सुधा शुक्ला
दयानंद के नवीनतम उपन्यास विपश्यना में प्रेम की अनेक विद्वानों ने समीक्षा की है ,सभी अपनी शैली में पूर्ण हैं। मैं नया कुछ लिख भी पाऊंगी ,समझ नहीं पा रही। बस यह एक प्रयास है , कोई समीक्षा नहीं। विपश्यना और प्रेम दोनों का तालमेल दयानंद ही कर सकते हैं ,दोनों ही चाहते हैं पूर्ण समर्पण। विपश्यना जहां अपने अंतस में मैं यानी मानव की शाश्वत खोज है , वहीं प्रेम सृष्टि के आरंभ की। समय समय पर यह खोज निरंतर विद्वानों द्वारा अपने स्तर और अपने तरीके से चलती रही है और अनंत कल तक चलती रहनी है। यों सही मायने में पूर्ण समर्पण भाव से किया गया प्रेम तप से कम नहीं होता ,वरना मीरा हो या वारिस शाह उन का नाम जिंदा नहीं रह पाता। दयानंद के लेखन में देह निरंतर विभिन्न रुपों में आती ही रहती है। लोक कवि अब गाते नहीं ,एक जीनियस की विवादास्पद मौत कहानी हो या अन्य उपन्यास। और यह सायास भी नहीं लगता। बस कभी वर्णन विस्तृत हो जाता है। गौतम चटर्जी जी जैसे कला और आध्यात्म दोनों पर समान अधिकार रखने वाले विद्वान की तरह मेरा लिखना कठिन है ।
मुझे इस उपन्यास में सब से अधिक अपील करने वाली बात जो लगी वह है लेखक का निरंतर दो स्तर पर अपनी यात्रा को व्याख्यायित करना। एक तरफ वे नींद की गहरी सुरंग की यात्रा की बात करते रहते हैं साथ ही विदेशी महिलाओं की स्लीवलेस बाहों के परिधान में भी न्यस्त रहते हैं, मानो वो शरीर से बाहर , शरीर और मन दोनों की गतियों को निहार रहे हों , घट भीतर भी जल और घट के बाहर भी जल। यह ही तो समाधि की अवस्था है जब आत्मा बाहर से शरीर और सृष्टि दोनों को देख सके ।
दारिया के साथ संभोग के समय के वर्णन पर ध्यान दें। जब एक ओर वे विशुद्ध काम क्रिया में निबद्ध है , वहीँ चारो और विस्तृत प्रकृति का उन्हें पूरा भान है। भांति-भांति के पुष्प पत्ते सब के सौंदर्य से वे बेखबर नहीं हैं।एक-एक फूल पौधों के सौंदर्य का वर्णन वे लगभग कवि भाव में करते हैं। गोभी के फूल का इतना सुंदर वर्णन साहित्य में मिलना आसान नहीं । लेखक के लिए देह या संभोग लुकाव-छिपाव की वस्तु नहीं रही है। विभिन्न अवसर पर वे किसी काम शास्त्री की भांति मुद्राओं की चर्चा करते रहे हैं लेकिन इस कथा में उन का प्रेम काम में सौंदर्य भाव छलकता है। जब दारिया उन्हें पुत्र होने की सूचना देती है और सायास किए गए चुनाव की बात भी कहती है तो प्रेम मेंअनुरक्त लेखक ठगाया सा अनुभव करता है।
विपश्यना में प्रेम उपन्यास पढ़ने के लिए इस लिंक को क्लिक कीजिए
समीक्ष्य पुस्तक :
विपश्यना में प्रेम
लेखक : दयानंद पांडेय
प्रकाशक : वाणी प्रकाशन
4695 , 21 - ए , दरियागंज , नई दिल्ली - 110002
आवरण पेंटिंग : अवधेश मिश्र
हार्ड बाऊंड : 499 रुपए
पेपरबैक : 299 रुपए
पृष्ठ : 106
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