दयानंद पांडेय
न जाने क्यों वामपंथी भाई जान लोग बाइडेन और राहुल गांधी की बीमारी की चर्चा मात्र से डरते रहते हैं। शायद यह भी एक बीमारी है। फिर इस बीमारी के लपेट में वामपंथी ही क्यों सारे सेक्यूलर हिप्पोक्रेट्स दीखते हैं। फ़ैसला भले बराक ओबामा का था पर जिस तरह अफगानिस्तान बाइडेन ने खाली किया है और बेआबरु हुए हैं , विश्व की दर्दनाक घटना है। पर गाय तक पर ज्ञान बघारने वाले यह लोग अफगानिस्तान के इंसानों पर हो रहे जुल्मो-गारत पर गॉगल्स लगा कर खामोश हैं।
याद कीजिए कि कुछ समय पहले इसी अमरीका का राष्ट्रपति रहा ट्रंप जब कभी हवा भी खारिज करता था तो यही लोग तुरंत सूंघ कर उस की बदबू कैसी है से फौरन दुनिया को परिचित करवाते थे। जब कि बाइडेन भी अमरीका का ही राष्ट्रपति है जिस ने अपनी कायरता , अनुभवहीनता और छुद्रता में तालिबान से डर कर समूचे अफगानिस्तान में मल ही मल फैला दिया है। पर यही वामपंथी , यह सारे सेक्यूलर हिप्पोक्रेट्स बाइडेन के इस मल की खुशबू में तरबतर हैं। गोया कितनी पॉजिटिव बात हो गई हो।
ब्रेख्त , पाब्लो नेरुदा के सारे गीत , सारी कविताएं जैसे मंगल ग्रह चले गए हैं। स्त्रियों , बच्चों की यातनाएं , भूख , लाचारी और बलात्कार जैसे तरक़्क़ी वाली बातें हो गई हैं इन सो काल्ड तरक़्क़ी पसंद लोगों के लिए। अजब मंज़र है। आज दुनिया ने पहली बार अफगानिस्तान में तालिबान की परेड में आत्मघाती दस्ते की परेड भी देखी। कार बम की परेड देखी। पहली ही बार देखा गया कि अमरीकी सैनिक साजो सामान को अपना बता कर परेड में तालिबानियों ने इस तरह दिखाया कि देखो हमारे कितने बाप हैं। माता एक , पिता दस बारह वाली अभद्र कहावत याद आ गई है। पर सभी भाईजान की जुबान और क़लम को जैसे लकवा मार गया है।
इधर राहुल गांधी ने भी पूरी कांग्रेस को ट्रैक्टर से निरंतर जोत-जोत कर मुकम्मल अफगानिस्तान बना दिया है। इस पर भी कोई सांस नहीं लेते यह भाईजान लोग। गाय नहीं , भैंस ज़्यादा दुधारु है बताने वाले लोग राहुल गांधी को भी क्या दुधारु भैंस मानते हैं कि भैंस से भी ज़्यादा उपयोगी और दुधारु मानते हैं। कि राहुल गांधी की उलटबासियां नहीं दिखतीं , सुनाई देतीं। राहुल गांधी के उकसाने पर सिद्धू ने पंजाब कांग्रेस को परमाणु बम पर बैठा दिया है। पर मजाल है कि कोई बोल निकले। कांग्रेस तिल-तिल कर सोनिया के पुत्र मोह में मर रही है। उधर उत्तर प्रदेश में मुलायम के पुत्र मोह में सपा सन्निपात में है। पर भाईजान लोग ऐसी राजनीतिक मुश्किलों से आंख मूंद कर इलाहाबाद हाईकोर्ट के एक जस्टिस यादव द्वारा गाय को बचाने के लिए राष्ट्रीय पशु घोषित करने की सलाह पर स्वाहा हुए जा रहे हैं।
बता रहे हैं कि जस्टिस यादव तो जस्टिस गोगोई से भी ज़्यादा कुछ चाहने लगे हैं। गोया जस्टिस के नाम पर गोगोई पहली बार उपकृत हुए हों। जस्टिस हिदायतुल्लाह वगैरह तो खैर नमाज पढ़ कर ही उपकृत हुए थे। उन को काहे को याद रखना। याद किया तो क़यामत न आ जाएगी। फ़िलहाल तो आत्मघाती दस्ते और कार बम की परेड पर कुछ बोलना सांप्रदायिक हो जाना हो जाता है। भाजपाई और संघी हो जाना होता है। गाय के ख़िलाफ़ बोलना , गाय का मांस खाने की दलील देना ही सेक्यूलर होना मान लिया है इन हिप्पोक्रेट्स ने। बाइडेन और राहुल गांधी इन के आदर्श पुरुष हैं। इन के आइकॉन हैं। इन के देवता हैं। बावजूद इस के कि धर्म अफीम है पर आस्था जलेबी।
इन की आस्था , बाइडेन , राहुल गांधी और तालिबान में है। सो इन के खिलाफ कुछ बोलेंगे तो क़यामत आ जाएगी। हां , इन की इन में आस्था है। सो आस्था की जलेबी खाने दीजिए इन्हें। ख़ामोश कि तालिबान अफगानिस्तान में हैं और यह तालिबान पर भारत सरकार का रुख जानना चाहते हैं बीते पंद्रह अगस्त से। अक़ल जैसे राहुल गांधी की तरह घुटनों में ले कर पैदा हुए हैं तो करें भी क्या। तालिबान सरकार अभी बनी भी नहीं। पर यह आकुल व्याकुल लोग फ़ौरन जान लेना चाहते हैं कि भारत सरकार तालिबान को मान्यता दे रही है कि नहीं ? तालिबान आतंकी हैं कि नहीं , भारत सरकार की नज़र में यह रणबांकुरे फौरन जान लेना चाहते हैं। नहीं जानना चाहते कि अफगानिस्तान में तालिबान के जबड़े में कुछ भारतीय फंसे हैं , उन्हें सुरक्षित निकालना प्राथमिकता है। तालिबान का पक्ष या विपक्ष जानना नहीं।
पर क्या करें बिचारे कोरोना के क़हर के बावजूद विदेशी मुद्रा भंडार अभी तक के सब से ऊंचाई का रिकार्ड छू गया है। कोई 6 सौ अरब डालर है विदेशी मुद्रा भंडार। जी एस टी रिकार्ड कलेक्शन का ग्राफ छू चुका है। शेयर मार्केट बंपर रिकार्ड उछाल पर है। जी डी पी का भी सुधार अप्रत्याशित ऊंचाई पर है। तो बिचारे पूछें भी क्या ? गाय को माता नहीं , राष्ट्रीय पशु बनाने की सलाह पर ही उन की सुई सुलग रही है। रस्सी जल गई है , पर बल नहीं गए हैं।
एक लतीफ़ा याद आ गया है। एक बार एक लड़की किसी मौलवी को मुस्कुराती हुई मिली और बोली , मौलवी साहब , मौलवी साहब , मुझे इश्क़ हो गया है ! मौलवी छूटते ही बोले , कमबख़्त , बेग़ैरत तुझे शरम नहीं आती मुझ से ऐसी बात करते हुए ? लड़की बोली , शरम आती तो है पर क्या करुं मौलवी साहब , पर मुझे सच्ची-मुच्ची इश्क़ हो गया है ! मौलवी बोले , लाहौल बिला कूवत , चल भाग यहां से ! लड़की फिर आहिस्ता से बोली , पर मौलवी साहब क्या करुं , बेबस हूं , भाग नहीं सकती , क्यों कि मुझे आप से ही इश्क़ हो गया है ! मौलवी साहब , ' अचानक बदल गए और मुलायम होते हुए बोले , चल्ल ........ झूठी कहीं की ! मौलवी को अब यह इश्क़ लेकिन बेग़ैरत और शरम आने वाला लगना बंद हो गया था। झूठ लग रहा था। ऐसे ही चोंचले भरे इश्क़ में हमारे यह भाईजान लोग फंस गए हैं। बिचारे करें भी तो क्या करें ! न करते बन रहा है , न , न करते।
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