दयानंद पांडेय
प्रमथ नाथ अवस्थी यानी डाक्टर पी एन अवस्थी नहीं रहे। अभी-अभी यह खबर मिली तो सन्न रह गया। गोरखपुर में पढ़ता था , तब ही से वह मुझे बहुत-बहुत प्यार करते थे। पहले-पहल उन से बतौर डाक्टर ही मिलना हुआ था। पेट में दर्द था , दिखाने गया था। तब वह गोरखपुर सदर अस्पताल के सुपरिटेंडेंट थे। आते-जाते कब उन्हों ने अपना बेटा बना लिया , दोस्त बना लिया , पता ही नहीं चला। फिर तो बिना दर्द के भी अकसर उन से मिलना होता था। तब पत्रकार भी नहीं था। टीन-एज था। कविताएं लिखता था। पर यह बात भी मैं खुद ही जानता था। कोई और नहीं। जल्दी ही जब आकाशवाणी पर कविता पाठ करने लगा , अखबारों , पत्रिकाओं में छपने लगा तब लोगों ने जाना। लेकिन डाक्टर साहब ने इस से भी पहले। बाद के समय दिल्ली चला गया। दिल्ली जनसत्ता से जब लखनऊ स्वतंत्र भारत में रिपोर्टर हो कर आया तो पाया कि डाक्टर साहब , गोरखपुर से तबादला पा कर , लखनऊ के प्रतिष्ठित बलरामपुर अस्पताल में सीनियर सुपरिटेंडेंट थे। अकसर भेंट होने लगी।
उन की बेटी मालिनी अवस्थी गोरखपुर में भी गाती थीं , गोरखपुर में भी उन्हें गाते हुए सुनता था। तब मल्लिका और मालिनी दोनों बहने साथ-साथ गाती थीं। पर लखनऊ में उन दिनों मालिनी भातखण्डे में गायन की विधिवत शिक्षा ले रही थीं। डाक्टर साहब तब बलरामपुर अस्पताल के कैम्पस में ही रहते थे। डाक्टर साहब के कहने पर मालिनी अवस्थी के जीवन का पहला इंटरव्यू मैं ने ही लिया था। तब के स्वतंत्र भारत अखबार में पूरे एक पेज पर मालिनी की बड़ी सी फोटो के साथ वह इंटरव्यू छपा था। मालिनी दिन-ब-दिन मेहनत करती हुई आगे बढ़ती गईं। मालिनी की मां उन के साथ निरंतर लगी रहतीं। कई बार लगता कि मालिनी से ज़्यादा मेहनत तो उन की मां निर्मला आंटी कर रही हैं। लेकिन मैं देख रहा था कि मालिनी को गढ़ने में डाक्टर साहब पिता की ही भूमिका में नहीं एक कुम्हार की भूमिका में भी चुपचाप लगे रहे थे। मालिनी गायकी में कैसे नए-नए मुकाम पर पहुंचें , डाक्टर साहब इसी उधेड़बुन में रहते कि कैसे तो वह मालिनी को गायिकी में एकदम पहले पायदान पर पहुंचा दें। मालिनी के लिए नए-नए अवसर वह खोजते-फिरते थे। उन की यह तड़प जी टी वी के जूनून कार्यक्रम में खुल कर सामने आ गई।
जुनून में भीतर शिरकत कर रही थीं मालिनी पर बाहर डाक्टर साहब का जूनून मैं देख रहा था। एक बेटी की कामयाबी के लिए एक पिता का ज़ज़्बा और जूनून तो हर किसी पिता में होता है। लेकिन डाक्टर साहब में इस से भी बहुत ज़्यादा मैं देख रहा था। वह लगभग पागलों की तरह हर किसी से मिलते ही मालिनी को वोट देने के लिए इसरार करते। बड़े उत्साह से हर किसी से बेटी की कामयाबी का राग गाते। बेटी की कामयाबी के लिए इतना दीवाना पिता मैं ने दूसरा नहीं देखा। हालां कि तब तक मालिनी का विवाह अवनीश जी से हो चुका था। और अब अवनीश , मालिनी के नए कुम्हार थे। डाकटर साहब जैसे मालिनी को गायिकी के पहले पायदान पर देखना चाहते थे , अवनीश भी मालिनी को गायिकी के सर्वोच्च मुकाम पर देखने के लिए सर्वदा बेताब दिखे। गायन के लिए अवसर और आज़ादी , अवनीश अवस्थी ने , डाक्टर साहब से भी ज़्यादा , बहुत-बहुत ज़्यादा दिए। मालिनी जैसी भाग्यशाली स्त्रियां बहुत कम होती हैं जिन्हें एक ही जीवन में एक साथ ऐसा जुनून वाला पिता और पति दोनों मिलता है। आज मालिनी दुनिया भर में अपनी गायिकी का जो धनका बजा रही हैं , उस में निश्चित रूप से मालिनी की प्रतिभा , मेहनत और किस्मत है। लेकिन पिता प्रमथ नाथ अवस्थी की बेटी को सर्वोच्च पायदान पर देखने की लगन और परिश्रम भी बहुत है। बल्कि मां निर्मला जी और पिता प्रमथ नाथ अवस्थी दोनों ही की।
बीते नवंबर में जब मालिनी की बेटी की शादी थी तो अवनीश जी ने मुदित होते हुए पूछा , इंतजाम कैसा लगा ? मैं ने छूटते ही कहा , बहुत बढ़िया ! फिर जब उन्हें बताया कि मैं तो आप की शादी में भी उपस्थित था। आप की शादी में भी इंतजाम बढ़िया था। और देखिए कि आप की बेटी की शादी में भी उपस्थित हूं। इस में इंतजाम और बढ़िया है। एक डाक्टर , एक आई ए एस के इंतजाम में जो फर्क होना था , वह तो था ही। लेकिन एक बात दोनों में जो एक थी , समान थी , वह थी दोनों का जनक भाव। डाक्टर साहब भी जनक भाव में मुदित थे और अवनीश जी भी। दोनों ही बेटी के हाथ पीले कर भावुक और सुखी थे। यह डाक्टर साहब का आशीर्वाद ही था।
उन की बेटी मालिनी अवस्थी गोरखपुर में भी गाती थीं , गोरखपुर में भी उन्हें गाते हुए सुनता था। तब मल्लिका और मालिनी दोनों बहने साथ-साथ गाती थीं। पर लखनऊ में उन दिनों मालिनी भातखण्डे में गायन की विधिवत शिक्षा ले रही थीं। डाक्टर साहब तब बलरामपुर अस्पताल के कैम्पस में ही रहते थे। डाक्टर साहब के कहने पर मालिनी अवस्थी के जीवन का पहला इंटरव्यू मैं ने ही लिया था। तब के स्वतंत्र भारत अखबार में पूरे एक पेज पर मालिनी की बड़ी सी फोटो के साथ वह इंटरव्यू छपा था। मालिनी दिन-ब-दिन मेहनत करती हुई आगे बढ़ती गईं। मालिनी की मां उन के साथ निरंतर लगी रहतीं। कई बार लगता कि मालिनी से ज़्यादा मेहनत तो उन की मां निर्मला आंटी कर रही हैं। लेकिन मैं देख रहा था कि मालिनी को गढ़ने में डाक्टर साहब पिता की ही भूमिका में नहीं एक कुम्हार की भूमिका में भी चुपचाप लगे रहे थे। मालिनी गायकी में कैसे नए-नए मुकाम पर पहुंचें , डाक्टर साहब इसी उधेड़बुन में रहते कि कैसे तो वह मालिनी को गायिकी में एकदम पहले पायदान पर पहुंचा दें। मालिनी के लिए नए-नए अवसर वह खोजते-फिरते थे। उन की यह तड़प जी टी वी के जूनून कार्यक्रम में खुल कर सामने आ गई।
जुनून में भीतर शिरकत कर रही थीं मालिनी पर बाहर डाक्टर साहब का जूनून मैं देख रहा था। एक बेटी की कामयाबी के लिए एक पिता का ज़ज़्बा और जूनून तो हर किसी पिता में होता है। लेकिन डाक्टर साहब में इस से भी बहुत ज़्यादा मैं देख रहा था। वह लगभग पागलों की तरह हर किसी से मिलते ही मालिनी को वोट देने के लिए इसरार करते। बड़े उत्साह से हर किसी से बेटी की कामयाबी का राग गाते। बेटी की कामयाबी के लिए इतना दीवाना पिता मैं ने दूसरा नहीं देखा। हालां कि तब तक मालिनी का विवाह अवनीश जी से हो चुका था। और अब अवनीश , मालिनी के नए कुम्हार थे। डाकटर साहब जैसे मालिनी को गायिकी के पहले पायदान पर देखना चाहते थे , अवनीश भी मालिनी को गायिकी के सर्वोच्च मुकाम पर देखने के लिए सर्वदा बेताब दिखे। गायन के लिए अवसर और आज़ादी , अवनीश अवस्थी ने , डाक्टर साहब से भी ज़्यादा , बहुत-बहुत ज़्यादा दिए। मालिनी जैसी भाग्यशाली स्त्रियां बहुत कम होती हैं जिन्हें एक ही जीवन में एक साथ ऐसा जुनून वाला पिता और पति दोनों मिलता है। आज मालिनी दुनिया भर में अपनी गायिकी का जो धनका बजा रही हैं , उस में निश्चित रूप से मालिनी की प्रतिभा , मेहनत और किस्मत है। लेकिन पिता प्रमथ नाथ अवस्थी की बेटी को सर्वोच्च पायदान पर देखने की लगन और परिश्रम भी बहुत है। बल्कि मां निर्मला जी और पिता प्रमथ नाथ अवस्थी दोनों ही की।
बीते नवंबर में जब मालिनी की बेटी की शादी थी तो अवनीश जी ने मुदित होते हुए पूछा , इंतजाम कैसा लगा ? मैं ने छूटते ही कहा , बहुत बढ़िया ! फिर जब उन्हें बताया कि मैं तो आप की शादी में भी उपस्थित था। आप की शादी में भी इंतजाम बढ़िया था। और देखिए कि आप की बेटी की शादी में भी उपस्थित हूं। इस में इंतजाम और बढ़िया है। एक डाक्टर , एक आई ए एस के इंतजाम में जो फर्क होना था , वह तो था ही। लेकिन एक बात दोनों में जो एक थी , समान थी , वह थी दोनों का जनक भाव। डाक्टर साहब भी जनक भाव में मुदित थे और अवनीश जी भी। दोनों ही बेटी के हाथ पीले कर भावुक और सुखी थे। यह डाक्टर साहब का आशीर्वाद ही था।
और डाक्टर साहब एक मालिनी ही के लिए क्यों , हर किसी आगे बढ़ने वाले के साथ सर्वदा खड़े मिलते थे। डाक्टर साहब मेरे लिए भी हमेश प्रेरक बन कर ही हमारे जीवन में उपस्थित थे। डाकटर साहब बहुत खुली तबीयत के आदमी थे। एकदम सदाबहार। बिलकुल अशोक कुमार की तरह। आंटी के जाने के बाद वह थोड़े बुझे-बुझे से रहते थे। पर मालिनी के लखनऊ में आयोजित हर कार्यक्रम में वह पूरे उत्साह के साथ उपस्थित रहते। उम्र के चलते तबीयत कितनी भी ढीली हो , डाक्टर साहब मालिनी का गायन सुनने के लिए सर्वदा उपस्थित मिलते। अपनी पूरी ठसक के साथ। पूरी रौनक के साथ। बेटी को आशीर्वाद देने के लिए वह समय से पहले ही कार्यक्रम में आ कर पहली पंक्ति में बैठ जाते थे। रहते तो अवनीश भी हैं मालिनी के कार्यक्रम में। लेकिन कई बार वह चुपचाप धीरे से पीछे जा कर बैठ जाते हैं। ताकि लोगों का और मालिनी का भी ध्यान उन पर नहीं , मालिनी की गायिकी पर टिका रहे। फिर जब एक गायिका को गढ़ने वाले दोनों कुम्हार कार्यक्रम में उपस्थित हों तो मालिनी का कार्यक्रम अपने आप ऊंचाई पा जाता था। लखनऊ के अब आगे के कार्यक्रमों में मालिनी को अपने एक कुम्हार की अनुपस्थिति सर्वदा खलेगी। अपने जनक को वह कैसे भूल पाएंगी , यह सोच कर मैं उदास हूं। क्यों कि डाक्टर साहब की अनुपस्थिति तो मुझे भी खलेगी। अब कौन देखते ही लपक कर कहेगा , आओ पांडेय , कैसे हो ? कह कर गले लगा लेगा।
जब वह अचानक बीते दिनों घर में ही गिर गए थे तो ठीक होने के बाद मालिनी के एक कार्यक्रम में मिले। थोड़े थके-थके दिखे तो मैं ने पास जा कर नमस्ते किया। पूछा , डाक्टर साहब पहचान तो रहे हैं न ! लपक कर गले लगाते हुए बोले , क्या बात करते हो , तुम को नहीं पहचानूंगा ? तुम्हें तो एक हो , उन पुराने लोगों में जो मिलते रहते हो। असल में गोरखपुर भले बरसों पहले उन्हों ने छोड़ दिया था पर मुझे बराबर लगता था कि जैसे गोरखपुर सर्वदा उन में गश्त करता रहता था। गोरखपुर उन के भीतर से कभी गया ही नहीं। हालां कि याद वह गोरखपुर से पहले मिर्जापुर को भी करते रहते थे। जहां वह अपनी बड़ी बेटी मल्लिका को संगीत की शिक्षा दिलवा रहे थे। उस्ताद आते थे मल्लिका को सिखाने। लेकिन मालिनी भी आ कर बैठ जाती थीं कि मैं भी सीखूंगी। डाक्टर साहब कहते कि बहुत हटाते थे शालू को कि हटो , दीदी को सीखने दो। पर शालू मानती ही नहीं थी। शालू , मालिनी के घर का नाम है। मेरी बेटी की शादी में डाक्टर साहब , मालिनी को ले कर आए थे। बेटे पुष्कर अवस्थी भी थे। मैं ने पूछा , स्वास्थ्य कैसा है ? तो सुनते ही पुलक गए। कहने लगे , तुम से अच्छा है और गले लगा लिया। क्या कहूं , जिस प्यार से आप जब-तब गले लगा लेते थे , सर्वदा आशीष देते रहते थे। पिता की उम्र के थे पर दोस्ती में हाथ भी मिलाते और पीठ पर धौल जमा कर आशीष भी देते। अब कौन वह आशीष देगा। लॉक डाऊन है और मैं नोएडा में हूं। आप को अंतिम प्रणाम करने से वंचित हूं डाक्टर साहब। हर बार की तरह क्षमा कीजिएगा। आप से बहुत सी कहानियां सुननी थीं। कुछ आप ने सुनाई थीं , कुछ रह गई थीं। मेरा आलस था। आप तो सर्वदा बुलाते ही रहते थे। आप चाहते थे कि उन्हें विस्तार से लिखूं। अब विस्तार कहां से लाऊंगा भला ? उन राजनीतिज्ञों , अफसरों और डाक्टरों के किस्से। जो एक से एक रहस्य और विवाद लिए हुए थे।
हुआ यह कि एक बार गोरखपुर में कुछ पाखंडियों ने गोरखपुर के टाऊनहाल में एक भूमि-समाधि का कार्यक्रम आयोजित किया। कोई एक खड़ेश्वरी बाबा नाम का आदमी खड़ा किया। कहा कि यह चौबीस घंटे की खड़े-खड़े भूमि-समाधि लेंगे। समाधि के नाम पर भव्य आयोजन किया। खूब चंदा , खूब प्रचार , खूब तामझाम । तमाम प्रशासनिक अधिकारियों का जमावड़ा हुआ। सब पूजारत थे। तत्कालीन स्वास्थ्य मंत्री लोकपति त्रिपाठी भी आए उसे समाधि दिलाने के लिए। और तो किसी से नहीं देखा मैं ने पर पाया कि स्वास्थ्य मंत्री लोकपति त्रिपाठी से डाक्टर साहब सार्वजनिक रूप से भिड़ गए। साफ़ बता दिया कि यह सब रोकिए। यह आदमी कोई तपस्वी वगैरह नहीं है। है तो भी चौबीस घंटे भूमि-समाधि लेने के बाद जीवित बाहर नहीं आएगा। यह इस आदमी की हत्या का आयोजन है। रोकिए इसे। लेकिन जनता का इतना जमावड़ा था , इतना हल्ला था खड़ेश्वरी बाबा की भूमि-समाधि का कि लोकपति त्रिपाठी क्या , किसी ने भी डाक्टर साहब की बात नहीं सुनी। प्रेस , प्रशासन हर कोई खड़ेश्वरी बाबा के गुणगान में आतुर था। पर चौबीस घंटे बाद खड़ेश्वरी बाबा नहीं निकले समाधि से। समय और बढ़ा दिया गया। तीन दिन बाद निकला खड़ेश्वरी बाबा का क्षत-विक्षत शव। दुकान तब तक उजड़ चुकी थी। आयोजक चंदा बटोर कर चंपत हो चुके थे। पता चला कि खड़ेश्वरी बाबा कोई नहीं था। कोई गूंगा , गरीब आदमी था , जिसे आयोजकों ने पैसा कमाने के लिए खड़ा कर दिया था। डाक्टर साहब यह सब लेकिन बेधड़क कह रहे थे। स्वास्थ्य मंत्री के सामने कोई सरकारी डाक्टर इस तरह बेधड़क अपनी बात सार्वजनिक रूप से कहे , न यह तब आसान था , न अब। लेकिन डाक्टर साहब तो ऐसे बेधड़क , बेतकल्लुफ और दिल के साफ़ थे। कभी भी , कहीं भी , साफ़-साफ़ कुछ भी कह सकते थे। इस लिए ताज्जुब नहीं था मेरे लिए कि कुछ लोग डाक्टर साहब के निंदक भी थे। परम निंदक। फिर ऐसे आदमी के निंदक न हों , यह तो हो भी नहीं सकता था। हर किसी के निंदक होते ही हैं। लेकिन डाक्टर साहब ने कभी इस सब की परवाह नहीं की। डाक्टर साहब की एक बड़ी बात जो मैं याद कर पाता हूं , वह यह कि स्त्रियों की आज़ादी के वह प्रबल पक्षधर थे। कन्नौज के ब्राह्मण थे। पक्के कन्नौजी भी। वह पर कन्नौज के बंद दायरे में कभी नहीं रहे। कन्नौजी उन की मातृभाषा पर देखिए कि उन की बिटिया मालिनी भोजपुरी और अवधी गाने वाली लोक गायिका।
मालिनी कभी झूम कर ग़ज़ल गाती थीं। पटियाला घराने के राहत अली से उन्हों ने ग़ज़ल गायिकी सीखी थी। जगजीत सिंह उन के आदर्श थे। भातखण्डे में शास्त्रीय गायन सीखा। बाद में मालिनी ने गिरिजा देवी से भी शास्त्रीय गायन सीखा। गिरिजा देवी की ही प्रेरणा से वह लोक गायन में आईं। और देखिए कि गाती ही जा रही हैं। बहती नदी की तरह। बहती ही जा रही हैं। मालिनी को यह बहती नदी , डाक्टर साहब ने ही बनाया है। मालिनी की गायिकी की गमक में , उन के आरोह , अवरोह , लोच और मुरकी में डाक्टर साहब का पसीना भी है। उन का शुभाशीष भी है। यह डाक्टर साहब ही थे जिन्हों ने , मालिनी को क्या किसी भी को कुएं में बंद होने की तजवीज नहीं दी। वहु खुद भी बहती हवा थे , बहती नदी थे। डाक्टर तो वह थे ही , सेवा भाव भी बहुत था उन में। निर्मला आंटी जब कैंसर से जूझ रही थीं , डाक्टर साहब को उन की अनथक सेवा करते भी देखा है। बहुत कम पतियों को , पत्नी की ऐसी समर्पित सेवा करते देखा है। डाक्टर साहब के पास कहने बताने के लिए बहुत सी बातें थीं। वह बतियाते थे तो रुकते नहीं थे जल्दी। मेरे पास भी डाक्टर साहब की बहुत सी बातें हैं कहने के लिए। 45 -46 बरसों का आत्मीय सिलसिला है। दोस्ती है। नाता है। एक भाग्यशाली पिता और एक भाग्यशाली पुत्री की अनकही दास्तान के अनेक सिलसिले हैं। पर क्या कहें साक़िब लखनवी का वह एक शेर है न :
मालिनी कभी झूम कर ग़ज़ल गाती थीं। पटियाला घराने के राहत अली से उन्हों ने ग़ज़ल गायिकी सीखी थी। जगजीत सिंह उन के आदर्श थे। भातखण्डे में शास्त्रीय गायन सीखा। बाद में मालिनी ने गिरिजा देवी से भी शास्त्रीय गायन सीखा। गिरिजा देवी की ही प्रेरणा से वह लोक गायन में आईं। और देखिए कि गाती ही जा रही हैं। बहती नदी की तरह। बहती ही जा रही हैं। मालिनी को यह बहती नदी , डाक्टर साहब ने ही बनाया है। मालिनी की गायिकी की गमक में , उन के आरोह , अवरोह , लोच और मुरकी में डाक्टर साहब का पसीना भी है। उन का शुभाशीष भी है। यह डाक्टर साहब ही थे जिन्हों ने , मालिनी को क्या किसी भी को कुएं में बंद होने की तजवीज नहीं दी। वहु खुद भी बहती हवा थे , बहती नदी थे। डाक्टर तो वह थे ही , सेवा भाव भी बहुत था उन में। निर्मला आंटी जब कैंसर से जूझ रही थीं , डाक्टर साहब को उन की अनथक सेवा करते भी देखा है। बहुत कम पतियों को , पत्नी की ऐसी समर्पित सेवा करते देखा है। डाक्टर साहब के पास कहने बताने के लिए बहुत सी बातें थीं। वह बतियाते थे तो रुकते नहीं थे जल्दी। मेरे पास भी डाक्टर साहब की बहुत सी बातें हैं कहने के लिए। 45 -46 बरसों का आत्मीय सिलसिला है। दोस्ती है। नाता है। एक भाग्यशाली पिता और एक भाग्यशाली पुत्री की अनकही दास्तान के अनेक सिलसिले हैं। पर क्या कहें साक़िब लखनवी का वह एक शेर है न :
ज़माना बड़े शौक़ से सुन रहा था
हमीं सो गए दास्ताँ कहते कहते।
प्रमथ का एक पौराणिक अर्थ शिव भी होता है। तो डाक्टर साहब में शिवत्व भी बहुत था। भगवान उन की आत्मा को शांति दें। बाकी वह गीता का एक अमर श्लोक है है। उन के चरणों में वही समर्पित है। डाक्टर साहब बहुत-बहुत प्रणाम !
नैनं छिन्दन्ति शस्त्राणि नैनं दहति पावकः ।
न चैनं क्लेदयन्त्यापो न शोषयति मारुतः । ।
[ यह आत्मा न तो कभी किसी शस्त्र द्वारा खण्ड-खण्ड किया जा सकता है, न अग्नि द्वारा
बेहद आत्मीयतापूर्ण संस्मरण
ReplyDeleteAwesome
ReplyDeleteMarm sparshi sansmaran
ReplyDeletepadhkar samast ghatnaen aankho ke samaksh ghoom jaati hain
ReplyDeleteइतना सजीव चित्रण, बहुत सुंदर।
ReplyDeletepranam sir.. kripya ye batae krutidev font me blog likhne ka koi vikalp hai kya?...ya fir sirf google hindi input ka prayog karte hain aap?
ReplyDeletegood
ReplyDeleteमालिनी जी के प्रंशसक होने के नाते और पिता की गरिमा को जीवंत अनुभव करने के नाते से आपके लेख की जितनी प्रशंसा करूँ कम है।
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