बाकी तो सब ठीक है लेकिन क्या नारकोटिक्स ब्यूरो वाले दिल्ली में राहुल गांधी , मुंबई में आदित्य ठाकरे की चैट भी खंगाल कर देश का कुछ मनोरंजन करेंगे या कि सिर्फ अभिनेत्रियों की ही पोल खोलते रहेंगे। किसी बड़े हीरो का नाम भी नहीं ले रहे। कम से कम करन जौहर का ही चैट खोल देते।
फ़िल्मी दुनिया के तमाम रौशन चिरागों का वीडियो भी वायरल हो रहा है , कि पुलिस ने छापा डाला है और लोग अपने-अपने नौजवान बेटों , बेटियों को छुड़ा-छुड़ा कर ले जा रहे हैं। बड़े-बड़े लोग दिख रहे हैं। इन रौशन चिरागों की भी कुछ खबर , कुछ चैट नारकोटिक्स ब्यूरो को परोसना चाहिए। या कि तय कर लिया गया है कि ड्रग वाले मामलों में हीरोइन लोग रहेंगी और मी टू मामले में अनुराग कश्यप टाइप लोग। यह तो गुड बात नहीं हैं। नाइंसाफी तो है ही , मनोरंजन में कटौती भी।
अच्छा इन सब में भी एक और बड़ा सवाल कि न्यूज़ चैनलों का , अखबारों का भी कुछ अपना ब्रेकिंग न्यूज़ टाइप कुछ नहीं आ रहा। कब तक आखिर कभी सी बी आई , कभी ई डी , कभी नारकोटिक्स ब्यूरो की परोसी जूठन परोसते रहेंगे यह लोग ? तहलका टाइप के स्टिंग , फर्जी ही सही , वह भी नहीं लुक हो रहे। न वो वाले सर्वे कि ड्रग में फला का नाम आ जाने से , फला के जेल जाने से , फला से पूछताछ के बाद देश क्या सोचता है ? यह मीडिया वाले अपनी तरफ से कुछ एक्स्ट्रा ऐड ही नहीं कर रहे। तो मनोरंजन में मजा नहीं आ रहा।
वह भी क्या दिन थे जब इंडिया टुडे टाइप पत्रिकाएं पूछती थीं लड़कियों से कि आप किस के साथ सोना पसंद करेंगी ? नरसिंहा राव कि हर्षद मेहता या और ऐसे ही नाम। और यह देखिए लड़कियां भी तब पहले नंबर पर हर्षद मेहता और दूसरे नंबर पर नरसिंहा राव को रखती थीं। नरसिंहा राव तब प्रधान मंत्री होते थे। उन को ऐसे सर्वे पर कभी ऐतराज नहीं हुआ। हर्षद मेहता घोटालेबाज था। जेल में था। और जब प्रधान मंत्री को कोई ऐतराज नहीं था , तो वह भी क्यों ऐतराज करता। फिर यह सर्वे भी देखा हम ने इसी इंडिया टुडे का कि स्त्रियों को संभोग में कौन सा आसन पसंद है। आगे से , पीछे से , बगल से , ऊपर से आदि-इत्यादि। नरसिंहा राव के आर्थिक उदारीकरण का यह समय था। मीडिया भी उदार हो रही थी। तब चैनल नहीं थे।
लेकिन अब इंडिया टुडे भी कोई सर्वे नहीं कर रहा। न कोई चैनल बता रहा है कि फला हीरोइन जिस का नाम डी से है , आर से है , एन से है , पी से है , वह लेट कर हशीश लेती है या किसी की बाहों में आ कर या मित्र की गोद में बैठ कर। सुबह लेती है कि रात में। कुर्सी पर बैठ कर या बिस्तर पर। ऐसी तमाम कल्पनाओं वाले किस्से या सर्वे तो यह लोग परोस ही नहीं रहे। अजब है यह भी। या यह सारी कल्पनाएं , सर्वे सब आर्थिक मंदी की भेंट चढ़ गए हैं। जी डी पी की तरह गोता मार गए हैं कि कृषि बिल के भार में दब से गए हैं। क्या पता।
नहीं हमारा मीडिया इतना बदचलन तो हो ही चला है कि कम से कम अनुराग कश्यप के मी टू का नाट्य रूपांतरण कर के तो दिखा ही सकता था कि अनुराग ने मैडम ए को इस तरह बाहों में भरा। मैडम सी तो खुद ही उस के बिस्तर में घुस गईं और अब लांछन लगा रही हैं। इसी तरह राहुल गांधी के ड्रग सेवन , नित बदलती गर्ल फ्रेंड का नाट्य रूपांतरण। आदित्य ठाकरे को बेबी पेंग्विन कह के ही सही सारे किस्से परोस सकते हैं। पर अपने दर्शकों , पाठकों का कुछ ख्याल ही नहीं रहा मीडिया को। यह बहुत चिंतनीय स्थिति है।
आखिर कब तक जांच एजेंसियों द्वारा फेंका गया जूठन , यह देखिए , वह देखिए कह कर हम अंधे दर्शकों को दिखाते रहेंगे। यह तो गुड बात नहीं है। बिलकुल नहीं है। कुछ तड़का तो ज़रूरी है। नहीं अर्णब गोस्वामी की एक पुरानी क्लिपिंग याद आ रही है। जिस में वह मोदी से मुखातिब हैं। और अपनी आदत और रवायत के मुताबिक नरेंद्र मोदी को बोलने ही नहीं दे रहे। आजिज आ कर नरेंद्र मोदी किसी तरह अर्णब की स्पेस में जबरिया घुसते हुए कहते हैं कि आप एडिटर हैं , मालिक हैं चैनल के। मेरे जाने के बाद आप अपना भाषण बोल दीजिएगा। एक घंटा बोल लीजिएगा। अभी मुझे बोलने दीजिए। तो दर्शक भी अब एजेंसियों के जूठन से आजिज आ गए हैं। तो कहीं कोई दूसरा विकल्प न खोज लें अपने मनोरंजन का। बाकी मालूम तो अब सब को है कि न सुशांत सिंह राजपूत की हत्या में कुछ निकलने वाला है , न ई डी में , न ड्रग में। कोरोना काल में बस चैट-चैट खेलना ही शेष रह गया है। यह ड्रामा अब अझेल हो रहा है। इति सिद्धम !
करारा व्यंग्य
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