने उस स्त्री के नाम से ही अयोध्या नगर बसाया और न्याय प्रिय शासन की स्थापना की। बहुत दिन बीत गए पर राजा दिलीप को संतान सुख नहीं मिला। तो वह मुनि वशिष्ठ के पास गए। मुनि वशिष्ठ ने बहुत विचार और गणना आदि के बाद महाराज दिलीप को बताया कि गऊ दोष है। गऊ की सेवा करें। संतान प्राप्ति होगी। महाराज दिलीप ने गऊ सेवा शुरु की। एक दिन अचानक एक शेर आया और नंदिनी गाय को शिकार बनाना चाहा। महाराज दिलीप शेर के सामने आ कर खड़े हो गए , यह कहते हुए कि गऊ माता को नहीं मुझे अपना ग्रास बना लें। शेर ने रुप बदल लिया और कहा कि आप गऊ सेवा की परीक्षा में उत्तीर्ण हुए। हम आप की गऊ सेवा से प्रसन्न हैं।
कालिदास ने महाराज दिलीप के चरित्र का बहुत ही दिलचस्प वर्णन किया है , रघुवंशम में। बताया है कि वैवस्वत मनु के उज्जवल वंश में चंद्रमा जैसा सुख देने वाले दिलीप का जन्म हुआ।
महाराज दिलीप के चरित्र और व्यक्तित्व का बहुत ही दिलचस्प वर्णन कालिदास ने लिखा है। दिलीप को सारा सुख था पर उन की पत्नी सुदक्षिणा के कोई संतान नहीं थी। फिर गुरु वशिष्ठ के यहां जाने , कामधेनु का श्राप प्रसंग , नंदिनी गाय और शेर आदि की कई दिलचस्प कथाओं का वर्णन मिलता है। फिर एक पुत्र का जन्म होता है जिस का नाम रखा जाता है , दिलीप से प्रतापी भगीरथ पुत्र हुए। भगीरथ ही मां गंगा को कठोर तप के बल पर पृथ्वी पर लाने में सफल हुए थे। भगीरथ के पुत्र ककुत्स्थ हुए और ककुत्स्थ के पुत्र रघु का जन्म हुआ। कालांतर में इसी रघु के पराक्रम के कारण इस वंश को रघुवंश नाम से जाना जाता है। फिर अज , दशरथ आदि के क़िस्से सभी जानते हैं। रघुकुल मर्यादा, सत्य, चरित्र, वचनपालन, त्याग, तप, ताप व शौर्य का प्रतीक रहा है। कोई 29 पीढ़ी की कथा मिलती है रघुवंश की। जिस में महाराज अग्निवर्ण अंतिम राजा बताए गए हैं। अग्निवर्ण की कोई संतान नहीं हुई। सो रघुवंश की यहीं इति मान ली गई है।
बीच में एक कथा फिर यह भी आती है कि राम ने जब भाइयों , पुत्रों के बीच सारा राज-पाट बांट कर साकेत धाम गमन पर गए बाद के समय में अयोध्या पूरी तरह उजड़ गई। तो अयोध्या नाम की वह स्त्री पहुंची कुश के पास। माना जाता है कि वर्तंमान छत्तीसगढ़ में ही तब कुशावती कहिए , कुशावर्ती कहिए , कुश का शासन था। तो अयोध्या अचानक कुश के शयनकक्ष में पहुंच गई। कुश उसे देखते ही घबरा गए। बोले , तुम कैसे यहां आ गई। किसी ने रोका नहीं , तुम्हें ? फिर वह प्रहरी आदि को बुलाने लगे।
तो अयोध्या ने कहा , घबराओ नहीं। किसी को मत बुलाओ। मैं अयोध्या हूं। मेरे युवा होने पर मत जाओ। तुम्हारे सभी पुरखों को जानती हूं। सभी मेरी गोद में खेले हैं। फिर अयोध्या ने इंद्र के वरदान के बारे में बताया। और बताया कि राम के बाद अयोध्या नगर उजड़ कर अनाथ हो गया है। जंगल हो गया है। अयोध्या में अब मनुष्य नहीं , जानवरों का वास हो गया है। सो तुम चलो और अयोध्या को फिर से बसाओ। कुश ने कहा कि लेकिन पिता राम ने तो मुझे यहां का राजकाज सौंपा है। अयोध्या कैसे चल सकता हूं। फिर अयोध्या ने जब कुश को बहुत समझाया तो कुश मान गए। लौटे अयोध्या। उजड़ चुकी अयोध्या को फिर से बसाया। तो माना जाता है कि आज की अयोध्या कुश की बसाई हुई अयोध्या है। वैसे अयोध्या को पहला तीर्थ और धाम भी माना जाता है। कहा ही गया है :
अयोध्या मथुरा माया काशी काञ्ची अवन्तिका।
पुरी द्वारावती चैव सप्तैता मोक्षदायिकाः॥
अयोध्या जैनियों का भी तीर्थ है। 24 तीर्थंकरों में से 22 इक्ष्वाकुवंशी थे और उनमें से सबसे पहले तीर्थंकर। आदिनाथ (ऋषभ-देव जी) का और चार और तीर्थंकरों का जन्म यहीं हुआ था। बौद्धमत की तो कोशला जन्मभूमि ही है। शाक्य-मुनि की जन्मभूमि कपिलवस्तु और निर्वाणभूमि कुशीनगर दोनों कोशला में थे। अयोध्या में उन्होंने अपने धर्म की शिक्षा दी और वे सिद्धांत बनाए और दुनिया भर में मशहूर हुए। बहरहाल अयोध्या जिसे साकेत भी कहते हैं कि पौराणिक कहानियां और अन्य कहानियां बहुत सारी हैं। जिन का बहुत विस्तार यहां ज़रुरी नहीं है। पर अयोध्या की आज की कथा बांचने के लिए इतनी पौराणिक पृष्ठभूमि भी बहुत ज़रुरी है।
गरज यह कि अयोध्या सर्वदा ही उथल-पुथल की नगरी रही है। पौराणिकता तो जो है इस की वह है ही। पर एक समय बौद्धों का भी यहां बहुत प्रभाव था और जैनियों का भी। यही कारण है कि मुगलों ने अयोध्या पर हमला कर भारत के पौराणिक नगर में प्रभु राम के मंदिर को तोड़ कर मस्जिद बनाई और अपनी श्रेष्ठता और हनक क़ायम की। बाक़ी सैकड़ों बरसों का राम मंदिर विवाद सब के सामने है। विस्तार में जाने की ज़रुरत नहीं है। अब विवाद समाप्त है। आग बुझ चुकी है। पर विवाद की राख अभी भी उड़ती दिखती रहती है यदा-कदा ।
राम के बाद अनाथ हो कर उजड़ चुकी अयोध्या को जैसे कुश ने कभी दुबारा बसाया था , ठीक वैसे ही , मुगलों के आक्रमण के बाद , आज़ादी के बाद फिर से बरबाद हो रही अयोध्या और उस की अस्मिता को प्रतिष्ठित करने का काम फिर से बख़ूबी हो रहा है। लोग इस कार्य के लिए असहमत हो सकते हैं। विरोध कर सकते हैं पर ऐश्वर्य से परिपूर्ण अयोध्या को नई साज-सज्जा मिली है। नया रंग , नया रुप , नया कलेवर और नया तेवर दिया है। सुविधाजनक और सुंदर बनाया गया है। इस से कोई भला कैसे इंकार कर सकता है। अयोध्या अब जनपद है। वर्तमान का सच है।
याद आता है कि अखिलेश यादव का एक संदेश 2022 के उत्तर प्रदेश विधानसभा चुनाव के दौरान सोशल मीडिया पर बहुत वायरल था कि सत्ता में आते ही वह अयोध्या को फिर से फैज़ाबाद कर देंगे। यह उन का अधिकार है। पर सत्ता में आए ही नहीं। आगे भी क्या आएंगे भला। ख़ैर , सड़क से लगायत एयरपोर्ट तक विकास के कई स्तंभ लांघते हुए वर्ड क्लास नगर बनने की ओर अग्रसर है अयोध्या। सिर्फ़ राम नगरी और भव्य राम मंदिर ही नहीं , पर्यटन का एक बड़ा केंद्र बन कर हमारे सामने अयोध्या नगर उपस्थित है। अयोध्या का चतुर्दिक विकास देखते हुए कई बार मन में प्रश्न उठता है कि आने वाले दिनों में अयोध्या कहीं राजनीतिक राजधानी तो नहीं बन जाएगी।
सांस्कृतिक राजधानी तो वह बन ही गई है। दुनिया भर से लोग वहां अब उपस्थित हैं। देश भर से जनता-जनार्दन उपस्थित है। लोग इतने आ रहे हैं कि वाल्मीकि अंतर्राष्ट्रीय हवाई अड्डे पर हवाई जहाज के लिए पार्किंग की जगह नहीं मिल रही है तो आसपास के तमाम हवाई अड्डों पर हवाई जहाज की पार्किंग के लिए जगह आवंटित की गई है। देहरादून , जयपुर आगरा , वाराणसी , लखनऊ , गोरखपुर आदि हवाई अड्डे पर। फिर भी जगह कम पड़ रही है। कई शहरों से हेलीकाप्टर सेवा अलग है। अयोध्या धाम जैसा शानदार और सुविधा वाला रेलवे स्टेशन पूरे भारत में नहीं है। इस रेलवे स्टेशन के आगे तमाम हवाई अड्डे फेल हैं।
इसी लिए पुन: कहता हूं कि ऐश्वर्य में जगमग और भक्ति में लिपटी राम की नगरी चिरयौवना अयोध्या की अधिष्ठात्री देवी अयोध्या को प्रणाम कीजिए !
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ReplyDeleteसर्वथा अनभिज्ञ थी इस तथ्य से,,अनूठी जानकारी प्राप्त हुई।हार्दिक आभार आपका।
ReplyDeleteमहत्वपूर्ण नवीन जानकारी
ReplyDeleteआपके द्वारा उद्धृत 'गरुण पुराण' का श्लोक "अयोध्या मथुरा माया काशी काञ्ची अवंतिका। / पुरी द्वारावती चैव सप्तैता मोक्षदायिकाः॥" केवल अयोध्या ही नहीं, संपूर्ण भारतीय (सनातन) संस्कृति और अस्मिता का आधार है। उज्जैन के पं. मनीष शर्मा ने भी इस श्लोक के माहात्म्य का विवेचन किया है। आपका यह आलेख अत्यंत सुविचारित और प्रासंगिक है। मेरी बधाई और शुभकामनाएँ स्वीकार करें।
ReplyDeleteबहुत बहुत धन्यवाद सर, सर्वथा नवीन जानकारी के लिए।
ReplyDeleteअयोध्या के इतिहास के बारे में अनुपम जानकारी
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