एक तो मज़दूर दिल्ली से निरंतर पलायन पर आमादा हैं। दूसरे एक दिल्ली के मुख्य मंत्री हैं अरविंद केजरीवाल जो निरंतर अपना विज्ञापन प्रसारित करवा रहे हैं। अपने खोखले दावों का पुलिंदा परोस रहे हैं , जिन की पोल खुल चुकी है । एक विज्ञापन में केजरीवाल खुद अवतरित हो रहे हैं अपने पाखंडी सुभाषित उच्चारते हुए। दूसरे विज्ञापन में कोई डाक्टर लगातार हाथ धोने आदि पर ज्ञान दे रहा है। विज्ञापन का यही पैसा अगर केजरीवाल सरकार ने गरीब मज़दूरों पर ईमानदारी से खर्च किया होता तो यह पलायन रुक सकता था। बिहार , उत्तर प्रदेश कोरोना की संभावित आग में झुलसने से बच जाता। दूसरा कोई और एक भी मुख्य मंत्री इस तरह दिन में दस बार चैनलों पर विज्ञापन दे कर जनता का धन खर्च कर रहा हो तो कृपया बताएं। स्पष्ट है कि नहीं है। तो क्यों न मान लिया जाए कि अरविंद केजरीवाल न्यूज़ चैनलों को यह विज्ञापन बतौर रिश्वत दे रहे हैं। ताकि मज़दूरों के पलायन खातिर बनाए गए उन के लाक्षागृह का पर्दाफाश कोई न करे। उन का यह राजनीतिक कमीनापन विज्ञापन की लाल कालीन के नीचे छुपा रहे।
कायदे से ऐसा विज्ञापन तो उत्तर प्रदेश के मुख्य मंत्री योगी आदित्यनाथ को देना चाहिए। जो निरंतर इन लाखों मज़दूरों के लिए बस। शेल्टर होम , डाक्टर , भोजन , बस आदि की व्यवस्था में दिन-रात लगे हैं। गांव-गांव सफाई , सब्जी , कौन आया की शिनाख्त और एकांत की व्यवस्था करवा रहे हैं। हर जगह शहर हो या गांव , लोगों के लिए फल , सब्जी , अनाज के ट्रक ले कर पुलिस पहुंच रही है। पर काम करने वाले को विज्ञापन की ज़रूरत कहां पड़ती है भला। विज्ञापन की ज़रूरत तो पाखंडी राजनीतिज्ञों को ही पड़ती है। जो नेता विज्ञापन दे कर बात करे समझ लीजिए , वह कमीना है। एक नंबर का झूठा है।
बल्कि इस समय जिस मुश्किल में बिहार के मुख्य मंत्री नीतीश कुमार और बिहार है , कोई नहीं है। प्रवासी बिहारी मज़दूरों का सैलाब है , बिहार में और संसाधन शून्य। नीतीश कुमार कैसे जूझ रहे हैं वही जान रहे हैं। नीतीश कुमार का एक पुराना सहयोगी प्रशांत किशोर। जो इस समय अरविंद केजरीवाल का ख़ास बना हुआ है , कहा जा रहा है कि बिहारी मज़दूरों के दिल्ली से पलायन का ब्ल्यू प्रिंट इसी कमीने प्रशांत किशोर का बनाया हुआ है , जिसे दूसरा कमीना केजरीवाल कंप्लायंस कर रहा है। ताकि बिहार चौपट हो जाए। खुदा जाने लोग कोरोना से कैसे निपटेंगे , ऐसे कमीनों के रहते हुए।
दूसरी तरफ कम्युनिस्ट लोग हैं जो इस बरबादी की आग में हाथ ताप रहे हैं। मोदी विरोध के एजेंडे में पागल कम्युनिस्ट एक तरफ नक्सल हिंसा में सुरक्षाबलों के जवानों को मार रहे हैं दूसरी तरफ करोना में लोगों के मरने का वर्णन और विवरण ऐसे पेश कर रहे हैं गोया क्या पा गए हैं। मोदी को तुगलक बताते हुए हर उस इंतज़ाम में सक्रिय हैं जिस से लॉक डाऊन फेल कर जाए। कोरोना का जनक चीन है लेकिन यह लोग चीन का नाम नहीं ले पा रहे। केरल कोरोना की चपेट में दूसरे नंबर पर है। पहले नंबर पर महाराष्ट्र है। केरल से रोज ही किसी कोरोना पीड़ित की मृत्यु की खबर आ रही है। लेकिन यह कामरेड लोग बता रहे हैं कि केरल की हालत बहुत बढ़िया है।
अब इस का भी क्या करें कि हर विपदा की आग तापने के लिए लालायित प्रियंका गांधी और राहुल गांधी एक बार भी दिल्ली से पलायन कर रहे मज़दूरों का दुःख , दर्द जानने दिल्ली में रहते हुए किसी बस अड्डे पर नहीं गए। न उन से यहीं रुक जाने की कोई अपील की। हां , कांग्रेसी भक्त यह सूचना ज़रूर परोस रहे हैं कि प्रियंका गांधी ने मोबाइल आपरेटरों को चिट्ठी लिख कर मोबाइल सेवा मुफ्त करने की अपील की है। अजीब मोड़ पर खड़ा हो गया है देश। कभी हम नारा लगाते थे , कमाने वाला खाएगा ! यानी श्रमिक का श्रम ही सर्वोच्च है। क्या पता था कि श्रमिकों की किस्मत में इस तरह का दिन भी आएगा , कुछ कमीने राजनीतिज्ञों के चलते। क्या दिल्ली के विकास में इन श्रमिकों का कुछ भी अवदान नहीं ? शाहजहां की याद आती है। जिस ने ताजमहल बनवाने के बाद ताजमहल बनाने वाले हज़ारों कारीगरों और मज़दूरों के हाथ कटवा दिए थे। तब आगरा का शाहजहां था , अब दिल्ली का केजरीवाल है। श्रमिकों के हाथ फिर काट लिए गए हैं। पलायन का लाक्षागृह बना कर। पलायन का लाक्षागृह बना कर।
श्रमिकों का पलायन वाकई बेहद अफसोसजनक है
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