कुछ और फुटकर फ़ेसबुकिया नोट्स
-गीताश्री
वैसे यह दोहा थोड़ा नहीं पूरा विरोधाभासी है। एक तो आलोचक नाम की संस्था आज की तारीख में समाप्त हो चली है । दूसरे, इस के नाम पर थोड़ा बहुत जो धोखा बचा हुआ है वह तो लेखक को जब अपने कंधे पर बैठाता है तो पाठक को काट कर ही । लेखक अंधा हो जाता है इन धोखेबाज़ आलोचकों के चलते, पाठक से कट कर उन की ठकुरसुहाती खातिर लिखने लग जाता है। मिसाल एक नहीं अनेक हैं कि संपादक और आलोचक की दुरभि-संधि ने लेखक पाठक रिश्ते को तार-तार कर दिया है।
- बुलाने को तो रामलीला मैदान की रामलीला में भी नरेंद्र मोदी को इस बार बतौर प्रधान मंत्री नहीं बुलाया गया था l लेकिन जामा मस्जिद के इमाम मौलाना बुखारी ने भी अपने बेटे की ताजपोशी में नरेंद्र मोदी को बतौर प्रधान मंत्री नहीं बुलाया तो यह कोई अपराध नहीं किया है l यह उन का अपना निजी मामला है और उन की अपनी पसंद पर मुन:सर है l लेकिन बुखारी ने भारत के मुसलमानों की तरफ से मोदी को चुनौती देने की गरज से पाकिस्तानी प्रधान मंत्री नवाज़ शरीफ को बुला कर अपने को विवाद में ज़रूर डाल लिया है सर्वदा की तरह l यह तो उन की अपनी पुरानी अदा है l तिस पर तुर्रा यह कि बतौर मौलाना या बुखारी कि मोदी ने भी शपथ ग्रहण में नवाज़ शरीफ़ को बुलाया था तो अगर बुखारी देशद्रोही हैं तो मोदी भी देशद्रोही हैं l इस मासूमियत पर कौन न कुर्बान हो जाए ! सार्क की सलाहियत भी स्वाहा है इस तर्क के आगे l खैर , अब इस समारोह में मोदी समेत तमाम आमंत्रित भाजपाई तो नहीं ही जाएंगे , नवाज शरीफ भी पाकिस्तान से आने से रहे l अपने समारोह का ज़ायका बुखारी ने खुद ही बिगाड़ लिया है l लेकिन इस पूरे प्रसंग में तमाम सेक्यूलरिस्टों की भी बांछें जाने क्यों बुखारी की इस अदा पर खिल गई हैं l यह लोग भूल गए हैं कि एक समय यही बुखारी मुसलमानों से भाजपा को वोट देने की अपील कर के भाजपा के चुनावी पोस्टर पर भी छप चुके हैं l यह वही बुखारी हैं जो कभी अफगानिस्तान के तालिबानों के आतंकवादी जेहाद के समर्थन में अपने समर्थन का ऐलान कर चुके हैं l इतना ही नहीं बुखारी की इस मूर्खता और अहंकार के चलते दिल्ली विधान सभा चुनाव में अप्रत्यक्ष रूप से भाजपा को बढ़त और आम आदमी पार्टी तथा कांग्रेस का नुकसान भी तय हो गया है l इस बहाने हिंदू वोट गोलबंद करने में नरेंद्र मोदी और अमित शाह कोई कसर छोड़ेंगे इस में संदेह है l लेकिन मोदी को बुखारी द्वारा न बुलाने को ले कर जिस तरह मुस्लिम मौलाना लोग रिएक्ट कर रहे हैं वह भी देश के लिए शुभ नहीं है l इस से इस बात की तस्दीक भी होती है कि जाने-अनजाने देश की मुख्य धारा से मुसलमान अपने को काट कर अप्रत्यक्ष रूप से पाकिस्तान परस्ती नहीं छोड़ सकते l इन मुसलमानों को समझना चाहिए कि यह देश किसी एक मोदी , किसी एक सोनिया ,किसी एक राहुल गांधी भर का नहीं है l किसी एक भाजपा , किसी एक कांग्रेस का नहीं है l यह देश सवा सौ करोड़ लोगों का पूरा का पूरा है l और इस सवा सौ करोड़ लोगों में देश के सारे मुसलमान भी शुमार होते हैं l और नरेंद मोदी इसी सवा सौ करोड़ लोगों द्वारा चुने गए बहुमत के प्रधान मंत्री हैं l और यह तथ्य किसी मौलाना बुखारी या किसी मुसलमान के ख़ारिज कर देने से खारिज नहीं हो जाता l देश में सहमति या असहमति भी अपनी जगह है l पर सरहद पार पूरा देश एक है और मोदी बतौर प्रधान मंत्री पूरे देश का प्रतिनिधित्व करते हैं l यह बात देश के मुसलमानों को बड़े-बड़े अक्षर में दर्ज कर लेनी चाहिए और कि जान लेना चाहिए कि नरेंद्र मोदी देश के एक निर्वाचित प्रधान मंत्री हैं l किसी भी सूरत में नवाज़ शरीफ नरेंद्र मोदी का कोई विकल्प नहीं हैं, न कभी हो सकते हैं l देश की अस्मिता हिंदू , मुसलमान के तराजू पर नहीं तुल सकती । पाकिस्तान एक आतंकवादी देश है और भारत का दुश्मन देश l लेकिन इस देश के मुसलमान जाने कब इस तरह सोच कर देश की मुख्य धारा में अपने आप को पूरी तरह से जोड़ना पसंद करेंगे ! और जाने कब तक अपने को देश का ज़िम्मेदार नागरिक नहीं सिर्फ़ और सिर्फ़ मुसलमान समझते रहेंगे l
- गुलमुहर के दिन अब चले गए !
- अब इस फोटो को ले कर तरह-तरह के कयास जारी हैं ,अपना-अपना इंटर-प्रटेशन है । कुछ लोगों को लगता है कि मुकेश अंबानी ने मोदी की पीठ पर हाथ रख कर प्रधान मंत्री पद का अपमान कर दिया है। वैसे एक बुझी हुई मुस्कान के साथ अंबानी का दूसरा हाथ भी खाली नहीं है । एक हाथ पीठ पर है मोदी के तो दूसरे हाथ में भी मोदी का एक हाथ ही है । खैर यह बात तो चर्चा के सबब में है नहीं। चर्चा तो पीठ पर रखे हाथ की है ।लेकिन लोग यह क्यों नहीं देख पा रहे कि मोदी नीता अंबानी का हाथ पकड़ कर कुछ ज्यादा ही विह्वल हो गए हैं। तो हो सकता है कि अंबानी मोदी की पीठ पर हाथ रख कर और हाथ , अपने हाथ में ले कर उन्हें और आगे न बढ़ने के लिए रोक रहे हों ! आखिर चीन में एक कहावत है कि इतने उदार भी मत बनिए कि अपनी पत्नी किसी को भेंट में दे दीजिए । इस चित्र को इस आलोक में भी देख लेने में कोई हर्ज़ नहीं है । अंबानी इस चित्र में मंद-मंद मुसकुरा भी रहे हैं तो आप हा हा कर के हंस तो सकते ही हैं यह सोच कर कि इस लोकतंत्र में एक चाय वाला अगर देश का प्रधान मंत्री बन सकता है तो एक चाय वाले के हाथ में एक अति अमीर की बीवी का हाथ भी आ सकता है ! फिर आप नीता अंबानी की खुशी की लंबी लकीरें भी उन के चेहरे पर साफ पढ़ सकते हैं । आप न मान पा रहे हों तो नीता अंबानी की ऐसी ही हर्ष में डूबी एक फोटो विजय माल्या के साथ भी आप पहले देख ही चुके हैं। अब इसी परिकथा में यह दोनों चित्र एक साथ देखिए न ! पर्सनल इज पालिटिक्स कहा ही जाता है। लेकिन सच मानिए हम न तो यहां पर्सनल हो रहे हैं , न पालिटिक्स कर रहे हैं। हम तो जस की तस धर दीनी चदरिया के कायल हो रहे हैं। बस !
- पाठक-आलोचक दोऊ खड़े .,. काके लागूं पाए...
बलिहारी आलोचक की जिन पाठक दियो बताए...!!!
-गीताश्री
वैसे यह दोहा थोड़ा नहीं पूरा विरोधाभासी है। एक तो आलोचक नाम की संस्था आज की तारीख में समाप्त हो चली है । दूसरे, इस के नाम पर थोड़ा बहुत जो धोखा बचा हुआ है वह तो लेखक को जब अपने कंधे पर बैठाता है तो पाठक को काट कर ही । लेखक अंधा हो जाता है इन धोखेबाज़ आलोचकों के चलते, पाठक से कट कर उन की ठकुरसुहाती खातिर लिखने लग जाता है। मिसाल एक नहीं अनेक हैं कि संपादक और आलोचक की दुरभि-संधि ने लेखक पाठक रिश्ते को तार-तार कर दिया है।
- अब यह देखिए एक साथ सेक्यूलर राजनीति और नीरा राडिया दोनों की पैरोकारी करने और तमाम-तमाम चीज़ें साधने वाली चिर कुंवारी बरखा दत्त भी नरेंद्र मोदी की छतरी तले कल की चाय पार्टी में , नरेंद्र मोदी का लुत्फ़ लेती हुई । पावर ब्रोकर कही जाने वाली यह वही बरखा दत्त हैं जो कभी मनमोहन सिंह सरकार के समय प्रधान मंत्री की शपथ के पहले ही ए राजा जैसों को कम्यूनिकेशन मिनिस्ट्री का पोर्टफोलियो मिलने का आश्वासन देती फ़ोन टेप पर पकड़ी गई थीं । इन की पावर ब्रोकरी और सेक्यूलरिज्म के किस्से अनेक हैं । एन डी टी वी में इन का जो जलवा है सो तो है ही तुर्रा यह कि पद्मश्री का खिताब भी है इन के पास। सोचिए कि कभी मेरे साथ भी यह रिपोर्टिंग कर चुकी हैं , जैसे कि कभी राजीव शुक्ल और हम साथ काम कर चुके हैं । लेकिन देखिए राजीव शुक्ला और बरखा दत्त को और हम को भी । हां, हमने पावर ब्रोकरी जो नहीं की। नफ़रत रही और कि है इस कला और इस फ़ितरत से । सिर्फ़ लिखने पढ़ने पर यकीन किया और कि करते हैं । शमशेर लिख ही गए हैं कि , ऐसे वैसे, कैसे कैसे हो गए / कैसे कैसे, ऐसे वैसे हो गए । तो क्या वैसे ही ? फोकट में ?
- तो क्या मोहन भागवत ने सोनिया गांधी की जगह ले ली है ? रिमोट अब भागवत के हाथ आ गया है ?
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