Friday 17 June 2022

यह शौक़े सज्दा, यह ज़ौक़े नियाज़ रहने दे !

दयानंद पांडेय 

बंदिश और जुगलबंदी सुनने का सुख ही और है। आज यूट्यूब पर टहलते-टहलते अचानक यह जुगलबंदी मिल गई। राग भैरवी में विभोर कर गई। वाज़िद अली शाह का लिखा बाबुल मोरा नइहर छूटो ही जाए ! का एक तो वैसे ही कोई जवाब नहीं। फिर गिरिजा देवी के गायन में , बिस्मिल्ला ख़ान की शहनाई , पंडित वी जी जोग का वायलिन और पंडित किशन महराज का तबला। क्या ही कहने ! क्या जुगलबंदी है। सुन कर मन इतरा-इतरा गया है। 

वैसे तो एक जुगलबंदी बड़े गुलाम खान और बिस्मिल्ला खान की भी अकसर सुनता रहता हूं। का करुं सजनी आए न बालम ! इस में गुलाम अली की तान में बिस्मिल्ला ख़ान की शहनाई बीस पड़ जाती है। तब जब कि का करुं सजनी आए न बालम , बड़े गुलाम ख़ान का सिग्नेचर गीत है। वैसे ही बाबुल मोरा नइहर छूटो ही जाए कुंदनलाल सहगल का सिग्नेचर गीत है। पर भीमसेन जोशी , जगजीत सिंह समेत  कई सारे गुनी गायकों ने अलग-अलग अंदाज़ और नाज़ में गाया है। पर यहां जो चार-चार गुणकारों की जो जुगलबंदी है न , वह अप्रतिम है , अनन्य है , अविकल और अविरल है। वह एक शेर है न : 

यह मयक़दा है कोई जामे-जम नहीं है 

यहां कोई किसी से कम नहीं है। 

तो सचमुच यहां कोई किसी से कम नहीं है। हां , बिस्मिल्ला ख़ान की शहनाई पर , पंडित वी जी जोग की वायलिन का वेग देखते बनता है। काश कि इस जुगलबंदी में बिरजू महराज भी रहे होते तो क्या बात हुई होती ! बहुत जुगलबंदी सुनने का अवसर ज़िंदगी में मिला है। आमने-सामने भी और रिकार्डिंग में भी। लखनऊ के भातखण्डे ने भी यह अवसर बारंबार दिया है। 

बंदिश तो हम ने पंडित हृदयनाथ मंगेशकर से भी ख़ूब सुनी हैं। आमने-सामने भी और बगल में बैठ कर भी। लखनऊ के दिलकुशा में गिरिजा देवी के गायन और पंडित हनुमान मिश्र की सारंगी की जुगलबंदी दो दशक भी अधिक हुए सुने हुए। पर वह जुगलबंदी अभी भी मन में बजती रहती है। दिल में धड़कती रहती है। बाद में हनुमान मिश्र को सारंगी छोड़ गाने के लिए गुहार लिया तो वह गाने भी लगे। और गिरिजा देवी को अपनी गायकी की गमक में भी डुबो बैठे थे। 

जैसे कभी पंडित बिरजू महराज नाचते-नाचते तबला बजाने लगते थे। तबला बजाते-बजाते गाने लगते थे। मैं आज तक नहीं समझ पाया न तय कर पाया कि बिरजू महराज नर्तक ज़्यादा अच्छे थे , कि तबला वादक अच्छे थे कि गायक अच्छे थे। पर हां , आज यह ज़रुर कहने की स्थिति में हूं कि अभी तक सुनी तमाम जुगलबंदी में यह जुगलबंदी सर्वश्रेष्ठ है।  इसी कार्यक्रम में गिरिजा देवी का एक और गायन है , उलझ मति जइयो मोरे राजा जी ! बिस्मिल्ला खान की शहनाई इस में भी बा कमाल है। वह कहते हैं न : यह शौक़े सज्दा, यह ज़ौक़े नियाज़ रहने दे !तो कहूंगा कि आप इस जुगलबंदी में उलझिए ज़रुर। सुख मिलेगा।

इस जुगलबंदी का लिंक यह रहा :

https://www.youtube.com/watch?v=ZO4jC0x3M9E

1 comment:

  1. संगीत का जादू सिर चढ़ कर बोलता है

    ReplyDelete