यह दंगा , यह हिंसा नागरिकता बिल के विरोध को ले कर ही नहीं है। यह एक पूरा पैकेज है। तीन तलाक़ , 370 , राम मंदिर का विरोध भी इस में शामिल है। सिविल कॉमन कोड और जनसंख्या नियंत्रण को रोकने की हारी हुई कोशिश भी है। कांग्रेस , कम्युनिस्ट समेत समूचे विपक्ष की हताशा भी है। यह एक कंप्लीट पैकेज है देश को जला कर , देश को अस्थिर करने के लिए। कभी मंहगाई , बेरोजगारी को ले कर ऐसा विरोध प्रदर्शन देखा आप ने ? लेकिन दलित और मुस्लिम सब से मुफ़ीद कड़ी है देश को अस्थिर करने के लिए। इस कड़ी का दुरूपयोग सर्वदा , सर्वदा से कांग्रेस और कम्युनिस्ट करते रहे हैं। करते रहेंगे। इस लाइलाज बीमारी की कोई दवा कभी नहीं खोज सकता।
तो क्या कांग्रेस शासित प्रदेशों में लोग नागरिकता बिल संशोधन से सहमत हैं ? कि यहां मुसलमान नहीं रहते। मध्यप्रदेश, राजस्थान, छत्तीसगढ़, पंजाब से हिंसा की कोई ख़बर नहीं है। कम से कम मीडिया न्यूज़ में नहीं है। तो क्या समझना इतना मुश्किल कि जहां भी कहीं हिंसा , उपद्रव आगजनी जारी है , वहां आग कांग्रेस और उन के समर्थक लोगों ने ही लगाई है। लगाते जा रही है। कांग्रेस न सिर्फ़ आग से खेल रही है , देश से खेल रही है बल्कि अपनी ताबूत में आख़िरी कील भी ठोंक रही है। लिख कर रख लीजिए कि अगले चुनाव में कांग्रेस कूड़ेदान में जाने की पूरी तैयारी में है। देश में सिर्फ भटके हुए , अनपढ़ , जाहिल , हिंसक और उपद्रवी मुसलमान ही नहीं रहते।
यह जो जुमे की नमाज़ है न ! इस से निकलने वाली नफ़रत और उपद्रव की जो आग है न ! कश्मीर को जलाने के बाद अब दिल्ली समेत सभी जगहों पर नफरत और उपद्रव की भाषा ले कर उपस्थित है। धर्म को अफीम बताने वाला कोई प्रोग्रेसिव , कोई कम्युनिस्ट इस पर भूल कर भी टिप्पणी नहीं करता। आंख मूंद लेता है।
नरेंद्र मोदी ने एक बड़ी गलती की है। शुरुआत उन्हें मुस्लिम समाज को पूरी तरह से शिक्षित करने से करनी चाहिए थी। अब अलग बात है कि देख रहा हूं कि बड़े-बड़े आलिम , फाजिल भी नागरिकता बिल को अशिक्षित मुसलमानों की तरह ही समझ रहे हैं और समझा रहे हैं। दंगा और उपद्रव की भाषा न सिर्फ बोल रहे हैं , बल्कि इस में पूरी तरह संलग्न हैं। बता रहे हैं कि सभी मुसलमानों को भारत से बाहर निकाल दिया जाएगा , नागरिकता बिल के मद्देनज़र। मुस्लिम समाज की यह बड़ी यातना है। बाक़ी जो है , सो हइये है।
धर्मनिरपेक्षता !
इस एक शब्द के पाखंड ने भारत का बहुत नुकसान किया है। आप ध्यान दीजिए कि हिंसा और उपद्रव से घिरे देश में एक भी धर्मनिरपेक्ष ने वह चाहे राजनीतिज्ञ हो , लेखक , पत्रकार , बुद्धिजीवी या संस्कृतिकर्मी ने शांति की अपील नहीं की है। देश को , देश की संपत्ति को जलाने का उन का मौन समर्थन उन के स्वभाव और विचारधारा से सहज ही परिचित करवाता है। पता नहीं धर्मनिरपेक्षता के नाम पर हिंसा , उपद्रव करने वालों के खिलाफ कोई क़ानून है भी कि नहीं। संविधान इस हिंसा से खतरे में पड़ता है कि नहीं। कोई बताए भी।
सांप्रदायिकता सर्वदा खतरनाक होती है । लेकिन एकतरफा धर्मनिरपेक्षता , सांप्रदायिकता से भी कहीं ज़्यादा खतरनाक होती है । सांप्रदायिकता से आप खुल कर लड़ सकते हैं । पर एकतरफा धर्मनिरपेक्षता तो दीमक की तरह काम करती है । कब आप को , आप के समाज को चाट कर ध्वस्त कर गई , ध्वस्त होने के बाद ही पता चलता है । तब तक आप उस से लड़ने लायक भी शेष नहीं रह जाते । सिवाय ढोल पीटने के ।
मेरा स्पष्ट मानना है कि क़ानून व्यवस्था और उपद्रवी तत्वों से प्रशासन को जब भी निपटना हो , सिविल पुलिस के भरोसे कभी न रहे। फौरन अर्ध सैनिक बल या सेना ही बुला ले। सिविल पुलिस को मुकदमा , पोस्टिंग और पैसा खाने तक ही सीमित रखना ठीक है। वह चाहे उत्तर प्रदेश की पुलिस हो , दिल्ली , पंजाब , तमिलनाडु , केरल , गुजरात , बंगाल आदि जहां भी कहीं की हो। सिविल पुलिस के वश के नहीं होते दंगाई और उपद्रवी। बात बिगड़ जाने के बाद आखिर प्रशासन अर्ध सैनिक बल या सेना को तैनात करता ही है। बात बिगड़ने का इंतज़ार करने की जगह , पहले ही राउंड में प्रशासन को सिविल पुलिस को हटा कर पूरा इलाका अर्ध सैनिक बलों के हवाले करने का अभ्यास अब से सही कर लेना चाहिए।
Very Nice Article
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