पेंटिंग : डाक्टर लाल रत्नाकर |
जैसे गिरती है धरती पर ओस
तुम मेरी गोद में गिरो
जैसे अंधेरे में दिखती है कोई रोशनी
तुम मेरी आंख में दिखो
किसी कौतुहल की तरह
जैसे चांदनी में बहती है कोई नदी
चलती है उस में नांव
जलता है कोई दीप
नदी के किसी द्वीप पर
किसी नाविक के उम्मीद की तरह
ऐसे ही मेरे मन में बहो
चलो नाव की तरह मंथर-मंथर
और जलो दीप बन
किसी उम्मीद की तरह
मैं नदी का वही नाविक हूं
मुझे राह दो प्यार की
दुलार की वह सांझ दो
मनुहार का वह मान भी
जो देती है धरती
सूर्य की पहली किरन को
मैं मिट्टी हूं , मुझे गढ़ो
किसी मूर्तिकार की तरह
अपने प्यार के पानी में सान कर
किसी कुम्हार की तरह
मुझे रुंधो
तरसो नहीं , बरसो
मुझे प्यार के पानी से भरो
किसी तालाब की तरह
सिंघाड़े की लतर की तरह
फैल जाओ मेरे सर्वस्व पर
[ 14 दिसंबर , २०१५ ]
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