कुछ मुलाकातें, कुछ बातें
[ संगीत, सिनेमा, थिएटर और साहित्य से जुड़े लोगों के इंटरव्यू ]
'भेड़िया गुर्राता है/ तुम मशाल जलाओ/ उस में और तुम में यही बुनियादी फ़र्क है/ भेड़िया मशाल नहीं जला सकता।' सर्वेश्वर दयाल सक्सेना की इस कविता की मशाल अब किस कदर मोमबत्ती में तब्दील हो गई है। यह देखना और महसूस करना बहुत ही तकलीफ़देह है। गुस्सा और विरोध किस तरह रिरियाहट में बदल गया है कि लोग मशाल जला कर भेड़िये को डराने के बजाय मोमबत्ती जला कर समझते हैं कि भेड़िया डर जाएगा। प्रतिपक्ष जैसे भूमिगत है कि जल समाधि ले चुका है, कहना कठिन है। ऐसे में किसी से सवाल पूछना भी साहस नहीं दुस्साहस जैसा लगता है। सवाल के नाम पर जिस तरह की रिरियाहट या मिमियाहट मीडिया में दिखती है वह स्तब्धकारी है। सवाल पूछने का मतलब जवाब देने वाले का ईगो मसाज हो गया है। उस की जी हुजूरी हो गई है। ऐसे त्रासद समय में तमाम लोगों के लिए गए इंटरव्यू पुस्तक रूप में पढ़ना आह्लादकारी तो है ही, व्यवस्था के खि़लाफ़ मशाल जलाना भी है। दयानंद पांडेय ने लगभग सभी क्षेत्रों के लोगों से समय-समय पर इंटरव्यू लिए हैं। अटल बिहारी वाजपेयी, चंद्रशेखर, लालकृष्ण आडवाणी, गोविंदाचार्य, कल्याण सिंह, मुलायम सिंह यादव, मायावती से लगायत लालू प्रसाद यादव और ममता बनर्जी तक तमाम राजनीतिज्ञों के कई-कई इंटरव्यू लिए हैं। लेकिन इस कही-अनकही में राजनीति और ब्यूरोक्रेसी से जुड़े लोगों के इंटरव्यू शामिल नहीं किए गए हैं। उन की तात्कालिकता को देखते हुए। और कि कला और साहित्य के लोगों से जुड़े सारे इंटरव्यू भी इस पुस्तक में शामिल नहीं हैं। बहुतेरे इंटरव्यू समय से खोजे नहीं जा सके। अमिताभ बच्चन ने अपने इंटरव्यू में कहा है कि अगले जनम में वह पत्रकार ही बनना चाहते हैं क्यों कि उन के पास पूछने का अधिकार है। अब अलग बात है कि अमिताभ बच्चन भी किसी पत्रकार को कितना और क्या पूछने देते हैं, यह भी एक सुलगता सवाल है। तो ऐसे निर्मम समय में कही-अनकही का प्रकाशन सोए हुए जल में कंकड़ तो डालेगा ही। साथ ही सर्वेश्वर दयाल सक्सेना की कविता के अर्थ में शायद मशाल भी जलाए। और बताए कि भेड़िया मशाल नहीं जला सकता । और कि मोमबत्ती जला कर भ्रम पालने वालों के मन में भी मशाल सुलगाए और कहे कि मशाल जलाओ! क्यों कि मशाल जलाना भेड़िये की गुर्राहट के खि़लाफ़ सवाल भी है।
[ किताब के फ्लैप से ]
यह लिंक भी पढ़ें
No comments:
Post a Comment