Tuesday, 29 September 2015

आ रही है हमारी बालमचिरई

रात रानी की फ़ोटो : अजय जैन

वह आ रही है झूमती - झामती
जैसे आती है मस्त हवा
जैसे बरसती है बरखा की पहली बूंद 
जैसे आती है फूल से खुशबू
जैसे आती है किसी पौधे में कोंपल
जैसे आती है किसी पत्ते पर ओस

उस के आने का मतलब होता है
मन में प्यार के मौसम का मचल जाना
मन में अनगिन सपनों का सज जाना
मन में पसरे तमाम दुःख का मर जाना
मन में बसी रात रानी का खिल कर चहक जाना
मन में किसी आग की तरह उस की देह का दहक जाना

वह आती है तो
महुआ टपकने लगता है
हरसिंगार झरने लगता है
गुलमोहर दहकने लगता है
अलमस्त गुलाब महकने लगता है
आकाश में छाया बादल बरसने लगता है
 
आम्र मंजरियों में मादक गंध और मिठास भरती हुई
अरहर की पकी छीमी सी अपने आप में छममछम बजती हुई
नरम-नरम दूब पर अहिस्ता-अहिस्ता अपने पांव धरती हुई
सरदी की सुबह नदी के पानी से भाप की तरह अनायास निकलती हुई
गहरी झील में किसी हंसिनी की तरह अपनी ही छाया में उतरती हुई
आ रही है हमारी बालमचिरई झूमती-झामती नदी की तरह बहती हुई

नस-नस जैसे चटकाती हुई
मन के समुद्र में मछली की तरह कूदती फांदती हुई
राधा की तरह कुलांचे मारती हुई
मीरा की तरह गाती , इकतारा बजाती हुई
चांदनी की तरह इठलाती हुई
मन को बारंबार भरमाती हुई

बालमचिरई ऐसे ही आती है 
चांदनी जैसे खिल जाती है
बांस की फुनगियों से झांकती हुई
कइन की तरह लचकती हुई
गौरैया की तरह फुदकती हुई
औचक सौंदर्य का इंद्रधनुष रचती हुई

जैसे कोई औरत पकाती है
धीमी-धीमी आंच पर खाना
जैसे अपने किसी प्रिय के लिए
बुनती है स्वेटर
जैसे पिलाती है दूध
अपने दुधमुहे को पल्लू से ढांप कर

ऐसे ही आ रही है हमारी बालमचिरई
अपने प्रेम को रचने और पोसने
अपने प्रेम के बीज को वृक्ष में विरूपित करने
अपने प्रेम को पर्वत की तरह जीने और निहारने
अपने प्रेम को सिर उठा कर किसी देवदार की तरह जीने
अपने प्रेम की नदी को अमृत से भरने


[ 29 सितंबर , 2015 ]


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