Wednesday, 11 March 2020

जब माधवराव सिंधिया ने अपनी दोनों बहनों को संजय गांधी को सौंप दिया था

ज्योतिरादित्य सिंधिया 

ज्योतिरादित्य सिंधिया के कल कांग्रेस से इस्तीफ़ा देते ही कुछ अधजल गगरी वाले छलकने लगे। आज भाजपा ज्वाइन करते ही और छलकने लगे। बिन पानी छलकने लगे। कांग्रेसी तो कांग्रेसी सेक्यूलरिज्म के नाम पर कांग्रेस और कम्युनिस्टों की भड़ैती करने वाले , एन जी ओ फंडिंग की हड्डियां चूस कर कोर्निश बजाने वाले लेखक , कवि  , पत्रकार आदि सिंधिया को धुआंधार गद्दार का खिताब देने लगे। जयचंद आदि नाम से नवाजने लगे। कांग्रेस का खाया गाने और बजाने लगे। गोया ज्योतिरादित्य ने कल ही कांग्रेस छोड़ी , आज भाजपा ज्वाइन की , कल ही उन के पुरखों ने गद्दारी की। कंपनी बहादुर को कल ही सिंधिया के पूर्वजों ने कोर्निश बजाई और रानी झांसी लक्ष्मीबाई को फंसा दिया। मणिकर्णिका को मरवा दिया। और सुभद्रा कुमारी चौहान ने कल ही खूब लड़ी मर्दानी कविता लिख कर सिंधिया का पर्दाफाश कर दिया। 

कांग्रेस के सारे टुकड़खोर यह बताना भूल गए कि सारे राजा , महाराजा तब ऐसे ही थे। अलग बात है आज भी वैसे ही हैं। आगे भी ऐसे ही रहेंगे। जैसे सेक्यूलरिज्म के नाम पर यह कवि , लेखक , पत्रकार कांग्रेस और कम्युनिस्टों की टुकड़खोरी करते मिलते हैं। तब ब्रिटिश पीरियड में यह राजे , महाराजे ब्रिटिशर्स के तलवे चाटते फिरते थे। इन सब का गुणगान कभी पढ़ना हो तो जिस सावरकर को पानी पी-पी कर यह टुकड़खोर गरियाते रहते हैं , एक लतीफा पप्पू गांधी अपनी जहालत में चीखता हुआ कहता है मैं राहुल सावरकर नहीं हूं , पहले उस सावरकर के लिखे को पढ़ें। सावरकर के जीवन , त्याग और बलिदान को पढ़ें। सावरकर को पढ़ेंगे तो पाएंगे कि ब्रिटिश पीरियड में अपना राजपाट बचाने के लिए इन हिंदू राजाओं ने क्या-क्या धतकरम नहीं किए थे। जिस सतारा से सिंधिया की वंश बेल जुड़ी हुई है , उसी सतारा की रानी  ने जब अंग्रेजों के आगे समर्पण कर दिया तो सावरकर बहुत क्रुद्ध हुए। लिखा कि कीड़े पड़ें सतारा की रानी को। ऐसे ही तमाम हिंदू राजाओं को अपनी घृणा का पात्र बनाते हैं सावरकर। दुत्कारते हैं। सिंधिया घराने को भी वह नहीं बख्शते। दूसरी तरफ हिंदुत्व के लिए गाली खाने वाले सावरकर , मुस्लिम राजाओं की तारीफ़ करते मिलते हैं। क्यों कि अपना मुस्लिम राज पाने ही के लिए सही मुस्लिम राजा जगह-जगह अंग्रेजों से लड़ते दीखते हैं। 

इस लिए भी कि सावरकर अंग्रेजों से लड़ने वाले योद्धा थे। अंग्रेज अगर किसी से सचमुच डरते थे तो सावरकर ही से डरते थे। इंदिरा गांधी कोई मूर्ख नहीं थीं , जिन्हों ने सावरकर पर डाक टिकट जारी किया था। सावरकर अकेले भारतीय हैं जिन्हें ब्रिटिश हुकूमत दो-दो बार आजीवन कारावास की सजा देती है। वह भी काला पानी की सजा। ब्रिटेन में गिरफ्तार करती है तो पानी के जहाज से समुद्र में कूद कर वह भाग लेते हैं। एक प्रसंग आता है कि गांधी लंदन से भारत आने की तैयारी में हैं। लेकिन गांधी के राजनीतिक गुरु गोखले फ़्रांस से उन को चिट्ठी लिखते हैं कि बिना मुझ से मिले भारत न जाएं। गोखले फ़्रांस में अपना इलाज करवा रहे हैं। गांधी रुक जाते हैं। दुर्भाग्य से तभी विश्वयुद्ध छिड़ जाता है। तमाम रास्ते बंद हो जाते हैं। फ़्रांस और लंदन का रास्ता भी बंद हो जाता है। हालां कि लंदन और भारत का रास्ता खुला हुआ है। फिर भी गांधी भारत नहीं आते। लंदन में ही अपने गुरु गोखले की प्रतीक्षा करते हैं। कोई छ महीने बाद गोखले लंदन आते हैं। गांधी उन से मिलते हैं। वह गांधी को बहुत सी बातें बताते हैं और कहते हैं कि भारत में एक त्रिमूर्ति है। कुछ भी करने , शुरू करने से पहले इन तीनों से पहले ज़रूर मिलें। गांधी भारत आते हैं और इस त्रिमूर्ति से मिलते हैं। यह त्रिमूर्ति हैं रवींद्रनाथ टैगोर , सावरकर और  मुंशीराम। मुंशीराम को बाद में श्रद्धानंद नाम से जाना गया।

लेकिन आज की तारीख में लोग पढ़ते कहां हैं ? पढ़ने के नाम पर फेसबुक , वाट्सअप , ट्यूटर आदि ही पढ़ते हैं। बाकी बचा समय इधर-उधर की टुकड़खोरी और जहर उगलने में खर्च करते हैं। सच सुनना ही नहीं पसंद करते लोग। अगर अपनी पसंद की बात करने वाला न हो तो वह दुश्मन। उस से अलग। बहुत दूर। दूसरों को फासिस्ट कहने वाले लोग खुद बड़े फासिस्ट बन गए हैं। अरे मजा तो तब है जब आप सब की बात सुनें और समझें। फिर उस में से सत्य चुन लें। तथ्य चुन लें। अपनी बात कहें। लेकिन अब लोग अपना एजेंडा चुनते हैं। और कांग्रेस की तरह शोर मचाते हुए बेवजह बहिर्गमन कर जाते हैं।  

खैर , आप को कभी आज की तारीख में भी बिना इतिहास पढ़े अंग्रेजों , राजाओं और नवाबों की जुगलबंदी के बारे में जानना हो तो आज की दिल्ली को देखिए। सिंधिया हाऊस , बड़ौदा हाऊस , हैदराबाद हाऊस , कपूरथला आदि-इत्यादि देखिए। ऐसे बहुत सारे हैं। मालूम है यह सब कैसे बने ? अंग्रेज बहुत होशियार थे। जब नई दिल्ली बसानी थी तब , देश के अंग्रेजपरस्त राजाओं और नवाबों से कहा कि आप दिल्ली आइए। ज़मीन आप को हम देते हैं। जितनी चाहिए लीजिए। और अपना-अपना महल खड़ा कीजिए। दिल्ली में अपना प्रतिनिधित्व कीजिए। अंग्रेजों ने इन राजाओं और नवाबों के खर्च पर नई दिल्ली बसा दी। लुटियंस की दिल्ली कहलाई यह। जब राजा और नवाब आए तो उन का सिस्टम भी आया दिल्ली। उन के सेठ , साहूकार और कारिंदे भी। लग्गू-भग्गू भी। हां , जो कुछ राजा अंग्रेजों से लड़ रहे थे , वह झांकने भी नहीं आए लुटियंस की दिल्ली। बहुत थोड़े से। 

तो राजाओं की निष्ठा सर्वदा से अपने राजपाट के प्रति ही रही। मुगल रहे तो मुगलों के प्रति , अंग्रेज रहे तो अंग्रेजों के प्रति उन की निष्ठा रही। कांग्रेस आई तो उन की निष्ठां कांग्रेस के प्रति हो गई। अब भाजपा है तो उन की निष्ठा भाजपा और मोदी के साथ हो गई है। जैसे कोई उद्योगपति , कोई मीडिया घराना , कोई अफसर तमाम ठेकेदार आदि-इत्यादि सरकार के प्रति निष्ठावान रहते हैं। देश के प्रति गद्दारी से भी यह नहीं चूकते। गद्दारी में जैसे सिंधिया परिवार का इतिहास है , वैसे ही हैदराबाद के निजाम का भी भरा-पुरा इतिहास है। ऐसे तमाम किस्से हैं। 

गद्दारी और गलाजत की इंतिहा यहीं तक नहीं है। आप को मालूम है कि ग्वालियर की राजमाता विजयाराजे सिंधिया का अपने एकमात्र पुत्र माधवराव सिंधिया से बाद के समय में दशकों तक कोई संवाद नहीं रहा। बहुत लंबा विवाद भी रहा। मामला अदालत तक गया। 

जानते हैं क्यों ?

कारण बहुत से हैं। पर मुख्य कारण है इमरजेंसी। विजयाराजे सिंधिया भूमिगत थीं जनसंघी होने के कारण। उन के खिलाफ वारंट घूम रहा था। संजय गांधी को खुश करने और अपना राजपाट बचाने की गरज से माधवराव सिंधिया ने अपनी मां पर ही दांव चल दिया। मां को संदेश भेजा कि आप को नेपाल भिजवाने की व्यवस्था हो गई है। आप महल पर आ जाइए। विजयाराजे सिंधिया ने बेटे माधवराव सिंधिया पर विश्वास कर लिया। नेपाल माधवराव की ससुराल भी है। सो वह महल आ गईं। पुलिस तैयार खड़ी थी। विजयाराजे सिंधिया गिरफ्तार हो गईं। वह बेटे की इस करतूत से हतप्रभ रह गईं। दूसरा किस्सा भी इमरजेंसी में माधवराव सिंधिया द्वारा संजय गांधी को खुश करने का ही है। इस नीच ने दिल्ली के एक होटल में महाऔरतबाज संजय गांधी को बुला कर अपनी दोनों बहनों वसुंधरा राजे सिंधिया और यशोधरा राजे सिंधिया को सौंप दिया। वह तो दोनों बहनें बातों ही बातों में संजय गांधी की मंशा समझ गईं और किसी तरह संजय गांधी को धता बता कर वहां से निकल भागीं। 

इन घटनाओं से सिंधिया परिवार में फूट पड़ गई। आप को बताता चलूं कि इन घटनाओं का ज़िक्र राजमाता विजयाराजे सिंधिया ने अपनी आत्मकथा राजपथ से लोकपथ पर में बहुत विस्तार से किया है। सो इन्हें कपोल-कल्पित न मानें। और कि जानें कि लोग आवरण चाहे जो धारण करें , अपना राजपाट , अपनी राजनीति , अपनी सत्ता सहेजने के लिए कुछ भी कर सकते हैं। कितना भी गिर सकते हैं। लेकिन लोग तात्कालिकता में आ कर बहने लगते हैं। लेकिन सचमुच अगर किसी को आज की तारीख में आप को गद्दार कहने का जी कर ही रहा हो तो सोनिया गांधी को गद्दार कह कर अपनी अभिलाषा पूर्ण कीजिए। अपनी सत्ता पिपासा में , पुत्र मोह में इस महिला ने समूची कांग्रेस जैसी शानदार पार्टी को समाप्त कर दिया है और अब देश को जलाने में संलग्न है।  कल से यह एक लतीफा चला है। इसी से बात का अंदाजा लगा लीजिए। कि दिल्ली की यमुना में पानी कितना बह गया है। 

राहुल: तमसो मा ज्योतिर्गमय.....
सोनिया: मतलब?
राहुल: तुम सोती रहीं मां , ज्योतिरादित्य गया....

तो जैसे सिंधिया के पुरखे अंग्रेजों के पिट्ठू बन कर अपना महल , अपना राजपाट बचा रहे थे , माधवराव सिंधिया अपनी मां को गिरफ्तार करवा कर , अपनी बहनों को संजय गांधी को सौंप कर अपनी राजनीति , अपना राजपाट , अपनी सत्ता संभाल रहे थे तो ज्योतिरादित्य सिंधिया भी खुद को भाजपा को सौंप कर अपनी राजनीतिक अस्मिता सहेजने के ही काम में संलग्न हैं तो चौंकिए नहीं। आत्मसम्मान , जनता की सेवा आदि को शाब्दिक कवच मान लें। आखिर कांग्रेस से वफ़ादारी के नाम पर कब तक अपनी ही दादी राजमाता विजयाराजे सिंधिया के कभी सेवक रहे दिग्विजय सिंह के राजनीतिक जूते खाते कांग्रेस में पड़े रहते और उस सिख दंगे के अपराधी और लुच्चे कमलनाथ से अपमानित होते रहते। ठीक है कि कभी राहुल गांधी से आंख मारने वाली दोस्ती भी थी। संसद में अगल-बगल बैठते भी थे। शाम की महफ़िल के राजदार भी थे। लेकिन एक बात यह भी लिख कर रख लीजिए कि राहुल गांधी की हैसियत अब कांग्रेस में बहादुरशाह ज़फ़र सरीखी हो चली है। बल्कि उस से भी गई गुज़री। बहादुरशाह ज़फर की तो फिर भी कोई हैसियत थी। राहुल गांधी मतलब कांग्रेस में शून्य ! इसी लिए राहुल गांधी अब बाहर से ज़्यादा कांग्रेस में लतीफा बन चले हैं। अपने नशे , विदेशों में रंगरेलियों और अनाप-शनाप बयान देने भर की भूमिका ही शेष रह गई है राहुल गांधी की। कोई सीधे-सीध भले नहीं कहता पर राहुल गांधी कहां हैं ? या विदेश गए क्या कि जाने वाले हैं ? जैसे सवालों का यही अर्थ होता है। सो कांग्रेस अब पुत्र मोह की मारी , बीमार सोनिया गांधी के ठप्पे के साथ अहमद पटेल , दिग्विजय सिंह , कपिल सिब्बल , सलमान खुर्शीद जैसे तमाम लोग चला रहे हैं। सो अभी कांग्रेस की कालिख पोछते हुए और कई सारे ज्योतिरादित्य सिंधिया आहिस्ता-आहिस्ता सामने आने वाले हैं । प्रतीक्षा कीजिए। 

13 comments:

  1. स्वयं कांग्रेस ही अंग्रेजों की बनाई पार्टी है जिसका उद्देश्य था अंग्रेजी शासन के विरुद्ध विद्रोह को रोकना। राजाओं ने अपनी शक्ति के अनुसार समझौता किया था। किसी की भी सम्प्रभुता पूर्ण नहीँ है। भारत में इसके आठ स्तर कहे गये हैं-भोज, महाभोज, राजा, सम्राट्, इन्द्र, महेन्द्र, परमेष्ठी, स्वयम्भू।

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  2. जबरदस्त!
    पर सबसे जबरदस्त तो मुझे आपका यह चुटकुला लगा- 'कांग्रेस जैसी शानदार पार्टी'!

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  3. बहुत ही संतुलित लेख। भाषा व शब्द चयन खूब भाया। नयी जानकारी के साथ अति सुंदर प्रस्तुति। ���� शुभकामनाएं।

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  4. daya bhaiji....daya kijiye.....aapne to pyaz ke chilke ki tarah parat-dar-parat utar diya.....love joo bhaijee......pranam.

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  5. Jabardast, shandar, Bhai ab to manna hi padega ki lekhani aur paini hoti is raho hai lage raho jari rakhi ,

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  6. सावरकर जैसे महान क्रांतिकारी को देश का गद्दार बताने की हिम्मत करने वाले कांग्रेसियों के संस्कार पर अचरज नहीं होता। भारतीय राजवंश के नैतिक-अनैतिक कारनामों से इतिहास के पन्ने भरे पड़े हैं। आपने सिंधिया घराने की कहानी लाकर सही समय पर लेखकधर्म का पालन किया है। वरना हम तो केवल इतना ही जानते थे कि- अंग्रेजों के मित्र सिंधिया ने छोड़ी राजधानी थी, खूब लड़ी मर्दानी वो तो झांसी वाली रानी थी....बहुत आभार आपका

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  7. बहुत बढ़िया जानकारी।

    इस सबके विषय मे तो पता ही नहीं था।

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  8. Hum sabhi bhartiye nagrick milkar, ekjooth hokar apne desh ke uttam savangheen vikas hetu in jaise gaddaro sey door rahkar bhartiye janta party ke saath Chale.
    Jai Hind

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  9. शानदार जानकारी।

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  10. सावरकरजी के बारे मे भी लिखें जिससे हिन्दुओं को पता लगे आजादी मे योगदान किसका था 🙏🏼🚩

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  11. शानदार है 👌👍

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