फ़ोटो : प्रमोद प्रजापति |
ग़ज़ल / दयानंद पांडेय
हम को तो सर्वदा तुम्हारी हंसी तुम्हारी बात हैपी करती है
तुम आती हो तो आता है फागुन फिर होली हैपी करती है
तुम्हारा हाथ तुम्हारा साथ तुम्हारा आकाश तुम्हारी धरती
इस मधुमास में तुम से मिलन की हर मनुहार हैपी करती है
मैं तो जैसे पक्षी हूं उड़ता रहता हूं सदा तुम्हारी तलाश में
हवा में लिपटी तुम्हारी याद में भीगी पुकार हैपी करती है
इस पार से उस पार संगम की धार में बहता हुआ बीच धार
डूबता उतराता देखता हूं जल में तुम्हारी छवि हैपी करती है
तुम से मिलने की चाहत चाहत नहीं राहत होती है ख़ुद ख़ातिर
इस मिलन की गंगा में तुम्हारे साथ डुबकी बहुत हैपी करती है
एक कोयल है मेरे घर के पिछवाड़े आम के पेड़ पर रहती
भरी दोपहर वह बेसुध गाती रहती है हम को हैपी करती है
[ 22 मार्च , 2016 ]
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