यह रंग बरसों याद करेंगे तुम से आज होली खेल कर
मदहोश हो गए हैं रंग भी तुम से आज होली खेल कर
फूल पागल गुलाल डगमग तुम्हारे कपोल पर लग कर
हथेलियां चहकी हुई बहकी हुई हैं आज होली खेल कर
तुम घुल गई हो रग रग में रंग बन कर मन के संगम में
कि जैसे गंगा बहती चली जाती जमुना से होली खेल कर
बांसुरी की तान में भीगी वृंदावन की गलियां डूबी हैं रंग में
मेरी राधा मुझ में ही नाच नाच झूम रही आज होली खेल कर
यह कौन सा प्रयाग है मन का यह कौन सा तीर्थराज है
ढूंढता है प्रारब्ध जीवन का तुम में तुम से होली खेल कर
रंग बरसेंगे और तरसेंगे अगले बरस तक इस रंग ख़ातिर
उमंग की गंगा में जिस तरह डुबोया आज होली खेल कर
आपकी इस प्रस्तुति का लिंक 24-03-2016 को चर्चा मंच पर चर्चा - 2291 में दिया जाएगा
ReplyDeleteधन्यवाद
बहुत सुन्दर ...
ReplyDeleteहोली की शुभकामनाएं!