दयानंद पांडेय
शायद भारतीय राजनीति में यह पहली बार हुआ है कि किसी सत्ताधारी पार्टी के विधायकों ने हिंदुत्व के नाम पर बग़ावत कर के उद्धव ठाकरे सरकार को धराशाई कर बड़ा सा घाव दे दिया है। अभी तक तो सेक्यूलरिज्म की हिप्पोक्रेसी के नाम पर सरकार से समर्थन वापसी या समर्थन देने की बात होती रही है। वैसे शरद पवार और कांग्रेस की राय बनी है कि उद्धव ठाकरे विधान सभा के फ्लोर पर ही सरकार की लड़ाई लड़ें।
उद्धव ठाकरे ने इन की राय मानते हुए विधान सभा के फ्लोर पर अपनी इज्ज़त का फालूदा बनाना स्वीकार कर लिया है। बाक़ी उत्तर भारतीयों को मुंबई में अकसर मार देने और मुंबई से भगा देने वाले बाल ठाकरे नाम के गुंडे के कुपुत्र उद्धव ठाकरे की धुलाई देखना भी दिलचस्प होगा। उद्धव ठाकरे समेत शरद पवार समेत कांग्रेस को लगता है कि एकनाथ शिंदे और उन के जैसे विधायकों का मुंबई आने पर ह्रदय परिवर्तन हो जाएगा।
राजनीति में कुछ भी मुमकिन है। वैसे भाजपा इस लड़ाई को अब जितना लंबा चलाएगी , उस का उतना ही ज़्यादा नुकसान होगा। अगर दो-तीन दिन में आर या पार नहीं हुआ तो भाजपा का बहुत ज़्यादा नुकसान होगा। बागी विधायकों का हृदय परिवर्तन भी हो सकता है ,शरद पवार ने शिवसेना के बाग़ी विधायकों को धमकी देते हुए कड़ी चेतावनी भी दे दी है , कि बागी विधायकों को क़ीमत चुकानी पड़ेगी। बताइए कि बागी विधायक शिवसेना के और चेतावनी शरद पवार दे रहे हैं। वैसे बेहतर तो यह होगा कि महाराष्ट्र विधान सभा भंग कर चुनाव हो जाए। सब से बेहतर विकल्प यही है। लोकतांत्रिक भी। जो भी हो , उद्धव ठाकरे पार्टी , प्रतिष्ठा , और सरकार तीनों गंवा चुके हैं।
चुनाव जीतने के बाद भी देवेंद्र फडवणीस का हक़ मारने की बद्दुआ तो रही ही होगी। पर पाल घर में निर्दोष संन्यासियों की हत्या , सुशांत सिंह राजपूत के परिवारीजनों , कंगना रानौत , नवनीत राणा आदि की भी बद्दुआएं क्या नहीं होंगी। ज़रुर होंगी। उद्धव ठाकरे ने महाराष्ट्र को लंका बना देने में कोई कसर नहीं छोड़ी है। महाराष्ट्र के मंत्री नवाब मलिक , गृह मंत्री रहे अनिल देशमुख जो अब जेल में हैं इन जैसे लोगों ने क्या कम नर्क बना रखा है। अंबानी तक से फिरौती का फच्चर भी अजब था। सेक्यूलर होने की खाल ओढ़ कर बेटे को बेबी पेंग्विन बना बैठे। अपने ही लोगों को कुत्ता बना कर कांग्रेसियों और पवार की पूजा में व्यस्त रहे। फिर हनुमान जी सीता जी को खोजने , संजीवनी बूटी लाने आदि के लिए ही नहीं लंका जलाने के लिए भी जाने जाते हैं। सत्ता के गुरुर में उद्धव ठाकरे भूल गए थे।
उद्धव ठाकरे की सरकार जाने की संभावना से शरद पवार की पार्टी और कांग्रेस अगर परेशान है तो समझ आता है कि उन के आगे से सत्ता की रबड़ी-मलाई की थाली जाती दिख रही है। पर देख रहा हूं कि पवार और कांग्रेस से भी ज़्यादा हैरान-परेशान ममता बनर्जी दिख रही हैं। विधायकों के ख़रीद-फरोख्त का आरोप भी लगा रही हैं। गौहाटी में उन की पार्टी ने प्रदर्शन भी किया उस होटल के सामने जिस में बागी विधायक ठहरे हुए हैं।
उद्धव ठाकरे सरकार के पतन का जब भी कभी कोई इतिहास लिखेगा तो उस इतिहास में वह सब से पहले संजय राउत का नाम बड़े-बड़े , काले-काले अक्षरों में ज़रुर लिखेगा। उद्धव ठाकरे का नाम संजय राउत के बाद लिखेगा। वैसे भी उद्धव ठाकरे का नाम , राहुल गांधी , अखिलेश यादव की पंक्ति में लिखा जाने वाला नाम है। यह तीनों ही ऐसे कलंक हैं जो अपने बाप और ख़ानदान का नाम चौपट करने में प्रवीणता प्राप्त कर के ही पैदा हुए थे। थोड़े समय के लिए ही सही , अखिलेश यादव और उद्धव ठाकरे तो फिर भी कुर्सी पर बैठने का स्वाद चख लिए पर राहुल गांधी तो पूरा व्याकुल भारत ही है। कंप्लीट अभागा जिसे कह सकते हैं। न सत्ता का स्वाद चख सका , न ही विवाह का स्वाद।
No comments:
Post a Comment