फ़ोटो : गौतम चटर्जी |
ग़ज़ल
पर्वत नदियां सब मिलते हैं मिलने का हम गाएंगे गाना तुम भी गाना
अभी विदा लेते हैं तुम से अगले जनम में सब आएंगे तुम भी आना
आना तुम भी आना अब अगले जनम में आना जैसे जंगल में जीव
जैसे आता है शिशु मां के सपने में बकइयां बकइयां तुम भी आना
आकाश चंदा तारा परियां राजकुमार और देखो दासी बन गई रानी
घर में दादी सुनाती हैं जैसे कहानी कहानी बन कर तुम भी आना
आना तो देखना पर्वत पर सीना ताने देवदार की तरह खड़ा मिलूंगा
जैसे पर्वत पर उगती हैं वनस्पतियां वैसे ही उगती हुई तुम भी आना
कभी देखा है टाइगर हिल पर सूर्य को उगते हुए नहीं देखा तो देखना
बर्फ़ की चादर पर सूर्य की लालिमा को प्रणाम करते तुम भी आना
जैसे बरखा में आती धूप जैसे नदी में बहती सीप जैसे बाग़ में हवा
अंधियारे में जलता दीप आना दीपशिखा सी जलती तुम भी आना
मिल जाए किसी बेरोजगार को नौकरी भूखे को रोटी नंगे को कपड़ा
जैसे नदी में उठती है लहर मचलती है मछली वैसे ही तुम भी आना
बरसों बाद लौटा हो कमा कर शहर से कोई मज़दूर अपने गांव में
जैसे बरसों बरस बाद बांध तोड़ आती है नदी में बाढ़ तुम भी आना
कुछ पल हम को याद न आना वृक्ष बन कर हम को दुलराना
आना तुम भी आना जैसे आती है मां की याद तुम भी आना
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