दयानंद पांडेय
सच बताऊं नोएडा में सुपरटेक वाले बिल्डर आर के अरोड़ा , पत्नी संगीता और पुत्र मोहित अरोड़ा के साथ लंदन भाग जाने की खबर की अफवाह एक वेबसाइट पर चली तो इस खबर ने मुझे बिलकुल नहीं चौंकाया। बल्कि हंसी आ रही थी । और दुःख भी हो रहा था। सुप्रीम कोर्ट से लगायत उत्तर प्रदेश के मुख्य मंत्री योगी तक पर तरस आ रहा था । योगी का सारा फोकस छोटे-छोटे दोषी अधिकारियों को खोजने में लग गया है। सुप्रीम कोर्ट आदेश जारी कर सो गया है । सच इन में क्या किसी को भी अंदाजा नहीं है कि असल दोषी बिल्डर भाग भी सकता है। उस का पासपोर्ट भी क्या ज़ब्त नहीं कर लेना चाहिए। सुप्रीम कोर्ट का आदेश जारी होते ही क्या बिल्डर के खिलाफ एफ आई आर दर्ज कर तुरंत जेल भी नहीं भेजना चाहिए ? लेकिन कहां , चोरी और फिर सीनाजोरी पर भी उतर आया है , अरोड़ा। कह रहा है कि सब कुछ प्राधिकरण की स्वीकृति से हुआ है और कि वह सुप्रीम कोर्ट में पुनर्विचार याचिका दायर कर रहा है।
अब जो भी हो माल्या , नीरव मोदी , मेहुल चौकसी आदि भगोड़ों की तरह चालीस मंज़िल की अवैध बिल्डिंगें बना कर यह आर के अरोड़ा भी अब अरबों रुपए ले कर फरार हो जाएगा तो माथा फोड़ते रहेंगे घर का सपना पालने वाले मध्यवर्गीय परिवारों के लोग। कितने शहरों में कितने बिल्डर जनता का खरबो रुपया पी कर इंज्वाय कर रहे हैं , यह तथ्य भी किसी से छुपा है क्या ? कितनी चिट फंड कंपनियां गरीबों का सारा संसार उजाड़ गई हैं। किसी बिल्डर का , किसी चिट फंड कंपनी का अब तक कुछ अहित हुआ क्या ? यह सिस्टम तो बिल्डरों और चिट फंड कंपनियों के मालिकानों के साथ रामदेव का योग कर रहा है। अपनी सेहत बना रहा है। आप लड़ते रहिए , इस शहर से उस शहर तक। सड़क से अदालत तक। कभी कुछ नहीं मिलने वाला।
बिल्डरों में एक ग्रुप है जे पी ग्रुप। मुलायम , मायावती सभी का दुलारा रहा है। अब दीवालिया हो चुका है। पर ज़माने के लिए। सिस्टम के लिए। असल में तो वह अपने बेटे के नाम दूसरी कंपनियां बना कर इसी नोएडा में गौर सिटी बसा कर ग्रेटर नोएडा वेस्ट का सिंगापुर बनाने का सपना दिखा रहा है। सफल भी इतना है कि ग्रेटर नोएडा वेस्ट में गौर सिटी के आगे जे पी ग्रुप क्या सारे ग्रुप फीके पड़ गए हैं। सिस्टम आंख मूंद कर आनंद ले रहा है। सुप्रीम कोर्ट हो या कोई सरकार , धन पशुओं के आगे सभी नतमस्तक हैं। माल्या , नीरव मोदी , मेहुल चौकसी , आर के अरोड़ा आदि के आगे कंहार बन कर सभी पानी भर रहे हैं।
सारे सामाजिक संगठन भी बस दिखावटी ही हैं। है कोई संस्था जो बस इतना ही सा एक आंकड़ा निकाल कर दुनिया के सामने रख दे कि कितने जस्टिस , कितने आई ए एस , आई पी एस रिटायर होने के बाद कारपोरेट सेक्टर , बिल्डर या अन्य व्यावसायिक संस्थाओं को किस लिए ज्वाइन कर चुके हैं। किस लिए ज्वाइन करते हैं यह लोग ? इन कंपनियों के डायरेक्टर बोर्ड में किस खुशी में बैठ जाते हैं। कितने और किस-किस पार्टी के राजनीतिज्ञ हैं जो इन व्यवसाईयों के यहां कसाई बन कर सब का हक़ मारने में इन की मदद करते हैं।
लखनऊ में एक बार मोहन मीकिंस की शराब फैक्ट्री द्वारा जहरीला कचरा फेंकने से गोमती नदी के पानी से आक्सीजन खत्म हो गया था। सो गोमती नदी में दूर-दूर तक की सारी मछलियां मर गईं। मैं ने एक बड़ी सी खबर लिखी। पहले पन्ने पर लीड बन कर छपी थी , तब के स्वतंत्र भारत में। इस बाबत लगातार खबर लिखता रहा। यह अस्सी के दशक के आखिरी सालों की बात है। केंद्र सरकार और प्रदेश सरकार की पर्यावरण और प्रदूषण की सारी नियामक संस्थाएं कान में तेल डाल कर सोई रही थीं। सभी को नियमित पैसा जो मिलता है। खैर तब किसी तरह अंतत: मोहन मीकिंस के खिलाफ एफ आई आर दर्ज हुई। उस मामले की सुनवाई के दौरान देखा एक दिन अभिनेता दिलीप कुमार भी कोर्ट में पेश हुए। क्या तो वह भी मोहन मीकिंस में एक डायरेक्टर थे। गज़ब था यह भी।
पता किया तो पता चला कि हर कंपनी में राजनीतिज्ञ , जस्टिस , रिटायर्ड आई ए एस , आई पी एस , अभिनेता , खिलाड़ी आदि डायरेक्टर बोर्ड में होते हैं और लाखों रुपए इन्हें हर महीने मिलते हैं। खैर, मोहन मीकिंस के उस मामले में किसी का बाल बांका नहीं हुआ। कोर्ट में मामला शुरुआती दिनों में ही खत्म हो गया। कोई अपील वगैरह भी कहीं नहीं हुई किसी के तरफ से। न सरकार की तरफ से। मोहन मीकिंस बदस्तूर जहरीला कचरा फेंकता रहा। अब आलम यह है कि लखनऊ में गोमती नदी के किनारे निरंतर सैर करने वालों को कैंसर हो जाता है। लेकिन किसी को कोई फर्क नहीं पड़ता। किसी मीडिया में कोई खबर नहीं आती। लोगों ने गोमती किनारे टहलना ज़रूर बंद कर दिया है अब।
एक कंपनी के विज्ञापन के एक फ़ोटो में तो मैं ने देखा कि कंपनी के मालिक , पत्नी आदि आगे कुर्सियों पर बैठे थे। जब कि सुप्रीम कोर्ट यानी भारत के पूर्व चीफ जस्टिस , इलाहाबाद हाई कोर्ट के पूर्व चीफ जस्टिस समेत , सेना के एक परमवीर चक्र विजेता , टी एन शेषन जैसे धाकड़ आई ए एस अफसर , अमिताभ बच्चन जैसे अभिनेता , कपिलदेव जैसे क्रिकेटर आदि कई लोग उस कंपनी का ड्रेस और टाई पहने लाइन से कुर्सी पर बैठे इन कंपनी मालिक के पीछे खड़े दिख रहे थे। इतनी अश्लील फ़ोटो मैं ने ज़िंदगी में अभी तक कोई और नहीं देखी है। यह फ़ोटो आप में से भी तमाम लोगों ने अवश्य देखी होगी। क्यों कि यह फोटो अनेक बार देश के तमाम अखबारों में बतौर विज्ञापन छपती रही है।
उत्तर प्रदेश के एक पूर्व मुख्य सचिव वी के सक्सेना तो रिटायर होते ही खुल्ल्मखुल्ला चीनी मिल मालिकों के फेडरेशन में सलाहकार बन गए थे। चीनी मिल मालिकों के साथ प्रेस कांफ्रेंस में उपस्थित रहते थे। कुल जोड़-तोड़ यह रहती थी कि गन्ना किसानों का पैसा कैसे मार लिया जाए। बरसों तक किसानों का भुगतान लटका रहे और गन्ने का भाव न बढ़े। क्या तो गन्ना मिलें घाटे में हैं। अजब नौटंकी थी। गज़ब कुतर्क था। जो एक पूर्व मुख्य सचिव कर रहे थे। तो शासन में बैठ कर क्या-क्या किया होगा , समझा जा सकता है। तमाम कंपनियों में तो सेना के रिटायर्ड जनरल भी नौकरी पर हैं। तो आप क्या समझते हैं यह लोग विभिन्न कंपनियों में पूजा-पाठ के लिए रखे जाते हैं ? सिर्फ़ शो पीस बन कर ही रहते हैं ? बिलकुल नहीं। इन में से एकाध तो सिर्फ डेकोरम पूरा करते हैं। कुछ नियम सा है कि सामाजिक क्षेत्र के लोगों को डायरेक्टर बोर्ड में रखना होता है।
बस इसी की आड़ में यह कंपनियां इन जजों और अफसरों आदि को अपनी कंपनी में डायरेक्टर कम दलाल बना कर रखती हैं। साफ़ कहूं कि कुत्ता बना कर रखती हैं। फिर यह कुत्ते इन कंपनियों के मालिकों के सारे अनियमित कार्य पर पर्दा डालने का , इन के कुकर्मों पर पानी डालने का काम करते रहते हैं। विभिन्न तरीक़े बता कर नियम , क़ानून से इन की रखवाली करते हैं। नियम , क़ानून के दुरूपयोग के तरीक़े बताते हैं। किस को कैसे ख़रीदा जाए , जुगत बताते हैं। जज हैं तो जजों से काम करवाएंगे। अफ़सर हैं तो अफसरों से भी काम करवाएंगे। सिर्फ़ सिफारिश ही नहीं , संबंधित अफ़सर , जज , पुलिस को रिश्वत देने की चेन भी बनेंगे। सिर्फ़ सिफारिश से तो काम अब कहीं होता नहीं। साम , दाम , दंड , भेद सुना है न ? तो डायरेक्टर बोर्ड में बैठे यह विभिन्न कुत्ते साम , दाम , दंड भेद के हरकारे बनते हैं। चूंकि सिस्टम में रहे होते हैं तो सारा छेद और सारी प्रक्रिया जानते हैं। सब को साधना भी। फिर एक कहावत है कि कुत्ता , कुत्ते का मांस नहीं खाता। तो कोई किसी का अहित नहीं करता। कुछ भी हो जाए , सब एकजुट रहते हैं। सुपरटेक वाले मामले में भी देखिएगा कि कोई सीनियर आई ए एस अफ़सर भी शायद ही कार्रवाई की जद में आए। मसला वही है कि कुत्ता , कुत्ते का मांस नहीं खाता। और जांच टीम का मुखिया भी तो आई ए एस ही है।
सोचिए कि अमर सिंह जैसे लोग स्टेट बैंक के डायरेक्टर बोर्ड में रहे थे। अमर सिंह को किस ने रखवाया होगा और अमर सिंह ने क्या-क्या करवाया होगा ? हर्षद मेहता जैसे काण्ड क्या मुफ्त में होते हैं ? अभी नीरव मोदी , विजय माल्या , मेहुल चौकसी , जैसे भगोड़े बैंक लूट कर वैसे तो नहीं भाग गए। अमर सिंह जैसे डायरेक्टर लोग ही तो काम आते हैं। फिर कपिल सिब्बल , सलमान ख़ुर्शीद , रवि शंकर जैसे वकीलों का काकस अलग से इन का कवच कुण्डल बना रहता है। यही लोग इन चोरों के वकील होते हैं। क्रिकेटर मनोज प्रभाकर की याद तो होगी ही। एक चिट फंड कंपनी ने उन का नाम और फ़ोटो लगा कर ही तो लूटा था जनता को। क्या हुआ मनोज प्रभाकर का ? कुछ हुआ क्या ? तो जब तक कारपोरेट सेक्टर या अन्य कंपनियों में डायरेक्टर बोर्ड में यह नौकरशाह , ज्यूडिशियरी आदि से रिटायर्ड कुत्ते रखे जाते रहेंगे , अरोड़ा , माल्या , मोदी , मेहुल चौकसी जनता और जनता का धन लूट कर भागते रहेंगे। और हम आप नीरज का लिखा गीत सुनते रहने को अभिशप्त रहेंगे :
स्वप्न झरे फूल से,
मीत चुभे शूल से,
लुट गये सिंगार सभी बाग़ के बबूल से,
और हम खड़े-खड़े बहार देखते रहे।
कारवाँ गुज़र गया, गुबार देखते रहे !
बेहद अफसोसजनक
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