Monday 25 January 2016

जीतने के लिए ज़िंदा रहना बहुत ज़रूरी है ,आत्महत्या तो हार है ,कायरता है

 आत्महत्या कर रहे लोगों को अपना हीरो बना रहे धूर्त और कमीनों से कड़ाई से निपटा जाना चाहिए

जातीय ठगों ने समाज की सूरत इस कदर विकृत कर दी है कि पूछिए मत। समाज का यह नया कोढ़ है । पहले लोग ज़िंदगी से लड़ कर , ज़िंदगी को जीत कर हीरो बनते थे । और लोग उन्हें हीरो मानते थे । अब लोग ज़िंदगी से हार कर , संघर्ष से हार कर आत्महत्या कर रहे लोगों को अपना हीरो बना रहे हैं । क्या तो वह दलित हैं। अजब तमाशा है।

जैसे सवर्ण लोगों या ब्राह्मणों के हिस्से संघर्ष और हार है ही नहीं। उन का शोषण कहीं होता ही नहीं । उन का अपमान कहीं होता ही नहीं । उन को तो जैसे सब कुछ तश्तरी में सजा कर यह व्यवस्था पेश कर देती है । लेकिन वह आत्महत्या कर हीरो नहीं बन सकते। बनाना भी नहीं चाहिए । लेकिन आरक्षण की मलाई और शार्ट कट ने कुछ जातीय ठेकेदारों को पागल बना दिया है । मिशनरियों की आर्थिक मदद और उकसावे ने इन्हें और जहरीला बना दिया है । इस कुकृत्य में अपने को पढ़ा-लिखा और बुद्धिजीवी कहलाने वाले कमीने ज़्यादा सक्रिय हैं । यह पढ़े-लिखे कोढ़ी हैं जो नौजवानों को जीवन नहीं कायरता सिखाते हैं । आरक्षण की बैसाखी इन की ठगी का कारगर औजार बन चुका है । यह लोग सब को आरक्षण खो जाने का भय दिखाना तो जानते हैं पर अपनी कमीनगी में जीवन को बचाना नहीं सिखाते ।

दलितों के देवता अम्बेडकर  के बनाए संविधान और क़ानून ने भी आत्महत्या को गैर क़ानूनी बता रखा है। यह आपराधिक कृत्य है । यह कायर लोग काश कि अपने देवता के बनाए क़ानून से ही डरते। और कि ज़िंदगी को जीत में बदलते तो बात कुछ और होती। क्यों कि मृत्यु ज़िंदगी के मुक़ाबले सर्वदा बदसूरत होती है। जब कि ज़िंदगी जैसी भी हो बहुत ख़ूबसूरत होती हैं। आत्महत्या करने वाले लोग काश कि इस बात को समझते । और यह धूर्त और कमीने लोग जो आत्महत्या करने वालों को हीरो बना कर बाक़ी नौजवानों को आत्महत्या करने के लिए जिस तरह उकसा रहे हैं , वह तो और भी त्रासद है। इन धूर्त और कमीनों के ख़िलाफ़ कानूनी कार्रवाई ज़रूर की जानी चाहिए । नहीं यह समाज को अभी और भी दूषित करेंगे। यह लोग देश और दलित समाज दोनों के दुश्मन हैं । इन से कड़ाई से निपटा जाना चाहिए । नौजवानों को या किसी भी को यह ज़रूर जानना चाहिए कि ज़िंदगी बहुत ख़ूबसूरत है और कि अपनी ज़िंदगी बचा कर अपनी लड़ाई ज़्यादा बेहतर ढंग से लड़ी जा सकती है और कि ज़िंदा रह कर ही अपनी लड़ाई को जीत में बदला जा सकता है। जीतने के लिए ज़िंदा रहना बहुत ज़रूरी है ,आत्महत्या तो हार है ,कायरता है । देवेंद्र कुमार की एक मशहूर और लंबी कविता बहस ज़रूरी है की याद आती है। उस में एक जगह वह लिखते हैं :

समन्वय, समझौता, कुल मिला कर
अक्षमता का दुष्परिणाम है
जौहर का किस्सा सुना होगा
काश! महारानी पद्मिनी, चिता में जलने के बजाए
सोलह हजार रानियों के साथ लैस हो कर
चित्तौड़ के किले की रक्षा करते हुए
मरी नहीं, मारी गई होती
तब शायद तुम्हारा और तुम्हारे देश का भविष्य
कुछ और होता!
यही आज का तकाजा है
वरना कौन प्रजा, कौन राजा है?
 
तो मेरे नौजवान दोस्तों आत्महत्या कोई रास्ता नहीं है , कायरता है । देवेंद्र कुमार की इसी कविता का यह एक और अंश है :

दिक्कत है कि तुम सोचते भी नहीं
सिर्फ दुम दबा कर भूंकते हो
और लीक पर चलते-चलते एक दिन खुद
लीक बन जाते हो
दोपहर को धूप में जब ऊपर का चमड़ा चलता है
तो सारा गुस्सा बैल की पीठ पर उतरता है
कुदाल,
मिट्टी के बजाय ईंट-पत्थर पर पड़ती है
और एकाएक छटकती है
तो अपना ही पैर लहुलुहान कर बैठते हो
मिलजुल कर उसे खेत से हटा नहीं सकते?

2 comments:

  1. बिल्कुल सही कहा है आपने। जीवन के मूल्य को जो नहीं समझा वह जीवन को क्या जाने।

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  2. बिल्कुल सही कहा है आपने। जीवन के मूल्य को जो नहीं समझा वह जीवन को क्या जाने।

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