आप को भारत में मिनी पाकिस्तान की बात पर ऐतराज है। अच्छी बात है। किसी भी देशभक्त को होना चाहिए। लेकिन इस अवधारणा को खत्म कैसे किया जाए ? क्या कश्मीर की तरह ? कश्मीर तो कंप्लीट पाकिस्तान में तब्दील हो चुका था। मेरी जान , मेरी जान , पाकिस्तान , पाकिस्तान ! का नारा ही नहीं , पाकिस्तान का झंडा भी दिखाया जाता था। पर अब क्या हुआ ? क्या जैसे बलात्कारियों को दुरुस्त करने के लिए हैदराबादी जस्टिस अख्तियार किया गया है , पाकिस्तानपरस्तों को भी हैदराबादी जस्टिस की दरकार है ? पाकिस्तान ज़िंदाबाद से यह लोग तभी बाज आएंगे ? नहीं , जिन्ना का डायरेक्ट एक्शन प्लान चलाते हुए , मिनी पाकिस्तान को मज़बूत करते रहेंगे ? तो क्या मिनी पाकिस्तान और डायरेक्ट एक्शन प्लान को चकनाचूर करने का समय अब आ गया है ? डायरेक्ट एक्शन प्लान मतलब हिंदुओं को देखते ही गोली मार दो। तो पोलियो ड्राप को नसबंदी की दवा बताने वालों को पाकिस्तान ज़िंदाबाद का एंटी डोज देने का समय आ गया है ?
इस लिए भी कि अगर मुझे कोढ़ हो गया है तो उसे कपड़े से ढक कर तो हम ठीक नहीं कर सकते। ठीक कर सकते हैं लेकिन कारगर और तय सीमा तक नियमित दवा ले कर ही। फिर भी अगर कमोवेश देश के हर शहर में अगर मिनी पाकिस्तान हैं , तो क्या बोलेंगे भला उसे ? दुर्भाग्य है देश का यह। समाज पर कलंक हैं , यह मिनी पाकिस्तान। अलीगढ़ मुस्लिम यूनिवर्सिटी में अभी तक जिन्ना की फोटो की तलब क्या कहती है ? अच्छा आप ही बताएं कि देश के किस शहर में नहीं है मिनी पाकिस्तान। फिर मिनी पाकिस्तान का मतलब मुस्लिम बहुल इलाका नहीं है। मिनी पाकिस्तान उसे कहते हैं , जहां शासन , प्रशासन फेल हो जाते हैं। बिजली वाले हों , पुलिस वाले हों , उबर , ओला वाले भी जाने से कतराते हैं। कार्रवाई तो बहुत दूर की कौड़ी है। मैं लखनऊ में रहता हूं कोई 37 साल से। यहां जब भी दंगा , उपद्रव होता है , मुस्लिम बहुल इलाके में ही होता है। कर्फ्यू वगैरह भी वहीँ लगता हैं। जहां मैं रहता हूं , अभी तक कभी कर्फ्यू नहीं लगा। कभी उपद्रव नहीं हुआ। लखनऊ का चौक जो मुस्लिम बहुल है , अब वहां समझदार मुस्लिम भी नहीं रहना चाहते। वहां अब कोई प्रापर्टी नहीं खरीदना चाहता। सब लोग धीरे-धीरे वहां से निकलते जा रहे हैं। यही स्थिति कमोवेश हर शहर की है। चंडीगढ़ जैसे कुछ नए बसे शहरों को छोड़ कर। ऐसा क्यों है भला ? कभी सोच कर देखिए। गुड़गांव , नोएडा जैसे शहरों में भी नहीं हैं मिनी पाकिस्तान। यह नए बसे हुए शहर हैं सो यहां तो यह सब कभी नहीं हो सकता।
अब उत्तर प्रदेश के संभल को ही ले लीजिए। मेरठ , मुरादाबाद , संभल , अलीगढ़ , आज़मगढ़ ,तथा दिल्ली , मुंबई , हैदराबाद आदि के कुछ हिस्से अपने आप में मुकम्मल मिनी पाकिस्तान हैं। वहां बहुत कम जगह भारतीय क़ानून यानी आई पी सी की बहाली है। अलीगढ़ यूनिवर्सिटी में कुछ भी हो जाए , पुलिस घुसने से पहले हज़ार बार सोचती है। और नहीं ही घुसती। वहां शरिया और मौलवी क़ानून चलता है। क्या यह भी बताने की ज़रूरत है। पाकिस्तान चले जाओ के जुमले पर भी आप को गहरा ऐतराज है। गुड बात है। बिलकुल होना चाहिए। पर इस बात की नौबत ही क्यों आती है ? कभी क्यों नहीं सोचते भला ? फिर भी यह जान लेने में नुकसान नहीं है कि नियमत: पाकिस्तानियों को ही पाकिस्तान भेजा जा सकता है। भारतीय नागरिकों को नहीं। भले ही वह पाकिस्तान ज़िंदाबाद करते रहें। किसी सूरत , किसी क़ानून से नहीं भेजा जा सकता। हां जेल ज़रूर भेजा जा सकता है। शासन और प्रशासन अगर चाह ले। पाकिस्तानी तो पाकिस्तानियों की लाश भी नहीं लेते। ज़िंदा इंसान को लेना तो बहुत दूर की कौड़ी है। आतंकी कसाब का शव लिया था क्या ? अलबत्ता अफजल गुरु और याकूब मेनन की फांसी पर भारत में तूफ़ान मच जाता है । यह तूफान मचाने वाले लोग ही पाकिस्तान ज़िंदाबाद बोलने वाले लोग हैं। यह वही लोग हैं जिन्हें भारत माता की जय बोलने में , वंदे मातरम बोलने में मुश्किल होती है। सोचिए कि लड़ के लिया है पाकिस्तान , हंस के लेंगे हिंदुस्तान जैसा नारा संघियों और भाजपाइयों ने तो नहीं ही गढ़ा है।
तो कब तक अपनी निगेटिव बातों के लिए भाजपा को कोसते रहेंगे ? नहीं जानते तो अब से जान लीजिए कि कांग्रेस के शासन में पाकिस्तान ज़िंदाबाद के नारे कहीं ज़्यादा लगते रहे हैं। पाकिस्तान क्रिकेट टीम के भारत से जीतने पर मिठाई भी खूब बंटती रही है। नतीजे में दंगे भी हम भुगतते रहे हैं। भाजपा राज में इस सब में अप्रत्याशित रूप से कमी ही नहीं आई है बल्कि अब यह सब न्यूनतम स्तर पर आ गया है। इस कार्यकाल के बाद अगर एक और कार्यकाल नरेंद्र मोदी को मिल गया तो लिख कर रख लीजिए कि भारत में मुसलमान तो रहेंगे , बड़े ठाट से रहेंगे , लेकिन भारत माता की जय बोलते हुए दिखेंगे। पाकिस्तान ज़िंदाबाद कहने का उन का अभ्यास सर्वदा-सर्वदा के लिए समाप्त हो जाएगा। लीगी बीमारी और जेहाद जैसी बातें भारत में इतिहास की बातें हो जाएंगी। यकीन न हो तो लिख कर यह बात भी लिख कर रख लीजिए। इस लिए भी कि पाकिस्तान ही तब तक मुकम्मल नहीं रह जाएगा। वह आतंकी फंडिंग करने की हैसियत में नहीं रह जाएगा। आज कल तो मंज़र यह है कि इमरान खान अपना और पाकिस्तान का अस्तित्व बचाने में लगा है , आप लोग इस बिंदु पर कभी क्यों नहीं सोच पाते ? जो पाकिस्तान कहता रहता था कि कश्मीर ले कर रहेंगे , वही पाकिस्तान अब श्रीनगर भूल कर अपने हिस्से के गुलाम कश्मीर पर भारत के आक्रमण के आशंका में सुबह , शाम मरा जा रहा है। और यहां अभी भी पाकिस्तान ज़िंदाबाद की खुमारी लगी हुई है। कब तक शेष रहेगी यह खुमारी भी ? कभी सोचा है ? नहीं सोचा है तो ज़रूर सोचिए। हज़ार बार सोचिए।
जो भी हो अभी तो आप नरेंद्र मोदी के न्याय का इस सर्दी में फुल आनंद लीजिए। रही बात कांशीराम और मायावती , अखिलेश , कांग्रेस आदि के तो यह अब भभकते दिए हैं। कोई नया कंधा खोजिए , अपनी नफरत और अपने लगी जहर को खाद , पानी पाने के लिए।
अम्मा बचपन में एक किस्सा सुनाती थी।
एक आदमी की शादी हुई। शादी के पहले वह मां के लिए कुर्बान रहता था। बात-बेबात कुर्बान रहता था। शादी के बाद भी। लेकिन उस की बीवी को यह अच्छा नहीं लगता। धीरे-धीरे उस ने पति को जैसे-तैसे काबू किया। और धीरे-धीरे ही पति को मां के जुड़ाव से दूर करना शुरू किया। बात फिर भी बनती नहीं दिखी तो उस ने एक रात पति से इसरार किया कि अगर मुझ से प्यार करते हो और मैं तुम्हारी ज़िंदगी में अगर कुछ भी मायने रखती हूं तो अपनी मां का कलेजा मुझे भेंट में दो। वह बीवी को खुश रखने के लिए प्रयासरत हो गया।
एक रात उस ने मां को घर से दूर ले जा कर मां को मार डाला। और मां को मार कर उस का कलेजा निकाल कर घर की तरफ चला। रास्ते में अंधेरा था। एक जगह अचानक उसे किसी चीज़ से ठोकर लगी। वह लड़खड़ा कर गिर पड़ा। अचानक मां का कलेजा बोला , बेटा तुम्हें कहीं चोट तो नहीं लगी ? यह सोच कर बेटा सोच में पड़ गया और रो पड़ा कि हाय , यह मैं ने क्या किया। मेरा इतना खयाल रखने वाली अपनी मां को मार डाला ? वह मां , जिस का कलेजा भी मुझे चोट तो नहीं लगी की परवाह में है। लेकिन अब वह कर भी क्या कर सकता था। मां को तो वह मार ही चुका था। अब पछताने से कुछ होना-हवाना नहीं था।
हमारे देश के कुछ लोग अकारण अपनी भारत माता को मारने और जलाने में लगे हैं। अपनी सत्ता , अपनी विचारधारा , अपनी ज़िद , सनक और एक व्यक्ति के विरोध में इतना आक्रामक इतना हिंसक और इतने अराजक हो गए हैं कि अपनी धरती , अपनी अस्मिता , अपने देश और अपने ही लोगों के खिलाफ खड़े हो गए हैं। गांधी गाते ही थे , सब को सन्मति दे भगवान। भगवान इन को सन्मति दे , यह प्रार्थना तो मैं भी कर ही रहा हूं। आप भी कीजिए।
जिन लोगों को भारत माता की जय कहने में घिन आती है। वंदे मातरम कहने में शर्म आती है। आज उन्हीं लोगों को संविधान की चिंता सता रही है। संविधान की चिंता में ही यह लोग देश और देश की संपत्ति खूब धूम-धाम से जला रहे हैं। गोया दीपावली और ईद मना रहे हों। इन को इस बेतुका जश्न की कीमत चुकानी ही होगी।
आखिर वह कौन लोग हैं जो भारत में रह कर भी , भारत के नागरिक हो कर भी पाकिस्तान ज़िंदाबाद कहने की हिमाकत करते हैं , दुस्साहस करते हैं ? तो वह चाहे कोई भी हों , उन को पाकिस्तान जाने की सलाह देना ही काफी नहीं है। इन पर देशद्रोह का मुकदमा होना चाहिए। मेरठ के एस पी सिटी अखिलेश नारायण को उक्त लोगों के खिलाफ देशद्रोह के आरोप में फौरन मुकदमा लिखवा कर जेल भेजना चाहिए। न्यायालय में ट्रायल हो और न्यायालय को ही गुण-दोष के आधार पर निर्णय लेना चाहिए। जो लोग लगातार यह कुतर्क करते हुए कह रहे हैं कि एस पी सिटी के शब्दों का चयन गलत है , उन पर भी तरस आता है। उपद्रवियों से निपटते हुए एस पी सिटी की जगह कोई भी ज़िम्मेदार भारतीय होता तो क्या करता ? एस पी सिटी ने तो बहुत संयम से काम लिया है। पाकिस्तान ज़िंदाबाद कहने की प्रवृत्ति को हर मुमकिन कानूनी रूप से कुचल देने की ज़रूरत है। यह वही लोग हैं जो अभी भी जिन्ना की फोटो अलीगढ यूनिवर्सिटी की दीवार पर टांग कर रखने में अपनी प्राथमिकता और बहादुरी समझते हैं। और दुनिया भर की सेक्यूलरिज्म की जुगाली करते हैं। इन सब के खिलाफ कड़ी से कड़ी कार्रवाई की जानी चाहिए। संविधान की आड़ में इन की तरफदारी करने वाले दोगले लोग हैं।
आखिर वह कौन लोग हैं जो भारत में रह कर भी , भारत के नागरिक हो कर भी पाकिस्तान ज़िंदाबाद कहने की हिमाकत करते हैं , दुस्साहस करते हैं ? तो वह चाहे कोई भी हों , उन को पाकिस्तान जाने की सलाह देना ही काफी नहीं है। इन पर देशद्रोह का मुकदमा होना चाहिए। मेरठ के एस पी सिटी अखिलेश नारायण को उक्त लोगों के खिलाफ देशद्रोह के आरोप में फौरन मुकदमा लिखवा कर जेल भेजना चाहिए। न्यायालय में ट्रायल हो और न्यायालय को ही गुण-दोष के आधार पर निर्णय लेना चाहिए। जो लोग लगातार यह कुतर्क करते हुए कह रहे हैं कि एस पी सिटी के शब्दों का चयन गलत है , उन पर भी तरस आता है। उपद्रवियों से निपटते हुए एस पी सिटी की जगह कोई भी ज़िम्मेदार भारतीय होता तो क्या करता ? एस पी सिटी ने तो बहुत संयम से काम लिया है। पाकिस्तान ज़िंदाबाद कहने की प्रवृत्ति को हर मुमकिन कानूनी रूप से कुचल देने की ज़रूरत है। यह वही लोग हैं जो अभी भी जिन्ना की फोटो अलीगढ यूनिवर्सिटी की दीवार पर टांग कर रखने में अपनी प्राथमिकता और बहादुरी समझते हैं। और दुनिया भर की सेक्यूलरिज्म की जुगाली करते हैं। इन सब के खिलाफ कड़ी से कड़ी कार्रवाई की जानी चाहिए। संविधान की आड़ में इन की तरफदारी करने वाले दोगले लोग हैं।
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