बहुत कम लोग जानते हैं कि मशहूर अभिनेत्री मीना कुमारी भी इस तिहरे तलाक़ में टूट गई थीं । बल्कि तिहरे तलाक़ ने कम हलाला ने उन्हें ज़्यादा तोड़ दिया था । उन का जिस्म और जां तनहा तनहा हो गया था तो अनायास ही नहीं । हुआ यह कि कमाल अमरोही ने एक बार गुस्से में मीना कुमारी को तलाक़ , तलाक़ , तलाक़ कह दिया । बाद में कमाल अमरोही को इस तलाक़ पर पछतावा हुआ । पर दुबारा निकाह के लिए हलाला करवाना पड़ा मीना कुमारी को । यह हलाला किया मशहूर अभिनेत्री ज़ीनत अमान के पिता अमान उल्ला खान ने । अमान भी तब स्क्रिप्ट राइटर थे । इद्दत यानी फिर पीरियड्स के बाद कमाल अमरोही ने दुबारा निकाह किया । मीना कुमारी लेकिन इस हलाला से टूट सी गई थीं ।
मीना कुमारी ने लिखा है , ' जब मुझे धर्म के नाम पर, अपने जिस्म को, किसी दूसरे मर्द को भी सौंपना पड़ा, तो फिर मुझ में और वेश्या में क्या फर्क रहा ? इस दुर्घटना ने मीना कुमारी को मानसिक रूप से तोड़ कर रख दिया था और फिर मानसिक शांति के लिए वह शराब पीने लगीं थी । मानसिक तनाव और शराब ही उन की अकाल मौत की वजह बनी थी और सिर्फ 39 साल की उम्र में 1972 में मीना कुमारी दुनिया छोड़ कर चली गईं ।
वैसे तो अभिनय के लिए मीना कुमारी को ट्रेजडी क्वीन कहा ही जाता है लेकिन इस हलाला ने मीना कुमारी को ट्रेजडी के सागर में डुबो दिया था। उन की ग़ज़लों में उन का यह रंग देखा जा सकता है । जिस में मीना कुमारी ने अपना दुःख , अपनी टूटन साझा की है । मीना कुमारी की ऐसी ही तीन ग़ज़लें यहां पेश हैं :
एक
चाँद तन्हा है आसमाँ तन्हा,
दिल मिला है कहाँ-कहाँ तन्हा
बुझ गई आस, छुप गया तारा,
थरथराता रहा धुआँ तन्हा
ज़िन्दगी क्या इसी को कहते हैं,
जिस्म तन्हा है और जाँ तन्हा
हमसफ़र कोई गर मिले भी कभी,
दोनों चलते रहें कहाँ तन्हा
जलती-बुझती-सी रोशनी के परे,
सिमटा-सिमटा-सा एक मकाँ तन्हा
राह देखा करेगा सदियों तक
छोड़ जाएँगे ये जहाँ तन्हा।
दो
पूछते हो तो सुनो, कैसे बसर होती है
रात ख़ैरात की, सदक़े की सहर होती है
साँस भरने को तो जीना नहीं कहते या रब
दिल ही दुखता है, न अब आस्तीं तर होती है
जैसे जागी हुई आँखों में, चुभें काँच के ख़्वाब
रात इस तरह, दीवानों की बसर होती है
ग़म ही दुश्मन है मेरा, ग़म ही को दिल ढूँढता है
एक लम्हे की जुदाई भी अगर होती है
एक मर्कज़ की तलाश, एक भटकती ख़ुशबू
कभी मंज़िल, कभी तम्हीदे-सफ़र होती है
दिल से अनमोल नगीने को छुपायें तो कहाँ
बारिशे-संग यहाँ आठ पहर होती है
काम आते हैं न आ सकते हैं बे-जाँ अल्फ़ाज़
तर्जमा दर्द की ख़ामोश नज़र होती है.
तीन
टुकड़े-टुकड़े दिन बीता, धज्जी-धज्जी रात मिली
जिसका जितना आँचल था, उतनी ही सौगात मिली
रिमझिम-रिमझिम बूँदों में, ज़हर भी है और अमृत भी
आँखें हँस दीं दिल रोया, यह अच्छी बरसात मिली
जब चाहा दिल को समझें, हँसने की आवाज़ सुनी
जैसे कोई कहता हो, ले फिर तुझको मात मिली
मातें कैसी घातें क्या, चलते रहना आठ पहर
दिल-सा साथी जब पाया, बेचैनी भी साथ मिली
होंठों तक आते आते, जाने कितने रूप भरे
जलती-बुझती आँखों में, सादा-सी जो बात मिली
अनजाने पहलू से परिचय कराता लेख और एक संजीदा कलाकार की बेहतरीन ग़ज़लें। शुक्रिया साझा करने हेतु।
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