सरोकारनामा
Thursday, 1 October 2015
यह ओस की बूंद थी कि तुम्हारा नेह था
तुम्हारी आंखों और होठों का कोलाज
जब तुम्हारे कपोलों पर रच रहा था
तभी ओस की एक बूंद गिरी
और मैं नहा गया तुम्हारे प्यार में
यह ओस की बूंद थी
कि तुम्हारा नेह था
जो ओस बन कर टपकी थी
[ 1 अक्टूबर , 2015 ]
1 comment:
Onkar
3 October 2015 at 02:46
उत्कृष्ट प्रस्तुति
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