Wednesday, 2 March 2016

जैसे अपने मन का वह कोई गड्ढा पाट रहे हैं

फ़ोटो : शायक आलोक

 ग़ज़ल 

दीदी की शादी खोज कर पापा आज फिर लौटे हैं घर भर को डांट रहे हैं
घर भर को डांट डांट कर जैसे अपने मन का वह कोई गड्ढा पाट रहे हैं

जाने कब दीदी की शादी होगी डांटना छोड़ सब को प्यार करेंगे पहले जैसा
अभी तो पापा नगरी-नगरी घूम-घूम कर भिखारी बन कर जीवन काट रहे हैं

रात-रात भर जगते हैं शादी के विज्ञापन और साइट बार-बार तकते हैं
दिन में यहां वहां फ़ोन पर दांत चियारे हारे हुए खिलाड़ी जैसा हांफ रहे हैं 

जाने कहां छुपा बैठा है लड़का दीदी के सौभाग्य का जैसे सागर में मोती
रोज-रोज की टोका टाकी से आजिज पापा अब आसमान में ताक रहे हैं

हार नहीं मानने वाले सच के लिए जब तब भिड़ जाने वाले पापा हार गए
होइहैं वही जो राम रचि राखा पापा अब रामायण की चौपाई बांच रहे हैं 

नाक बजा कर सोने वाले बात-बात पर हंसने वाले अब चुप-चुप रहते हैं
सब को हरदम देने वाले हाथ हर किसी से अब हाथ जोड़ कर मांग रहे हैं 

हर कोई ढाढ़स देता है कहता है सब कुछ तय है होगा समय आने पर ही
समय अभागा जाने कहां छुपा है अब भी यह निर्मम समय ही बांच रहे हैं

हर क़ीमत पर जीने वाले ताल ठोंक कर जीने वाले मस्त हवा को जीने वाले
विजेता बन कर घूमने वाले हार नहीं मानने वाले अपनी हार को बांच रहे हैं

[ 2 मार्च , 2016 ]

4 comments:

  1. सुन्दर और मार्मिक भाव......बेहतरीन अभिव्यक्ति.....बहुत बहुत बधाई.....

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  2. आपकी इस प्रस्तुति का लिंक 03 - 03 - 2016 को चर्चा मंच पर <a href="http://charchamanch.blogspot.com/2016/03/2270.html"> तनाव भरा महीना { चर्चा - 2270 } </a> में दिया जाएगा
    धन्यवाद

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  3. Adbhut! man ke hare har hai man ke jite jeet ! Sunhara kal aayega ! jaroor aayega !

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  4. Adbhut! man ke hare har hai man ke jite jeet ! Sunhara kal aayega ! jaroor aayega !

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