कुछ फेसबुकिया नोट्स
- दो साल पहले जब दिल्ली में निर्भया के साथ दुर्भाग्यपूर्ण घटा था, तत्कालीन सरकार ने लीपापोती की थी और सिंगापुर में उस का निधन हो गया था। लेकिन तब जो गुस्सा दिल्ली में फूटा था वह गुस्सा अब कहीं बिला गया है। अगर वह गुस्सा बरकरार रहा होता तो यह जो आए दिन कहीं न कहीं, किसी न किसी बहन या बेटी के साथ दुर्भाग्यपूर्ण घट रहा है नहीं घटता। और अब तो जैसे लगता है कि लोग नपुंसक हो गए हैं। इन घटनाओं के प्रति लोगों का गुस्सा अब सड़क पर नहीं दिखता, नहीं फूट्ता। l लखनऊ में मोहनलाल गंज की दुर्भाग्यपूर्ण घटना के बाद आज मुलायम सिंह जैसे नेता आंकड़ों की ढाल ले बैठे और कहने लगे कि २१ करोड़ की आबादी वाले उत्तर प्रदेश में यह बलात्कार का आंकड़ा बहुत कम है। इसी तरह कुछ दिन पहले बलात्कार में फांसी पाए लोगों की पैरवी में वह कह रहे थे कि बच्चे हैं, बच्चों से गलती हो जाती है। उन को फांसी नहीं दी जानी चाहिए ।
- साहित्य में पुरस्कार से ले कर थाने में दरोगा और सिपाही तक , पी सी एस परीक्षा से लगायत स्कूलों में प्रिंसिपल के चयन तक में यादवीकरण और हर प्राइज पोस्टिंग पर यादव राज जब तक जारी रहेगा , मुजफ्फर नगर , मुरादाबाद , बदायूं और मोहनलालगंज जैसी दरिंदगी होती रहेगी । औरत नोची और मारी जाती रहेगी , लोग गाजर मूली की तरह काटे जाते रहेंगे, सड़कें गड्ढा बनती रहेंगी , बिजली ऐसे ही रुलाती रहेगी और हर किसी का हेन-तेन होता रहेगा । कुछ कर लेंगे आप ? तो कर लीजिए ! यह तो नहीं सुधरने वाले ! यादव दुंदुभी तो बजती रहेगी । जी हां, भाषा में भदेस यह उत्तर प्रदेश है !
- अखिलेश यादव इस कानून व्यवस्था को ठीक से संभाल लीजिए नहीं अब आप के राज को लोग लतिया देंगे ! यह लखनऊ के मोहनलालगंज में जो नंगा नाच हुआ है वह आप के मुंह पर कालिख है और जूता भी !
- नृपेंद्र मिश्र मसले पर मायावती के साथ-साथ मुलायम सिंह यादव ने भी राज्यसभा और लोकसभा दोनों जगह भाजपा की मोदी सरकार को समर्थन दिया है । पूर्ववत जैसे दोनों यूं पी ए सरकार को देते थे वैसे ही अब एन डी ए सरकार को समर्थन देने लगे हैं । अच्छा तब तो यह जोर था कि कम्यूनल फोर्सेज को रोकना है ! यह लाचारी थी , चलिए मान लिया । पर अब किस फोर्स को रोकने की लाचारी है भाई ? वास्तव में सपा , बसपा हो, भाजपा , कांग्रेस हो या कोई और पार्टी , मुद्दा तो अब किसी के पास नहीं है । सब के पास बस अपनी सुविधा और स्वार्थ की राजनीति है । बाकी बातें तो बस जनता को बरगलाने के लिए ही हैं । न मायावती के पास अंबेडकर हैं न मुलायम के पास लोहिया , न भाजपा के पास दीनदयाल उपाध्याय हैं न कांग्रेस के पास गांधी । न उन के पास माओ हैं न इन के पास मार्क्स । हां, तिजोरी और तिजारत ज़रूर सब के पास है लेकिन मुद्दे के नाम पर सब के कुंएं में भांग पडी है ।
- अपना बोया हुआ खेत भाजपा लगातार जोत रही है । मंहगाई बढ़ाने वाले बजट से अभी छुट्टी मिली भी नहीं थी कि दिल्ली में विधायक खरीद कर सरकार बनाने के खेल में वह लथपथ हो गई दिखती है । यह अग्निपथ संघर्ष का नहीं मुंह पर कालिख पोतने का है। लेकिन सत्ता के मद में मदमस्त भाजपा बउरा गई है । आयाराम-गयाराम के खेल में वह अभी तो अपने को भले विजेता मान ले पर आने वाले दिनों में उस के मुंह पर सिर्फ कालिख ही कालिख दिखेगी । राजनीति में शुचिता का बैंड बजाने वाले लोग तात्कालिक रूप से भले सफल दिखते हों पर अंत उन का रावण की तरह ही होता है । एक नहीं अनेक उदाहरण हैं । भजन लाल की याद कीजिए । कि जीत कर आए थे हरियाणा विधान सभा में देवी लाल । पर मुख्यमंत्री बने कांग्रेस के भजन लाल । यह आया राम , गया राम का खेल तभी शुरू हुआ था । फिर यह तो राम नाम की दुकानदारी वाली पार्टी है यह ! दुकान राम नाम की और कृत्य रावण का ? लोकतंत्र की सीता का यह अपहरण बहुत निर्लज्ज आचरण है । लेकिन क्या कीजिएगा एक शायरा थीं तस्नीम सिद्दीकी । उन का एक मिसरा है , ' जितने रावण मिले राम के वेश में ! ' होंगे हज़ार ऐब अरविंद केजरीवाल में मगर राजनीतिक शुचिता का पाठ तो वह भारत की राजनीतिक पार्टियों को पढ़ाने के लिए काफी है ! लेकिन यह जो भी हो रहा है लोकतंत्र के मुंह पर कालिख भी है और जूता भी !
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