कुछ फेसबुकिया नोट्स
उत्तर प्रदेश हिंदी संस्थान में इस बार पुरस्कार वितरण में धांधली भी खूब हुई है । इस धांधलेबाजी खातिर पहली बार उत्तर प्रदेश हिंदी संस्थान ने एक फर्जी फोरेंसिक लैब्रोटरी भी खोल ली है । तुर्रा यह कि बीते साल किसी ने इलाहाबाद उच्च न्यायालय में किसी ने याचिका दायर कर दी थी सो इस याचिका कर्ता के भय में लेब्रोटरी में खुद जांच लिया कि कौन सी किताब किस प्रेस से कैसे छपी है और इस बिना पर कई सारी किताबों को समीक्षा खातिर ही नहीं भेजा समीक्षकों को । और इस तरह उन्हें पुरस्कार दौड़ से बाहर कर दिया । क्या तो वर्ष 2014 की छपाई है कि पहले की है कि बाद की है । खुद जांच लिया , खुद तय कर लिया । ज़िक्र ज़रूरी है कि इस बाबत लेखक की घोषणा भी हिंदी संस्थान लेता ही है हर बार । पर इस बार लखकों को झूठा और फ्राड साबित कर अपनी फोरेंसिक लैबोरोट्री भी खोल ली है हिंदी संस्थान ने । किताब पर छपे वर्ष और लेखक कि घोषणा पर यकीन नहीं किया । अंधेरगर्दी कि यह हद है। कि इस बिना पर जिस को चाहो पुरस्कार दो , जिस को चाहो , पुरस्कार न दो । जनता के टैक्स का पैसा अपनी चेले चपाटों और चाटुकारों को बांट देने कि तरकीब है यह तो । निश्चित ही हिंदी संस्थान के इस पुरस्कार वितरण में धांधलेबाजी की सी बी आई जांच भी ज़रूर होनी चाहिए। क्यों कि हिंदी संस्थान भ्रष्टाचार का बड़ा गढ़ बन गया है । और इस के कारिंदे अंधेर नगरी , चौपट राजा की व्यवस्था के पोषक ! तो फिर ऐसे में कैसे कैसे लेखकों को हिंदी संस्थान ने इस बार पुरस्कार दिए हैं यह बहुत तफ़सील का विषय है । लेकिन एक नमूना बलिया के कवि रामजी तिवारी ने अपनी फेसबुक वाल पर लिख कर परोस दिया है । आप भी इसे पढ़िए और गौर कीजिए और कि जानिए कि अपना उत्तर प्रदेश हिंदी संस्थान पुस्कार किन कूड़ा लेखकों को किस आधार पर दे रहा है । कहते हैं न कि हाथ कंगन को आरसी क्या , पढ़े लिखे को फारसी क्या ! तो राम जी तिवारी का लिखा यहां गौर करें :
"एक गणमान्य नैष्ठिक व्यक्तित्व के धनी मान्यवदान्य गुरुदेव संत श्री .......... ऎसी ही विभूतियों में से एक हैं । सनातन धर्म से समन्वित रोम-रोम में भारतीय संस्कृति के सौष्ठव रूप को समाविष्ट कर अद्यावधि कीर्ति-कौमुदी से प्रद्योदित है । आपका जीवन मानवीय संवेदनाओं से संपृक्त विनीत वर्चस्वी कायस्थ कुलावन्तश्भूत प्रोज्ज्वल है । समस्त नैतिक गुणों का सामंजस्य आपके सहज स्वभाव और चरित्र के असीमित और अतुलित आयाम में सन्निविष्ट है ।"
- बताईये कि सचिन तेंदुलकर की किताब आज पहले ही दिन डेढ़ लाख बिक गई । और यहां हिंदी में किसी की कोई किताब किसी पुस्तक मेले में दस किताब भी बिक जाती है तो वह फूल कर कुप्पा हो जाता है । बताता फिरता है , यह बताते अघाता नहीं है । और तो और बीते साल एक लेखिका की दो सौ किताब बिक जाने पर उस लेखिका पर फ़िदा प्रकाशक ने दिल्ली के इंडिया इंटर नेशनल सेंटर में बाकायदा जश्न मनाया सब को बटोर कर। चेतन भगत जैसे लेखक साल में सात करोड़ सालाना रायल्टी पाने का दम भरते हैं और यहां हिंदी के किसी एक प्रकाशक का सालाना टर्न ओवर भी सात करोड़ का नहीं बनता। बनता भी हो तो वह ऐलान कर के बताता नहीं। उलटे रोना रोता रहता है कि किताब तो बिकती ही नहीं। हिंदी का प्रकाशक सिर्फ़ दो प्रतिशत लेखकों को ही आधी-अधूरी रायल्टी देता है । इन में भी एक प्रतिशत वह लेखक हैं जो उस प्रकाशक के लिए अमूमन दलाली का काम करते हैं । उलटे कई प्रकाशक तो हिंदी लेखकों से पैसा ले कर किताब छापने में प्रवीण हैं । और यह सब तब है जब हिंदी में बनी शाहरुख खान जैसे वाहियात अभिनेताओं की फ़िल्में भी हफ़्ता भर में करोड़ों रुपए कमा लेती हैं , बल्कि अरबो रुपए। तो यह दुर्भाग्य सिर्फ़ हिंदी की ही किताबों के साथ ही स्थाई भाव बन कर उपस्थित क्यों है ? हिंदी प्रकाशकों की बेईमानी , सरकारी खरीद का दीमक और हिंदी लेखकों की यह कायरता हिंदी को किस ठौर ले जाएगी, भला कौन जानता है ?
- उत्तर प्रदेश हिंदी संस्थान का इस बार का पुरस्कार वितरण किसी जनहित याचिकाकर्ता की दिलचस्पी का विषय भी ज़रुर हो सकता है। नूतन ठाकुर जी , सुन रही हैं क्या ? अब तो आप खुद भी वकील बन गई हैं । मायावती शासनकाल में हिंदी संस्थान के ८२ पुरस्कारों को रद्द कर देने पर मेरे निवेदन पर नूतन जी ने ही जनहित याचिका दायर कर न सिर्फ़ पुरस्कार बहाली करवाई , बल्कि हिंदी संस्थान को बंद करने की मायावती सरकार की साज़िश पर भी लगाम लगवाई थी हाईकोर्ट की मदद से । अब हिंदी संस्थान के इस घपले पर भी नूतन जी को गौर करना चाहिए। क्यों कि जिस तत्थ्य को मैं ने बताया है ऐसा घपला हिंदी संस्थान में पहले कभी नहीं हुआ । और यह घपला ही भर नहीं है , लेखकों की अस्मिता का भी प्रश्न है । Nutan Tsunami Thakur
उत्तर प्रदेश हिंदी संस्थान में इस बार पुरस्कार वितरण में धांधली भी खूब हुई है । इस धांधलेबाजी खातिर पहली बार उत्तर प्रदेश हिंदी संस्थान ने एक फर्जी फोरेंसिक लैब्रोटरी भी खोल ली है । तुर्रा यह कि बीते साल किसी ने इलाहाबाद उच्च न्यायालय में किसी ने याचिका दायर कर दी थी सो इस याचिका कर्ता के भय में लेब्रोटरी में खुद जांच लिया कि कौन सी किताब किस प्रेस से कैसे छपी है और इस बिना पर कई सारी किताबों को समीक्षा खातिर ही नहीं भेजा समीक्षकों को । और इस तरह उन्हें पुरस्कार दौड़ से बाहर कर दिया । क्या तो वर्ष 2014 की छपाई है कि पहले की है कि बाद की है । खुद जांच लिया , खुद तय कर लिया । ज़िक्र ज़रूरी है कि इस बाबत लेखक की घोषणा भी हिंदी संस्थान लेता ही है हर बार । पर इस बार लखकों को झूठा और फ्राड साबित कर अपनी फोरेंसिक लैबोरोट्री भी खोल ली है हिंदी संस्थान ने । किताब पर छपे वर्ष और लेखक कि घोषणा पर यकीन नहीं किया । अंधेरगर्दी कि यह हद है। कि इस बिना पर जिस को चाहो पुरस्कार दो , जिस को चाहो , पुरस्कार न दो । जनता के टैक्स का पैसा अपनी चेले चपाटों और चाटुकारों को बांट देने कि तरकीब है यह तो । निश्चित ही हिंदी संस्थान के इस पुरस्कार वितरण में धांधलेबाजी की सी बी आई जांच भी ज़रूर होनी चाहिए। क्यों कि हिंदी संस्थान भ्रष्टाचार का बड़ा गढ़ बन गया है । और इस के कारिंदे अंधेर नगरी , चौपट राजा की व्यवस्था के पोषक ! तो फिर ऐसे में कैसे कैसे लेखकों को हिंदी संस्थान ने इस बार पुरस्कार दिए हैं यह बहुत तफ़सील का विषय है । लेकिन एक नमूना बलिया के कवि रामजी तिवारी ने अपनी फेसबुक वाल पर लिख कर परोस दिया है । आप भी इसे पढ़िए और गौर कीजिए और कि जानिए कि अपना उत्तर प्रदेश हिंदी संस्थान पुस्कार किन कूड़ा लेखकों को किस आधार पर दे रहा है । कहते हैं न कि हाथ कंगन को आरसी क्या , पढ़े लिखे को फारसी क्या ! तो राम जी तिवारी का लिखा यहां गौर करें :
- [ पहले इस टिप्पणी पर आई प्रतिक्रियाएं और फिर रामजी तिवारी की टिप्पणी और उस पर आई प्रतिक्रियाएं भी पढ़ें । फिर आप जान जाएंगे कि उत्तर प्रदेश हिंदी संस्थान के पुरस्कार वितरण में हुई धांधली को ले कर हिंदी जगत के लोग क्या सोचते हैं और क्यों चिंतित हैं ? और कि आख़िर क्यों मैं इस बाबत सी बी आई जांच की बात कर रहा हूं । ]
- Utpal Pathak, Ajay Shree, Vir Vinod Chhabra and 46 others like this.
- Bodhi Sattva जातिवादी जनवादी और नैतिकता......सबसे बड़ा रुपैया.....दूधनाथ जी तो कल्याण सिंह से मिले 11 हजार नहीं लौटा पाए थे....बाबरी मस्जिद तोड़ने वाली सरकार का पैसा-पुरस्कार हजम किया है...तो यह तो सिंह सरकार का धन है....
- Bodhi Sattva कैसे-कैसे जुगाड़ बैठा होगा...कितनी-कितनी फितरतें ....कितने-कितने फोन और रिरियाहटें....सुनी गई होंगी....जय गुरुदेव...
- Tirath Kharbanda एक पेन बेचने वाली कम्पनी का विज्ञापन आया था कि सब कुछ िदखता है यहाँ साहित्य की मण्डी में तो लगता है सब कुछ
िबकता है ! - Ram Kishore actually puraskar ki shailley hi galat hai.,,.ek rachanakar kyo chahta hai ki shashan usko pooraskrit kare, ,
- Ram Kishore SAMMANIT NAHI HONA CHHAHTA, , PAISA CCHHAHTA HAI AUR BAAT KAREGA NA ZANE KAUN KAUN SE. MARO IN DOOGLO KO
- Kavi Dm Mishra इस सम्बन्ध में प्रो; रामदेव शुक्ल ने ठीक ही लिखा है- कि कौन नहीं
जानता पुरस्कार के इस खेल के आयोजक, प्रायाेजक और खिलाडी कौन हैं । तभी तो
एक कवि को जिस विधा में गत वर्ष पुरस्कार दिया गया उसी में फिर चुन लिया गया , जैसे उसके सिवा दूसरा सुपात्र ही नहो । यहॉ भाई शिवमूर्ति की ''स़जन के रसायन''- प़ष्ठ103पर छपी वह कहानी याद आयी, जिसमें चार मूर्ख एक राजा के दरबार में बडे कवि, लेखक व साहित्यकार के रूप में अशरफियों से तौल दिये गये थे ।
"एक गणमान्य नैष्ठिक व्यक्तित्व के धनी मान्यवदान्य गुरुदेव संत श्री .......... ऎसी ही विभूतियों में से एक हैं । सनातन धर्म से समन्वित रोम-रोम में भारतीय संस्कृति के सौष्ठव रूप को समाविष्ट कर अद्यावधि कीर्ति-कौमुदी से प्रद्योदित है । आपका जीवन मानवीय संवेदनाओं से संपृक्त विनीत वर्चस्वी कायस्थ कुलावन्तश्भूत प्रोज्ज्वल है । समस्त नैतिक गुणों का सामंजस्य आपके सहज स्वभाव और चरित्र के असीमित और अतुलित आयाम में सन्निविष्ट है ।"
- You, Yashwant Singh, शशिभूषण द्विवेदी, Shiv Murti and 73 others like this.
- आचार्य उमाशंकर सिंह परमार भैया गुरुदेव (दूधनाथ सिंह) व ममता कालिया को छोड दीजिए तो आप वहाँ किसिम किसिम के बडभागी पाएँगे ....चार छ: लोगों को मैं भली भाँति जानता हूँ ....कसम से हँसी आती है इन पुरस्कारों पर
- Samar Anarya पढ़ के आग लग गयी है, कहाँ कहाँ प्रज्ज्वलित है यह उद्घाटन सार्वजनिक जगत में समीचीन न होगा.
- Samar Anarya बाकी ऐसे ही एक मिले थे- भोजन प्रतिवेशित हो गया है, ग्रहण करें. हमने कहा - गणवेषित होकर?
- Dinkar Kumar ramji bhai,hamare pradesh ki bhi ek aisi hi kalanidhi ko up sarkar ne puraskar dene ki ghoshna ki hai
- Virendra Jain वह लतीफा तो सुना होगा कि.................. आप तो शहर के मेहमान हैं, हम लाठी लेकर तो उनको तलाश रहे हैं जिन्होंने आपको बुलाया है।
- सिद्धार्थ प्रताप अद्भुत हिंदी उवाच...आयोजकों के समझ से बाहर होने के कारण यह पुरुष्कार डर के मारे दिया गया होगा कि पता नहीं भैय्या क्या रहस्य की बातें लिखी हों और हम अपनी अनभिज्ञता वश इसे पुरुष्कार से वचिंत कर दें बाद में हमारी लंका लग जाये....
- Basant Jaitly रामजी भाई अब इस 'राहुल सांकृत्यायन' पुरस्कार की खबर के बाद अगर मैंने दुबारा " हे राम " कहा तो राम जी अगर कहीं होंगे तो उन्हें हिचकियाँ आने लग जायेंगी... यह पक्का है.
- हृषिकेश चतुर्वेदी भैया ! लागत बा कवनो एलियन के भाषा ह, जवना के देवनागरी में छापल गईल होखे! ---उ साहित्यकार महोदय आदमी ही हउवन नु???????
- Mitra Ranjan अतीव मनोहारी भाषा ! जैसे अनुपम स्वर्गिक सौंदर्य से सुसज्जित हिमालय के दुग्धधवल गगनचुम्बी शिखरों के मध्य से निःसृत पावन गंगा की अविरल निष्कलुष धारा ----समझने के लिए ज्यादा जोर लगाने की जरूरत नहीं, बस हिमालय की कंदराओं की तरफ बढ़ चलिए, थोड़ा ध्यान लगाइये, ज्ञान - चक्षु खुद खुल जायेंगे। … बस जेनेटिक साइंस में अग्रणी भारत के गौरवशाली प्राचीन अतीत में साहित्य (?) का यह पन्ना भी जोड़ देवें। …
- तो क्या यह जमावड़ा सी बी आई जांच के फंदे में घिरे लोगों का जमावड़ा था ? एंटी मोदी जमावड़े में आज कुल पंद्रह सांसदों वाली पांच पार्टियों के नेता गैर भजपा , गैर कांग्रेस मोर्चा बनाने के लिए दिल्ली में मुलायम सिंह यादव के घर लंच पर इकट्ठा हुए। क्या तो 1977 वाली जनता पार्टी को फिर से एकजुट करना है। बेनी प्रसाद वर्मा का इस पर कहना है कि कांग्रेस के बिना मोदी विरोध हो नहीं सकता। वह इस जमावड़े की खिल्ली उड़ाते हुए कहते हैं कि यह तो सी बी आई जांच के फंदे में पड़े लोगों का मंच है। अब अलग बात है कि लालू , चौटाला और मुलायम के अलावा इस जुटान में कोई और तो सी बी आई घेरे में नहीं है। न शरद यादव हैं , न नीतीश कुमार , न देवगौड़ा । खैर जो भी हो इस बहाने लालू फिर फ़ार्म में आ गए हैं , बाक़ायदा अंगरेजी बघारते हुए । मोदी विरोध तो अपनी जगह है , जाने कितना सफल होगा पर खबरिया चैनलों पर मनोरंजन की व्यवस्था एक बार फिर से पक्की है इस में तो कोई दो राय नहीं ।
- मायावती और अखिलेश दास की आज हुई अंत्याक्षरी में मायावती ने कहा कि अखिलेश दास राज्य सभा सदस्यता कंटीन्यू करने के लिए उन्हें दो सौ करोड़ तक देने को तैयार थे फिर भी उन्हों ने मना कर दिया। एक तो राज्य सभा सदस्यता की कीमत अभी इतनी मंहगी हुई नहीं है । दूसरे मायावती की इस मासूमियत पर भला यकीन करेगा कौन ? कि मिल रहा इतना सारा पैसा भी वह भूल कर ठुकरा दें ! रही बात अखिलेश दास की तो उन्हों ने यह तो बताया कि मायावती विधायक के टिकट खातिर दस लाख लेती हैं जब कि लोक सभा के टिकट खातिर एक करोड़ तक लेती हैं। चलिए मान लिया अखिलेश जी । पर आप की इस बात में दम तब ज़रूर आ जाता जब आप यह भी बता देते कि राज्य सभा सदस्यता खातिर बीते टर्म में मायावती को आप ने कितनी रकम और किस तरह दी थी ? पर जाने क्यों आज की तारीख में दिखावटी ही सही लेकिन क्रांतिकारी तेवर दिखाने वाले व्यवसायी अखिलेश दास इस पर चुप रहे । रही बात इस बाबत पत्रकारों द्वारा सवाल पूछने की तो अब हमारे पत्रकार साथी किसी की प्रेस कांफ्रेंस में सवाल पूछने के लिए नहीं जाते , बाईट लेने या अगल बगल खड़े हो कर फोटो खिंचवाने या सेल्फी लेने जाते हैं । लेकिन मायावती के यहां तो सिर्फ़ और सिर्फ़ बाईट ! आगे की हिम्मत या हैसियत हमारी भारतीय मीडिया में किसी एक की भी नहीं है जो कभी किसी मसले पर मायावती से कोई एक सवाल पूछ ले या सेल्फी ही ले ले ! नामुमकिन !
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