Saturday, 16 January 2016

सारे घोड़े वह अपने विजय रथ में बांध लेती है

पेंटिंग : राजा रवि वर्मा

ग़ज़ल / दयानंद पांडेय

जीतना उस का मुकद्दर है हर संभव वह मुझ को साध लेती है 
मेरी इच्छाओं के सारे घोड़े वह अपने विजय रथ में बांध लेती है

सुख की धूप उतरती है आहिस्ता-आहिस्ता आंगन में जब भी 
डिवोशनल सरेंडर ही मुहब्बत है यह बात औरत जान लेती है

सर्दी की नर्म धूप काफी का गरम प्याला तुम्हारा सजीला दुशाला
होशियार औरत मुहब्बत की तफ़सील सारी धीरे-धीरे जान लेती है

होशियारी का नशा मुहब्बत में काम आता नहीं कभी किसी सूरत
प्यार को गणित समझ ख़ुद को गुणा भाग में बुरी तरह बांट लेती है

लड़ाई लड़ती नहीं कभी बिन लड़े वह हर लड़ाई जीत जाती है
यह तब है जब वह हर युद्ध में बिना ढाल बिना तलवार होती है  

रोती-बिलखती नहीं चीख़ती-चिल्लाती भी नहीं डिप्लोमेसी जानती है
मुश्किलें जब भी आएं जैसी भी आएं वह हरदम आसान कर लेती है 

लोग छटपटाना जानते हैं बिखरना टूटना पर वह तो विजेता है
अपने रूप अपने दर्प और नाज़ नखरे से वह कमाल कर देती है   

लोगों का आना-जाना , रह-रह कर तुम्हारा चिहुंक जाना सिहरना
जैसे वह ख़ामोश सड़क हर संभव तुम को मेरे नाम कर देती है

अहंकार आदमी को तोड़ देता है दुनिया उस की तबाह होती रहती  है
औरत जैसी भी हो धैर्य उस की ताक़त पुरुषों को हर संभव साध लेती है

बरबाद करने को शक का घरौंदा काफी है कुछ रहता नहीं है बाक़ी
जैसे कोई झगड़ालू औरत सनक में घर की सारी सुख शांति चाट लेती है


 [ 17 जनवरी , 2016 ]

2 comments:

  1. सुन्दर व सार्थक रचना प्रस्तुतिकरण के लिए आभार!

    मेरे ब्लॉग की नई पोस्ट पर आपका स्वागत है...

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  2. आपकी इस प्रविष्टि् के लिंक की चर्चा कल सोमवार (18-01-2016) को "देश की दौलत मिलकर खाई, सबके सब मौसेरे भाई" (चर्चा अंक-2225) पर भी होगी।
    --
    सूचना देने का उद्देश्य है कि यदि किसी रचनाकार की प्रविष्टि का लिंक किसी स्थान पर लगाया जाये तो उसकी सूचना देना व्यवस्थापक का नैतिक कर्तव्य होता है।
    --
    चर्चा मंच पर पूरी पोस्ट नहीं दी जाती है बल्कि आपकी पोस्ट का लिंक या लिंक के साथ पोस्ट का महत्वपूर्ण अंश दिया जाता है।
    जिससे कि पाठक उत्सुकता के साथ आपके ब्लॉग पर आपकी पूरी पोस्ट पढ़ने के लिए जाये।
    हार्दिक शुभकामनाओं के साथ।
    सादर...!
    डॉ.रूपचन्द्र शास्त्री 'मयंक'

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