दयानंद पांडेय
मुलायम सिंह यादव जब पहली बार मुख्य मंत्री बने तो उत्तर प्रदेश सचिवालय से अंगरेजी के सारे टाइपराइटर बाहर करवा दिए। फरमान जारी कर दिया गया कि अब सारे काम हिंदी में ही होंगे। अंगरेजी में नहीं। मुलायम की जय-जय होने लगी। मुलायम के इस एक फ़ैसले से गदगद एक पत्रकार वेद प्रताप वैदिक ने तो एक लेख ही लिख दिया। शीर्षक था - नाम मुलायम , काम कठोर ! मुलायम वैदिक के इस लिखे से इतने प्रसन्न हुए कि किसिम-किसिम से उन्हें समय-समय पर उपकृत करते रहे। तब के दिनों लाखों रुपए की आर्थिक मदद की। लगातार करते रहे। राजनीतिक और सामाजिक सम्मान भी ख़ूब दिया वैदिक को। फिर तो नाम मुलायम , काम कठोर के नारे के साथ मुलायम की बड़ी-बड़ी फ़ोटो के साथ तमाम पोस्टर और विज्ञापन भी दिखने लगे। लगातार। यह 1989 की बात है।
तब अपनी सभाओं में मुलायम बताते थे कि अंगरेजी में कामकाज करने में भ्रष्टाचार बहुत है। हिंदी के कामकाज में भ्रष्टाचार संभव नहीं है। अपनी इस बात के समर्थन में मुलायम उत्तर प्रदेश सचिवालय का एक क़िस्सा सुनाते थे। एक आई ए एस अफ़सर थे पाठक जी। पी डब्लू डी जैसे कमाऊ विभाग में सचिव थे। बहुत ईमानदार थे। डेड ऑनेस्ट। कीर्ति इतनी थी कि रिश्वत दे कर उन से कोई काम नहीं करवा सकता था। एक बार किसी काम के ठेके की फ़ाइल आई , जिसे पाठक जी ने रिजेक्ट कर दिया। ठेका बहुत बड़ा था सो बाद में ठेकेदार पाठक जी से मिलने सचिवालय पहुंचा। पाठक जी मिलने के लिए तैयार नहीं थे। पर किसी तरह पाठक जी के पी ए की मान-मनौव्वल कर के पाठक जी से मिलने का समय पा गया। पाठक जी मिले। ठेकेदार ने पाठक जी के सामने अपना पक्ष रखा। पाठक जी ठेकेदार की बात से सहमत हो गए। पर बोले कि अब तो फ़ाइल पर आदेश कर दिए हैं। अब कुछ नहीं हो सकता। पाठक जी से मिलने के बाद ठेकेदार उन के कमरे से बाहर आया। और पी ए से बोला , साहब मेरी बात से सहमत तो हो गए हैं। पर कह रहे हैं कि फ़ाइल पर आदेश कर दिया है। अब कुछ नहीं हो सकता।
पी ए ने ठेकेदार से कहा कि अगर साहब आप की बात से सहमत हैं तो आप का काम हो सकता है। ठेकेदार ने उछलते हुए पूछा कि कैसे ? पी ए ने कहा , यह मैं आप को नहीं बता सकता। साहब अगर मुझ से पूछें तो उन्हें बता दूंगा। ठेकेदार ने यह बात पलट कर पाठक जी से मिल कर बताई। पाठक जी ने पी ए को बुलाया। पूछा कि कैसे हो सकता है ? पी ए ने उन्हें फ़ाइल दिखाई जिस पर पाठक जी ने आदेश अंगरेजी में लिखा था कि नाट एक्सेप्टेड ! पी ए ने बताया कि इस आदेश में सिर्फ़ एक अक्षर बढ़ाना पड़ेगा। एन ओ टी नाट में टी के आगे बस एक अक्षर ई बढ़ाना पड़ेगा। नाट एक्सेप्टेड , नोट एक्सेप्टेड हो जाएगा। फिर जिस पेन से नाट एक्सेप्टेड लिखा गया था , वह पेन और वह स्याही खोजी गई। नाट , नोट बन गया। नोट एक्सेप्टेड हो गया। मुलायम सिंह बताते थे कि अगर यही आदेश फ़ाइल में हिंदी में लिखा गया होता , अस्वीकृत ! तो अस्वीकृत को बदल कर स्वीकृत लिखना मुश्किल हो जाता। माना कि पाठक जी ईमानदार अफ़सर थे। पर सभी अफ़सर तो ईमानदार नहीं होते। तो हिंदी में भ्रष्टाचार नहीं हो सकता।
अब अलग बात है कि बहुत जल्दी ही मुलायम सिंह खुद महाभ्रष्ट मुख्य मंत्री में शुमार हो गए। मायावती और मुलायम के बाद अब अखिलेश यादव भी महाभ्रष्ट मुख्य मंत्री में शुमार हैं। मुलायम ने तो अपने दो मुख्य सचिव भी ऐसे लोगों को नियुक्त किया था जिन्हें आई ए एस एसोशिएसन ने ही महाभ्रष्ट घोषित किया था। एक अखंड प्रताप सिंह और दूसरी नीरा यादव। यह दोनों ही अफ़सर भ्रष्टाचार के आरोप में जेल गए। नीरा यादव के भ्रष्टाचार की जांच के लिए मुर्तुजा हुसैन आयोग भी बना था। जो भी हो मुलायम सिंह जोड़-तोड़ कर , मोदी के आगे घुटने टेक कर जेल जाने से अभी तक बचे हुए हैं। पर आय से अधिक अरबों रुपए के मामले में पूरा मुलायम परिवार जांच के घेरे में है। मुलायम पर यह जांच का फंदा कांग्रेस सरकार में कसा गया था। सोनिया गांधी ने कसवाया था। सी बी आई आज भी चाह ले तो लालू की तरह पूरा मुलायम परिवार जेल की चक्की पिसे। पर कहते हैं गुजरात दंगों के दरम्यान मुलायम ने बैक डोर से मोदी की मदद की थी। मुसलमानों को ख़ुश करने के लिए सिर्फ़ हवाई फायरिंग करते रहे। मुलायम के तब के लोकसभा में दिए गए भाषण इस बात के साक्षी हैं। मेरे पास वह सारे भाषण हैं। मैं ने बहुत ध्यान से पढ़े हैं। तो मोदी वही कर्ज अभी तक उतार रहे हैं।
ख़ैर हिंदी के बाबत मुलायम का यह भाषण सुन कर तब के दिनों लोग मुलायम की जय-जयकार करने लगते। यह वही दिन थे जब मुलायम को लोग धरती-पुत्र भी कहते थे। शुरु में मुलायम ने और भी कई लोकलुभावन फ़ैसले किए। पर जल्दी ही मुलायम के समाजवादी व्यक्तित्व पर यादव भारी पड़ गया। पहले वह यादववाद के जातिवादी रंग में गाढ़े हुए। फिर मुस्लिम रंग को साथी बनाया। इतना कि वह मुल्ला मुलायम कहे जाने लगे। फिर अयोध्या में कार सेवकों पर गोली चलवा कर , परिंदा भी पर नहीं मार सकता जैसे बयान जारी कर बदनाम होने लगे। हनुमान भक्त मुलायम अब राम के विरोधी घोषित हो गए। अमर सिंह समाजवादी पार्टी में आ गए। अमर सिंह ने उन्हें अंबानी और सहारा ग्रुप से मिलवा दिया। अब मुलायम लोहिया की संचय के खिलाफ होने के सिद्धांत के विपरीत संचय की बात सोचने लगे। अंबानी और सहारा के एजेंट बन गए। अपरंपार संपत्ति के मालिक बन गए। अरबों का साम्राज्य। पूरा परिवार अरबपति हो गया। लखनऊ में , इटावा में , दिल्ली में , मुंबई में बेहिसाब संपत्तियां हो गईं। लखनऊ का समूचा विक्रमादित्य मार्ग अब लगभग मुलायम परिवार का है। दो-चार सरकारी बंगले , ऑफिस और एक कालेज छोड़ कर विक्रमादित्य मार्ग के सारे बंगले मुलायम परिवार के नाम रजिस्ट्री है। भाई , बहू , पत्नी , भतीजों आदि के नाम। लोग स्विस बैंक में पैसा जमा करते हैं। मुलायम ने लखनऊ में राज भवन के ठीक सामने अपना एक बड़ा सा भवन ही एक विदेशी बैंक को किराए पर दे दिया। यह भवन डिम्पल यादव के नाम दर्ज है। अमर सिंह ने मुलायम को सिर्फ़ भ्रष्ट ही नहीं , अय्यास भी बना दिया। सरकारी खर्च पर सैफई महोत्सव होने लगा। पत्रकारों , लेखकों , कलाकारों को यशभारती भी मिलने लगा। सब का मुंह बंद रहने लगा। यश भारती के बाद पचास हज़ार महीना पेंशन भी मिलने लगी।
जैसे इतना ही काम , कम पड़ रहा था। समाजवादी गुंडई की भी पराकाष्ठा हो गई। नाम मुलायम , काम कठोर का शीर्षक बदल कर नाम मुलायम , गुंडई क़ायम ! में तब्दील हो गया। यही वह दिन थे जब बहुजन समाज पार्टी की मायावती कहने लगी थीं , नारा बना दिया था : चढ़ गुंडन की छाती पर , मुहर लगेगी हाथी पर ! यही वह दिन थे जब उत्तर प्रदेश की सत्ता ताश की तरह कभी बसपा , कभी सपा की होती रही। 2012 में अखिलेश ने सौतेली मां की बिना पर मुलायम को ब्लैकमेल किया और मुख्य मंत्री बन गए। पिता की तरह अखिलेश ने भी शुरु में कई लोक लुभावन काम किए। जैसे इंटर पास कर ग्रेजुएट की पढ़ाई करने वाले छात्रों को लैपटॉप देना , बहुत ही क्रांतिकारी फ़ैसला था। गांव के गरीब छात्रों के हाथ में भी मोबाइल नहीं न सही , लैपटॉप दिखने लगा था। अमीर-गरीब की खाई लैपटॉप के मामले में बहुत कम हो गई। दलित , ब्राह्मण हर किसी ग्रेजुएट छात्र के हाथ में लैपटॉप। बस लखनऊ में देखा कि लैपटॉप वितरण के मामले में मुस्लिम बहुल छात्रों वाले स्कूलों को प्राथमिकता दी गई।
भले पैसा कमाने का लक्ष्य था पर ताज एक्सप्रेस वे भी अखिलेश की उपलब्धियों में शुमार है। पहले नंबर पर। गुजरात के साबरमती रिवर फ्रंट की तर्ज पर ही सही , नकल ही सही , गोमती रिवर फ्रंट भी बढ़िया काम रहा अखिलेश का। जे पी इंटरनेशनल सेंटर , मुख्य मंत्री का नया कार्यालय लोक भवन समेत कई सारे सरकारी भवन अखिलेश राज में बने। सूचना निदेशालय , बटलर पैलेस में गेस्ट हाऊस , डालीबाग में नया विधायक निवास भी अखिलेश राज में बने। बस गड़बड़ यही हुई कि अरबों रुपए के इन सभी निर्माण में दो ही तरह के ठेकेदार थे। एक यादव और दूसरे , मुस्लिम। कोई तीसरा नहीं। डट कर यादव और मुस्लिम ठेकेदारों ने मलाई काटी और अखिलेश की भी जेब भरी। आज की तारीख़ में अखिलेश के पास 40 करोड़ की घोषित संपत्ति है। करहल के नामांकन में अखिलेश ने शपथ पूर्वक यह बताया है। यह घोषित संपत्ति है। अघोषित के लिए इस में तीन , चार शून्य और जोड़ लीजिए। अब उस को टाइल , टोटी और इत्र चाहे जिस खाते में जोड़ कर देख लीजिए। फ़िलहाल 40 करोड़ रुपए ही मान लेते हैं। पर यह 40 करोड़ भी इतनी कम उम्र में ही जाने कौन सा रोजगार कर कमाया अखिलेश यादव ने। वह ही बता सकते हैं। पर अखिलेश यादव ने अपने कार्यकाल में बेहिसाब पैसा कमाया , यह तथ्य है। अखिलेश यादव ने अपने कार्यकाल में यादववाद की ऐसी दुर्गंध फैलाई कि उस की बदबू आज तक नहीं गई है। यादव और मुस्लिम समाज को इतना अराजक और मनबढ़ बना दिया कि पूछिए मत। यह बेहिसाब है। मुजफ़्फ़र नगर दंगा और कैराना का पलायन आज तक मिसाल बन कर उपस्थित है। किसान आंदोलन ने पश्चिमी उत्तर प्रदेश में अगर माहौल भाजपा के ख़िलाफ़ न बनाया होता तो अखिलेश पश्चिमी उत्तर प्रदेश , ख़ास कर मुजफ़्फ़र नगर बेल्ट में मुंह नहीं दिखा पाते। अखिलेश यादव सरकार के दो मंत्री अभी तक जेल में हैं। रेत माफिया के रुप में कुख्यात गायत्री प्रजापति मंत्री रहते एक नाबालिग लड़की से बलात्कार के जुर्म में सज़ायाफ्ता हो चुके हैं। भारत मां को डायन बताने वाले आज़म ख़ान भी जब सज़ायाफ्ता घोषित हो जाएं। सज़ायाफ्ता होने के दरवाज़े पर खड़े हैं।
आज़म खान जो मुलायम सिंह यादव की सरकार में मंत्री बना और अखिलेश यादव सरकार में भी। दोनों ही के सरकार में सुप्रीमो बन कर रहा। मंत्री रहते हुए भी पूरी दबंगई से भारत मां को डायन कहता रहा। मुजफ्फर नगर जैसे दंगे करवाता रहा। सीधे पुलिस को आदेश देता रहा। दंगाइयों को छोड़ने का ग़लत आदेश न मानने पर मुजफ्फर नगर के डी एम और एस पी को एक साथ हटा दिया। इस तरह दंगाग्रस्त मुजफ्फर नगर दो दिन तक बिना डी एम और एस पी के जलता रहा। न मुलायम कभी रोक-टोक कर सके , न अखिलेश यादव। क्यों कि मुस्लिम वोटों का साहूकार था आज़म ख़ान। अब वही आज़म ख़ान जेल में है। पत्नी और बेटे को ज़मानत मिल गई है। आज़म ख़ान को नहीं मिल रही। अब आज़म सहित बेटा और पत्नी भी चुनाव मैदान में हैं। मामले बहुत हैं। तो पश्चिमी उत्तर प्रदेश में मुजफ्फर नगर का दाग़ अखिलेश अभी तक नहीं धो सके हैं। इस बाबत सवाल पूछने पर वह जवाब टाल देते हैं। किसानों की , मंहगाई की , बेरोजगारी की बात करने लगते हैं।
फ़िराक़ गोरखपुरी में शराब सहित बहुतेरे ऐब थे। पर उन की शायरी का क़द इतना बड़ा था , मेयार इतना बड़ा था कि लोग उन के सारे ऐब भूल जाते हैं , उन की शायरी को याद रखते हैं। ज़िंदगी नींद भी कहानी भी / हाय क्या चीज़ है जवानी भी ! में खो जाते हैं। ठीक वैसे ही अखिलेश यादव और मुलायम राज की गुंडई , यादववाद और मुस्लिम तुष्टीकरण की घटनाएं इतनी ज़्यादा हो गई हैं कि उन के कुछ अच्छे काम भी लोग भूल जाते हैं। याद रखते हैं कि हर थानेदार यादव , हर ठेकेदार यादव या मुस्लिम , हर मलाईदार पोस्ट पर यादव। हर भर्ती में यादव। मुख़्तार अंसारी जैसे अपराधियों के साथ जेल में डी एम , एस पी का बैडमिंटन खेलने जाना लोग याद रखते हैं।
लखनऊ जैसी जगह की जेल में ताज़ी मछली खाने के लिए मुख़्तार अंसारी द्वारा तालाब खुदवाना भी लोग नहीं भूल पाते। अतीक अहमद और मुख़्तार अंसारी द्वारा तमाम ज़मीनों पर कब्जे कर लेना , हर सरकारी ठेका पट्टा उन का ही होना लोग भूल ही रहे होते हैं कि योगी राज में उन की अरबों की जागीर पर बुलडोजर चलवाना याद दिलवा देता है। इन के द्वारा चलाए जा रहे अपहरण उद्योग और तमाम हत्याओं के मामले याद आ जाते हैं। जो हर बार यादव शासन काल में परवान चढ़ते रहते थे। अखिलेश , मुलायम के कुछ अच्छे काम भी उन के गुंडा राज की भेंट चढ़ जाते हैं। जयंत चौधरी अभी अखिलेश यादव के साथ गठबंधन में हैं। किसान आंदोलन से उपजी जाटों में नाराजगी को मुस्लिम वोट बैंक में जोड़ कर सत्ता की चाशनी चाटना चाहते हैं। पर इन्हीं जयंत चौधरी के पिता अजित सिंह कभी सार्वजनिक रुप से कहते फिरते थे जिस गाड़ी में सपा का झंडा , उस गाड़ी के अंदर गुंडा ! पर जयंत चौधरी भूल गए हैं।
लेकिन पश्चिमी उत्तर प्रदेश के जाट समुदाय के लोग भी क्या अपनी बहन , बेटियों के साथ सपा काल में हुए बलात्कार और अनाचार भूल गए हैं ? यह यक्ष प्रश्न है।
मुझे नहीं लगता।
ठीक वैसे ही यादव शासन का यादववाद , गुंडई और मुस्लिम तुष्टिकरण का पहाड़ समूचे उत्तर प्रदेश के लोग नहीं भूले हैं। भूल भी सकेंगे कभी , मुझे नहीं लगता। यह ठीक है कि कुछ लोग योगी राज से भी नाराज हैं। लेकिन योगी राज के बुलडोजर ने उन्हें बहुत आश्वस्त किया है। माफिया राज पर ब्रेक और ला एंड आर्डर के लिए लोग मायावती राज को भी याद करते हैं पर योगी राज का बुलडोजर बेमिसाल है। मुस्लिम तुष्टिकरण के लिए लोग मायावती को भी याद करते हैं। उस से ज़्यादा मायावती के भ्रष्टाचार को। योगी राज में भी उन्नाव का सेंगर मामला , चिन्मयानंद , हाथरस और लखीमपुर मामले को लोग नहीं भूलेंगे। नहीं भूलेंगे कोरोना के दूसरी लहर के समय समूचे सिस्टम का चरमरा जाना भी। लेकिन जब मायावती , मुलायम , अखिलेश राज के भ्रष्टाचार , जातिवाद और मुस्लिम तुष्टिकरण को याद करते हैं तो योगी सामने आ कर खड़े हो जाते हैं। यादव राज की गुंडई और लचर क़ानून व्यवस्था याद आती है तो लोगों के सामने फिर योगी खड़े हो जाते हैं। अपनी कुछ कमियों के बावजूद योगी उत्तर प्रदेश में सुशासन और अपने कठोर फैसलों के लिए सर्वदा याद किए जाएंगे। अभी जिस तरह उन्हों ने मुजफ़्फ़र नगर और कैराना में मई में भी शिमला याद दिलाने की बात की है , इस का संदेश भी बहुत दूर तक गया है। किसी चैनल पर कानपुर के गुंडे विकास दुबे के गांव बिकरु से रिपोर्ट आ रही थी। लोग योगी से बहुत नाराज थे। पर कह रहे थे , वोट तो लेकिन योगी को ही देंगे। मजबूरी है। क्या करें।
मैं गोरखपुर का रहने वाला हूं। एक बार गोरखपुर में किसी शादी में बारात की प्रतीक्षा में बैठे लोग बात कर रहे थे। ज़्यादातर लोग योगी से बहुत नाराज थे। किसिम-किसिम की शिकायतें थीं। उन दिनों योगी मुख्य मंत्री नहीं , सांसद थे। बात सुनते-सुनते मैं हस्तक्षेप कर बैठा। पूछा कि जब यहां आप लोग योगी से इतने नाराज हैं तो योगी चुनाव कैसे जीत जाते हैं। लगातार चुनाव जीते जा रहे हैं। कौन वोट देता है भला ? वहां उपस्थित लोग हंसने लगे। कहने लगे , योगी से हम लोग नाराज भले जितना हों पर वोट तो योगी को ही देते हैं। क्यों कि योगी बहुत ज़रुरी हैं , हम लोगों के लिए। गोरखपुर के लिए। इस लिए कि योगी के कारण यहां के दंगाई क़ाबू में रहते हैं। गोरखपुर में कभी दंगा आदि नहीं होता। शांति से रहते हैं , हम लोग। डर कर नहीं रहते किसी से हम लोग। मुझे लगता है , गोरखपुर का यह मंज़र अब समूचे उत्तर प्रदेश पर तारी है। उत्तर प्रदेश में कोई दंगा बीते पांच सालों में तो नहीं हुआ है। सी ए ए को ले कर जो उत्पात हुआ , उस पर भी कड़ी कार्रवाई और चौराहों पर लगे उत्पातियों के पोस्टर और रिकवरी की कार्रवाई ने उत्पातियों की रीढ़ तोड़ दी है। अब किसी की हिम्मत नहीं है योगी राज में सरकारी संपत्ति जलाने की। तोड़-फोड़ की। योगी की इसी अदा ने कुछ लोगों की नींद उड़ा दी है तो तमाम लोगों का दिल जीत लिया है। तिस पर मोदी की जादूगरी। मुफ्त राशन , गरीबों को पक्का मकान , शौचालय , गैस , बिजली की अबाध आपूर्ति आदि भी क्या अखिलेश यादव के खाते में जाएगा ? अच्छा कोई सोच सकता था कभी कि आज़म खान जैसा सुपर शक्तिशाली व्यक्ति भी कभी सपरिवार ऐसे जेल जा सकता है और इतने लंबे समय तक के लिए।
योगी राज में ही मुमकिन था।
इन्हीं सारी चीज़ों ने अखिलेश यादव को बौखलेश यादव में कनवर्ट कर दिया है , बिना किसी कनवर्टर के। अच्छा आप ही बताइए कि दुनिया की कौन सी टाइल है , जो उखाड़ने के बाद भी लग जाए ? पर अखिलेश यादव ने कहा कि इस सरकारी आवास में मैं ने अपने पैसे से टाइल , टोटी लगाई थी , सो ले गया। अब तो खैर टीपू यादव के अलावा अब एक नाम उन का टोटी यादव भी है। टोटैशियम भी कहने लगे हैं लोग। बौखलेश हो ही गए हैं। प्रेस कांफ्रेंस में पत्रकारों से खुलेआम कह रहे हैं कि आप लोग सपा के पक्ष में लिखिए , यश भारती दूंगा। यश भारती दे कर पचास हज़ार रुपए महीने की पेंशन का इंतज़ाम भी वह परोस ही रहे हैं। अभी कोई दो सौ करोड़ रुपए इत्र व्यापारी प्रवीण जैन के यहां से नकद जब मिला , पचीस किलो सोना भी तो अखिलेश यादव ने कहा कि प्रवीण जैन को नहीं जानते वह। उस से कुछ लेना-देना नहीं।
अखिलेश यादव अकसर आरोप लगाते हैं कि योगी ने अपने ऊपर चल रहे सारे मुकदमे वापस ले लिए हैं। लेकिन योगी ने अभी एक इंटरव्यू में कहा है कि उन्हों ने अपने ऊपर से कोई मुक़दमा वापस नहीं लिया है। अखिलेश यादव को इस बिंदु पर काम करना चाहिए। अगर वह साबित कर ले जाएं कि योगी ने अपने मुकदमे वापस ले लिए हैं तो योगी नंगे हो जाएंगे। फिर अखिलेश को इस चुनाव में भारी फ़ायदा मिलेगा। हां , अखिलेश को यह भी ज़रुर बताना चाहिए कि आख़िर उन की ऐसी क्या मज़बूरी थी कि उन्हों ने आतंकियों के मुकदमे वापस लेने की प्रक्रिया शुरु की थी , जिस पर हाईकोर्ट ने लगाम लगा दिया था। अखिलेश यादव को यह भी बताना चाहिए कि आख़िर ताज़ एक्सप्रेस बनवाने में कई बार रुट बदल कर अरबों रुपए का मुआवजा दे कर उन्हों ने किसे उपकृत किया और उस में उन का कितना हिस्सा था। क्यों कि पूर्व आई ए एस सूर्य प्रताप सिंह ने सेवा में रहते हुए ही विभिन्न आरोप लगा कर सिद्ध किया था कि कैसे ताज एक्सप्रेस वे में आने वाली ज़मीनें एक्वायर करने के पहले गिनती के चार-छ लोगों ने ख़रीद ली थीं। दूर-दूर तक। और फिर भारी मुआवजा लिया। खास कर इटावा के आसपास। पहले ताज एक्सप्रेस इटावा की तरफ से बनना भी नहीं था। बाद में इटावा और सैफई की तरफ शिफ्ट किया गया था। अखिलेश यादव एक आरोप और लगाते हुए कहते हैं कि बाबा मुख्य मंत्री को लैपटॉप चलाने नहीं आता। क्रिकेट खेलने नहीं आता। बताइए कि भला यह भी कोई आरोप है ? पर अखिलेश यादव हैं , सो कुछ भी कह और कर सकते हैं।
सैफई हवाई पट्टी पर जहाज से मैं भी उतरा हूं। पर आज तक नहीं समझ पाया कि सैफई महोत्सव में फ़िल्मी कलाकारों के चार्टर्ड प्लेन से आने और मुलायम परिवार के सरकारी प्लेन या चार्टर्ड प्लेन से आने के अलावा इस का क्या उपयोग है ? भारत में किसी के गांव के घर में भी लिफ्ट लगने की घटना भी मेरी जानकारी में सिर्फ़ मुलायम के गांव का घर ही है। अखिलेश यादव को अपने बौखलेशपन में भी इन प्रश्नों का ज़रुर कभी जवाब देना चाहिए। बाक़ी इस पूरे घमासान में अखिलेश यादव के लिए एक अच्छी ख़बर यह है कि जिस पिता मुलायम की पीठ में छुरा घोंप कर पूरी पार्टी हथिया ली , उसी पिता की राजनीतिक कमाई मैनपुरी के करहल से अखिलेश यादव यह चुनाव एकतरफा जीतने जा रहे हैं। केंद्रीय राज्य मंत्री और मुलायम की रक्षा में कभी रहे एस पी बघेल अपनी ज़मानत बचा ले जाएं , यही बहुत है। करहल वही जगह है जहां के जैन कालेज में मुलायम पढ़े और पढ़ाया भी। पहला चुनाव भी यहीं से जीता था।
तो मुलायम का गढ़ है करहल।
अखिलेश को यही सीट सुरक्षित सूझी। लेकिन मुलायम का वह वीडियो इन दिनों फिर वायरल है , जिस में वह कह रहे हैं कि किसी ने अपने बेटे को मुख्य मंत्री नहीं बनाया। लेकिन मैं ने बनाया। और बेटे ने मेरे साथ क्या किया ? इसी वीडियो में मुलायम अखिलेश के लिए कहते हैं कि जो अपने बाप का नहीं हो सकता , किसी का नहीं हो सकता। चाचा को मंत्रिमंडल से निकाल दिया। ऐसा कोई सगा नहीं , जिस को अखिलेश ने ठगा नहीं ! मैं ऐसे ही नहीं कहता। सोचिए यही चाचा शिवपाल हैं जब अखिलेश को ले कर अखिलेश का नाम स्कूल में लिखवाने गए तो घर का नाम टीपू था। यह हुआ कि स्कूल में क्या नाम लिखा जाए ? तो शिवपाल यादव ने ही अखिलेश यादव नाम लिखवा दिया। अखिलेश नाम देने वाले , चाचा शिवपाल का क्या किया अखिलेश ने सब जानते हैं।
बीच चुनाव में छोटे भाई प्रतीक की बहू अपर्णा क्यों भाजपा में चली गई ? ऐसी क्या मज़बूरी थी भला। बात फिर वही कि जो अपने बाप का नहीं हो सकता , किसी का नहीं हो सकता। पर करहल फ़िलहाल अखिलेशमय है। यादव और मुस्लिम बहुल है करहल। अखिलेश के लिए किसी हेलमेट की तरह भरपूर सुरक्षित। अखिलेश को सुरक्षा देने खातिर। हां , लेकिन उत्तर प्रदेश ऐंटी इंकम्बैसी के बावजूद अखिलेशमय नहीं हुआ है। क्यों नहीं हुआ है , अखिलेश को इस बिंदु पर ज़रुर सोचना चाहिए। सोचना यह भी चाहिए कि गुंडई और मुस्लिम तुष्टिकरण की छवि तोड़ कर , सपा इस से कैसे और कब बाहर निकलेगी। निकलेगी भी कभी ? नाम मुलायम , गुंडई क़ायम का तत्व अखिलेश काल में भी मुसलसल क्यों जारी है। कब तक जारी रहेगा ? क्यों कि कई सारे इलाक़ों से यादवों और मुसलमानों के वीडियो अभी से वायरल हैं , जिन में लोगों को धमकी दी जा रही है , पुलिस तक को कि बस हमारी सरकार बन जाने दो , तब देख लेंगे तुम को। तब तुम को रहने नहीं देंगे। जीने नहीं देंगे। आदि-इत्यादि। कहने की ज़रुरत नहीं कि सपा के यह गुंडे हैं। सपा के सामान्य कार्यकर्ता नहीं।